Gautam Buddha ka jivan parichay इस पृथ्वी पर बहुत ही महान व्यक्तियों ने जन्म लिया और अपने कर्म के अनुसार इस समाज के लिए एक बेहतर आयाम भी स्थापित किया. उन्हीं में से एक बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध को भी बौद्ध धर्म के लोग भगवान की उपाधि से अलंकृत करते हैं.
गौतम बुद्ध के द्वारा इस मानव समाज के लिए किए गए बेहतर कार्य उनके सेवा भाव मनुष्य के प्रति उनके वैचारिक सिद्धांत ही उनको मनुष्य से ऊपर रखता है. इस पृथ्वी पर अनेकों महापुरुषों ने जन्म लिया जिनको हम लोग अपना आदर्श मानते हैं भगवान मानते हैं.
इसी तरह एक बौद्ध धर्म के उपासक भगवान गौतम बुद्ध के जीवनी के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस लेख को विस्तार से नीचे तक जरूर पढ़ें.
इस पृथ्वी पर अनेको व्यक्तियों ने मनुष्य के रूप में जन्म लिया. लेकिन कई ऐसे व्यक्ति भी इस पृथ्वी पर जन्म लिए जिनको भगवान का अवतार माना जाता है. जैसे कि एक महात्मा बुद्ध भी हैं जिनको विष्णु का अंश अवतार माना जाता है.
कई बार भगवान ने मनुष्य के रूप में इस पृथ्वी पर जन्म लिया और इस पृथ्वी पर लोगों के आचरण व्यवहार एवं धर्म की स्थापना के लिए कई बेहतर संदेश उन्होंने दिया है. भगवान के कई अवतार हुए जिनमें से एक भगवान बुद्ध का अवतार माना जाता हैं.
जिन्होंने हम मानव के लिए एक बेहतर जीवन जीने की जो कला है उसके बारे में उनके द्वारा ज्ञान एवं उपदेश दिया गया जिनका अनुसरण हम लोग अपने जीवन में कभी न कभी जरूर करते हैं.
गौतम बुद्ध का जीवन परिचय Gautam Buddha ka jivan parichay
गौतम बुद्ध ने मानव जीवन में शांति और धर्म की रक्षा करने के लिए उपदेश दिया था. उन्होंने हमेशा अहिंसा का साथ दिया और हिंसा का विरोध किया. उनका यही मानना था कि भोग विलास से मनुष्य का जीवन कभी सफल नहीं होता है. उन्हें अपने जीवन में ज्ञान प्राप्ति और शांति के लिए हमेशा कर्म को प्रधान रखना चाहिए.

किसी भी व्यक्ति को अपने कर्म के अनुसार ही शांति मिल सकता है. बौद्ध धर्म की स्थापना भगवान बुद्ध के द्वारा किया गया था. भगवान विष्णु के नवें अवतार गौतम बुद्ध को कई लोग मानते हैं.
इसीलिए उन्हें भगवान बुद्ध भी कहा जाता था या महात्मा बुद्ध के नाम से भी लोग उन्हें पुकारते थे. उन्होंने अपने सुख सुविधा से भरी हुई जिंदगी अपने राजमहल माता-पिता पत्नी और छोटे से बच्चे को छोड़कर सन्यास धर्म अपनाया. अपने जीवन में शांति प्राप्त करने के लिए ज्ञान प्राप्त करने के लिए जंगल जंगल भटकते रहे.
अंत समय में बिहार के बोधगया में एक पीपल वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ. तभी से उस पीपल वृक्ष को बोधि वृक्ष के नाम से भी जाना जाता है और उस जगह को बोधगया के नाम से पहचान मिली.
गौतम बुद्ध का जन्म
कपिलवस्तु के इक्ष्वाकु वंश राजा शुद्धोधन के घर गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था. भगवान बुद्ध का जन्म 563 ईसा पूर्व में हुआ था. लुम्बिनी में जन्म हुआ था जो कि अब नेपाल में है. उनके पिता का नाम शुद्धोधन था और उनकी माता का नाम महामाया देवी था.
ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध के जन्म के कुछ ही दिनों बाद उनकी माता की मृत्यु हो गई थी. जिसके बाद भगवान बुद्ध का पालन पोषण उनकी मौसी और राजा शुद्धोधन की दूसरी पत्नी महाप्रजापति गौतमी ने किया था. गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था.
लेकिन गौतम कुल में जन्म लेने की वजह से उनका नाम गौतम भी रखा गया था. जब सिद्धार्थ का नामकरण समारोह रखा गया. उस समय कई विद्वान ब्राह्मणों को राजा शुद्धोधन ने बुलाया था.
विद्वान पंडितों ने सिद्धार्थ का भविष्य पढ़कर बताया. उन्होंने सिद्धार्थ को बताया कि यह लड़का आगे चलकर बहुत ही बड़ा राजा बनेगा नहीं तो यह बहुत ही बड़ा पवित्र आदमी बनकर लोगों का मार्गदर्शक बनेगा.
गौतम बुद्ध की शिक्षा
भगवान बुद्ध बचपन से ही बहुत ही दयालु थे.लोगों के प्रति करुणा और दया उनके दिलों में था. जब भी वह किसी व्यक्ति को दुखी देखते थे तो वह अंदर से बहुत ही ज्यादा दुखी हो जाते थे.
किसी भी असहाय बेसहारा लोगों को देखकर उनकी सेवा और उनकी सहायता के लिए आगे रहते थे. सिद्धार्थ को घुड़दौड़, तीर कमान, रथ चलाना, कुश्ती आदि का शिक्षा गुरु विश्वामित्र से मिला था. गुरु विश्वामित्र ने सिद्धार्थ को वेद उपनिषद और राजकाज चलाने आदि की भी शिक्षा दी थी.
भगवान बुद्ध का बचपन
गौतम बुद्ध बचपन से ही दया और करुणा के सागर थे. वह कभी भी दूसरे व्यक्ति को दुखी नहीं देखना चाहते थे. इसीलिए किसी भी प्रतियोगिता में या कहीं भी वह किसी दूसरे को हारते हुए नहीं देख सकते थे.
क्योंकि जब कोई हार जाता हैं तो वह दुखी होता है और यह देखकर सिद्धार्थ को बहुत दुख पहुंचता था. इसीलिए वह खुद हार जाते थे. घुड़दौड़ के समय जब वह घोड़ा पर बैठकर दौड़ते थे उस समय घोड़ा के मुंह से झाग निकलता हुआ देखकर वह परेशान हो जाते थे.
क्योंकि उन्हें लगता था कि वह घोड़ा शरीर से बहुत ज्यादा थक चुका है. इसलिए वह उस पर से उतर जाते थे और उसकी सेवा करने लगते थे. एक बार सिद्धार्थ और उनके चचेरे भाई देवदत्त दोनों बगीचे में खेल रहे थे. उस समय सिद्धार्थ के सामने एक घायल हंस गिर गया.
उसको वह लेकर जाने लगे. तभी उनके चचेरे भाई देवदत्त ने उनसे वह हंस यह कह कर छीन लिया कि उन्होंने उस हंस का शिकार किया है. उस हंस के लिए सिद्धार्थ ने देवदत्त के साथ लड़ाई किया और उस हंस को लेकर अपने घर ले जाकर मरहम पट्टी करके उसे ठीक किया.
बुद्ध का विवाह
गौतम बुद्ध के जन्म के समय विद्वान ब्राह्मणों के द्वारा उनके भविष्य की घोषणा की गई थी कि वह आगे चलकर बहुत बड़े महान पवित्र आदमी पथ प्रदर्शक बनेंगे, इसीलिए उनके पिता महाराज शुद्धोधन गौतम बुद्ध को हर तरह की सुख सुविधा उनके राजमहल में उपलब्ध कराए थे.
उनकी राजमहल में हर ऋतु के अनुसार हर तरह के भोग विलास की व्यवस्था की गई थी . जब सिद्धार्थ 16 वर्ष के हुए तब उनका विवाह यशोधरा नाम की लड़की से हुई .यशोधरा शाक्य कुल की एक कन्या थी. यशोधरा के द्वारा सिद्धार्थ को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम राहुल था.
