मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय हमारे हिंदी साहित्य के बहुत ही प्रसिद्ध लेखक हुए हैं. मुंशी प्रेमचंद समाज में हो रहे कुरीतियों के बारे में ज्यादातर अपनी रचनाएं लिखी हैं.
हिंदी साहित्य में लेखकों में सबसे पहले प्रेमचंद जी का नाम आता हैं Munshi Premchand ka jeevan parichay in hindi इस लेख में हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक उपन्यासकार, कहानीकार के जीवनी के बारे में जानने वाले हैं
मुंशी प्रेमचंद ऐसे लेखक थे जिनमें एक अलग ही गुण था उनके लेखन में ऐसी ताकत थी जिससे कि समाज की कुप्रथाएं बदल जाता था उन्होंने अपने लेखनी के बल पर समाज में चल रहे कुुप्रथाओं को बदलने की कोशिश की थी.
Munshi Premchand ka jeevan parichay
प्रेमचंद की ज्यादातर रचनाएं उस समय के समाज में चल रहे हैं कुरीतियाेें और कुप्रथाओं के बारे में ही होती थी उस समय की ऐसी बहुत सी कुप्रथाएंं थी जो कि लोगों के बर्दाश्त से बाहर थी इसी को बदलने के लिए मुंशी प्रेमचंद ने अपनी रचना की थी.
उनकी रचनाएं स्वतंत्रता संग्राम के लड़ाई में भी योगदान दी थी उनकी रचनाओं से स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में एक अलग ही क्रांति फैल गई थी और लोगों के दिलों में जोश भर आया था मुंशी प्रेमचंद की रचनाएं जमीनदारी कर्जखोरी और गरीबी के संबंध में रहते थे

मुंशी प्रेमचंद ने बहुत सारे रचनाएं की कई उपन्यास लिखे बहुत ही कहानियां लिखी नाटक लिखें इन्हीं सब रचनाओं के चलते उस समय के साहित्यकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने मुंशी प्रेमचंद को उपन्यास सम्राट की उपाधि से सम्मानित किया था.
मुंशी प्रेमचंद का जन्म
नाम | मुंशी प्रेमचंद |
असली नाम | धनपत राय श्रीवास्तव |
जन्म | 31 जुलाई 1880 |
जन्म स्थान | लमही वाराणसी उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | अजब राय |
माता का नाम | आनंदी देवी |
पत्नि का नाम | शिवरानी देवी |
बच्चे | श्रीपत राय,अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव |
कार्यक्षेत्र | हिन्दी और उर्दू लेखक,उपन्यासकार,नाटककार |
रचनाएं | कहानी,उपन्यास,नाटक |
कहानी | पूस की रात,बड़े घर की बेटी,नमक का दरोगा,दो बैलों की कथा,पंच परमेश्वर,ईदगाह,बूढ़ी काकी,कफन,तनाव,दूध का दाम,गुल्ली डंडा,बड़े भाई साहब,ठाकुर का कुआं,विध्वंस |
नाटक | संग्राम,कर्बला,प्रेम की बेदी |
उपन्यास | सेवासदन,प्रेमाश्रम,रंगभूमि,निर्मला,कायाकल्प,गबन,कर्मभूमि,गोदान |
भाषा शैली | व्यंगात्मक विवेचनात्मक, चित्रात्मकता, वर्णनात्मक, भावात्मक, मुहावरे और लोकोक्तियां |
मृत्यु | 8 अक्टूबर 1936 |
Munshi premchand का जन्म 31 जुलाई 1880 में वाराणसी के नजदीक लमही गांव में हुआ था उनके पिता का नाम अजब राय था उनकी माता का नाम आनंदी देवी था मुंशी प्रेमचंद का असली नाम धनपत राय श्रीवास्तव था
उनके पिताजी पोस्ट ऑफिस में काम करते थे मुंशी प्रेमचंद जब आठ साल के थे तभी उनकी माता का मृत्यु हो गया उसके बाद उनके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी उसके बाद से प्रेमचंद जी का जीवन बहुत ही कष्ट में गुजरने लगा था उनके सौतेली मां से उनके कुछ ज्यादा बनती नहीं थी.
मुंशी प्रेमचंद का शिक्षा
जब वह 15 साल के हो गए तो उनके पिता ने उनके मर्जी के बगैर ही उनकी शादी कर दी थी और उसके कुछ ही दिनों बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई उसके बाद सारी जिम्मेदारी प्रेमचंद के के ऊपर आ गई .
