बिहारी लाल का जीवन परिचय रीतिकाल में कई कवि हुए जिनमें सबसे प्रमुख स्थान बिहारी लाल का हैं रीतिकाल के प्रमुख कवि बिहारी लाल के बारे में जानने के लिए इस लेख को पूरा जरूर पढें हम लोग इस लेख में Bihari lal ka jivan parichay के जीवन के बारे में जानेंगे बिहारीलाल कौन थे उनका जन्म कब हुआ और कौन कौन सी रचनाएं और किस तरह के रचनाओं के लिए प्रसिद्ध थे.
बिहारी लाल एक बहुत ही प्रसिद्ध श्रृंगारिक कवि थे वो रीतिकाल के प्रमुख कवि थे Bihari lal की गणना उस समय के सर्वश्रेष्ठ श्रृंगारिक कवियों में की जाती है
Bihari lal के रचनाओं की भाषा समाज शक्ति एवं कल्पना की होती थी इसीलिए कहा जाता है कि उनकी रचनाओं के लिए उन्होंने गागर में सागर समा दिया था भारत के रीतिकाल के प्रमुख कवि एक श्रृंगारिक कवि से संबंधित हम इस लेख में आइए नीचे जानते हैं.
Bihari lal ka jivan parichay
उनकी रचनाओं में बिहारी सतसई बहुत ही प्रसिद्ध रचना है Bihari lal ने 700 से अधिक दोहों की रचना की है उनकी रचनाओं में श्रृंगार रस के दो पक्ष संयोग और वियोग दोनों का बहुत ही अच्छे से वर्णन रहता था.
बिहारीलाल रीतिकाल के एक बहुत ही बड़े कवि थे बिहारी लाल जयपुर के राजा जय सिंह के दरबारी कवि थे जय सिंह के दरबारी कवि के रूप में सम्मान मिलने का कारण उनका काव्य प्रतिभा था उनकी प्रतिभा से मुग्ध होकर उन पर प्रभावित होकर राजा जयसिंह ने उन्हें अपना राजकवि बनाया था.

बिहारी लाल के सबसे प्रसिद्ध रचना बिहारी सतसई है उन्हें रचना से प्रसिद्धि मिली थी बिहारी सतसई में 719 दोहे हैं सभी दोहे इतने प्रचलित है इतने सुंदर और सराहनीय है जिससे कि बिहारी सतसई एक महान रचना बिहारी जी काा बन गया बिहारी लाल की रचनाओं में नायक नायिका का भेदभाव उनके हाव-भाव विलास सौंदर्य आदि का बहुत ही अच्छे से वर्णन किया गया है
जिनमें कृष्ण नायक है और राधा नायिका है उनकी गणना रीतिकाल के जितने भी कवि थे उनमें सबसे उच्च प्रथम स्थान में किया जाता है इसीलिए उन्हें महा कवि बिहारी लाल के नाम से संबोधित किया जाता है बिहारी लाल के रचनाओं में श्रृंगार की प्रधानता रहती थी.
Bihari lal birth in hindi
नाम | बिहारी लाल |
जन्म | 1595 ईसवी |
पिता का नाम | केशव राय |
प्रमुख रचनाएं | बिहारी सतसई |
मृत्यु | 1664 ईसवी |
बिहारीलाल श्रृंगार रस के प्रसिद्ध कवि थे उनका जन्म 1595 ईसवी में हुआ था Bihari lal मध्य प्रदेश के ग्वालियर के रहने वाले थे बिहारीलाल के पिता का नाम केशव राय था.
बिहारी लाल का बचपन
Bihari lall बचपन में ग्वालियर में ही रहते थे लेकिन शादी होने के बाद वह अपने पत्नी के साथ मथुरा चले गए और वहीं पर उन्होंने अपना युवावस्था बिताया ऐसा माना जाता है
बिहारी लाल का बुंदेलखंड में बचपन बीता था वह जब छोटे थे तभी उनके पिता ओरछा लेकर आ गए थे बिहारी लाल मथुरा के चौबे थे बिहारीलाल का जब विवाह हुआ तो उसके बाद मथुरा में अपने ससुराल में रहने लगे यह बातें उन्होंने अपने दोहा लिखकर के भी बताई है
- जन्म ग्वालियर जानिए खंड बुंदेले बाल
- तरुणाई आई सूघर मथुरा बसी ससुराल..
जब वह अपने ससुराल में रहने लगे तो उनका कोई ज्यादा आदर सम्मान नहीं करता था उसके बाद वो जयपुर चले गए.