इतने सारे भोग विलास और यशोधरा जैसी पत्नी के साथ रहते हुए भी गौतम बुद्ध को कभी भी शांति नहीं मिली. उनका मन हमेशा वैराग्य से भरा हुआ रहता था. इसीलिए उन्होंने सुख शांति और ज्ञान की प्राप्ति के लिए अपने गृह का त्याग किया था.
गौतम बुद्ध का हृदय परिवर्तन
महाराज शुद्धोधन के द्वारा गौतम बुद्ध को हर तरह की सुख सुविधा भोग विलास की सामग्री उपलब्ध कराई गई थी. हर ऋतु के अनुसार उनके अलग-अलग महल थे और उन महल में नाच गान मनोरंजन से संबंधित हर प्रकार की सुविधाएं थी.
लेकिन फिर भी महात्मा बुद्ध को मन की शांति कहीं नहीं मिली. कहा जाता है कि एक बार गौतम बुद्ध बगीचे में टहलने के लिए गए थे उसी समय उनके सामने चार ऐसे दृश्य आए जिससे उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया मन की शांति खत्म हो गई.
पहला दृश्य
जब वह अपने बगीचे में सैर करने के लिए जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें एक बूढ़ा व्यक्ति दिखाई दिया. वह व्यक्ति शरीर से बहुत ही दुबला पतला था. उसके दांत टूट गए थे. बाल पक्के हुये थे. चलने में भी उसे परेशानी हो रही थी. वह बूढ़ा व्यक्ति एक लाठी के सहारे चल रहा था फिर भी उसे चलने में कठिनाई हो रही थी.
दूसरा दृश्य
बगीचे में सैर के करने के समय उन्होंने एक रोगी को देखा उस रोगी का पेट फुला हुआ था. उसका शरीर और चेहरा पीला पड़ा हुआ था और बहुत ही मुश्किल से सड़क पार करके जा पा रहा था.
तीसरा दृश्य
सिद्धार्थ को एक तीसरा दृश्य दिखाई दिया जिसमें किसी व्यक्ति का मृत्यु हो गया था. अर्थी को चार आदमी कंधे पर लेकर जा रहे थे और उस मरे हुए व्यक्ति के सगे संबंधी परिवार वाले बहुत ही ज्यादा बिलख बिलख कर रो रहे थे.
यह तीनों दृश्य देखकर सिद्धार्थ को बहुत ही दुख हुआ. मन से विचलित और शांत हो गए. उन्हें यही लगा कि इस जवानी का क्या लाभ है जो कि बुढ़ापे में किसी भी काम का नहीं है. जीवन को बर्बाद कर देती है.
इस शरीर कि स्वास्थ्य का क्या लाभ है जो थोड़ा भी परेशानी होने पर अस्वस्थ होने पर पूरा शरीर नष्ट हो जाता है. इस जीवन से क्या लाभ है जोकि बहुत ही जल्द खत्म हो जाता है बुढ़ापा मौत बीमारी से लोग परेशान हो जाते हैं.
चौथा दृश्य
लेकिन जब सिद्धार्थ बगीचा से सैर करके निकले तो उन्हें एक सन्यासी दिखाई दिए. उस सन्यासी के चेहरे पर शांति और संतुष्टि का भाव था. वह मंद मंद मुस्का रहे थे.
वह ज्ञानी और प्रसन्नचीत दिखाई दे रहे थे. उस सन्यासी के अंदर किसी भी तरह का कोई कामना या लोभ मोह माया नहीं था. उस सन्यासी को देखकर सिद्धार्थ आकर्षित हो गए थे उसी के बाद उन्हें सन्यास जीवन ही सबसे बेहतर जीवन लगा.
घर का त्याग
गौतम बुद्ध एक रोगी एक बूढ़ा और एक अर्थी को देखकर शांत हो गए उनका मन विचलित हो गया. लेकिन वही एक सन्यासी को देखकर वह पूरी तरह से संतुष्ट हो गए. इस घटना के बाद उनका मन राज भवन के भोग विलास में थोड़ा भी नहीं लग रहा था.
