पहले लोग कठपुतली का नृत्य कला करके ज्यादा रोजी-रोटी चलाते थे आज भले ही हर घर में टीवी मोबाइल कंप्यूटर लैपटॉप आदि हो गया है जिस पर कि लोग अपने मन मुताबिक हर तरह के प्रोग्राम फिल्म धारावाहिक किसी भी तरफ रंगमंच आदि देखते हैं.
कठपुतली का प्रोग्राम बहुत ही पुराना एक मनोरंजन का साधन हैं पहले लोगों के मनोरंजन के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रसिद्ध कार्यक्रम रंगमंच पर खेला जाने वाला कठपुतली का नृत्य होता था एक तरह के गुड्डा गुड़िया जोकर आदि के रूप में बनाया जाता था.
लेकिन पहले मनोरंजन के लिए एक बहुत ही प्रसिद्ध कला और नृत्य kathputli in hindi का होता था तो अगर आप लोग कठपुतली क्या है और उसके बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें।
Kathputli in hindi
कठपुतली नाम का अर्थ छोटी गुड़िया या छोटा गुड्डा होता है पहले के जमाने में एक रोजी-रोटी का जरिया कठपुतली का नाच होता था इसको देखने के लिए बहुत ही सारे लोग इकट्ठे होते थे कठपुतली इसे इसलिए कहा जाता है
क्योंकि पहले लकड़ी का यानी कि काष्ठ का पुतला जैसा बना करके इसका नृत्य दिखा कर के लोगों को मनोरंजन किया जाता था इसीलिए इसका नाम कठपुतली पड़ा.

कठपुतली का नाच सबसे ज्यादा बच्चों को अच्छा लगता था क्योंकि इसमें तरह-तरह के मनोरंजनकारी कहानियां शिक्षा से संबंधित कहानियां राजा रानियों की कहानियां kathputli के डांस के माध्यम से दिखाए जाते थे.
पहले बच्चों के लिए एक बहुत ही प्रसिद्ध मनोरंजन का खेल कठपुतली का खेल होता था इसमें छोटे-छोटे गुड्डे गुड़िया काठ का बना हुआ या कपड़ा का बना हुआ रहता था उसको धागे से बांध करके गीत गाकर नाटक के द्वारा तरह-तरह के कहानियां दिखाया जाता था और बहुत ही ज्यादा लोग इसे देखने आते थे और उस कलाकार को अपने तरीके से पैसा देते थे.
गांव-गांव में kathputli का खेल दिखाने के लिए कलाकार आते थे तब गांव के लोग अपने सारे जरूरी काम छोड़ कर के अपने परिवार के साथ अपने बच्चों के साथ मनोरंजन के लिए कठपुतली का नृत्य देखने जाते थे.
हमारे देश में कई जगहों पर कठपुतली का नाच दिखाया जाता है. कठपुतली को कई तरह से रंगों से सजा कर के उसको रंग बिरंगे कपड़े पहना कर के उसे किसी पात्र के रूप में गीत गा गा कर कलाकार दिखाता है.
कठपुतली का इतिहास
kathputli का इतिहास बहुत ही पुराना है इसके बारे में ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में एक महाकवि पाणिनि ने कठपुतली नाटक का उल्लेख अपने एक ग्रंथ में किया है.
कठपुतली के नाच का प्रारंभ लगभग ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती का मन बहलाने के लिए एक काठ का पुतला बनाकर के मनोरंजन किया है था इसके बाद विक्रमादित्य की कहानी में सिंहासन बत्तीसी में कई कठपुतलियों के नाच का वर्णन दिया गया है.
इसमें कठपुतली के कविता के द्वारा कठपुतली के मन का बात बताया जाता है कठपुतली का नृत्य भारत के साथ-साथ कई देशों में प्रसिद्ध है.आजकल भले ही हमारे पास कई तरह के मनोरंजन के साधन है आजकल का जमाना डिजिटली हो गया है लोगों को जो भी देखने का इच्छा करता है.
तत्काल उसी समय अपने मन के अनुसार मोबाइल में देख लेते हैं टीवी में तरह-तरह के प्रोग्राम दिखाए जाते हैं लेकिन पहले आजकल की तरह न लोगों के पास टीवी था न मोबाइल था न ही उतना रेडियो का जमाना था इसलिए लोगों के लिए एक मनोरंजन का साधन कठपुतली का नाच ही हुआ करता था.
