रानी लक्ष्मी बाई का जीवन परिचय – Rani Laksmi Bai in hindi

स्वतंत्रता सेनानी महान वीरांगना झांसी की रानी About Rani lakshmi bai in hindi की जीवनी के बारे में इस लेख में जानने वाले हैं.भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में 1857 का लड़ाई बहुत ही जबरदस्त और प्रमुख लड़ाई था इसमें कई राज्यों से स्वतंत्रता सेनानियों ने अपना बलिदान दिया था

खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी इस कविता को पाठ्यपुस्तक में पढ़ते हैं जो कि भारत की द्वितीय शहीद वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई थी जिन्होंने 29 वर्ष की उम्र में अपने देश को अंग्रेजों से सुरक्षित करने के लिए अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ते हुए रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई थी

रानी लक्ष्मीबाई के ऊपर कई फिल्में बन चुके हैं तो आइए इस लेख में रानी लक्ष्मी बाई के बलिदानों को उनकी वीरता को विस्तृत रूप से जानते हैं रानी लक्ष्मीबाई ने कैसे अपने साम्राज्य को बचाने के लिए अपने देश को बचाने के लिए अकेले अंग्रेजी साम्राज्य से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुई थी.

About Rani lakshmi bai in hindi 

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई एक महान वीरांगना स्वतंत्रता सेनानी थी 1857 की लड़ाई में लक्ष्मीबाई ने अपना राज्य बचाने के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया रानी लक्ष्मीबाई बहुत ही हिम्मतवाली एक स्त्री थी

वह एक ऐसी वीरांगना थी कि 29 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपने राज्य को बचाने के लिए अंग्रेजों से लोहा ले लिया था लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से लड़ते हुए अपने राज्य और देश के लिए वीरगति को प्राप्त हुई थी. Rani Lakshmi bai ने अपने जीते जी अंग्रेजों को झांसी राज्य पर कब्जा नहीं करने दिया.

About Rani lakshmi bai in hindi language

1857 की लड़ाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजो के खिलाफ यह पहली लड़ाई थी. Jhansi Ki Rani Lakshmi bai बहुत बहादुर और धैर्य रखने वाली स्त्री थी.

महाराज के नहीं होते हुए भी उन्होंने ब्रिटिश सरकार के इतने सारे अंग्रेजो के खिलाफ लड़ते हुए उन्हें थोड़ा भी भय नहीं लगा. उन्होंने वीरता पूर्वक अंग्रेजों से लड़ाई किया. सुभद्रा कुमारी चौहान के लिखे हुए कविता झांसी की रानी में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का बहुत सुंदर वर्णन हैं.

झांसी की रानी के वीरता के कारण ही इस कविता में लिखा हैं खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी इसी से हम लोग अंदाजा लगा सकते हैं की रानी लक्ष्मीबाई कितनी बहादुर और हिम्मतवाली वीरांगना और स्वतंत्रता सेनानी थी.

रानी लक्ष्मीबाई  का जन्म

नामरानी लक्ष्मी बाई
बचपन का नामछबीली,मणिकर्णिका या मनु
जन्‍म19 नवंबर 1828
जन्‍म स्‍थानबनारस
पिता का नाममोरोपंत तांबे
माता का नामभागीरथी बाई
मुंहबोला भाईनानासाहेब
पति का नामराजा गंगाधर राव निंबालकर
पुत्रदामोदर राव
शिक्षाघुड़सवारी,तलवारबाजी,शस्‍त्रों का ज्ञान
कार्यक्षेत्रस्वतंत्रता सेनानी
मृत्‍यु18 जून 1858

Rani Lakshmibai बनारस की रहने वाली थी वह एक मराठा परिवार से थी उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को हुआ था लक्ष्मी बाई को बचपन  का नाम मणिकर्णिका था लेकिन उनके माता-पिता और उनके परिवार वाले उन्हें प्यार से मनु नाम से बुलाते थे

झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के पिता का नाम मोरोपंत तांबे था और उनकी माता का नाम भागीरथी बाई था लक्ष्मी बाई के पिताजी मराठा राज्य के शासक बाजीराव के यहां रहते थे लक्ष्मी बाई के माता बहुत धार्मिक स्त्री थी उनके माता का मृत्यु लक्ष्मीबाई 4 साल की थी तभी हो गया था.

इस वजह से उनके घर में लक्ष्मी बाई का देखभाल करने वाला कोई नहीं था तो उनके पिताजी मोरोपंत तांबे मराठा शासक बाजीराव के यहां अपने साथ लेकर गए थे लक्ष्मी बाई बहुत ही चंचल स्वभाव की थी

उनका स्वभाव ऐसा था कि कोई भी एक बार उनसे मिल लेता था तो उनसे बहुत प्यार करने लगता था इस वजह से लक्ष्मी बाई को बाजीराव के दरबार में लोग छबीली नाम से पुकारते थे इसके बाद Jhansi Ki Rani Lakshmibai का नाम छबीली हो गया.

