Chhayavad Ke Char Stambh छायावाद के चार प्रमुख स्तंभ कौन-कौन है? भारतीय हिंदी साहित्य के इतिहास को 4 कालों में विभक्त किया गया है। जिनमें आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल हैं। इन चारों काल में कई प्रसिद्ध कवि, लेखक, लेखिका, कवित्री आदि हुए हैं। जिनकी कविताएं आज भी विश्व प्रसिद्ध है। इसी आधुनिक काल के अंतर्गत छायावाद युग आता है। छायावाद का शुरुआत द्विवेदी काल के बाद हुआ।
छायावाद काल को हिंदी साहित्य के जो स्वच्छंदतावाद यानी कि रोमांटिक उत्थान था उसी के काव्य धारा का शुरुआत माना जाता है। हिंदी साहित्य के इतिहास में जितने भी काल हुए उनमें आधुनिक काल का सबसे ज्यादा महत्व माना जाता है।
क्योंकि इसी काल में छायावाद काल का आरंभ हुआ और छायावाद काल के आरंभ को ही साहित्य खड़ी बोली का भी स्वर्ण युग माना जाता है। इसी काल से ब्रजभाषा हिंदी काव्य धारा से बाहर निकल गया और खड़ी बोली का शुरुआत हुआ। इसी यूग में गद्य भाषा की समृद्धि होने लगी।
छायावाद काल से पहले के जो भी कवि थे, वह उपदेशात्मक, निराशात्मक, समाज सुधारक आदि से संबंधित काव्य की रचना करते थे। उसको बदलकर छायावाद काल के कवियों ने प्राकृतिक वर्णन, प्राकृतिक प्रेम, नारी प्रेम, मानवीकरण और अनंत और अज्ञात प्रियतम से संबंधित काव्य की रचनाएं करने लगे। जो कि इस युग के विशेषता को भी दर्शाता है।
छायावाद काल के चार स्तंभ कौन कौन हैं
छायावाद काल में कई कवि हुए। लेकिन इनमें प्रमुख चार ऐसे कवि थे जिन्हें छायावाद काल का स्तंभ माना गया। छायावाद काल के चार स्तंभ जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला को माना गया है।
इस काल का आरंभ लगभग 1918 से 1936 तक माना जाता है। वैसे इन चारों के अतिरिक्त और भी कई कवि और लेखक छायावाद कल में थे। जिन्होंने अपनी लेखनी के बल पर अपनी प्रसिद्धि पाई है। छायावाद काल के और भी अन्य कवि थे जैसे कि रामधारी सिंह दिनकर, सुभद्रा कुमारी चौहान, सियारामशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी आदि।

महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, जयशंकर प्रसाद और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला इन छायावाद के चारों कविओं की अलग-अलग विशेषताएं थी। इनके रचनाओं का अलग-अलग महत्व और अलग-अलग विशेषताओं की वजह से ही आज इन कवियों को एक अलग रूप में देखा जाता है।
महादेवी वर्मा की जो भी रचनाएं होती थी, उसमें दुख, वेदना आदि भरपूर समाहित रहती थी। जयशंकर प्रसाद के हर एक रचनाओं में इतिहास का दर्शनशास्त्र के बारे में जानने को मिलता है। उनकी रचनाओं में प्रकृति का दर्शन, प्रकृति और पुरुष के बीच अद्भुत प्रेम, प्रकृति का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाओं की भी एक अलग विशेषता होती थी। उनकी रचनाओं में यथार्थवाद, मिश्रित दर्शन आदि पढ़ने को मिलता है। सुमित्रानंदन पंत की हर एक कविताओं में प्रकृति का अद्भुत चित्रण देखने को मिलता था।
उन्हें प्रकृति से अनन्य प्रेम था। इसीलिए उन्होंने अपनी हर कविताओं में प्रकृति के अलग-अलग सुंदरता को दर्शाया है। उनकी इसी प्रकृति के प्रेम के वजह से सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि के नाम से भी जाना जाता है।
छायावाद का शुरुआत
1918 से 1936 के बीच छायावाद काल का युग माना जाता है। हिंदी साहित्य के स्वच्छंदतावाद का शुरूआत इसी काल से माना जाता है। छायावाद काल का नामकरण मुकुटधर पांडे ने किया था। उन्होंने 1920 में जबलपुर से प्रकाशित होने वाला श्री शारदा पत्रिका में सबसे पहले हिंदी में छायावाद का नामकरण किया।
भारतीय हिंदी साहित्य में कविताओं में जो भाषा शैली का इस्तेमाल किया जाता था, वह अधिकतर ब्रजभाषा, अवधी भाषा या इसके अलावा और कई तरह की भाषाएं होती थी। लेकिन छायावाद काल से ही हिंदी साहित्य में कविताओं में खड़ी बोली के भाषा को इस्तेमाल किया जाने लगा।
इसीलिए इस काल को साहित्य खड़ी बोली का स्वर्ण युग भी कहते हैं। इस काल में कई प्रसिद्ध कविओं ने काव्य धारा का प्रतिनिधित्व किया। सर्वप्रथम 1920 में जबलपुर से जो पत्रिका श्री शारदा नाम का प्रकाशन हुआ, उसी में हिंदी में छायावाद नाम के शीर्षक से एक लेख प्रकाशित हुआ।
छायावाद काल की प्रमुख विशेषता
