Bhartendu Harishchandra ka jeevan parichay भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाने वाले भारतेंदु हरिश्चंद्र के जीवनी के बारे में पूरी जानकारी हम लोग इस लेख में जानने वाले हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र कौन थे उनका जीवन परिचय उनका जन्म कहां हुआ था उन्होंने कौन सी शिक्षा प्राप्त की थी और उन्हें किस किस भाषा का ज्ञान था
भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्यिक जीवन और उन्होंने कौन-कौन सी रचनाएं की है भारतीय हिंदी साहित्य में भारतेंदु हरिश्चंद्र से आधुनिक काल का शुरुआत माना जाता है रीति काल में जो कवि थे वह किसी न किसी राजा के यहां दरबारी कवि बन कर रहते थे
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ही इस परंपरा को छोड़कर एक स्वस्थ परंपरा अपना ही थी देश में फैली गरीबी शासकों के द्वारा गरीब लोगों के सामान्य मानवीय शोषण करना पराधीनता आदि को भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपनी रचनाओं में वर्णन किया है तो आइए इस लेख में भारतेंदु हरिश्चंद्र के रचनाओं के बारे में उनके जीवन परिचय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते हैं.
Bhartendu Harishchandra ka jeevan parichay
भारतेंदु हरिश्चंद्र आधुनिक हिंदी साहित्य के एक महान कवि थे उनकी महान रचनाओं की वजह से उन्हें भारतीय आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है भारतेंदु हरिश्चंद्र ऐसे कवि थे जिन्होंने हिंदी साहित्य में आधुनिक युग का शुरुआत किया.
Bhartendu Harishchandra कृष्ण भक्त कवि थे. भारतेंदु हरिश्चंद्र भारतीय हिंदी साहित्य जगत के युग निर्माता भी कहे जाते हैं वह कृष्ण भक्त कवि थे वह भगवान श्री कृष्ण के परम भक्त थे उन्होंने कृष्ण भक्ति में बहुत सारी रचनाएं की है उनकी रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण की रासलीला का बहुत सुंदर वर्णन मिलता है.

Bhartendu Harishchandra ने बहुत सारी ऐसी रचनाएं भी की है जिससे इस समाज में सुधार के लिए भी प्रचलित है उन्होंने समाज में कई तरह के कुरीतियों और कुप्रथाओं के खिलाफ आंदोलन चलाने के लिए भी आंदोलित कविता और समाज सुधारक रचनाएं की है वह एक बहुमुखी प्रतिभा के कवि थे.
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म
कृष्ण भक्त कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 में हुआ था वह काशी के रहने वाले थे. इनका ननिहाल काशी के प्रसिद्ध अमीचंद के वंश में था
इनके पिता का नाम गोपाल चंद्र था और इनकी माता का नाम पार्वती देवी था भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता जी उस समय के एक महान कवि थे कविता क्षेत्र में वह गिरधर दास नाम से कविताएं लिखते थे
उनके पिताजी ने लगभग 40 ग्रंथ लिखे थे और उनकी माता एक धार्मिक स्त्री थी उनको कविता लिखने का गुण उनके पिता से ही मिला था भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 5 वर्ष की आयु में ही कविता लिखा था जिसे देखकर सभी अचंभित हो गए थे उनके माता-पिता का बचपन में ही मृत्यु हो गया था.