रानी लक्ष्मीबाई का शिक्षा 

Lakshmibai जब मराठा शासक बाजीराव के दरबार में गई तो वहां पर उन्होंने बाजीराव के दो लड़के थे. बाजीराव के बड़े बेटे नानासाहेब लक्ष्मी बाई को अपनी मुंह बोली बहन बना लिया था

वह लक्ष्मीबाई को बहुत मानते थे लक्ष्मी बाई को बचपन से ही शास्त्रों की शिक्षा और शस्त्रों की शिक्षा लेने में बहुत रुचि था लक्ष्मीबाई ने वहीं पर नानासाहेब और उनके भाई के साथ साथ घुड़सवारी तलवार चलाना सीख लिया था

लक्ष्मी बाई को शस्त्र चलाना अच्छा लगता था इसी वजह से उन्होंने नानासाहेब के साथ मिलकर सारे शस्त्रों का ज्ञान और उनका कैसे उपयोग किया जाता हैं सब सीख लिया था वह जब भी घुड़सवारी करती थी तो ऐसा लगता था उनका घोड़ा हवा से बातें करता हैं.

एक बार नानासाहेब और झांसी की रानी दोनों घुड़सवारी कर रहे थे तो नानासाहेब ने कहा कि तुम मुझसे ज्यादा तेज घुडसवारी नहीं कर सकती हो इस पर झांसी की रानी ने कहा कि मैं तुमसे ज्यादा तेज घुड़सवारी कर सकती हूं

और जब उन्होंने घोड़ा दौड़ाया तो झांसी की रानी दिखाई नहीं दे रही थी सिर्फ धूल ही धूल दिखाई दे रहा था क्योंकि उन्होंने अपना घोड़ा इतना तेज दौड़ाया था कि वहां धूल ही धूल दिखाई देने लगा था.

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का विवाह 1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव निंबालकर के साथ हुआ था शादी के बाद उनका नाम Jhansi Ki Rani Lakshmibai हो गया 1851 में रानी लक्ष्मी बाई को एक पुत्र पैदा हुआ पुत्र के होने से गंगाधर राव और उनके राज्य की जनता बहुत खुश हुए .

बहुत बधाइयां बजे लेकिन वह बच्चा तीन चार महीना का हुआ तो उसकी मृत्यु हो गया. इस वजह से झांसी में शोक हो गया अब तो राजा गंगाधर राव को यह चिंता होने लगा उनके बाद उनका उत्तराधिकारी कौन होगा इन्हीं सब चिंता की वजह से गंगाधर राव का तबीयत खराब हो गया था.

उनका तबीयत दिनों पर दिन बिगड़ता ही जा रहा था कुछ लोगों ने उन्हें दतक पुत्र लेने का सलाह दिया रानी लक्ष्मीबाई और गंगाधर राव ने 1 पुत्र को गोद लिया जिसका नाम उन्होंने दामोदर राव रखा और इसके कुछ ही दिनों बाद महाराज गंगाधर राव का मृत्यु हो गया. उनका मृत्यु 1 नवंबर 1853 को हुआ था.

रानी लक्ष्मीबाई का व्यक्तित्व 

Lakshmibai बहुत ही सरल व्यक्तित्व की थी अपने जनता से बहुत प्रेम और स्नेह करती थी वह अपने प्रजा का बहुत ध्यान रखता थी. रानी लक्ष्मी बाई को हर रोज नियमित रूप से योगा करना अच्छा लगता था Jhansi Ki Rani Lakshmibai धार्मिक कार्यों में भी विशेष रूचि रखती थी

उन्हें राजकिय कार्य में भी महारत हासिल था वह घुड़सवारी तलवार बरसी कटार सब चलाना बहुत अच्छे से जानती थी और उनकी सबसे खास बात थी वह किसी भी गुनाहगारों को सजा देना उचित समझती थी जो जैसा गुनाह करता था उसका उसी तरह से सजा देती थी.