इसीलिए एक रात अपनी पत्नी यशोधरा और अपने दूध पीते बच्चे को सोए हुए छोड़कर ज्ञान प्राप्ति के लिए जंगल में निकल गए. भिक्षा मांग कर वह अपना जीवन जीने लगे साथ ही ज्ञान की प्राप्ति के लिए कई जगहों पर भटकते रहे.
बुद्ध के गुरु
वह जंगल में तपस्या के लिए कई वर्षों तक घूमते रहे. घूमते घूमते एक दिन गौतम बुद्ध राजगीर पहुंचे. वहां पर उन्हें अलार कलाम एक सन्यासी मिले. जिनसे उन्होंने तपस्या करना ध्यान लगाने की शिक्षा प्राप्त की.
लेकिन फिर भी उनका मन अशांत ही रहा. उसके कुछ दिनों बाद घूमते घूमते उत्तक रामपुत्र से मिले. उनसे उन्होंने योग और साधना करना सीखा. पहले तो गौतम बुद्ध तपस्या साधना के साथ-साथ कुछ अन्न जल भी ग्रहण करते थे.
तिल चावल खाकर वह अपनी तपस्या में लीन रहते थे. लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने खाना पीना भी छोड़ दिया. दिन रात ध्यान में लगे रहते थे. जिसकी वजह से उनका शरीर बहुत ही कमजोर हो गया था.
एक बार जब वह ध्यान में लीन थे तभी कुछ औरतों के गीत उनके कानों में सुनाई दिए. उस गीत का सार यही था किसी भी चीज का अति नहीं होनी चाहिए. मध्यम मार्ग का अनुसरण करना चाहिए.
तब उन्हें यह समझ में आया कि खाना छोड़ देने से उनका शरीर अस्वस्थ हो जाएगा और ज्यादा खाना खाने से उन्हें तपस्या करने में परेशानी होगी.
भगवान की अराधना करने के लिए अपने शरीर को कष्ट पहुंचाना ठिक नहीं हैं. उसी मध्यम मार्ग को अपनाकर ज्ञान प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर तपस्या करना शुरू किया.
गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति
जंगल जंगल भटकते भटकते कई जगह पर गौतम बुद्ध ने तपस्या किया. लेकिन फिर भी उन्हें शांति नहीं मिली. उन्हें ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई. उन्होंने 2 गुरुओं से भी शिक्षा ली.
फिर भी उन्हें शांति नहीं मिल पाई. इसी तरह एक दिन घूमते घूमते गौतम बुद्ध निरंजनी नदी के तट के किनारेेेे पहुंचे वहां पर एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान लगाया. उन्होने प्रतिज्ञा की कि जब तक ज्ञान प्राप्त नही होगा तब तक तपस्या में रहेगें.
सात दिन और सात रात तपस्या करने के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ. उस दिन वैशाख का पूर्णिमा का दिन था वैशाख पूर्णिमा के दिन पीपल के वृक्ष के नीचे ही सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान की प्राप्ति हुई.
तभी से उनका नाम गौतम बुद्ध पड़ गया.उनका जन्म भी पूर्णिमा के दिन ही हुआ था. तब से लेकर आज तक बैसाख के पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध का जन्मदिन मनाया जाता है.
वह जब ध्यान लगाकर बैठे थे तो उन्हें एक अदृश्य ज्ञान की प्राप्ति हुई और इसी ज्ञान प्राप्ति के बाद उनका मन संतुष्ट और शांत हो गया. जब उन्होंने अपना ध्यान तपस्या खत्म किया तो एक सुजाता नाम की स्त्री के हाथ से खीर खाकर तपस्या तोड़ी.
कई लोग उन्हें महात्मा बुद्ध या भगवान बुद्ध भी कहते हैं. जिस पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्ति हुई उसे बोधि वृक्ष के नाम से जानते हैं तथा वहां के जगह को बोधगया नाम पड़ा. आज भी बोधगया में दूर-दूर से लोग बोधि वृक्ष का दर्शन करने और भगवान बुद्ध की ज्ञान प्राप्ति स्थली को देखने के लिए आते हैं.
बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार
गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति के बाद संसार के हर तरह के सांसारिक मोह माया तृष्णा इच्छा घृणा किसी से उपेक्षा आदि से पूरी तरह से मुक्ति मिल गई थी. जब उन्हें ज्ञान प्राप्ति हुई तो लोगों को ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन्हें प्रकाशमय बनाने के लिए प्रचार प्रसार करने के लिए निकल पड़े.
सबसे पहले उन्होंने अपने उन्हीं 2 गुरुओं को उपदेश देने की सोची जिन्होंने उन्हें सन्यास धारण करने और तपस्या ध्यान लगाने की शिक्षा दी थी. लेकिन जब वहां गए तो पता चला कि वह दोनों गुरु की मृत्यु हो गई थी.
उन्होंने सबसे पहला उपदेश अपने पांच मित्रों को दीया जिनमें कुछ लोगों ने तो उनकी बातों का बिल्कुल भी अनुसरण नहीं किया. लेकिन उनमें से कुछ उनके शिष्य बन गए.
वह पांचों मित्र महात्मा बुद्ध के साथ पहले तपस्या करते थे. लेकिन महात्मा बुद्ध को उस समय शांति नहीं मिली है इसलिए वह उन्हें छोड़कर निरंजनी नदी के तट पर राजगिरी में चले गए थे.
जहां पर उन्हें ज्ञान प्राप्ति हुई. इसीलिए जब उन्हें ज्ञान प्राप्ति हुई तो सबसे पहले उन्होंने अपने उन्हीं पांचो ब्राह्मण मित्रों को उपदेश दिया. उनके इन पांच शिष्यों को पंचवर्गीय कहा जाता है. जो महात्मा बुद्ध ने उपदेश दिया उसको धर्म चक्र प्रवर्तन के नाम से जाना जाता है.
धीरे-धीरे कई लोग गौतम बुद्ध से प्रेरित होने लगे. उनके उपदेश को सुनकर अपने जीवन में उनके द्वारा दिए गए शिक्षा का अनुसरण करने लगे. कई लोग उनके शिष्य बनकर बौद्ध भिक्षु की तरह घूम घूम कर उनके द्वारा दिए गए शिक्षा का प्रचार-प्रसार भी करने लगे.
इसी तरह घूमते घूमते एक बार गौतम बुद्ध अपने राजधानी कपिलवस्तु में भी गए. जहां पर उनके पिता और परिवार में कई लोग उनके शिष्य हो गए. उनके द्वारा दिए गए उपदेश को संग्रहित करने के लिए उनके शिष्यों ने त्रिपिटक बनाया. जिस तरह हिंदू धर्म में वेद उपनिषद महापुराण आदि का स्थान दिया जाता है, उसी तरह बौद्ध धर्म में त्रिपिटक माना जाता है.
- विनय पिटक
- सूत पिटक और
- अभिधम्म पिटक
भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को अष्टांगिक मार्ग को अपनाने की शिक्षा दी .अष्टांगिक मार्ग के द्वारा कोई भी अपने जीवन में ज्ञान शांति की प्राप्ति कर सकता है.
इसके बाद महात्मा बुद्ध के शिष्य जगह-जगह घूम कर महात्मा बुद्ध के द्वारा दिए गए उपदेशों का प्रचार प्रसार करने लगे. अपने देश के साथ-साथ विदेश में भी जाकर प्रचार प्रसार किया जाने लगा.
गौतम बुद्ध का आर्य अष्टांगिक मार्ग
वैसे तो भगवान बुद्ध ने कई शिक्षा अपने शिष्यों को दिया जिसके द्वारा उनके दुखों से मुक्ति मिल सकती हैं. उन्हीं में से एक अष्टांगिक मार्ग था. जिसके द्वारा दुखों से मुक्ति ज्ञान की प्राप्ति बहुत जल्द हो सकती थी.