प्रेमचंद को शुरू से ही पढ़ने का बहुत शौक था लेकिन घर की जिम्मेदारियों की वजह से उनकी अपने पढ़ाई में दिक्कत होने लगी थी .जैसे तैसे करके उन्होंने कर लिया .प्रेमचंद को किताबें और उपन्यास पढ़ने का और लिखने का शौक शुरू से ही था.
मुंशी प्रेमचंद 1998 में मैट्रिक की परीक्षा में पास हुए थे मैट्रिक करने के बाद प्रेमचंद अपने गांव के नजदीक ही एक स्कूल में शिक्षक के रूप में पढ़ाने लगे अपनी नौकरी के साथ-साथ उन्होंने अपनी पढ़ाई भी करते रहे
1910 में उन्होंने इंटर पास किया जिसमें उनका सब्जेक्ट फारसी अंग्रेजी दर्शन और इतिहास था 1919 में फारसी अंग्रेजी और इतिहास से b.a. पास किया मुंशी प्रेमचंद ने जब b.a. पास कर लिया तो उसके बाद उन्होंने शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्त हो गए
जब 1921 में महात्मा गांधी के द्वारा असहयोग आंदोलन चलाया जा रहा था उसमें स्वदेशी आंदोलन के तहत सरकारी नौकरियों सरकारी सम्मान या विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया जा रहा था उसी समय मुंशी प्रेमचंद ने अपने सरकारी नौकरी स्कूल इंस्पेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया और उसके बाद ही उन्होंने लिखना शुरू किया.
प्रेमचंद का वैवाहिक जीवन
Munshi Premchand का शादी उनके मर्जी के बिना हुआ था उनकी शादी उनके पिताजी ने धनी परिवार के घर देखकर एक लड़की से कर दिया था जो कि बहुत ही झगड़ालू थी जिससे प्रेमचंद का जीवन और भी कस्टमय होता जा रहा था
प्रेमचंद कुछ दिन उसके साथ रहे और उसके बाद उन्होंने उसे तलाक ले लिया और उन्होंने अपना दूसरा विवाह एक बाल विधवा से कर ली थी जिसका नाम शिवरानी देवी था.
कहा जाता है उस समय विधवा से शादी करना समाज में लोगों के नजर में बहुत ही गलत था लेकिन दूसरी शादी करने के बाद प्रेमचंद जी का जीवन सुख से व्यतीत होने लगा. प्रेमचंद की दूसरी पत्नी शिवरानी देवी एक शिक्षित महिला थी
उन्होंने भी प्रेमचंद घर नाम से एक किताब लिखा था शिवरानी देवी से प्रेमचंद को तीन संतान हुए दो पुत्र और एक पुत्री थी जिनका नाम श्रीपत राय अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव था.
प्रेमचंद का साहित्यिक जीवन
Munshi Premchand ने ग्रेजुएश करने के बाद एक स्कूल में अध्यापक की नौकरी करने लगे लेकिन असहयोग आंदोलन के बाद गांधी जी से वह प्रभावित हुए और उसके बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी असहयोग आंदोलन विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने का आंदोलन था
इसीलिए आंदोलन में अपना योगदान दिया और अपनी नौकरी छोड़ दी उसके बाद उन्होंने कई पत्रिकाओं में संपादक के रूप में नौकरी की थी उसके बाद उन्होंने अपने हिंदी साहित्य में कैरियर बनाने लगे
उसके बाद मुंशी प्रेमचंद ने बहुत सारी रचनाएं की जिनमें कई उपन्यास कहानी इत्यादि रचनाएं थी. मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास शतरंज के खिलाडी पर हिंदी फिल्म भी बन चुके हैं.1921 के असहयोग आंदोलन के बाद जब मुंशी प्रेमचंद्र ने अपनी सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया.
तो पत्र-पत्रिकाओं में उन्होंने संपादन करना शुरू कर दिया जिसमें सबसे पहले मर्यादा और माधुरी नाम के पत्रिका में उन्होंने संपादन करने का कार्य शुरू किया संपादन करते हुए उन्होंने सरस्वती प्रेस प्रवासी लाल नाम के व्यक्ति के साथ खरीद लिया और उसमें हंस और जागरण नाम के पत्रिका निकालने लगे
कुछ दिनों तक उन्होंने अजंता सिनेटोन कंपनी में कहानी लिखने का कार्य करने लगे लेकिन वहां उन्हें ज्यादा पसंद नहीं आया और बनारस लौट आए मुंशी प्रेमचंद्र की प्रसिद्धि सरस्वती में सौत नाम की कहानी प्रकाशित होने के बाद मिलने लगी 1918 में उन्होंने सेवासदन नाम का उपन्यास लिखा.