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रानी लक्ष्मीबाई ने 1858 में भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 17 वें दिन अंग्रेजी से अकेले ही लड़ती रही उन्होंने अपनी मातृभूमि को बचाने के लिए अपनी जान को भी निछावर कर दिया लेकिन वह पीछे नहीं हटी

उन्होंने बहुत ही साहस अद्म्‍य के साथ और हुंकार भरते हुए कहा कि मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी रानी लक्ष्मी बाई के वीरता साहस हिम्मत युद्ध कौशल अद्वितीय ताकत, तलवारबाजी, घुड़सवारी आदि गुणों की वजह से मर्दानी के नाम से जाना जाता है

उन्होंने अपने साम्राज्य से अंग्रेजों को दूर करने के लिए अपने राज्य की जनता को बचाने के लिए अंग्रेजों से अकेले ही लड़ाई करने लगी थी

रानी लक्ष्मीबाई का उत्तराधिकारी

जब झांसी के राजा गंगाधर राव का मृत्यु हो गया उनके बाद उनका उत्तराधिकारी उनका दत्तक पुत्र दामोदर राव हुआ लेकिन वह उम्र में बहुत छोटा था जिस वजह से Jhansi Ki Rani Lakshmibai ने राज्य का शासन अपने हाथों में ले लिया

लेकिन उस समय ब्रिटिश इंडिया के गवर्नर जनरल डलहौजी था डलहौजी ने नियम बनाया था कि जिसका दत्तक पुत्र हैं वह अपने राज्य का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता हैं डलहौजी ने राज्य हड़प नीति से ऐसे कई राज्यों पर कब्जा कर लेता था

जब झांसी में भी गंगाधर राव की मृत्यु हो गई तो उसने दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया और डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स की नीति अपना कर डलहौजी ने झांसी राज्य को ब्रिटिश  शासन में मिलाने का फैसला कर लिया.

इस पर Rani Lakshmibai ने अंग्रेजों का विरोध किया और अंग्रेज वकील जान लैंग से सलाह लेकर लंदन की अदालत में अपील दायर किया लेकिन भारत पर अंग्रेजी शासन ही था इस वजह से लंदन के अदालत से अंग्रेजो के खिलाफ कोई फैसला नहीं हुआ रानी लक्ष्मीबाई का केस खारिज हो गया

अंग्रेज झांसी राज्य का सारा खजाना ले लिए और झांसी को अंग्रेजी राज्य में मिलाने का आदेश दे दिया अंग्रेजों ने झांसी की रानी को किला छोड़ने का आदेश दिया लेकिन रानी लक्ष्मीबाई को यह मंजूर नहीं था

7 मार्च 1854 को अंग्रेजों ने झांसी राज्य पर अधिकार कर लिया और रानी लक्ष्मीबाई को अपने रानी महल में जाना पड़ा लेकिन रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह कर दिया.

रानी लक्ष्मीबाई का 1857 की लड़ाई में भूमिका 

1854 में जब डलहौजी ने राज्य हड़प नीति से झांसी राज्य को ब्रिटिश शासन में मिलाने का आदेश दिया तब रानी ने आदेश मानने से मना कर दिया और उन्होंने यह कहा कि मेरी झांसी हैं नहीं दूंगी

Jhansi Ki Rani Lakshmibai अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया और भारत में जितने भी उनकी तरह राजा और रानी थी जो कि पुत्र की वजह से उन्हें अपने राज्य ब्रिटिश राज्य में मिल गया था वैसे राजा और रानियों के साथ झांसी की रानी मिलकर युद्ध की तैयारी करने लगी.

Rani Lakshmibai ने कुछ राजाओं के साथ मिलकर स्वयंसेवक सेना का गठन किया सेना में बहुत सारी महिलाएं शामिल थी जो कि युद्ध प्रशिक्षित थी महिलाओं के साथ-साथ इसमें पुरुष भी थे. 1857 में मेरठ में भारतीय विद्रोह शुरू हुआ था उस विद्रोह का कारण बंदूक था

उस समय एक ऐसा बंदूक आया था जिसमें सूअर और गाय का मांस का परत चढ़ा हुआ था इस वजह से जो हिंदू सैनिक थे उन्होंने यह बंदूक चलाने से इनकार कर दिया क्योंकि इससे उनकी धार्मिक भावनाओं पर वार था और यह विद्रोह धीरे-धीरे पूरे भारत में फैलने लगा

इसी समय सितंबर और अक्टूबर में रानी लक्ष्मीबाई ने भी अपने सैनिकों के साथ झांसी पर चढ़ाई कर दिया रानी लक्ष्मीबाई के सेना में बहुत सारे वीर पुरूष और महिला थे.

रानी लक्ष्मीबाई का 1857 की लड़ाई में भूमिका

उनकी सेना में 14000 सैनिक थे रानी लक्ष्मीबाई घुड़सवारी बहुत अच्छि करती थी उन्हें घोड़ा से बहुत प्रेम था उनके पास दो-तीन घोड़े थे जो कि उनके बहुत प्रिय थे उन्हीं में से घोड़ा था बादल.