बिहारी लाल की शिक्षा
रीतिकाल के सुप्रसिद्ध श्रृंगारी कवि बिहारी लाल के गुरु स्वामी वल्लभाचार्य जी थे है और उनके गुरु नरहरी दास भी थे.बिहारी लाल ने काव्य और ग्रंथों की शिक्षा आचार्य केशवदास से लिया था आचार्य केशवदास हिंदी के बहुत बड़े प्रसिद्ध कवि थे जब बिहारी लाल की अब्दुल रहीम खानखाना से मुलाकात हुई.
तो उनसे उन्होंने उर्दू फारसी का शिक्षा प्राप्त किया बिहारी लाल को कई भाषाओं का ज्ञान था वह अपनी रचनाएं ब्रज भाषा में ही लिखते थे ब्रजभाषा के साथ-साथ उन्हें पूर्वी हिंदी उर्दू बुंदेलखंडी फारसी आदि भाषाओं का भी ज्ञान था.
बिहारीलाल का साहित्यिक जीवन
ऐसा कहा जाता है कि जब बिहारीलाल जयपुर गए तो उस समय वहां के राजा जय सिंह थे जय सिंह की जब शादी हुई तो अपनी पत्नी के प्रेम में ऐसे रंग है कि उन्हें अपने राजकाज का भी ध्यान नहीं रहा उनके सैनिकों को इस बात के लिए चिंता होने लगी.
तो उन्होंने Bihari lal को दरबार में बुलाया जब राजा जयसिंह अपनी पत्नी के वियोग में अपने राजकाज त्याग दिया था तो बिहारी लाल ने एक दोहा के द्वारा उनकी आंखें खोल दी वह दोहा इस प्रकार था
- नहीं पराग नहीं मधुर मधु नहीं विकास यहिं काल.
- अली कली ही सौं विंध्यौ आगे कौन हलाल..
राजा के पास भिजवा दिया वह दोहा पढ़कर राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ जिसके बाद महाराजा जयसिंह की आंखें खुल गई और वह अपने राजकाज में फिर से लग गए महाराजा जयसिंह बिहारी लाल के दोहों से प्रभावित होकर उनके प्रतिभा से प्रभावित होकर के उन्हें कई स्वर्ण मुद्राएं दी.
महाराजा जयसिंह के साथ-साथ उनकी पटरानी अनंत कुमारी भी बिहारीलाल से बहुत खुश हुई बहुत प्रभावित हुई और उन्होंने काली पहाड़ी नाम का एक गांव बिहारी लाल को पुरस्कार के रुप में दे दिया जिसके बाद बिहारी लाल महाराजा जय सिंह के राज दरबार में एक राज कवि के रूप में वही रहने लगे.
इस दोहे को पढ़कर राजा बहुत खुश हुए और उन्होंने Bihari lal को बुलाकर उनसे कहा कि आप ऐसे ही दोहे लिखें आपके हर एक दोहे के लिए मैं आपको एक अशर्फी दूंगा तब बिहारी लाल वहीं राजा के दरबार में रहने लगे.
और दोहे लिखने लगे और उसके बाद उन्होंने बहुत सारे दोहे लिखें और इन दोहों के बदले उन्होंने बहुत सारे पैसे कमाए बिहारी लाल ने बहुत सारे दोहे लिखे लेकिन उनके सभी दोनों में बिहारी सतसई बहुत प्रसिद्ध हुआ.
बिहारी लाल की रचनाएं
वह श्रृंगार रस के कवि थे उनकी रचनाओं में सबसे प्रमुख रचना थी बिहारी सतसई और यह बहुत ही प्रसिद्ध भी हुई इसी रचना की वजह से Bihari lal भी प्रसिद्ध हुए हैं
रीतिकाल के कवियों में प्रसिद्ध कवि थे बिहारी लाल के रचनाओं में श्रृंगार रस के दो पक्षों संयोग और वियोग का बहुत ही अच्छे से वर्णन रहता था उनके रचनाओं में कृष्ण के बारे में वर्णन रहता हैं और उनके काव्य में कृष्ण नायक के रूप में रहते हैं .
उनके काव्य में नायक और नायिका बहुत ही खुशी से और प्रेम से रहते हैं यही उनके दोहों में वर्णित रहता है उनके दोनों में श्रृंगार रस भर भर के मिलता है Bihari lal को संस्कृत, प्राकृत और ज्योतिषी का भी ज्ञान प्राप्त था
जब वृंदावन आए वहीं पर उन्होंने राधा कृष्ण के भक्ति की शिक्षा ली और उसके बाद उन्होंने जो भी रचनाएं कि उसमें कृष्ण को नायक के रूप में दर्शाया है.