नाम | भारतेंदु हरिश्चंद्र |
जन्म | 9 सितंबर 1850 |
जन्म स्थान | काशी |
पिता का नाम | गोपाल चंद्र |
माता का नाम | पार्वती देवी |
पत्नि का नाम | मन्ना देवी |
पुत्री | विद्यावती |
कार्यक्षेत्र | निबंधकार,लेखक,कवि,नाटककार,संपादन,व्यंगकार |
सम्मान | भारतेंदु की उपाधी |
रचनाएं | निबंध,लेख,कविता,यात्रा वृतांत,नाटक,संपादन |
संपादन | कवि वचन सुधा,हरिश्चंद्र मैगजीन,बाल बोधिनी |
यात्रा वृतांत | लखनउ की यात्रा,सरयुपार की यात्रा |
नाटक | विद्या सुंदर,रत्नावली,पाखंड विडंबनधनंजय विजय कर्पूर मंजरी,मुद्राराक्षसभारत जननी,दुर्लभ बंधु,वैदिक हिंसा हिंसा न भवति,सत्य हरिश्चंद्र,श्री चंद्रावली विषस्य विषमौषधम,भारत दुर्दशा,नील देवी,अंधेर नगरी,सती प्रताप,प्रेम जोगिनी |
मृत्यु | 1885 |
भारतेंदु हरिश्चंद्र का शिक्षा
भारतेंदु हरिश्चंद्र के माता पिता का मृत्यु उनके बचपन में ही हो गया था इसलिए पढ़ाई के लिए उन्हें कुछ अच्छा माहौल या साधन नहीं मिल पाया. जिस वजह से उन्होंने घर पर ही अपनी शिक्षा पूरी की थी भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी अंग्रेजी संस्कृत फारसी मराठी गुजराती आदि भाषाओं का ज्ञान था.
उनको बचपन से ही कविता लिखने में मन लगता था उनका विवाह 13 वर्ष की आयु में ही हो गया था .भारतेंदु हरिश्चंद्र के पूर्वज अंग्रेजों से तालमेल रखते थे इसीलिए उनके पास धन अधिक था वह समाज में धनवान और प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे
10 वर्ष की जब अवस्था भारतेंदु हरिश्चंद्र के थे तभी उनके माता पिता की मृत्यु हो गई थी उन्होंने बनारस के क्वींस कॉलेज में अध्ययन किया था लेकिन उनका मन पढ़ने में बहुत कम लगता था काशी के राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद को अंग्रेजी का ज्यादा जानकारी था
इसीलिए भारतेंदु उन्हें अपना गुरु मानते थे और उन्हीं से अंग्रेजी की विद्या हासिल की थी अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी संस्कृत गुजराती मराठी पंजाबी उर्दू बांग्ला मारवाड़ी आदि भाषाओं का भारतेंदु हरिश्चंद्र को ज्ञान था.
भारतेंदु हरिश्चंद्र का विवाह
हरिश्चंद्र के पिताजी मे भी काव्य की प्रतिभा थी इसीलिए भारतेंदु हरिश्चंद्र को भी काव्य प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिला था 5 वर्ष की उम्र में ही हरिश्चंद्र ने एक दोहा लिखकर अपने पिता को सुनाया था 13 वर्ष की उम्र में ही भारतेंदु हरिश्चंद्र का विवाह हो गया था
उनका विवाह बनारस के ही एक रइस लाल गुलाब राय थे उन्हीं के पुत्री मन्ना देवी से हुआ था भारतेंदु हरिश्चंद्र को मन्ना देवी से दो पुत्र और एक पुत्री हुई थी लेकिन उनके दोनों पुत्रों की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी एक पुत्री विद्यावती थी जो कि बहुत ही पढ़ी लिखी सुशिक्षित थी.
भारतेंदु हरिश्चंद्र का व्यक्तित्व
हिंदी साहित्य में एक सफल निबंध लेखक नाटककार संपादक समाज सुधारक जागरूक पत्रकार एक सशक्त व्यंगकार एक उत्कृष्ट कवि एक महान गद्यकार और कुशल वक्ता आदि थे उन्होंने इतने रचनाएं किए हैं बाल्यावस्था से ही उन्होंने काव्य रचना शुरू कर दिया था
1880 में उनके प्रतिभा से प्रभावित होकर उनकी प्रतिभा को देखते हुए पंडित रघुनाथ, पंडित सुधाकर द्विवेदी, पंडित रामेश्वरदूत व्यास ने उन्हें भारतेंदु की उपाधि से सम्मानित किया इसके बाद से ही हरिश्चंद्र के नाम में भारतेंदु हरिश्चंद्र लग गया.
