आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय Acharya Ramchandra Shukla ka jeevan parichay in hindi रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का इतिहास लिखकर भारतीय हिंदी साहित्य के इतिहास में अपने लेखन के बल पर अपना स्थान सर्वश्रेष्ठ बना लिया.
भारतीय हिंदी साहित्य में अपने प्रतिभा से क्रांति पैदा करने वाले आचार्य रामचंद्र शुक्ल एक महान कवि थे भारतीय हिंदी साहित्य में आलोचना के क्षेत्र में रामचंद्र शुक्ल का स्थान सबसे ऊपर है इन्हें आलोचना का सम्राट भी कहा गया है
तो आइए नीचे जानते हैं भारतीय हिंदी साहित्य में गध के युग को किस नाम से जाना जाता है आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म कब औत कहां हुआ उनका साहित्यिक जीवन कैसा था उनकी रचनाएं कौन कौन हैं उनकी मृत्यु कब हुई.
Acharya Ramchandra Shukla ka jeevan parichay
अचार्य रामचंद्र शुक्ला भारत के 20वीं शताब्दी के प्रसिद्ध इतिहासकार और साहित्यकार थे. आचार्य रामचंद्र शुक्ल एक निबंधकार, अनुवादक, संपादक और आलोचक के रूप में जाने जाते हैं.
अचार्य रामचंद्र शुक्ल एक साहित्यकार, रचनाकार, कथाकार और कवि भी थे उन्हें हिंदी के युग प्रवर्तक के रूप में भी जाना जाता है Acharya Ramchandra Shukla ने बहुत सारे आलोचनाओं की भी रचना की है उनके आलोचनाओं में खासकर सैद्धांतिक और व्यावहारिक आलोचना प्रचलित है.

इन्होंने अपनी प्रतिभा से भारतीय हिंदी साहित्य में क्रांति पैदा कर दी थी.इनके समकालीन लेखक उस समय के हिंदी गद्य को शुक्ल युग नाम से पुकारते हैं रामचंद्र शुक्ल की सबसे खासियत यह थी कि वह अपनी रचनाओं में बहुत कम से कम शब्दों में बहुत अधिक बातें कह डालते थे.
रामचंद्र शुक्ल के सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से हिंदी साहित्य का इतिहास रचना है हिंदी साहित्य के इतिहास पाठ्यपुस्तक में भी पढ़ने को मिलता है इस किताब में उन्होंने हिंदी इतिहास के सभी कवि और रचनाकारों के बारे में वर्णन किया है और उनकी रचनाएं भी उन्होंने बताया हैं.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जन्म
शुक्लजी बीसवीं शताब्दी के सबसे प्रसिद्ध साहित्यकार, निबंधकार, इतिहासकार, कवि, आलोचक आदि थे. हिंदी साहित्य का इतिहास जैसे रचना कर के वह भारतीय हिंदी साहित्य में सबसे प्रसिद्ध लेखक बन गए अचार्यजी बस्ती जिला के अगोना गांव के रहने वाले थे उनका जन्म 4 अक्टूबर 1884 को हुआ था.
हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल के पिता का नाम चंद्रबली शुक्ल था और उनकी माता का नाम निवासी देवी था उनके पिता मिर्जापुर में कानूनगो के पद पर नौकरी करते थे रामचंद्र शुक्ल जी के पिताजी का ख्वाहिश था
उनका सपना था कि उनका बेटा भी उन्हीं के तरह उसी विभाग में कानूनगो के पद पर नौकरी करे. रामचंद्र शुक्ल की माता भी एक विदुषी और धार्मिक स्त्री थी पूजा पाठ धार्मिक कार्यों में हमेशा लगी रहती थी.
नाम | आचार्य रामचंद्र शुक्ल |
उपनाम | सरदार और लौह पुरूष |
जन्म | 4 अक्टूबर 1884 |
जन्म स्थान | बस्ती जिला के अगोना गांव |
पिता का नाम | चंद्रबली शुक्ल |
माता का नाम | निवासी देवी |
रचनाएं | निबंधकार, अनुवादक, संपादक और आलोचक |
निबंध | चिंतामणि,विचार विधि |
अनुवाद | मेगास्थनीज का भारतवर्षीय विवरण,आदर्श जीवन,कल्याण का आनंद,विश्व प्रपंच,बुद्धचरित इत्यादि |
संपादन | तुलसी ग्रंथावली,जायसी ग्रंथावली,हिंदी शब्द सागर,नागरी प्रचारिणी पत्रिका,भ्रमरगीत सार,आनंद कादंबिनी |
आलोचना | रस मीमांसा,त्रिवेणी |
मृत्यु | 1941 |
सम्मान | |
मृत्यु | 15 दिसंबर 1950 |
अचार्य रामचंद्र शुक्ल की शिक्षा
रामचंद्र शुक्ला जब 4 साल के थे तभी अपने पिता के साथ हमीरपुर चले गए थे और उनकी शुरुआती पढ़ाई वहीं पर हुई थी उसके बाद कुछ दिनों के बाद उनके पिता की नौकरी मिर्जापुर सदर में कानूनगो के पद पर हो गई इस वजह से उनका पूरा परिवार मिर्जापुर आकर रहने लगा रामचंद्र शुक्ल जब 9 साल के थे
तभी उनके माता का मृत्यु हो गया इस वजह से उनका जीवन बड़ा दुखमय में हो गया था लेकिन उन्होंने मिशन स्कूल से मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की उसके बाद इंटर की पढ़ाई के लिए वह इलाहाबाद चले गए .
