मकर संक्रांति क्‍यो मनाया जाता हैं मकर संक्रांति पर्व पूरी जानकारी

Makar Sankranti In Hindi. भारत में माघ महीने में मकर संक्रांति का त्यौहार मनाया जाता है. यह हिंदू धर्म का एक प्रसिद्ध पर्व माना जाता है. क्योंकि इंग्लिश महीने से जब नया साल शुरू होता है, तो नए साल में सबसे पहला त्यौहार मकर संक्रांति का आता है.

मकर संक्रांति के बाद नए फसल भी तैयार होते हैं. जिससे मकर संक्रांति का उत्सव इसलिए भी मनाया जाता है. वैसे हिंदू धर्म में कई ऐसे महान त्यौहार है जिसको बहुत ही धूमधाम से और मिलजुल कर मनाया जाता है. हर साल मकर संक्रांति 14 जनवरी या 15 जनवरी को ही मनाया जाता है.

वैसे तो 14 जनवरी को भारत के कई राज्य में अलग-अलग नाम से लोग मनाते हैं. लेकिन यूपी में बिहार में अधिकतर मकर संक्रांति के नाम से ही इस त्यौहार को जानते हैं. इस लेख में मकर संक्रांति का त्यौहार क्यों मनाया जाता है, मकर संक्रांति का त्यौहार कब मनाया जाता है, इस त्यौहार से जुड़े कौन से पौराणिक कथा है के बारे में नीचे विस्तार से जानेंगे.

मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है Makar Sankranti In Hindi

मकर संक्रांति नाम से यह तात्पर्य निकलता है कि उस दिन भगवान सूर्य धनु राशि से निकलकर शनि के राशि मकर राशि में प्रवेश करते हैं. इसीलिए इस दिन मकर संक्रांति के नाम से उत्सव मनाया जाता है.

हर साल इस त्यौहार को माघ महीने में कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि के दिन बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है.पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन स्वर्ग का द्वार भी खुला रहता है इसलिए इस दिन जो भी दान और धर्म किया जाता है उसका पुण्‍य सबसे ज्यादा मिलता है.

Makar Sankranti In Hindi

तीर्थराज प्रयाग में हर साल माघ महीने में माघी मेला लगता है. जो कि हर 6 साल पर अर्धकुंभ और 12 साल पर कुंभ का मेला लगता है. तीर्थराज प्रयागराज में सबसे पहला माघी मेला का पहला स्नान मकर संक्रांति के दिन ही शुरू होता है.

यहां पर एक महीने माघी मेला चलता है. इस महीने में तीर्थराज प्रयाग में जो भी लोग मां गंगा,मां यमुना और सरस्‍वती जिसे संगम के नाम से जानते हैं में स्नान करते हैं और दान करते हैं उन्हें मोक्ष प्राप्ति होता है.

मकर संक्रांति के संबंध में पौराणिक कथा

मकर संक्रांति  मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं जिसके बाद ही लोग मकर संक्रांति का त्‍योहार मनाया जाने लगा.जिसमें मां गंगा के धरती पर अवतरित होने के संबंध में और सूर्य भगवान और शनि भगवान के संबंध में पौराणिक कथा हैं.

मां गंगा के धरती पर अवतरण

मां गंगा को धरती पर लाने के लिए भगवान राम के पूर्वज बहुत ही पहले से आराधना और तपस्या करते आ रहे थे. भगवान राम के पूर्वज महाराज सगर के साठ हजार पुत्रों से संबंधित पौराणिक कथा है. एक बार जब सगर राजा ने अपनी प्रजा के लिए पानी की कमी दूर करने के लिए अश्वमेध यज्ञ किया.

उस समय अश्‍वमेघ यज्ञ का घोड़ा चारों ओर घूमते हुए जब स्वर्ग में गया तो भगवान इंद्र ने उसे कपिल मुनि ऋषि के आश्रम में बांध दिया. उस समय महाराज सगर के साठ हजार पुत्रों ने जब घोड़ा को खोजते हुए जब कनिल मुनि के आश्रम गए तो कपिल मुनि के आश्रम के आगे घोड़ा बंधा हुआ देखे. तो वह सभी समझे कि कपिल मुनि ने उनका घोड़ा चुरा लिया है.

वह सभी कपिल मुनि से लड़ाई करने लगे. उस समय कपिल मुनि बहुत ही क्रोधित हुए और महाराज सगर के साठ हजार पुत्रों को श्राप के द्वारा वहीं पर भस्म कर दिया. जब सगर राजा के पुत्र अंशुमन ने यह सब देखा तोउन्‍हों माफी मांगा. तब कपिल मुनि ने इसका एक ही उपाय बताया.

उन्होंने बताया कि मां गंगा का पवित्र जल जब इस भस्म पर डाला जाएगा तभी सगर राजा के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हो सकता है. इसीलिए मां गंगा को धरती पर लाने के लिए अंशुमन ने तपस्या किया. उसके बाद उनके पुत्र भागीरथी ने बहुत दिनों तक तपस्या करने के बाद मां गंगा को धरती पर अवतरित किया.

मां गंगा भागीरथी से प्रसन्न होकर धरती पर अवतरित हुई और वहां से भागीरथी के पीछे-पीछे कपिल मुनि के आश्रम तक गई और जागर सागर में मिल गई. गंगा मां का पवित्र जल जब सगर राजा के साठ हजार पुत्रों के भस्म पर डाला गया तो उन्हें मोक्ष प्रदान हुआ.