हरिश्चंद्र ने शुरू से ही अंग्रेजो के द्वारा आम लोगों का शोषण देखा था इसीलिए उन्होंने अपने रचनाओं में पराधीनता शासकों के द्वारा गरीबों पर शोषण होते हुए देखा था देश में गरीबी आदि के बारे में वर्णन किया है कई बार तो उन्हें देश भक्ति के बारे में कविताएं लिखने की वजह से अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा परेशानियां भी झेलनी पड़ी थी
उन्होंने वैष्णव भक्ति के प्रचार के लिए तदीय समाज की स्थापना की थी उनकी महान महान रचनाओं के वजह से 1857 से 1900 तक के समय को भारतेंदु युग के नाम से भी जाना जाता है
भारतीय हिंदी साहित्य में उन्होंने बहुत बड़ा योगदान दिया है भारतेंदु हरिश्चंद्र घूमने का यात्रा करने का बहुत शौक रखते थे वह एक बहुत ही दानी और उदार व्यक्ति थे जो भी उनके यहां सहायता मांगने के लिए आता था
वह कभी भी खाली हाथ उनके घर से नहीं जाता था अपने दानशीलता उदारता के कारण ही उनकी आर्थिक स्थिति बाद में बहुत ही खराब हो गई थी कई जगह से ऋण ले रखे थे जिससे कि बाद में उन्हें क्षय रोग हो गया था.
भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्यिक जीवन
Bhartendu Harishchandra को कविता लिखने का प्रेरणा उनके पिताजी से मिला था एक बार उन्होंने एक कविता लिखकर अपने पिताजी को दिखाया उस समय हरिश्चंद्र की उम्र 5 साल थी तो उनके पिताजी ने देखकर अचंभित होकर उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम कवि बन जाओ उन्होंने बहुत सारी रचनाएं की है
भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का युग निर्माता भी कहा जाता है उन्होंने आधुनिक हिंदी साहित्य में खड़ी बोली और गध साहित्य लिखकर जनक की उपाधि प्राप्त कर ली थी.
उन्होंने देश प्रेम के संबंध में भी कई कविताएं लिखी हैं जिसको देखकर यह अनुमान लगाया जाता है कि वह एक देश प्रेमी कवि भी थे उन्होंने समाज के कुरीतियों और कुप्रथाओं के खिलाफ कई कविताएं लिखी हैं वह कृष्ण भक्त कवि थे
उनकी कविताओं में कृष्ण राधा और गोपियों के प्रेम लीला और रासलीला का वर्णन मिलता है वह एक श्रृंगारिक कवि भी थे उन्होंने 25 वर्ष की आयु में 175 ग्रंथों की रचना कर दी थी .
भारतेंदु हरिश्चंद्र नाटक और काव्य की रचना के साथ हिंदी में पत्रकारिता भी में भी बहुमूल्य योगदान दिया था हरिश्चंद्र चंद्रिका कवि वचन सुधा और बालबोधिनी नाम के पत्रिकाओं में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने संपादन किया था 1873 ईसवी में भारतेंदु हरिश्चंद्र हरिश्चंद्र मैगजीन का संपादन करते थे लेकिन बाद में उन्होंने इसका नाम हरिश्चंद्र चंद्रिका रख दिया.
Bhartendu Harishchandra ki rachna
भारतेंदु हरिश्चंद्र एक कृष्ण भक्त कवि थे यह एक श्रृंगारीक कवि भी कहे जा सकते हैं क्योंकि इन्होंने राधा कृष्ण के प्रेम का इतने अच्छे से वर्णन किया है उनके श्रृंगार का इतना अच्छा से वर्णन किया है कि उसे देखकर उन्हें श्रृंगारीक कभी भी कह सकते हैं उनकी भाषा खड़ी बोली और ब्रजभाषा थी
इन्हीं दोनों भाषाओं में उन्होंने अपने काव्य लिखे हैं Bhartendu Harishchandra को अरबी फारसी उर्दू अंग्रेजी आदि भाषाओं का भी ज्ञान था और उन्होंने अपने काव्य में इसका कुछ कुछ प्रयोग भी किया है यह एक देश प्रेमी कवि भी थे .
