सूरदास का जीवन परिचय Surdas ka jeevan parichay हिंदी साहित्य में कई कृष्ण भक्त कवि हुए राम भक्त कवि हुए लेकिन उनमें सबसे ज्यादा श्रेष्ठ सबसे महान कृष्ण भक्त, कृष्ण का उपासक महाकवि सूरदास को माना जाता है।
वह अपनी रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला उनके प्रेम सौंदर्य वात्सल्य का परिचय बहुत ही विनम्रता से देते थे. भक्ति काल के महान कवि सूरदास जी के बारे में इस लेख में पूरी जानकारी प्राप्त करेंगे।
वह भले ही अंधे थे लेकिन जब वह भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला का वर्णन अपनी कविताओं में किया थे तो ऐसा लगता था कि उन्होंने अपने सामने देख कर के भगवान श्री कृष्ण का बाल लीला वर्णित किया है.
Surdas ka jeevan parichay
भक्ति काल में कई महान लेखक कवि हुए जिनकी रचनाएं युगो युगो तक अमर रहेगी कई ऐसे कवि हुए हैं जो कि भगवान श्री कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन राधा जी के सौंदर्य का वर्णन भगवान श्री राम के सौंदर्य का वर्णन अपनी रचनाओं में करते थे.
लेकिन सूरदास जी एक ऐसे महान कवि महान संगीतकार और संत थे जिनकी रचनाओं में लगता था कि भगवान श्री कृष्ण को अपनी आंखों के सामने देख रहे हैं उनकी रचनाओं में सौंदर्य ऐसा लगता था जैसे कि हमारे सामने ही सारी घटना घटित हो रही है सूरदास जी की रचनाएं पढ़कर कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता है कि किसी अंधे व्यक्ति ने इन रचनाओं का निर्माण किया है.

जिस तरह से भगवान श्री कृष्ण के बाल मनोवृतियों का उनके मानव स्वभाव का वर्णन उन्होंने अपनी कविताओं में किया है वैसा कोई आंख से देखने वाला व्यक्ति भी नहीं कर सकता है क्योंकि उन्होंने अपनी कविताओं में भगवान श्री कृष्ण के रंग रूप श्रृंगार आदि का भी वर्णन किया है.
इससे यही लगता है कि वह जन्म से अंधे नहीं होंगे शायद बाद में अंधे हो गए होंगे क्योंकि जो व्यक्ति जन्म से संसार की कोई भी चीज देखी ही नहीं हो उस व्यक्ति को कैसे पता चलता है कि कोई बालक कैसे चल सकता है उसका श्रृंगार कैसा है उसका रंग रूप कैसा है
लेकिन इसके बारे में कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं है कि सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे या बाद में अंधे हुए. वह भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे उनके उपासक थे इसीलिए उन्हें हिंदी साहित्य का सूर्य भी कहा जाता है.
सूरदास मध्यकाल के एक सर्वश्रेष्ठ कृष्ण भक्त कवि थे उनकी श्रेष्ठता का आधार सिर्फ कृष्ण भक्ति ही नहीं थी बल्कि प्रेम सौंदर्य वात्सल्य के सूक्ष्म परिचय बहुत ही विनम्रता से देते थे जो हमारे मन और प्राणों को छूकर आनंद विभोर हो जाता हैं कृष्ण भक्ति में सूरदास का नाम सबसे ऊपर पाया जाता है वह एक महान कवि महान संगीतकार और एक महान संत भी थे.
सूरदास का जन्म
नाम | सूरदास |
जन्म | 1478 ईसवी |
पिता का नाम | श्री राम दास |
माता का नाम | जमुनादास |
गुरू का नाम | महाप्रभु वल्लभाचार्य |
प्रमुख रचनाएं | सूरसागर,साहित्य लहरी, सूरसारावली |
मृत्यु | 1583 |
सुरदास के जन्म के बारे में कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं है सूरदास का जन्म कब हुआ Surdas in hindi जी के जन्म और मृत्यु दोनों का प्रमाणिक साक्ष्य नहीं है इसलिए कुछ भी निश्चित रूप से मानना कठिन है सूरदास जी के जन्म के बारे में विद्वानों में भी मतभेद है किसी को निश्चित नहीं पता है कि उनका जन्म कब और कहां हुआ था.
लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार Surdas जी का जन्म वैशाखी शुक्ला पक्ष 1478 ईस्वी को हुआ था आगरा मथुरा रोड स्थित रुनकता गांव में उनका जन्म हुआ था कई विद्वानों का अपना अलग-अलग मत है किसी का कहना है कि उनका जन्म एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में 1479 ईस्वी में हुआ था हुआ था
उनके पिता का नाम श्री राम दास गायक था Surdas जी के माता का नाम जमुनादास था सूरदास जी को पुराणों और उपनिषदों का बहुत ही जानकारी था वह कृष्ण भक्ति में इतना लीन रहते थे.
भगवान श्री कृष्ण के बारे में हमेशा लोगों को कुछ न कुछ बताते रहते थे भगवान श्री कृष्ण के बारे में उन्होंने कई दोहे अपने सारे दोहे लिखे हैं और उन दोहों में वह अपने आप को मदन मोहन भी कह के वर्णित किए हैं.
सूरदास जी का विवाह
उनका विवाह हुआ था या नहीं हुआ था इसके बारे में तो कोई प्रमाणिकता नहीं है किसी भी तरह का कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं है लेकिन कहा जाता है कि उनका विवाह रत्नावली नाम की स्त्री से हुआ था कुछ विद्वानों का कहना है कि सूरदास जी मृत्यु से पहले अपने परिवार के साथ ही रहा करते थे.
गुरु
सूरदास जी के गुरु महाप्रभु वल्लभाचार्य पुष्टिमार्ग के संस्थापक थे महाप्रभु वल्लभाचार्य ने उनके मुख से भगवान श्री कृष्ण का ऐसा सुंदर वर्णन सुनकर ही अपना शिष्य बनाया था उसके बाद सूरदास अपने गुरु के साथ भगवान श्री कृष्ण का बाल लीलाओं का भगवान श्री कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन करते थे.
और अपने गुरु के साथ ही मथुरा के गांव घाट पर श्रीनाथजी के मंदिर में भजन कीर्तन करने लगे थे महाप्रभु वल्लभाचार्य सबसे प्रिय शिष्यों में उनका गिनती होता था सूरदास को अष्टछाप कवियों में सबसे प्रसिद्ध और सबसे प्रथम माना जाता था.
उनके गुरु का नाम श्री वल्लभाचार्य जी था माना जाता है कि वह अपने गुरु से 10 दिन छोटे थे जिस तरह उनके जन्म के बारे में है कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं उसी तरह उनकी मृत्यु के बारे में कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं है.
ऐसा माना जाता है कि उनका मृत्यु संवत 1642 सन 1585 ईसवी को हुआ था Surdas in hindi जी जन्म से अंधे थे उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता था लेकिन कृष्ण जी के बचपन का ऐसे वर्णन करते थे जैसे कोई एक बच्चा को देख रहा है.
महान रचनाएं
इनका श्री कृष्ण जी के बारे में बहुत सारी रचनाएं हैं और वह सारी रचनाएं मन को छू जाने वाली है उन्हीं में से कुछ है रचनाएं हैं जैसे की सोभित कर नवनीत लिए घुटुरूनि चलत रेनू तन मन मंडित मुख दधि लेप किए.
जिसमें उन्होंने वर्णित किया है कि श्री कृष्ण जी का बाल लीला है छोटे हैं हाथ में माखन लिए घुटनों पर रेंग रहे हैं श्री कृष्ण के बाल रूप का वर्णन किया हैं सूरदास की महान रचनाएं कृतियों के बारे में भी प्रमाणिकता नहीं है इसमें भी संदेह है लेकिन उनकी रचनाओं में कुछ प्रमुख रचनाएं यह भी है जैसे कि
- सूरसागर
- साहित्य लहरी
- सुरसारावली
इत्यादि बहुत किताबों में सूरदास जी के 16 ग्रंथों का उल्लेख किया गया है सूरसागर में करीब एक लाख पद होने की बात कही जाती है लेकिन आजकल करीब 5000 पद ही मिलते हैं सुरसा रावली में 1107 छन्द मिलता है साहित्य लाहरी में 118 पदों की होने के प्रमाण मिलता है.
व्यक्तित्व
भगवान श्री कृष्ण का ऐसा मार्मिक वर्णन भगवान श्री कृष्ण के सौंदर्य का उनके बाल लीला का वर्णन Surdas जी जितना अच्छा करते थे वैसा कोई नहीं कर सकता है उनकी भक्तिमय गीतों को सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे.