इलाहाबाद से उन्होंने इंटर की पढ़ाई पूरी की इसके बाद उनके पिताजी उन्हें वकालत पढ़ने के लिए इलाहाबाद भेज दिया लेकिन रामचंद्र शुक्ला जी को वकालत की पढ़ाई में रुचि नहीं थी इस वजह से वह उत्तरीर्ण नहीं हो सके फिर शुक्लजी मिर्जापुर के ही मिशन स्कूल में अध्यापक के पद पर पढ़ाने लगे
आचार्य रामचंद्र शुक्ल को कई भाषाओं का ज्ञान था हिंदी संस्कृत अंग्रेजी उर्दू बंगला आदि. शुक्ला जी ने इंटर की पढ़ाई भी पूरी नहीं की बीच में ही किसी कारणवश उनकी पढ़ाई छूट गई.
जिसके बाद वह सरकारी नौकरी करने लगे लेकिन उसमें भी किसी तरह की परेशानी होने की वजह से आत्म स्वाभिमान की वजह से उन्होंने नौकरी छोड़ कर मिशन स्कूल में चित्रकला के अध्यापक के रूप में कार्य करने लगे और इसके साथ ही उन्होंने लेखन कार्य भी शुरू कर दिया जिसमें निबंध कहानी कविता नाटक आदि का रचना करने लगे.
उनके लिखे हुए रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में भी छपने लगे और नागरी प्रचारिणी सभा से जुड़कर शब्द सागर के सहायक संपादक के पद पर कार्य करने लगे थे कुछ दिनों बाद अचार्य रामचंद्र शुक्ला बनारस के काशी हिंदू विश्वविद्यालय हिंदी के अध्यापक नियुक्त किए गए.इसके बाद ही उनके साहित्यिक जीवन का शुरुआत हुआ.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्यिक जीवन
शुक्ला जी ने पढ़ाई पूरी होने के बाद मिर्जापुर में मिशन स्कूल में अध्यापक के पद पर कार्य करने लगे इसके बाद उन्होंने लेख लिखना शुरू किया और उनका लेख पत्र-पत्रिकाओं में भी छपने लगा.
उनकी योग्यता देखकर उससे प्रभावित होकर काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने इन्हें शब्द सागर के संपादक का कार्य संभालने को कहा. उसके बाद उन्होंने नागरी प्रचारिणी पत्रिका के संपादन करना शुरू किया. वह एक ऐसे लेखक थे जिनके रचनाओं के बारे में भारतीय हिंदी साहित्य में आज भी चर्चाएं होती हैं.
हिंदी साहित्य का इतिहास लिख कर उन्होंने इतिहास रच दिया रामचंद्र शुक्ल जी के पिता चाहते थे की वो तहसील के दफ्तर में बैठकर काम करें लेकिन आचार्य जी को इस नौकरी में एकदम रुचि नहीं थी
रामचंद्र शुक्ल जी का लेख जो पत्रिकाओं में छपने लगा तो वह पूरे साहित्य जगत में मशहूर होते गए उसके बाद वो काशी के हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के अध्यापक के पद पर भी काम किया .