Bhartendu Harishchandra के रचनाओं का सबसे प्रधानता यह थी कि उनकी रचनाओं में भक्ति और श्रृंगार दोनों होती है उन्हें भक्ति प्रधान और श्रृंगार प्रधान कवि भी कहा जा सकता है उन्हें हम प्रेमी कभी भी कर सकते हैं
क्योंकि उनकी कविताओं में देश प्रेम और राधा कृष्ण के प्रेम का बहुत सुंदर वर्णन है उनकी रचनाओं में व्यंगात्मक शैली गुणात्मक और भावात्मक शैली का बहुत अच्छे से भी प्रयोग मिलता है.
भारतेंदु हरिश्चंद्र के कुछ प्रमुख रचनाएं
- विद्या सुंदर
- रत्नावली
- पाखंड विडंबन
- धनंजय विजय कर्पूर मंजरी
- मुद्राराक्षस
- भारत जननी
- दुर्लभ बंधु
- वैदिक हिंसा हिंसा न भवति
- सत्य हरिश्चंद्र
- श्री चंद्रावली विषस्य विषमौषधम
- भारत दुर्दशा
- नील देवी
- अंधेर नगरी
- सती प्रताप
- प्रेम जोगिनी
हरिश्चंद्र द्वारा संपादित पत्रिका
- कवि वचन सुधा
- हरिश्चंद्र मैगजीन
भारतेंदु हरिश्चंद्र का भारतीय हिन्दी साहित्य में स्थान
Bhartendu Harishchandra का भारतीय हिंदी साहित्य में एक अलग स्थान है उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक या निर्माता कहा जाता है वह एक देश प्रेमी कवि थे उन्होंने समाज में फैल रहे कुरीतियों और कुप्रथाओं के खिलाफ कविता लिख कर लोगों को जागृत करने का भी काम किया था
Bhartendu Harishchandra के युग कों हिंदी साहित्य में नवजागरण युग का गया है उन्हीं के कविताओं के वजह से रीतिकाल के अंत हुआ और आधुनिक कालका आरंभ हुआ.
हिंदी भाषा को आगे बढ़ाने के लिए हिंदी भाषा को अनेक विधाओं में जुड़ने के लिए भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कई साहित्यिक संस्थाओं का भी गठन किया था भारतीय हिंदी साहित्य में क्षेत्र में नए युग का आरंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र से ही माना जाता है
उन्होंने पुराण भाषा धर्म संगीत सामाजिक रूढ़िवादी आदि विषयों पर भी व्यंग लिखे हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र के रचना की भाषा ब्रजभाषा थी और खड़ी बोली में उन्होंने गद्य लिखे हैं.
भारतेंदु हरिश्चंद्र की भाषा शैली
यात्रा करने के बहुत ही बड़े शौकीन भारतेंदु हरिश्चंद्र थे जब भी उनको समय मिलता था कहीं न कहीं यात्रा पर निकल जाते थे इसीलिए उन्होंने कई यात्रा वृतांत लिखे हैं कई कवि और लेखकों की जीवनी उन्होंने लिखी है
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपनी रचनाओं में अपने काव्यों में कई भाषा शैलियों का प्रयोग किया है जिसमें विचारात्मक शैली, वर्णनात्मक शैली, भावात्मक शैली, विवरणात्मक शैली, व्यंगात्मक शैली, हास्यपूर्ण शैली आदि.
उनकी कई नाटकों में हास्यपूर्ण शैली का प्रयोग मिलता है कई महान लेखकों कवियों की जीवनी उन्होंने लिखी है जिसमें भावात्मक शैली का प्रयोग किया है.भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कई यात्रा वृतांत लिखे हैं सरयुपार की यात्रा लखनऊ की यात्रा वह बहुत ही ज्यादा यात्रा करते थे तो अपने यात्रा के बारे में उन्होंने यात्रा वृतांत लिखा है
जिसमें की विवरणात्मक शैली का उपयोग उन्होंने किया है कई इतिहास ग्रंथ और निबंध की भी उन्होंने रचना की है जिसमें वर्णनात्मक शैली का उपयोग करके उसको बहुत ही सुंदर बनाया है.