- सम्यक दृष्टि :- का मतलब चार आर्य सत्य में विश्वास करना.
- सम्यक संकल्प :- मानसिक और नैतिक विकास का प्रतिज्ञा करना.
- सम्यक वाक :- कभी भी हानिकारक बातें और झूठ नहीं बोलना.
- सम्यक कर्म :- कभी भी हानिकारक या गलत कार्य नहीं करना.
- सम्यक जीविका :- कोई भी स्पष्ट या और अस्पष्ट तरीके से गलत या हानिकारक व्यापार नहीं करना.
- सम्यक व्यायाम :- अगर आप गलत है तो अपने आप से सुधरने की कोशिश करना.
- सम्यक स्मृति :- स्पष्ट ज्ञान से किसी भी चीज को देखना या अपनी मानसिक योग्यता अपने आप से पाने की कोशिश करना.
- सम्यक समाधि :- निर्वाण पाना
बौद्ध धर्म का स्थापना
जब भगवान बुद्ध के 60 से भी अधिक शिष्य हो गए तब उन्होंने बौद्ध धर्म का स्थापना किया. गौतम बुद्ध लोगों को ज्ञान प्राप्ति करने के लिए मध्यम मार्ग अपनाने की शिक्षा दी. उन्होंने हमेशा पशु बलि हिंसा, यज्ञ आदि का विरोध किया.
बौद्ध धर्म की स्थापना के बाद उन्होंने लोगों को शिक्षा उन्हीं के आम भाषा पाली भाषा में देना शुरू किया. संस्कृत भाषा लोगों को समझने में परेशानी होती थी. इसीलिए उन्होंने पाली भाषा में प्रचार प्रसार करना शुरू किया.
जिससे लोग उनसे ज्यादा आकर्षित होने लगे. उनके बातों को लोग समझते थे और बहुत सारे शिष्य धीरे धीरे बन गए. बाद में लोगों ने नारी को भी बौद्ध धर्म में भिक्षुणी बनने के लिए मांग करने लगे.
तब भगवान बुद्ध ने स्त्री को भी उसमें आने की अनुमति दी. लेकिन वह दिल से इसे स्वीकार नहीं करते थे. सबसे पहली शिष्य उनकी सौतेली माता महाप्रजापति गौतमी बनी थी.
धीरे-धीरे एक दिन गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा भी और उनके पुत्र राहुल भी उनके शिष्य बन गए.भगवान बुद्ध ने समाधि लगाने के लिए कई नियम बताएं उनका मानना था कि जब आचरण शुद्ध होगा दिमाग स्थिर होगा तभी आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं.

गौतम बुद्ध का व्यक्तित्व
महात्मा बुद्ध का ऐसा व्यक्ति तथा कि कोई भी उनको देखकर उनके प्रकाशमय चेहरे को देखकर आकर्षित हो जाता था. वह बचपन से ही बहुत ही दयालु और करुणामय थे.
बाद में जब गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई तब उन्होंने अपने जीवन के सरल मार्ग को अपनाने के लिए शिक्षा दी. लोगों को जीवन में दुख से मुक्ति प्राप्त करने के लिए कई मार्ग अपनाने के उपदेश दिए.
जिनमें अष्टांगिक मार्ग चार आर्य सत्य प्रसिद्ध है. महात्मा बुद्ध 80 वर्ष की उम्र में भी अपने शिष्यों को पढ़ाते थे. उन्हें उपदेश देते थे. उनके द्वारा स्थापित किए गए बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार उनके शिष्यों ने भारत के साथ-साथ चीन, जापान, कोरिया, थाईलैंड, वर्मा, श्रीलंका, मंगोलिया आदि देशों में किया.
हर देशों से उनके शिष्य बने और उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाकर भगवान बुद्ध के द्वारा दिए गए उपदेश का अनुसरण भी किया. भगवान महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का अवतार भी माना जाता है. उन्होंने अहिंसा अपनाकर सभी जातियों का आदर करना उन्हें समान प्रेम करना सिखाया.