1858 में अंग्रेजों ने झांसी को चारों तरफ से घेर लिया लेकिन वहां के सैनिकों ने इतनी वीरता पूर्वक अंग्रेजों से लड़ाई की कि उन्होंने ठान लिया था कि मरते दम तक झांसी राज्य को अंग्रेजों को हड़पने नहीं देंगे. तब उस समय ब्रिटिश अंग्रेज सेनापति हृरोज था

उसने कूटनीति का प्रयोग किया और झांसी के ही एक विश्वासघाती सैनिक से मिलकर उसने एक द्वार खुलवा दिया उसी में सारे अंग्रेज सैनिक राज्य में घुस गए और झांसी पर कब्जा कर लिया इसके बाद झांसी की रानी दामोदर राव को अपनी पीठ पर बांधकर घोड़े पर बैठकर किसी तरह झांसी से निकल गई

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लक्ष्मीबाई वहां से भाग कर काल्‍पी गई और वहां पर उन्होंने तात्या टोपे से मिलकर संयुक्त सेना का गठन किया और ग्वालियर के किले पर कब्जा कर लिया ग्वालियर पहुंचकर रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे वहां के विद्रोही सैनिकों के साथ मिल गए Jhansi Ki Rani Lakshmibai ने ग्वालियर पहुंचकर पुरुष वेश धारण करके लड़ाई करना शुरू कर दिया.

रानी लक्ष्मीबाई का 1857 की लड़ाई में भूमिका

वह अंग्रेज सेनापति किंग्स रॉयल आयरिश के साथ युद्ध करने लगी इस युद्ध में राज रतन नाम के अपने एक घोड़े पर सावारी कर रही थी क्योंकि उनका सबसे प्रिय घोड़ा बादल पहले ही मारा जा चुका था

ग्वालियर के युद्ध करते करते Jhansi Ki Rani Lakshmibai घायल हो गई थी और घोड़े पर से गिर गई लेकिन वह उस समय पुरुष देश में थी इस वजह से अंग्रेज उन्‍हें पहचान नहीं सके और रानी लक्ष्मीबाई के जो सबसे नजदीकी और विश्वासी सैनिक थे उन्हें लेकर वहां पास में ही एक गंगादास मठ था उसी में चले गए.

रानी लक्ष्मीबाई का मृत्यु 

जब Jhansi Ki Rani Lakshmibai ग्वालियर के युद्ध में अंग्रेजों के साथ लड़ते लड़ते घायल हो गई थी तो उनके सबसे नजदीकी और विश्वासी सैनिक गंगादास मठ में ले गए वहां पर उन्हें गंगाजल पिलाया गया तब रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी अंतिम इच्छा अपने सैनिकों को बताया

उन्होंने कहा कि मेरी मृत शरीर को भी कोई अंग्रेज अफसर हाथ नहीं लगाना चाहिए और यह बात उनके सैनिक ने बहुत अच्छे से निभाया 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई का मृत्यु हो गया.

रानी लक्ष्मीबाई एक ऐसी वीरांगना थी जिन्होंने अपने पुत्र को अपने पीठ पर बांधकर अंग्रेजों से लोहा लिया था रानी लक्ष्मीबाई की वीरता को हम लोग सालों साल तक याद रखेंगे रानी लक्ष्मीबाई जैसे वीरांगना ना कभी पैदा हुई हैं और ना ही कभी पैदा होंगी वह हमारे इतिहास में हमेशा के लिए अमर हैं.

सारांश 

1857 की लड़ाई जो कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम लड़ाई था जिसमें कई महिलाओं ने भी पुरुषों के साथ सहयोग किया था उन्होंने अपने शौर्य और पराक्रम का लोहा मनवा दिया था महिलाओं में सबसे महान सबसे साहसी ताकतवर वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई थी जिन्होंने अंग्रेजों के साथ जान जाने तक लड़ाई किया

रानी लक्ष्मीबाई ने महिलाओं के सम्मान के लिए झांसी की जनता की रक्षा अंग्रेजी सरकार से करने के लिए अपनी जान का भी परवाह नहीं किया रानी लक्ष्मीबाई के सेना में महिलाएं भी बहुत थी वह एक बहुत ही कुशल प्रशासक और सेनापति थी महिलाओं को संपन्न करने के लिए उनके अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए अपनी सेनाओं में रानी लक्ष्मीबाई भर्ती करती थी

इस लेख में महान वीरांगना 1857 की एक प्रमुख और प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रानी लक्ष्मी बाई के बारे में पूरी जानकारी दी गई है अगर इस लेख से संबंधित कोई सवाल मन में है तो कृपया कमेंट करके जरूर पूछें.

इस लेख में हमने 1857 की स्वतंत्रता सेनानी और महान वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मी बाई About Rani lakshmi bai in hindi language  के बारे में पूरी जानकारी देने की कोशिश की हैं आप लोगों को यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं और शेयर भी जरूर करें.

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