भारतेंदु जी के कव्यों की भाषा अधिकतर ब्रजभाषा है कुछ गद्य रचना में उन्होंने खड़ी बोली हिंदी का भी इस्तेमाल किया है साथ ही लोकोक्ति मुहावरा आदि का प्रयोग भी उनके रचनाओं में मिलता है
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने काव्य की भाषा को सुंदर बनाने के लिए अलंकारिक शब्दों का प्रयोग किया है रचनाओं में सरल सुबोध सहज भाषा को उन्होंने विशेष ध्यान देकर प्रयोग किया है.
भारतेंदु हरिश्चंद्र का मृत्यु
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कई संस्थाएं और कई स्कूल का स्थापना किया उन्होंने कई पुस्तकालय नाट्यशालाओं का भी स्थापना किया था गरीब दुखियों का सेवा करना देश और साहित्य का सेवा करना उन्हें बहुत अच्छा लगता था इसी में उन्होंने बहुत ही पैसा भी खर्च किया था अपने पैसे को पानी की तरह उन्होंने बहा दिया था.
Harishchandra का मृत्यु बहुत ही कम उम्र में हो गया था उनका मृत्यु 35 वर्ष की आयु में ही हो गया था उन्होंने 25 वर्ष के आयु में 175 ग्रंथों की रचना कर दिया था
उन्होंने गरीब और दीन दुखियों की सहायता करने के लिए बहुत पैसा दान में दिया और दुखी और गरीबों पर बहुत लूटाया इस वजह से उन पर बहुत कर्ज हो गया और इसी कर्ज के वजह से चिंता में डूबे रहते थे और 1 दिन इसी वजह से उनकी मृत्यु हो गई
भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म सुखी संपन्न श्रेष्ठ परिवार में हुआ था लेकिन बाद में उन्होंने अपने दानसिलता अपनी उदारता के कारण अपने सारे धान लुटा दिए थे बाद में उनकी हालत बहुत ही खराब हो गई थी कई जगहों से उन्होंने कर्ज ले लिए थे ऋणग्रस्त होने की वजह से उन्हें क्षय रोग हो गया था
जिससे 1885 में उनकी मृत्यु हो गई समाज सेवा साहित्य सेवा देश सेवा आदि में ही इन्होंने अपने जीवन समर्पित कर दिया था.उनकी मृत्यु बहुत ही छोटी सी उम्र में हो गई थी लेकिन इसी छोटी उम्र में उन्होंने अपना नाम इतिहास में अमर कर लिया.
- हरिवंश राय बच्चन का जीवनी
- फणीश्वर नाथ रेणु का जीवनी
- सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवनी
- रामधारी सिंह दिनकर के जीवन परिचय
- मुंशी प्रेमचंद का जीवनी
सारांश
Bhartendu Harishchandra ka jeevan parichay भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी को लोकप्रिय भाषा बनाने के लिए हिंदी को विकसित करने के लिए उन्होंने कई गद्य रचना किए हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र मुख्यरूप से श्रृंगार और प्रेम के कवि थे उनकी कविताओं में भक्ति भावना राष्ट्रीय भावना राधा कृष्ण की प्रेम लीला नायिका और नायक के सौंदर्य लीला उनके मनोहारी चित्रण काम क्रीड़ा आदि का वर्णन मिलता है.
इस लेख में भारतीय हिंदी साहित्य के युग प्रवर्तक भारतेंदु हरिश्चंद्र के बारे में पूरी जानकारी दी गई है फिर भी अगर इस लेख से संबंधित कोई सवाल आपके मन में है तो कृपया कमेंट करके जरूर पूछें.
इस लेख में हमने आधुनिक हिंदी साहित्य जगत के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय के बारे में पूरी जानकारी देने की कोशिश की है आप लोगों के जानकारी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताएं और शेयर भी जरूर करें.

प्रियंका तिवारी ज्ञानीटेक न्यूज़ के Co-Founder और Author हैं। इनकी शिक्षा हिंदी ऑनर्स से स्नातक तक हुई हैं, इन्हें हिंदी में बायोग्राफी, फुलफार्म, अविष्कार, Make Money , Technology, Internet & Insurence से संबंधित जानकारियो को सीखना और सिखाना पसन्द हैंं। कृपया अपना स्नेह एवं सहयोग बनाये रखें। सिखते रहे और लोगों को भी सिखाते रहें।
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