स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय – Swami Dayanand Sarswati

जब भारत अंग्रेजों के अधीन था उस समय भारत के हर आम नागरिक का जीना मुश्किल हो गया था पहले कई तरह के रूढ़िवादी थे अंग्रेजो के द्वारा बनाए गए कई ऐसे नियम कानून थे जिससे की आम जनता हमेशा परेशानियों में रहते थे.

Swami Dayanand Saraswati in hindi ने इसी परेशानियों को दूर करने के लिए कई समाज सुधारक कार्य किये कई रूढ़िवादी प्रथा आदि का घोर विरोध किया और समाज में सुधार लाने के लिए कई अन्य कार्य किए  महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने देश में फैले अत्याचार पाखंड छुआछूत अंधविश्वास आदि को दूर करने का कई प्रयास किए

इस लेख में महर्षि दयानंद सरस्वती ने और कौन-कौन से कार्य हिंदू समाज के लिए किये भारत देश के लिए भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने अपनी भूमिका कैसे निभाई के बारे में विस्तृत रूप से  आइए नीचे विस्‍तार से जानते हैं.

Swami Dayanand Saraswati in hindi 

दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक थे वह एक बहुत बड़े समाज सुधारक विद्वान और राजनीतिक विचारधारा के व्यक्ति थे Swami Dayanand Saraswati एक महान दार्शनिक थे उन्हीं के योगदान से आज हम लोग किसी भी स्कूल कॉलेज में कई जाति धर्म के लोग एक साथ बैठकर पढ़ाई करते हैं.

उन्होंने भारतीय शिक्षा प्रणाली का पुनरुद्धार किया था.महर्षि दयानंद सरस्‍वती  हिंदू समाज के हिंदू धर्म के एक बहुत बड़े रक्षक थे और वह एक सुधारक भी थे उन्होंने वेद को ही सबसे सर्वोपरि माना हिंदू को अपना धर्म समझाने के लिए हिंदू को अपने धर्म की तरह लौटाने के लिए उन्होंने वेदों की ओर लौटो का नारा लगाया था

Swami Dayanand Saraswati in hindi language 

स्वामी दयानंद सरस्वती भारत माता के सच्चे सपूत थे वह एक महान देशभक्त भी थे समाज में चल रहे हैं अंधविश्वास और कुरीतियों को समाज से हटाने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किया . उन्होंने हमेशा ही स्वदेशी चीजों का उपयोग किया और लोगों से भी करने को कहा उन्‍होंने 1857 की लड़ाई में भी भरपूर योगदान दिया था उन्होंने बहुत सारे पुस्तकें भी लिखी हैं.

दयानंद सरस्वती का जन्म 

स्वामी दयानंद सरस्वती एक ब्राम्हण परिवार में जन्मे थे. उनका असली नाम मूल शंकर तिवारी था उनका जन्म 12 फरवरी 1824 को हुआ था वह गुजरात के काठियावाड के रहने वाले थे महर्षि दयानंद सरस्वती के पिता का नाम करसन जी लालजी तिवारी था और उनकी माता का नाम यशोदाबाई था.

उनके पिता टैक्स कलेक्टर थे और उनकी माता बहुत ही धार्मिक महिला थी. वह एक संपन्न परिवार से थे. उनके घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी घर में धार्मिक माहौल होने के वजह से Swami Dayanand Saraswati भी पूजा पाठ उपनिषद देव धार्मिक पुस्तकों का बचपन से ही मन लगाकर अध्ययन करते थे.

नाममहर्षि दयानंद सरस्वती
बचपन का नाममूल शंकर तिवारी
जन्‍म12 फरवरी 1824
जन्‍म स्‍थानगुजरात के काठियावाड
पिता का नामकरसन जी लालजी तिवारी
माता का नामयशोदाबाई
शिक्षासंपूर्ण संस्कृत व्याकरण सामवेद यजुर्वेद का अध्ययन
गुरूस्वामी विरजानंद
कार्यसंस्थापक और समाज सुधारक
संस्‍थापकआर्य समाज
समाज सुधारक कार्यबाल विवाह का विरोध, विधवा पुनर्विवाह, स्‍त्री शिक्षा का प्रचार, सती प्रथा का विरोधविरोध,विधवा आश्रम और अनाथ आश्रम खुलवाएं
नारावेदों की ओर लौटो
मृत्‍यु30 अक्टूबर 1883

 

दयानंद सरस्वती का शिक्षा 

स्वामीजी बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे उनकी माता धार्मिक प्रवृत्ति की थी इसलिए उनके घर में धार्मिक माहौल रहता था इस वजह से उन्हें भी धार्मिक चीजों में मन लगता था