चारों तरफ वह भगवान श्री कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन जो अपने मुख से वह करते थे कहा जाता है कि मुगल सम्राट का महान शासक अकबर भी सूरदास के रचनाओं का दीवाना हो गया था वह सुनकर के मंत्रमुग्ध हो जाता था और उनकी कविताएं सुनकर ही अपने यहां उन्हें रख लिया था सूरदास जी की कविताएं लोग इतना पसंद करते थे.
उनकी ख्याति इतनी बढ़ गई थी कि चारों तरफ उन्हें सभी व्यक्ति पहचानने लगे थे सूरदास जी अपना जीवन बसर ब्रज में ही किया करते थे उनकी रचनाओं के बदले उन्हें जो भी मिल जाता था उसी से अपना जीवन यापन करते थे.
उनकी कविताओं में श्रृंगार वात्सल्य और शांत सभी रसों का वर्णन मिलता है भगवान श्री कृष्ण का बाल रूप बहुत ही सरल और सजीव रूप में वर्णित किया है वैसा वर्णन किसी के भी रचना में नहीं पाया जा सकता है. सूरदास जी एक ही बहुत ही साधारण व्यक्तित्व वाले कवि थे उनकी जितनी भी रचनाएं है उन्होंने उसमें कृष्ण जी की बाल लीला के बारे में वर्णन किया है.
सूरदास का जीवन काल
ऐसा माना जाता है कि अंधे होने के कारण उनके परिवार वाले उनको छोड़ दिए थे 18 साल की उम्र में सूरदास का यमुना नदी के किनारे घाट पर मुलाकात वल्लभाचार्य जी से हुआ.
और वहीं पर उन्होंने वल्लभाचार्य जी से शिक्षा दीक्षा ग्रहण किया वल्लभाचार्य जी ने उन्हें श्री कृष्ण लीला के गुणगान करने की सलाह दिया और वहीं से उन्होंने श्री कृष्ण जी का गुणगान करना शुरू किया और उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा
उसके बाद ऐसी रचनाएं की जिसे दुनिया आज भी याद करती है और श्री कृष्ण के बाल लीला के बारे में सोच के आनंद विभोर हो जाते हैं उनके जीवन के अतिंम समय कृष्ण भक्ति में बीता। जीवन के अंतिम समय वहीं पर गुजारा सूरदास जी के निधन के बारे में कोई प्रमाणिकता नहीं है लेकिन विद्वानों का और लोगों का कहना है 100 वर्ष तक जिंदा रहे.
मृत्यु
श्री कृष्ण भगवान का बाल रूप का वर्णन माता यशोदा के साथ पालने में झूलते हुए दृश्य का वर्णन माता यशोदा के श्री कृष्ण को प्यार से पूचकारती हैं उन्हें गीत सुनाती है यह सारी वर्णन सूरदास जी के रचनाओं में मिलता है.
वैसे तो उनके जन्म के की तरह ही मृत्यु का भी कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं है लेकिन 1583 में परसौली गांव में उनका मृत्यु का वर्णन कहीं कहीं मिलता हैं। ब्रज भाषा श्रेष्ठ और साहित्यिक दृष्टि से उपयोगी महाकवि Surdas जी के वजह से ही हुआ था.
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सारांश
हिंदी काव्य क्षेत्र में उनकी रचनाएं श्रेष्ठ और एक अलग ही रूप में देखा जाता है उन्होंने हिंदी काव्य को एक अलग ही धारा में गति प्रदान कर दिया था.
उनकी रचनाओं में श्रृंगार रस भक्ति रस का संगम देखा जाता है.भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त भगवान श्री कृष्ण के उपासक कृष्ण भक्ति में लीन रहने वाले महाकवि और संत सूरदास जी के बारे में इस लेख में पूरी जानकारी दी गई है.
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प्रियंका तिवारी ज्ञानीटेक न्यूज़ के Co-Founder और Author हैं। इनकी शिक्षा हिंदी ऑनर्स से स्नातक तक हुई हैं, इन्हें हिंदी में बायोग्राफी, फुलफार्म, अविष्कार, Make Money , Technology, Internet & Insurence से संबंधित जानकारियो को सीखना और सिखाना पसन्द हैंं। कृपया अपना स्नेह एवं सहयोग बनाये रखें। सिखते रहे और लोगों को भी सिखाते रहें।
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