उन्होंने गायत्री मंत्र का अनुसरण करने के लिए बताया. उनका मानना था कि गायत्री मंत्र का पाठ करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है. अगर किसी को सफलता के मार्ग पर चलना है तो उसे ध्यान लगाना जरूरी है.
गौतम बुद्ध के प्रसिद्ध शिष्य
भगवान बुद्ध के कई शिष्य हुए लेकिन उनके सबसे प्रिय शिष्य आनंद माने जाते हैं. कहा जाता है कि जब भी वह उपदेश देते थे तो आनंद को संबोधित करके बोलते थे. ज्ञान प्राप्ति के बाद सबसे पहले उपदेश उन्होंने सारनाथ में दिया था. जहां पर उन्होंने अपने पांच शिष्य बनाए.
जिनका नाम वप्पा, भादिया, महानामा, कौटिल्य तथा अस्सागी था. इनके अलावा उनके कई प्रिय शिष्य थे जैसे अनिरुद्ध, रानी महानमा, कश्यप, देवदत्त, भद्रिका, महा प्रजापति गौतमी, किम्बाल, उपाली आदि.
कई राजा महाराजा भी उनके शिष्य हुए एक से बढ़कर एक डाकू आदि शिष्य बने जिनमें अंगुलिमाल डाकू का कहानी हम लोग जरूर सुने हैं. गौतम बुद्ध की शिष्य मौर्य वंश के महान सम्राट अशोक भी एक शिष्य हुए जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए कई उपदेशों का अभिलेख छपवा कर बटवाया.
सम्राट अशोक
सम्राट अशोक मौर्य वंश के एक महान शासक थे उन्होंने अपने शक्ति बल और सौर्य के द्वारा पूरे भारत पर राज किया. लेकिन एक बार कलिंग राज्य से युद्ध के समय बहुत ही ज्यादा नरसंहार हुआ.
इस नरसंहार से सम्राट अशोक को बहुत ही अशांति पहुंची. वह इस नरसंहार को देखकर हमेशा व्यथित रहते थे. जिससे शांति प्राप्त करने के लिए ज्ञान प्राप्त करने के लिए उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया. बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार उन्होंने भारत के साथ-साथ देश विदेश में भी किया.
अंगुलिमाल डाकू
राजा प्रसनजीत के राज्य में श्रावस्ती से सटे जंगलों में एक अंगुलिमाल डाकू रहता था. जो कि वहां से आने जाने वाले हर एक राहगीर को लूट लेता था और उनकी उंगली काट कर माला बना लेता था. वहां आसपास के लोग अंगुलिमाल डाकू से बहुत ही ज्यादा भयभीत रहते थे.
एक दिन भगवान बुद्ध घूमते घूमते श्रावस्ती में पहुंचे. वहां पर लोगों को भयभीत देखकर उन्होंने कारण पूछा. तब लोगों ने अंगलीमार डाकू के बारे में बताया. यह सुनकर महात्मा बुद्ध उस जंगल में जाने लगे.
उन्हें वहां के ग्रामीणों ने रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन गौतम बुद्ध नहीं माने और उस जंगल में चले गए. आगे चलते हुए कुछ दूर पर जाने के बाद पीछे से किसी का आवाज सुनाई दिया ठहरो.
लेकिन गौतम बुद्ध नहीं रुके और आगे की तरफ जाने लगे. तभी एक भयानक आदमी उन्हें रोक लिया उसकी लाल-लाल आंखें थी, भयानक शरीर था, जिसे देखकर कोई भी डर जाता था.
लेकिन महात्मा बुद्ध प्रसन्नचित्त मुद्रा में खड़े थे . यह देखकर अंगुलिमाल डाकू को अचंभा हुआ. उसने पूछा कि तुम मुझसे डरते नहीं हो. मैं अंगलीमार डाकू हूं. देखो कितने लोगों की मैंने उंगली काटी है मैं एक साथ कई लोगों के सिर भी काट सकता हूं.