रामचंद्र शुक्ल का व्यक्तित्व
अचार रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य जगत में कई अमूल्य कृतियों की रचना की उनका पूरा जीवन साहित्य की सेवा में ही बीत गया भारतीय हिंदी साहित्य जगत में उनकी पहचान एक अलग बन गई वह एक निबंधकार, संपादक, समालोचक, लेखक कवि आदि के रूप में प्रसिद्ध हो गए थे अपनी रचनाओं में अचार्य रामचंद्र शुक्ला कई भाषाओं का प्रयोग करते थे
जैसे कि शुद्ध साहित्यिक भाषा, व्यवहारिक भाषा, सरल भाषा, अरबी, फारसी, उर्दू आदि भी शब्द उनके रचनाओं में रहता था सबसे ज्यादा उनकी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम शब्द का प्रयोग ज्यादा रहता था
ग्रामीण समाज में जिस तरह का बोलचाल भाषा बात करने का तरीका होता है छोटी-छोटी ग्रामीण भाषा होती है वह उनकी रचनाओं में ज्यादा होते थे उनकी रामचंद्र शुक्ल कि सबसे ज्यादा ख्याति उनकी प्रसिद्धि हिंदी साहित्य का इतिहास लिख करके मिली थी इस रचना के लिए उन्हें हिंदुस्तान अकादमी से 500 का पारितोषिक सम्मान भी प्राप्त हुआ था
स्कूल में अध्यापक का कार्य करते हुए भी उन्होंने अपनी रचनाएं की थी वह एक प्रसिद्ध निष्पक्ष आलोचक थे एक प्रसिद्ध निबंधकार थे एक सफल और प्रसिद्ध संपादक थे साथ ही एक बहुत ही प्रसिद्ध इतिहासकार भी थे.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचनाएं
Acharya ramchandra shukla की रचनाएं उच्च कोटि की होती थी शुक्ला जी निबंधकार तथा कवि के रूप में ज्यादा जाने जाते हैं इनकी सबसे प्रिय जो थी वह आलोचना थी इसी आलोचना के चलते इन्होंने अपना स्थान विशेष बना लिया है
शुक्लजी का गध के क्षेत्र में विशेष स्थान है उन्होंने निबंध अनुवाद आलोचक आदि की रचनाएं की हैं . उन्हें हिंदी के युग प्रवर्तक के रूप में भी जाना जाता है हिंदी साहित्य का इतिहास जिससे इतिहास में इनका लेखन बहुत सर्वश्रेष्ठ हो गया
उनकी कृतियां ऐतिहासिक सांस्कृतिक धार्मिक दार्शनिक एवं साहित्यिक विषय पर होती हैं. वह कई भाषाओं के ज्ञाता थे जैसे कि हिंदी, उर्दू, बांग्ला, संस्कृत, अंग्रेजी आदि. इन्होंने 19 साल तक नागरी प्रचारिणी सभा में हिंदी शब्द सागर के सहायक संपादक के पद पर रहे. इनकी प्रमुख रचनाएं कुछ इस तरह है.
1. निबंध
- चिंतामणि
- विचार विधि
2. आलोचना
- रस मीमांसा
- त्रिवेणी
3. आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का इतिहास
हिंदी साहित्य का इतिहास
4. अनुवाद
- मेगास्थनीज का भारतवर्षीय विवरण
- आदर्श जीवन
- कल्याण का आनंद
- विश्व प्रपंच
- बुद्धचरित इत्यादि
5. संपादन
- तुलसी ग्रंथावली
- जायसी ग्रंथावली
- हिंदी शब्द सागर
- नागरी प्रचारिणी पत्रिका
- भ्रमरगीत सार
- आनंद कादंबिनी
6. काव्य रचना
- अभिमन्यु वध
- 11 वर्ष का समय
रामचंद्र शुक्ल का मृत्यु
अचार्य रामचंद्र शुक्ला बहुत ही सक्षम कवि निबंधकार आलोचक आदि थे उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि कम से कम शब्दों में बहुत बड़ी से बड़ी बात अपनी रचनाओं में बता देते थे.
आचार्य रामचंद्र शुक्ल की रचनाओं में व्यवहारिक भाषा का भी प्रयोग किया गया है इसके अलावा उनकी रचनाओं में उर्दू फारसी और अंग्रेजी शब्द का भी प्रयोग मिलता है. इस आलोचना के सम्राट हिंदी के युग प्रवर्तक कहे जाने वाले Acharya Ramchandra Shukla का मृत्यु सन 1941 में हुआ था .
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी अपने अंतिम दिनों तक लेखन क्षेत्र में ही बने रहे थे उन्होंने अंतिम दिनों में भी अपने लेखनी नहीं छोड़ी थी भारतीय हिंदी साहित्य में अचार्य रामचंद्र शुक्ल का एक विशेष स्थान है और हमेशा रहेगा .
रामचंद्र शुक्ल की रचनाओं में कई तरह की शैली होती है जैसे कि वर्णनात्मक शैली, विवेकआत्मक शैली, व्याख्यात्मक शैली, आलोचनात्मक शैली, भावनात्मक शैली तथा हादसे व्यंगात्मक शैली . उन्होंने अपनी रचनाओं में यह सारी शैलियों का प्रयोग किया था.
उन्होंने अपनी रचनाओं में संस्कृत के तत्सम भाषा का प्रयोग किया है उन्होंने अपनी रचनाओं में सरल भाषा का प्रयोग किया है और शुद्ध भाषा का भी प्रयोग किया हैं.
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सारांश
इस लेख में आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय Acharya Ramchandra Shukla ka jeevan parichay के बारे में पूरी जानकारी देने की कोशिश की है उनका जन्म शिक्षा साहित्यिक जीवन रचनाएं मृत्यु आदि के बारे में पूरी जानकारी देने की कोशिश की है आचार्य रामचंद्र शुक्ल का जीवन परिचय कैसी लगी कमेंट करके हमें जरूर बताएं और शेयर भी जरूर करें.

प्रियंका तिवारी ज्ञानीटेक न्यूज़ के Co-Founder और Author हैं। इनकी शिक्षा हिंदी ऑनर्स से स्नातक तक हुई हैं, इन्हें हिंदी में बायोग्राफी, फुलफार्म, अविष्कार, Make Money , Technology, Internet & Insurence से संबंधित जानकारियो को सीखना और सिखाना पसन्द हैंं। कृपया अपना स्नेह एवं सहयोग बनाये रखें। सिखते रहे और लोगों को भी सिखाते रहें।