पहले मुंशी प्रेमचंद उर्दू में कहानी उपन्यास लिखते थे लेकिन सेवासदन लिखने के बाद वह हिंदी के एक प्रसिद्ध उपन्यासकार के रूप में पहचाने जाने लगे उन्होंने हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में अपनी रचनाएं लिखी है
मुंशी प्रेमचंद्र ने लगभग 300 कहानी और लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास की रचना की है. प्रेमचंद उर्दू के भी एक महान लेखकों में गिने जाते हैं उर्दू में प्रेमचंद नवाब राय नाम से रचना लिखते थे लेकिन जब हिंदी साहित्य में उन्होंने अपनी रचना लिखना शुरू किया.
तब प्रेमचंद के नाम से वह प्रसिद्ध हो गए हिंदी में सबसे पहला कहानी प्रेमचंद ने जमाना पत्रिका में बड़े घर की बेटी नाम के 1910 में प्रकाशित हुई थी मुंशी प्रेमचंद की सबसे महत्वपूर्ण सबसे प्रसिद्ध और अंतिम उपन्यास गोदान था
गोदान उपन्यास को उनके सभी उपन्यासों में सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम कृति माना जाता है 1936 में हिंदी ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय मुंबई में गोदान उपन्यास का प्रकाशन हुआ था इस उपन्यास में भारत की ग्रामीण जीवन ग्रामीण समाज की कहानी है.
प्रेमचंद्र ने जो भी रचना लिखी है उसमें उस समय के लोगों का जो जीवन था जो लोगों के रहने का रहन-सहन था उसी पर उन्होंने अपनी सारी कहानियां लिखी है
प्रेमचंद का व्यक्तित्व
शुरू से ही पढ़ने लिखने का बहुत ही ज्यादा शौक मुंशी प्रेमचंद्र को था वह पढ़ लिखकर वकील बनना चाहते थे लेकिन बचपन में ही पिता का साया सिर से हट जाने की वजह से उनके घर की गृहस्थी घर का खर्च उनके कंधे पर आ गया इसलिए कोई अच्छी पढ़ाई करने का सपना उनका अधूरा रह गया.
लेकिन घर में मिली उर्दू भाषा की शिक्षा से उन्होंने उर्दू में कहानी उपन्यास लिखना शुरू किया उर्दू भाषा के एक महान लेखक के रूप में प्रेमचंद उभर कर आ गए और उसके बाद उन्होंने हिंदी साहित्य में भी उन्होंने उपन्यास और कहानी लिखना शुरू किया
पहले उन्होंने हिंदी साहित्य कि ज्यादातर उपन्यास और कहानी पढ़ना शुरू किया तो 3 सालों में उन्होंने लगभग सैकड़ों उपन्यास पढ़ें और उसके बाद उन्होंने नाटक लिखना शुरू किया मुंशी प्रेमचंद्र एक बहुत ही प्रसिद्ध और संवेदनशील लेखक थे प्रेमचंद्र के पुत्र अमृतराय भी हिंदी के एक प्रसिद्ध साहित्यकार थे.
मुंशी प्रेमचंद ने शुरू से ही बहुत ही आर्थिक तंगी और परेशानी को झेला था बाद में विवाह होने के बाद भी उन्हें कई परेशानियां होने लगे क्योंकि उनकी पत्नी बहुत ही झगड़ालू थी लेकिन जब उन्होंने शिवरानी देवी से दूसरा विवाह किया उसके बाद उनका जीवन सही तरीके से चलने लगा
प्रेमचंद का स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका
आजादी से पहले गरीब किसान या आम जनता अंग्रेजों से शोषित होते थे उत्पीड़न सहते थे उसे देखकर महसूस करके मुंशी प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में उसे लिखना शुरू किया लेकिन भारत अंग्रेजों के अधीन था
इसलिए अंग्रेजी हुकूमत का शासन भारत पर था तो उन्हें इस तरह से प्रेमचंद का लिखना अच्छा नहीं लगा इसीलिए उन्होंने प्रेमचंद की सोजे वतन नाम की कहानी संग्रह था
जो कि हमीरपुर के कलेक्टर ने उनके ऊपर जनता को भड़काने का आरोप लगाया और सोजे वतन की जितनी भी प्रतियां थी उसे कलेक्टर ने जला दिया.
महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के समय स्वदेशी आंदोलन के तहत सरकारी नौकरी छोड़ने का या विदेशी सामानों का बहिष्कार करना था इसलिए प्रेमचंद ने भी सरकारी नौकरी छोड़ कर के रचनाएं लिखना शुरु कर दे
प्रेमचंद ने अपने रचनाओं के बल पर कई समाज सुधार कार्य किए उन्होंने अपनी कहानियों में स्वाधीनता संग्राम समाज सुधार आंदोलन और उस समय चल रहे समाज में कई तरह के कुप्रथा दहेज प्रथा बेमेल विवाह छुआछूत जाति भेद विधवा विवाह आदि का बहुत ही अच्छे से चित्रण किया है.
1918 से 1936 तक प्रेमचंद ने कई रचनाएं की कई कहानी उपन्यास नाटक आदि लिखे इसीलिए 1918 से 1936 तक के समय को प्रेमचंद युग के नाम से जाना जाता है.
मुंशी प्रेमचंद्र की रचनाएं
सबसे पहला हिंदी का उपन्यास मुंशी प्रेमचंद्र का सेवा सदन था इससे पहले वह उर्दू के एक प्रसिद्ध कथाकार थे लेकिन हिंदी में सेवासदन उपन्यास लिखने के बाद वह हिंदी के भी बहुत ही प्रसिद्ध उपन्यासकार बन गए प्रेमचंद ने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर के पहला मर्यादा नामक पत्रिका में उन्होंने संपादन करना शुरू किया.
उसके बाद माधुरी पत्रिका का भी संपादन किया लेकिन बाद में उन्होंने हंस और जागरण नाम का हिंदी साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन आरंभ किया मुंशी प्रेमचंद की एक से बढ़कर एक उपन्यास है जिसमें कि ग्रामीण समाज के बारे में गरीब किसान के बारे में कहानी उनके उपन्यास में रहता है
प्रेमचंद की प्रसिद्ध उपन्यास रंगभूमि प्रेमआश्रम गबन कायाकल्प कर्मभूमि गोदान आदि है उन्होंने निर्मला जैसे धारावाहिक उपन्यास का भी रचना किया था 1930 से 1927 ईसवी के दौरान महादेवी वर्मा के द्वारा हिंदी मासिक पत्रिका चांद संपादित होता था
उसमें मुंशी प्रेमचंद्र की धारावाहिक उपन्यास निर्मला उन्होंने रचना किया बाद में मुंबई जाकर अजंता सीनेटोन कंपनी के लिए उन्होंने कथा लेखक की नौकरी करने लगे वहां एक कहानी लिखी जो कि 1934 में फिल्म मजदूर रिलीज हुई थी
यह मुंशी प्रेमचंद्र के द्वारा ही लिखी हुई कहानी थी. प्रेमचंद हर साल लगभग 10 से ज्यादा कहानी लिखते रहते थे उनके मरने के बाद मरणोपरांत आठ खंडों में मानसरोवर नाम की कहानी प्रकाशित हुई थी.मुंशी प्रेमचंद्र की जितनी भी उर्दू और हिंदी की कहानियां है
उसे एक रत्नावली नाम से प्रकाशित किया गया है और यह डॉक्टर कमल किशोर गोयनका ने प्रकाशित किया है मुंशी प्रेमचंद्र को उनके लिखने की वजह से महान रचना लिखने की वजह से कलम का जादूगर कहा जाता हैं.Munshi Premchand ने 300 के लगभग कहानियां भी लिखी थी. ये कहानियां गरीबी जमींदारी कर्जखाेेरी इत्यादि पर लिखी गई हैं.