ऐसा माना जाता है कि जब मां गंगा कपिल मुनि के आश्रम तक आई और सगर राजा के पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ, उस दिन मकर संक्रांति का दिन था. इसीलिए हिंदू धर्म में ऐसा माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन मां गंगा के जल में स्नान करने से दान पूजा आराधना आदि करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पितामह भीष्म शरीर का परित्याग

जब महाभारत में कौरव और पांडव के पितामह भीष्म को महाभारत युद्ध में तीर लग गया था तो उन्हें कई दिनों तक तीरों की शैया पर रहना पड़ा था. पितामह भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान था. इसलिए उन्होंने महाभारत युद्ध खत्म होने तक अपने आप को जीवित रखा था.

ऐसी मान्यता है कि पितामह भीष्‍म ने अपनी स्‍वेक्षा से अपने शरीर का परित्याग सूर्य के उत्तरायण होने पर ही किया था और उनका श्राद्ध भी जब सूर्य उत्तरायण में थे तभी हुआ था. इसीलिए इस दिन अपने पितरों को तर्पण और तिलांजलि देने पर पितर प्रसन्न होते हैं और समस्त दुखों से छुटकारा मिल जाता है.

मकर संक्रांति के दिन क्या करते हैं

इस त्यौहार के दिन सबसे ज्यादा महात्म्य गंगा जल में स्नान करके गरीब, ब्राह्मण आदि को दान करना होता है. मां गंगा को मोक्षदायिनी पापनाशिनी कहा जाता है. इस दिन सुबह स्नान दान करने के बाद सबसे पहले तिल का बना हुआ लड्डू खाते हैं.

उसके बाद दही चूड़ा खाने का बहुत ही ज्यादा इस दिन महत्व होता है. शाम में उड़द दाल चावल का बना हुआ खिचड़ी खाया जाता है. इसलिए इस त्यौहार को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है. कई जगहों पर मकर संक्रांति के दिन पतंग भी उड़ाया जाता है.

मकर संक्रांति के दिन स्नान दान के साथ पितरों को तिलांजलि देने का भी महत्व माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन अपने पितरों को तिलांजलि देने पर हर तरह के पाप कट जाते हैं पितरों को तर्पण देने से उन्हें मोक्ष भी प्राप्त होती है.

सूर्य भगवान की पूजा का महत्व

मकर संक्रांति के दिन सूर्य भगवान के पूजा का भी बहुत ही ज्यादा महत्व है. इसके संबंध में एक पौराणिक कथा है जिसके बाद से हर साल मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य की पूजा की जाती है. भगवान सूर्य की दो पत्नी थी एक छाया और एक संज्ञा.

भगवान सूर्य ने किसी मतभेद के कारण अपने पुत्र शनि और उनकी माता को अपने से दूर कर दिया था. इसीलिए छाया और सनी ने सूर्य भगवान को श्राप दे दिया था. जिससे उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था. भगवान सूर्य को कुष्ठ रोग से पीड़ित हुआ देखकर यमराज को बहुत ही दुख हुआ और उन्होंने तपस्या करना शुरू कर दिया.

ताकि उनके पिता कुष्ठ रोग से मुक्त हो जाएं. लेकिन सूर्य भगवान ने शनि जो उनके पुत्र थे उन पर क्रोधित ही थे. इन सारी बातों की वजह से भगवान शनि की माता छाया बहुत ही परेशान हो गई. यह देखकर यमराज ने शनि भगवान और उनकी माता छाया को परेशान देखकर अपने पिता सूर्य भगवान को बहुत ही समझाया.

उनके इस व्‍यवहार को देखकर भगवान सूर्य बहुत प्रसन्न हुए और शनि की राशि मकर के घर जाने के लिए तैयार हुए. सूर्य भगवान बोले कि जब मैं आउंगा तब शनि का घर धन धान्‍य से भर जाएगा. तब शनि भ्‍गवान ने कहा कि मकर संक्रांति के दिन जब भी कोई सूर्य भगवान का पूजा अर्चना करेगा दान पुण्य करेगा उसे शनि की दशा से कभी भी परेशानी नहीं होगी और उनके घर में धन संपदा से हमेशा भरा रहेगा. इस दिन सूर्य भगवान के साथ साथ शनि भगवान का भी पूजा किया जाता हैं तो शनि ग्रह से लाभ होता हैं.

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक कारण

जब भी कोई पर्व त्योहार भारत में मनाया जाता है तो उस त्‍योहार के पीछे कई पौराणिक कारण के साथ-साथ वैज्ञानिक कारण भी जुड़ा रहता है. इसी तरह मकर संक्रांति का त्योहार मनाने के पीछे भी कई व्यावहारिक और वैज्ञानिक कारण भी है. इस दिन जब भगवान सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करते हैं उससे प्रकृति में कई तरह के बदलाव होते हैं.

जनवरी महीना में बहुत ही ज्यादा ठिठुरन वाला ठंड पड़ता है जिससे लोग परेशान होते हैं. लेकिन जब भगवान उत्तरायण में प्रवेश कर जाते हैं तो ठंड से लोगों को राहत मिलता है. भारत में कृषि के द्वारा लोगों का सबसे ज्यादा पालन पोषण होता है तो मकर संक्रांति के बाद रवि फसल में भी विकास होता है.

इसे भी पढ़ें

सारांश

Makar Sankranti In Hindi मकर संक्रांति जिसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है, यह त्यौहार हिंदू धर्म का एक बहुत ही बड़ा त्यौहार है. इस त्यौहार को भारत में कई क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. नए फसल होने की खुशी में भी इस त्यौहार को मनाया जाता है.

साथ ही कई पौराणिक और वैज्ञानिक कारण इस त्यौहार के हैं जिसके बारे में इस लेख में पूरी जानकारी दी गई है. इस लेख में दी गई मकर संक्रांति के बारे में जो भी जानकारी है, अगर उससे जुड़े किसी भी तरह का कोई सवाल है तो कमेंट के बॉक्स में लिखकर जरूर बताएं.

Leave a Comment