यह सुनकर गौतम बुद्ध मुस्कुराने लगे और उन्होंने उससे कहा कि तुम बलवान नहीं हो अगर बलवान हो तो पेड़ पर से 5 पत्ते तोड़ कर लाओ. जब वह 5 पत्ते तोड़कर लाया तो उन्होंने कहा कि इसे ले जाकर फिर से जोड़ दो.
यह सुनकर उसने कहा कि टूटे हुए पत्ते कैसे जुड़ सकता है. तब भगवान बुद्ध ने उसे शिक्षा दी और बताया कि जब तुम किसी को जोड़ नहीं सकते हो तो उसे तोड़ने का अधिकार भी नहीं है.
भगवान बुद्ध का प्रकाशमेय चेहरा देखकर अंगुलिमाल डाकू उनके पैरों में गिर गया और उनका शिष्य बन गया. एक डाकू से वह एक संत बन गया इसी तरह भगवान बुद्ध के कई शिष्य बने.
गौतम बुद्ध की मृत्यु
जब भगवान बुद्ध 80 वर्ष के थे तभी उनका मृत्यु हुआ था. उनकी मृत्यु को महापरिनिर्वाण कहा जाता है. कहा जाता है कि एक कुंडा नाम का लोहार था उसी ने भगवान बुद्ध को भेंट के रूप में खाना दिया था.
वह खाना खाने के बाद भगवान बुद्ध का तबीयत खराब होने लगा. तब उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि अब मेरा परिनिर्वाण का समय आ गया. उन्होंने कहा कि उस लोहार से कहना कि उसका खाना अच्छा था उसके खाने से मुझे कुछ नहीं हुआ हैं. वह समाधी लेने चले गए.
उनकी मृत्यु 400 ईसा पूर्व में हुई थी. लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि उनका मृत्यु 483 ईसा पूर्व में हुई थी. जिस तरह उनके जन्म के बारे में मतभेद है उसी तरह उनकी मृत्यु के बारे में भी इतिहासकारों में मतभेद है. उनका मृत्यु कुशीनगर में हुआ था.
FAQ
गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहां हुई थी
निरंजनी नदी के तट के किनारे एक पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्ति हुई थी. इसीलिए उस वटवृक्ष को बोधि वृक्ष और वहां की जगह को बोधगया के नाम से जाना जाता है.
गौतम बुद्ध ने पहला उपदेश कहां दिया.
ज्ञान प्राप्ति के बाद सबसे पहला उपदेश भगवान बुद्ध ने सारनाथ में अपने पांच मित्रों को दिया.
भगवान बुद्ध के उपदेशों को उनके शिष्यों ने किस तरह संग्रहित किया.
उनके शिष्यों ने उनके उपदेशों को सुरक्षित रखने के लिए त्रिपिटक नाम से संग्रहित किया.
बौद्ध धर्म के 8 प्रतीक चिन्ह क्या है
बौद्ध धर्म की 8 प्रतीक चिन्ह है जो कि बहुत ही पूजनीय है. श्वेत शंख,विजय ध्वज, स्वर्ण मछली, पवित्र छतरी, धर्म चक्र, शुभआकृती, कमल का फूल, शुभ कलश.
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सारांश
Gautam Buddha ka jivan parichay बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध के बारे में इस लेख में विस्तार से बताया गया है. उन्होंने कब और कैसे ज्ञान प्राप्ति की. गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का स्थापना कब किया, उनके शिष्य कौन कौन थे, से संबंधित जानकारी अगर आपको अच्छी लगी है तो कृपया कमेंट करके जरूर बताएं. अगर इस जानकारी से किसी भी तरह का सवाल या सुझाव है तो कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बताएं.

प्रियंका तिवारी ज्ञानीटेक न्यूज़ के Co-Founder और Author हैं। इनकी शिक्षा हिंदी ऑनर्स से स्नातक तक हुई हैं, इन्हें हिंदी में बायोग्राफी, फुलफार्म, अविष्कार, Make Money , Technology, Internet & Insurence से संबंधित जानकारियो को सीखना और सिखाना पसन्द हैंं। कृपया अपना स्नेह एवं सहयोग बनाये रखें। सिखते रहे और लोगों को भी सिखाते रहें।
Nice post 👍