कहीं मंच पर किसी भी तरह का नाटक प्रस्तुत होता था तो लोग देखते थे लेकिन कठपुतली का जो नाच होता था वह गांव गांव में घूम घूम के आयोजन करके लोगों का मनोरंजन किया करते थे उसमें कई तरह के नाटक प्रस्तुत किए जाते थे हमारे भारत देश में kathputli का नाच का कला लगभग 2000 वर्ष पुराना माना जाता है.
कठपुतली के प्रकार
जिस तरह हम लोग मोबाइल में या टीवी में कई प्रकार के प्रोग्राम देखते हैं जैसे की फिल्म देखते हैं किसी भी तरह का धारावाहिक देखते हैं नाटक देखते हैं बच्चों के लिए कार्टून आता है बुजुर्गों के लिए किसी तरह के धार्मिक प्रोग्राम आते हैं उसी तरह कठपुतली का नाच भी कई प्रकार के होते हैं.
1. छाया कठपुतली
छाया कठपुतली में एक पर्दे के पीछे पुतले का नाच दिखाया जाता है इसमें प्रकाश के सहारे पर्दे के बीचो बीच दर्शकों को कठपुतली का छायाकृति को दिखा करके दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है पर्दे के उस पार कठपुतली का संचालन प्रकाश के द्वारा किया जाता है.
और परदे के दूसरे तरफ दर्शक एक छाया की तरह कठपुतली को देख सकते हैं उसमें जो छाया प्रस्तुत किया जाता है वह कई तरह के रंगों में होता है छाया kathputli का नाच आंध्र प्रदेश उड़ीसा केरल कर्नाटक तमिलनाडु महाराष्ट्र आदि राज्यों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है.
2. धागा कठपुतली
धागा kathputli के नाच में लकड़ी का बना हुआ पुतला या कपड़ा से बना हुआ पुतला रहता है और उसमें धागे से बांध करके किसी भी कहानी नाटक को प्रस्तुत करके दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है धागा कठपुतली में कई तरह के रंग बिरंगे कपड़े से कठपुतली तैयार किया जाता है.
और उसे धागे के सहारे बांध करके जिस तरह का भी कहानी या नाटक होता है उसी तरह से घुमा घुमा कर के उस को दिखाया जाता है.धागा कठपुतली का नाच बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है.
3. छड़ कठपुतली
छड़ कठपुतली में किसी बहुत ही बड़े छड़ या लकड़ी के सहारे पुतले को बांधकर के नाटक कहानी प्रस्तुत किया जाता है छड़ कठपुतली का नाच पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं.
4. दस्ताना कठपुतली
कठपुतली के नाच में लगभग लकड़ी के बने हुए या रंग बिरंगे कपड़े के गुड्डे गुड़िया जोकर की तरह तैयार करके कहानियां दिखाया जाता है.
लेकिन दस्ताना kathputli के नाच में हथेली उंगली या भुजा के सहारे कठपुतली का नाच दिखाया जाता है इसमें सिर्फ एक घाघरा होता है और उसमें अंगूठे और अंगुलियों के सहारे कठपुतली की तरह बना कर के नाच दिखाया जाता है.
कठपुतली कहां का प्रसिद्ध है
kathputli के नाच में जो व्यक्ति धागा को पकड़कर कठपुतली का नाच दिखाता है तो उस डोरी को पकड़ने वाले व्यक्ति को संस्थापक या सहायक कहा जाता है या उसे सूत्रधार भी कहा जा सकता है क्योंकि जो भी कठपुतली के सहारे नाच या कहानियां दिखाया जाता है वह डोरी पकड़ने वाले के द्वारा ही संचालित किया जाता है तो उसका सूत्रधार वही होता है.
kathputli का नाच सबसे ज्यादा प्रसिद्ध राजस्थान में है वहां पर भाट जाति के लोग सबसे ज्यादा kathputli का नाच दिखाते हैं वह रंग-बिरंगे कपड़ों से कठपुतलियां बनाकर के उनके हाथ पैर बनाते हैं और धागा के सहारे बांधकर के लोगों का मनोरंजन करते हैं वैसे तो इसे हर जगह दिखाया जाता है.