बिहारी लाल का बिहारी सतसई सबसे प्रसिद्ध रचना है उसमें 719 दोहे हैं और सभी दोहे इतने अच्छे हैं कि उनको पढ़ने के बाद मन एकदम खुश हो जाता है इन दोनों में यह दर्शाया गया है कि अपने जीवन को कैसे सुंदर बनाया जाए बिहारी सतसई में भक्ति, नीति, हास्य, व्यंग, वीरताश, राज प्रशस्तिश, धर्म, सत्संग, महिमा एवं शृंगार रस वर्णित अनेक दोहे हैं.
Bihari ki rachnaye
- माही सरोवर सौरभ ले
- खेलत फाग दुहू तिय कौ
- जा के लिए घर आई घिघाय
- बौरसरी मधु पान छक्यो
- मैं अपने मनभावन लीनो
- पावस ऋतु वृंदावन की
- होली गुलाल घूंघर भई
- है यह आज वसंत समौ
- गाही सरोवर सौरभ ले
- वंश बड़ो बड़ी संगत पाई
- जानत नहीं लगी मैं
- रतनारी हो थारी अंखड़िया आदि
बिहारी लाल की मृत्यु
बिहारी लाल जयपुर के राजा जयसिंह के दरबार में रहते थे और उन्हीं के प्रेरणा स्वरूप Bihari lal ने बहुत सारे सुंदर दोहों की रचना की थी राजा जयसिंह की कहने के अनुसार की जितने दोहे लिखेंगें उतने दोनों के बदले में उन्हें अशर्फियां मिलेगी इसी फलस्वरूप बिहारी लाल ने बहुत सारे दोहों की रचना की और बहुत सारे धन कमाए.
ऐसा माना जाता है कि बिहारी लाल जयसिंह के दरबार में रहने लगे और दोहों की रचना करने लगे बिहारी लाल के पत्नी का जब मृत्यु हुआ तब उन्होंने वैराग्य का जीवन जीना शुरु कर दिया.
उसके बाद कुछ ही दिनों बाद उनकी मृत्यु 1664 ईसवी में हो गई उन्होंने बहुत सारे दोहे लिखे लेकिन उनके प्रसिद्धि का कारण सबसे ज्यादा उनकी बिहारी सतसई हैं.
बिहारी सतसई Bihari lal की एक बहुत ही अनुपम कृति हैं उनका एक-एक दोहा एक एक अशर्फियों के समान माना जाता है बिहारीलाल हिंदी के बहुत ही सर्वश्रेष्ठ कवि और मुक्तक कार माने जाते हैं.
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सारांश
बिहारी लाल का जीवन परिचय रीतिकाल के महा कवि बिहारी लाल की रचनाओं में संयोग और वियोग का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया था और उनके 719 दोहों की दोहा सतसई बहुत ही प्रसिद्ध हुई ऐसा माना जाता है कि बिहारी लाल के बिहारी सतसई में जितने भी दोहे हैं
उनमे एक दोहे एक उज्जवल रत्न के समान है इस लेख में रीतिकाल के सुप्रसिद्ध कवि एक महान कवि बिहारी लाल के जीवन से संबंधित उनके रचनाओं से संबंधित सभी जानकारी दी गई है
जिसमें बिहारीलाल का जन्म कब और कहां हुआ उनका विवाह किससे हुआ उन्होंने अपने प्रसिद्ध रचना बिहारी सतसई की रचना कैसे की उनका मृत्यु कब हुआ उनकी प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी है
हमने इस लेख में रीतिकाल के कवि बिहारी लाल Bihari lal ka jivan parichay in hindi के बारे में पूरी जानकारी देने की कोशिश की है अगर आप लोगों को यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कृपया कमेंट करके हमें जरूर बताएं और लोगों को भी शेयर जरूर करें.

प्रियंका तिवारी ज्ञानीटेक न्यूज़ के Co-Founder और Author हैं। इनकी शिक्षा हिंदी ऑनर्स से स्नातक तक हुई हैं, इन्हें हिंदी में बायोग्राफी, फुलफार्म, अविष्कार, Make Money , Technology, Internet & Insurence से संबंधित जानकारियो को सीखना और सिखाना पसन्द हैंं। कृपया अपना स्नेह एवं सहयोग बनाये रखें। सिखते रहे और लोगों को भी सिखाते रहें।
Bahut Sundar likha hai bihari ji ke vishay me