उन्होंने बचपन में ही उपनिषद वेद धार्मिक पुस्तकों का अच्छे से अध्ययन किया था स्वामी दयानंद सरस्वती बचपन से ही शिव भक्त थे उनके पिता चाहते थे कि पढ़ लिखकर वह बड़े आदमी बन जाए इसलिए उन्होंने धर्म शास्त्र की शिक्षा घर पर ही दे रहे थे

उसके बाद Swami Dayanand Saraswati अपनी इच्छा से संस्कृत पढ़ने लगे जब वह 14 वर्ष के थे तब उन्होंने संपूर्ण संस्कृत व्याकरण सामवेद यजुर्वेद का पूरा अध्ययन किया था उनके पिताजी उनका विवाह करना चाहते थे लेकिन उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य का प्राण ले लिया था.

वह अपने पिता के साथ पूजा-पाठ व्रत में मन लगाकर भाग लेते थे एक बार वह अपने पिता के साथ शिव मंदिर में जागरण के लिए गए थे वहां पर उन्होंने देखा की  बहुत सारे चूहे वहां आए और जो भगवान को प्रसाद चढ़ाया गया था

उसको उन्होंने झूठा कर दिया यह  देखकर Swami Dayanand Saraswati के मन पर एक अलग ही प्रभाव पड़ा उन्होंने सोचा कि जब भगवान अपने प्रसाद का सुरक्षा नहीं कर सकते हैं तो वह हमारी सुरक्षा क्या करेंगे तभी से उनके मन में मूर्ति पूजा के प्रति विद्रोह पैदा हो गया और वह 14 वर्ष की उम्र में अपने घर से चले गए.

दयानंद सरस्वती के गुरु विरजानंद से मिले शिक्षा 

Swami Dayanand Saraswati के दिलों दिमाग पर मंदिर वाले बात को लेकर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा 14 वर्ष की आयु में उन्होंने अपना घर त्याग दिया और हिमालय के पहाड़ियों में ज्ञान प्राप्त करने के लिए चले गए.

ज्ञान प्राप्त करने के लिए घूमते घूमते एक दिन वह मथुरा पहुंच गए वहां पर उनकी मुलाकात स्वामी विरजानंद से हुई वहीं पर उन्होंने स्वामी विरजानंद से शिक्षा प्राप्त की उन्होंने स्वामी विरजानंद से योग विद्या एवं शास्त्र का ज्ञान प्राप्त किया.

जब उन्होंने ज्ञान प्राप्त कर लिया तो स्वामी विरजानंद को गुरु दक्षिणा देने लगे तब विरजानंद ने उनसे गुरु दक्षिणा के रूप में समाज में चल रहे हैं कुरीति अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध लड़ने की आवाज उठाने  को कहा इसके बाद स्वामी दयानंद सरस्वती समाज सुधार कार्य करने लगे.

महर्षि दयानंद सरस्वती का व्यक्तित्व

हिंदू धर्म में वेद का बहुत महत्व है क्योंकि हिंदू धर्म में जितने संस्कृति संस्कार रीति रिवाज जो भी है वह वेद में ही लिखा है तो अपने धर्म अपने संस्कृति संस्कार को पहचानने के लिए महर्षि दयानंद सरस्वती ने हिंदू धर्म को प्रोत्साहित किया वेदों की ओर लौटो उन्होंने एक प्रमुख नारा लगाया था.

वेदों के प्रचार प्रसार के लिए भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता दिलाने के लिए आर्य समाज जैसे संस्था का उन्होंने स्थापना किया था महर्षि दयानंद सरस्वती एक बहुत ही बड़े समाज सुधारक सन्यासी हिंदू धर्म के रक्षक आदि थे

महर्षि दयानंद सरस्वती जब तक जीवित रहे वह हिंदू समाज के अंदर जो भी बुराइयां थी रूढ़िवादी थी और जो भी अंधविश्वास था उसे हमेशा दूर करने का उन्होंने प्रयास किया वेद का शब्द का क्‍या अर्थ होता है

समझाने का भी उन्होंने प्रयास किया उनका मानना था कि भगवान के द्वारा बनाए गए सभी प्राणी चाहे वह मनुष्य हो जानवर हो पक्षी हो सभी अच्छे हैं और उनसे वह सच्चे हृदय से प्यार करते थे उन्होंने कई समाज सुधारक कार्य किए छुआछूत जातिगत भेदभाव आदि का उन्होंने हमेशा विरोध किया

समाज को आगे बढ़ाने में समाज का विकास करने में हमेशा वह कार्यरत रहते थे शुरू से ही उनके घर में पूजा पाठ का माहौल रहता था इसलिए वह धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में ही सामवेद और यजुर्वेद का अध्ययन किया था.