लेकिन सबसे ज्यादा प्रसिद्ध राजस्थान का ही कठपुतली का नाच होता है कठपुतली के नाच में गुड्डे गुड़िया राजा रानी हाथी घोड़ा आदि कपड़े के सील करके बनाया जाता है उसे धागे के सहारे बांधकर के तरह-तरह के गीत गाकर नाटक प्रस्तुत किया जाता है.
kathputli की विशेषता
हमारे समाज में कई तरह के प्रथा कई तरह के कुरीतियां फैली हुई है जिसे की सरकार के द्वारा कानून बनाकर भी खत्म करने का प्रयास किया जाता है
लेकिन किसी भी तरह के प्रथा कुरीतियां इतनी जल्दी खत्म नहीं हो जाती है तो कठपुतली के नाच के माध्यम से कई तरह के प्रथाओं को खत्म करने का संदेश दिया जाता है उन कुरीतियों से समाज में हो रहे हैं हानि को कठपुतली के नाच से बताया जाता है.
जैसे कि समाज में दहेज प्रथा की वजह से कितने लड़कियों का जान चला जाता है नशा करने की वजह से कितने घर बर्बाद हो जाते हैं इस तरह के जो समाज में कई तरह के प्रथाएं बनी हुई है.
वह kathputli के नृत्य में नाटक के द्वारा लोगों को समझाया जाता है इस तरह के जो भी प्रथा होते हैं उनसे जो समाज में लोगों को हानि हो रहा है नुकसान हो रहा है उससे जागरूक होने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.
गांव गांव में घूम कर के कई कलाकार होते हैं जो कठपुतली नृत्य के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का प्रयास करते हैं शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों को जागरूक करते हैं कठपुतली के नाच में बच्चों के मनोरंजन के लिए उन्हें शिक्षा के तरफ उत्साहित करने के लिए कई शिक्षाप्रद कहानियां सुनाई जाती है.
राजा महाराजाओं की कहानियां सुनाई जाती है इस तरह से कठपुतली का नाच समाज में लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए भी दिखाया जाता है.
kathputli poem in hindi
विक्रमादित्य के कहानियां सिंहासन बत्तीसी में कई तरह के कठपुतलियों के नाच के बारे में वर्णन मिलता है जिस कठपुतली को धागे के सहारे बांधकर उन्हें जीवन भर नाचा करके दर्शकों का मनोरंजन किया जाता है लेकिन कठपुतली के मनके पीड़ा को कोई नहीं समझ सकता है.
कठपुतली के माध्यम से कई तरह के वेशभूषा बनाकर के कहानियां नाटक दिखाया जाता है तो इसमें कठपुतली के पीड़ा के बारे में वर्णन किया गया है. कठपुतली के नाच में kathputli का पैर नहीं होता है वह धागे से बंधी रहती हैं और सूत्रधार के सहारे कई तरह की कहानियां दिखाती है तो कठपुतली को गुस्सा आता है कि उसके मन की बात कोई नही समझता हैं.
Kathputli ko gussa kyon aaya
गुस्से से उबली बोली यह धागे
क्यों है मेरे पीछे आगे
इन्हें तोड़ दो मुझे
मेरे पांव पर छोड़ दो
सुनकर बोली और और कठपुतलियां
कि हां बहुत दिन हुए हमें अपने मन के छंद छुए
मगर पाहली कठपुतली सोचने लगी
यह कैसी इच्छा मेरे मन में जगी.
इस तरह कई कविताएं सिंहासन बत्तीसी में कठपुतली के नाच के बारे में दिया गया है जिसमें की कठपुतली के जीवन की पीड़ा उनके मन की पीड़ा को दर्शाया गया है.
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सारांश
हमारे देश की सबसे ज्यादा प्राचीन और सबसे ज्यादा प्रसिद्ध कला और नृत्य kathputli in hindi कठपुतली का नृत्य के बारे में इस लेख में पूरी जानकारी दी गई है अगर इस लेख से संबंधित कोई सवाल मन में है.
तो कृपया कमेंट करके जरूर पूछें और इस जानकारी को अपने दोस्त मित्रों को सोशल साइट्स के माध्यम से शेयर जरूर करें.

प्रियंका तिवारी ज्ञानीटेक न्यूज़ के Co-Founder और Author हैं। इनकी शिक्षा हिंदी ऑनर्स से स्नातक तक हुई हैं, इन्हें हिंदी में बायोग्राफी, फुलफार्म, अविष्कार, Make Money , Technology, Internet & Insurence से संबंधित जानकारियो को सीखना और सिखाना पसन्द हैंं। कृपया अपना स्नेह एवं सहयोग बनाये रखें। सिखते रहे और लोगों को भी सिखाते रहें।