इस काल के जो भी प्रमुख कवि थे उनकी कविताओं, उनकी रचनाओं में सबसे विशेषता प्रकृति का अद्भुत वर्णन है। प्रकृति का उग्र रूप, प्रकृति का प्रेम, सौंदर्य और प्रकृति को अपना साधना, प्रियतमा और प्रेयसी के रूप में प्रदर्शित किया गया है।
इसमें हर कवि के काव्य में उतार-चढ़ाव, दुख सुख, आशा, निराशा, प्रकृति प्रेम और एक अज्ञान और अनंत प्रियतम के प्रेम को दर्शाया जाता है। इसीलिए इस काल को चित्र भाषा शैली भी कहा जाता है। इस काल को कई साहित्यकारों ने रहस्यवाद का भी नाम दिया।
क्योंकि इसमें एक बिना देखे बिना महसूस किए, अज्ञात प्रियतमा का वर्णन किया गया है। किसी कवि ने प्रकृति को अपने काव्य की प्रेरणा मान ली है। किसी कवि ने प्रकृति को ही एक नारी के सौंदर्य की तरह वर्णन किया हैं कि जिस तरह एक नारी के संदर्भ में आकर्षण होता है, उसी तरह प्रकृति के सौंदर्य में भी आकर्षण होता है।
छायावाद के प्रमुख कवि
छायावाद युग के चार स्तंभ महाकवि जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला है। वैसे तो छायावादी युग में कई कवि हुए लेकिन इस यूग के यह 4 प्रमुख कवि थे।
1. महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा छायावाद के चार स्तंभों में से एक प्रमुख स्तंभ मानी जाती हैं। उन्हें आधुनिक युग के मीरा के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने एक से बढ़कर एक कई काव्य की रचना की है। उनकी रचनाओं में प्रेम और पीर दोनों था।
उनकी भाषा शैली एक अलग ही थी। उनका जन्म 26 मार्च 1960 में हुआ था। उन्होंने कई रचनाएं की जो कि आज के लोग भी बहुत ही ज्यादा पसंद करते हैं।
2. जयशंकर प्रसाद
छायावाद काल में हिंदी काव्य का युग प्रवर्तन जयशंकर प्रसाद के द्वारा ही माना जाता है। उन्ही के द्वारा कविताओं में खड़ी बोली और भाषा का सीधा भाषा का शुरुआत किया गया। उनके कार्यों की वजह से आधुनिक हिंदी साहित्य में उनका व्यक्तित्व विकास, कृति गौरव प्रदान की थी।
उनका जन्म 30 जनवरी 1889 में वाराणसी में हुआ था। जयशंकर प्रसाद को युग प्रवर्तक लेखक के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने कई रचनाएं कीं जिनमें कविता, नाटक, कहानी, उपन्यास आदि प्रसिद्ध हैं।
3. सुमित्रानंदन पंत
समाज से अंधविश्वास और अन्य बुराइयों, कुप्रथाओं और कुरीतियों को खत्म करके समाज सुधारक कार्य सुमित्रानंदन पंत के द्वारा किया गया। उन्होंने अपनी रचनाओं के द्वारा समाज में फैली जो अंधकार थी, उसको हटाने का कार्य किया।
उन्होंने अपने कलम के बल पर समाज के कई लोगों का उद्धार किया। इसके साथ ही उनकी कविताओं में प्रकृति का अद्भुत दर्शन करने को मिलता है। सुमित्रा नंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 में कौसानी गांव में हुआ था।
4. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
हिंदी साहित्य जगत में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की एक अलग पहचान है। उन्होंने जो भी कहानी उपन्यास, निबंध लिखे हैं वह बहुत ही ज्यादा ख्याति पूर्ण और प्रचलित हुए हैं। उनके द्वारा लिखे गए काव्य क्रांतिकारी विचार प्रदर्शित करते थे।
उन्होंने बहुत ही विरोधी और क्रांतिकारी रचनाएं की। इसीलिए उन्हें विद्रोही कवि भी कहा जाता है। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म 21 फरवरी 1899 में पश्चिम बंगाल के महिषादल रियासत के जिला मेदनीपुर में हुआ था।
- रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय
- सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय
- हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय
- माखन लाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय
सारांश
छायावाद काल में प्रमुख स्तंभ के रूप में चार कवियों को माना जाता है। उन्होंने ही भारतीय हिंदी साहित्य में खड़ी बोली का आरंभ किया। जिसके बाद जो भी कवि, लेखक, निबंधकार आदि हुए उन्होंने खड़ी बोली का ही अधिकतर प्रयोग अपने काव्य में किया। इस लेख में छायावाद के चार स्तंभ, छायावाद का शुरुआत और उसकी विशेषताओं के बारे में पूरी जानकारी दी गई है

प्रियंका तिवारी ज्ञानीटेक न्यूज़ के Co-Founder और Author हैं। इनकी शिक्षा हिंदी ऑनर्स से स्नातक तक हुई हैं, इन्हें हिंदी में बायोग्राफी, फुलफार्म, अविष्कार, Make Money , Technology, Internet & Insurence से संबंधित जानकारियो को सीखना और सिखाना पसन्द हैंं। कृपया अपना स्नेह एवं सहयोग बनाये रखें। सिखते रहे और लोगों को भी सिखाते रहें।