स्वामी दयानंद सरस्वती का मानना था की भी वेद मानव के लिए बहुत ही लाभदायक है क्योंकि वेद के द्वारा मानव का स्वतंत्र चिंतन शक्ति खुल जाता है और वह उस मानव के अंदर एक अनंत प्रकाश उत्पन्न होता है 1857 की स्वतंत्रता आंदोलन में महर्षि दयानंद ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों से कई महापुरुष भी प्रभावित हुए हैं

आर्य समाज का स्थापना

महर्षि दयानंद सरस्वती ने ब्रह्मचारी रहने का प्रण लिया था उन्होंने 1857 में आर्य समाज की स्थापना की थी. आर्य समाज का मुख्य उद्देश्य समाज का मानसिक और आर्थिक उन्नति करना उस समय लोगों में धर्म परिवर्तन बहुत हो रहा था

तो उन्होंने हिंदू को पुनः अपने धर्म में परिवर्तित करके शुद्धि करने का आंदोलन चलाया उन्होंने जातिवाद बाल विवाह का भी पुरजोर विरोध किया नारी शिक्षा तथा विधवा विवाह को प्रोत्साहित भी किया था.

उन्होंने सिर्फ हिंदू धर्म ही नहीं बल्कि हर धर्म में चल रहे हैं कुरीतियों और कुप्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाया था और उसका विरोध भी किया था सती प्रथा का विरोध किया था उनका मानना था कि मृत्यु के बाद पत्नी को जीवित रहने का पूरा अधिकार है इस प्रथा के खिलाफ लड़ाई लड़ी.

उन्‍होंने नारी जाति को समाज का आधार माना महिला शिक्षा और सुरक्षा को भी करने के लिए पूरा प्रयास किया था उन्होंने जातिवाद का भी विरोध किया उनका मानना था किहर जाति समान है और अपने अधिकार के अधिकारी है स्वामी दयानंद सरस्वती संस्कृत का अध्ययन किया था इसलिए संस्कृत में बहुत ही विद्वान थे.

दयानंद सरस्वती का 1857 की लड़ाई में योगदान 

जब ज्ञान प्राप्त करने के लिए भ्रमण कर रहे थे उस समय उन्होंने अंग्रेजों का अत्याचार देखा इस वजह से अंग्रेजो के खिलाफ उनके मन में बहुत क्रोध था अंग्रेजों के लड़ाई के खिलाफ भी उन्होंने कई अभियान चलाए उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ भारत भारतीयों का हैं नाम का अभियान चलाया.

उन्होंने अपने प्रवचनों के द्वारा भी भारतवासियों में राष्ट्रीयता का प्रसार किया और अपने भारत देश पर मर मिटने के लिए प्रेरणा दिया अंग्रेजी सरकार इस अभियान के बाद दयानंद सरस्वती पर बहुत क्रोधित हुआ था और उन्हें मारने के लिए कई तरह के प्रयास भी किए गए थे.

समाज सुधारक कार्य

भारतीय समाज में कई तरह के बुराइयां पाखंड आदि व्याप्त थे उसी समय एक महापुरुष महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म हुआ उन्होंने कई तरह के समाज में छुआछूत अत्याचार रीति-रिवाजों का गलत उपयोग करना कई तरह के बुराइयां दूर करने का प्रयास किया तीर्थ स्थलों पर कई लोग ऐसे थे जो कि सोने चांदी से लगे हुए अपनी पत्नी का दान कर देते थे

कई लोग ऐसे थे जो कि अपनी बेटी को मंदिरों में दान कर देते थे छुआछूत का माहौल था लोगों में अंधविश्वास चरम सीमा पर फैला हुआ था महिलाएं और नीची जाति के लोग पाठ वेद आदि सुन नहीं सकते थे कोई अगर विदेश में यात्रा करने जाता था तो उसको समाज विरोधी कहा जाता था

इस तरह के अत्याचार और समाज से भटके लोगों को रास्ते पर लाना एक महान महापुरुष के द्वारा ही संभव था इसीलिए स्‍वामी दयानंद सरस्वती इन हिन्‍दी ने आर्य समाज का स्थापना किया गांव में शहरों में कस्बों में आदि जगहों पर घूम घूम कर उन्होंने धार्मिक प्रखंडों को अंधविश्वास को और सामाजिक बुराइयों का विरोध करना शुरू किया.