उपन्यास
- सेवासदन
- प्रेमाश्रम
- रंगभूमि
- निर्मला
- कायाकल्प
- गबन
- कर्मभूमि
- गोदान
नाटक
- संग्राम
- कर्बला
- प्रेम की बेदी
premchand ki kahaniyan
- पूस की रात ,
- बड़े घर की बेटी,
- नमक का दरोगा ,
- दो बैलों की कथा ,
- पंच परमेश्वर
- ईदगाह
- बूढ़ी काकी
- कफन
- तनाव
- दूध का दाम
- गुल्ली डंडा
- बड़े भाई साहब
- ठाकुर का कुआं
- विध्वंस
प्रेमचंद की भाषा शैली
मुंशी प्रेमचंद की कहानियों में वह बहुत ही सत्य वचन और बहुत ही कठोर भाषा का प्रयोग करते थे प्रेमचंद की रचनाओं की भाषा उर्दू कि मुहावरे और लोकोक्तियां का भरपूर प्रयोग होता है हैं वह अपनी कहानियों का भाषा बहुत ही सहज व्यावहारिक सरल प्रभावपूर्ण तरीके से लिखते थे
उनके कहानियों में सादगी और अलंकारिकता प्रयुक्त होते हैं इनकी रचनाओं में कई भाषा शैली का उन्होंने उपयोग किया है जैसे की व्यंगात्मक विवेचनात्मक, चित्रात्मकता, वर्णनात्मक, भावात्मक, आदि प्रेमचंद की कहानियां पढ़ने पर ऐसा लगता है कि सारी घटना हमारे सामने ही उजागर हो रही है
पहले जिस तरह से लोगों का जीवन यापन था गरीब लोग सेठ साहूकार से शोषित होते थे ठीक उसी तरह वह अपनी कहानियों में पात्रों को दर्शाते हैं.उनकी रचनाओं में वेदना दर्द परेशानी आदि स्पष्ट देखने को मिलता है
आम जनता की दर्द उत्पीड़न शोषण आदि को बहुत ही नजदीक से उन्होंने देखा था और वही वह अपने उपन्यास और कहानियों में वर्णन भी करते थे.मुंशी प्रेमचंद ने कई रचनाओं का अनुवाद भी किया है.
प्रेमचंद की मृत्यु
मुंशी प्रेमचंद की कहानियां निम्न मध्यवर्गीय जीवन के बारे में रहती थी मुंबई आकर फिल्मों के लिए भी कई कहानियां लिखी लेकिन उनका मन नहीं लगा वाराणसी चले आए वहीं पर कुछ दिनों के बाद उनका मृत्यु हो गया.
8 अक्टूबर 1936 को मुंशी प्रेमचंद का मृत्यु हो गया और इसी के साथ हमारे हिंदी साहित्य का साहित्यकार उपन्यासकार नाटककार और एक उपन्यास सम्राट का अंत हो गया.
मुंशी प्रेमचंद गोरखपुर में जिस स्कूल में पढ़ाते थे वहां पर प्रेमचंद साहित्य संस्थान का स्थापना किया गया उसमें प्रेमचंद से संबंधित जितने भी उनके सामान थे उसका एक संग्रहालय बनाया गया उसमें प्रेमचंद की प्रतिमा भी स्थापित की गई है.
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सारांश
मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय भारतीय हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद ने कई प्रसिद्ध कहानी नाटक और उपन्यास हिंदी साहित्य में उनका योगदान अतुलनीय है उन्हें कलम का जादूगर कहा जाता है और जितने दिनों तक उन्होंने रचनाएं लिखा है उस युग को प्रेमचंद के नाम से जाना जाता है
प्रेमचंद अपनी कहानियों में मानव जीवन के बारे में ही वर्णन किया है इस लेख में आंचलिक उपन्यासकार एक महान लेखक हिंदी और उर्दू के प्रसिद्ध उपन्यासकार कहानीकार एक विचारक मुंशी प्रेमचंद्र के बारे में पूरी जानकारी दी गई है
मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म कहां हुआ उनका विवाह किससे हुआ प्रेमचंद ने कौन-कौन सी रचनाएं की उनका मृत्यु कब हुआ उनकी रचनाओं की भाषा शैली क्या थी इसके बारे में दी गई जानकारी से संबंधित अगर कोई सवाल आपके मन में है कृपया कमेंट करके जरूर पूछें.
हमने अपने इस लेख में मुंशी प्रेमचंद की जीवनी के बारे में पूरी जानकारी दी हैं. आप लोगों को यह जानकारी कैसा लगा हमें कमेंट करके जरूर बताएं और ज्यादा शेयर भी जरूर करें.

प्रियंका तिवारी ज्ञानीटेक न्यूज़ के Co-Founder और Author हैं। इनकी शिक्षा हिंदी ऑनर्स से स्नातक तक हुई हैं, इन्हें हिंदी में बायोग्राफी, फुलफार्म, अविष्कार, Make Money , Technology, Internet & Insurence से संबंधित जानकारियो को सीखना और सिखाना पसन्द हैंं। कृपया अपना स्नेह एवं सहयोग बनाये रखें। सिखते रहे और लोगों को भी सिखाते रहें।