जनता को वेद की शिक्षा देने लगे वेद की ओर लौटो का नारा लगाकर वेद का महत्व बताया लेकिन जब भी कोई सही काम करता है तो उसका विरोध करने वाले कई लोग उत्पन्न हो जाते हैं इसी तरह महर्षि दयानंद सरस्वती का भी विरोध कई लोगों ने किया उन्हें जान से मारने का भी कोशिश किया गया

लेकिन उन्होंने बहुत ही साहस से अपने कर्तव्य के पथ पर हमेशा चलते रहे 1863 में आर्य समाज का स्थापना किया और धर्म सुधार आंदोलन उन्होंने चलाया जब वह तर्क देने लगते थे तो बड़े-बड़े विद्वान भी चुप होकर उनका बात सुनने लगते थे

महर्षि दयानंद सरस्वती ने छुआछूत बाल विवाह स्त्रियों के प्रति हो रहे अन्याय के प्रति घोर विरोध किया उनका मानना था कि कोई भी ऊंच-नीच समाज में नहीं होता है बड़े छोटे जाति नहीं होता है कोई भी अपने कार्य से बड़ा होता है.

महर्षि दयानंद सरस्वती ने विधवा विवाह का प्रचार किया स्त्रियों को शिक्षा का महत्व बताया स्त्री शिक्षा का प्रचार प्रसार किया उन्होंने कई विधवा आश्रम और अनाथ आश्रम खुलवाएं इस तरह समाज में विकास करने के लिए समाज को आगे बढ़ने के लिए उन्होंने कई कार्य.

दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना

वर्तमान समय में जो हर माता-पिता डीएवी स्कूल और कॉलेज में अपने बच्चों को पढ़ाते हैं उच्च शिक्षा देना चाहते हैं वह डीएवी जिसका पूरा नाम दयानंद एंग्लो वैदिक होता है

उसका स्थापना महर्षि दयानंद सरस्वती के प्रेरणा से ही उनके द्वारा दिए गए शिक्षा से प्रभावित होकर उनके विद्या का प्रचार करने के लिए 1886 में लाला हंसराज और उनके साथ कई लोगों ने मिलकर दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की थी.

महर्षि दयानंद सरस्वती के विचारों से कई महापुरुष प्रभावित हुए प्रभावित होकर ही उन्होंने 1901 में हरिद्वार के नजदीक में कांगड़ी में गुरुकुल की स्थापना की जिनमें प्रमुख नाम मदनलाल ढींगरा, विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मादाम भीकाजी कामा, स्वामी श्रद्धानंद, राम प्रसाद बिस्मिल, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय, महादेव गोविंद रानाडे आदि.

महर्षि दयानंद सरस्वती के लिखी पुस्तकें

स्‍वामीजी कई समाज सुधारक कार्य किये जैसे कि सती प्रथा का भी उन्होंने विरोध किया विधवा पुनर्विवाह का प्रचार किया एकता का संदेश दिया बाल विवाह का विरोध किया महर्षि दयानंद सरस्वती को संस्कृत का बहुत अच्छे से ज्ञान था इसलिए वेद आदि को हमेशा पढ़ा करते थे

लेकिन एक बार जब महर्षि दयानंद सरस्वती कोलकाता गए थे तो वहां पर उन्हें केशव चंद्र सेन मिले केशव चंद्र सेन से मुलाकात करने पर महर्षि दयानंद सरस्वती को उन्होंने बताया कि जो आप संस्कृत में लोगों को जागृत करते हैं ज्ञान देते हैं उसे भारत का भाषा आर्य भाषा हिंदी में दें जिससे भारत के हर व्यक्ति को आपकी विचार आसानी से समझ में आ सके

इस बात से महर्षि दयानंद सरस्वती बहुत ही प्रभावित हुए और उन्होंने 1862 ईसवी में से हिंदी बोलना शुरू किया और उन्होंने हिंदी भाषा को भारत देश का मातृभाषा बनाने का भी संकल्प ले लिया महर्षि दयानंद सरस्वती ने समाज सुधार करने के लिए भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने के लिए कई किताबें भी लिखे हैं

वह समाज सुधारक दार्शनिक देशभक्त होने के साथ-साथ एक लेखक भी थे लोगों को ज्ञान देने के लिए कई पुस्तकें भी लिखी है उन्होंने 2 वर्ष की आयु में गायत्री मंत्र याद कर लिया था उनकी लिखी पुस्तकें कुछ इस प्रकार है

  • सत्यार्थ प्रकाश
  • ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका
  • ऋग्वेदभाष्य
  • यजुर्वेद भाष्य
  • चतुर्वेदविषय सूची
  • संस्कार विधि
  • पंच महायज्ञ विधि
  • आर्याभिविनय
  • गोकरुणानिधि
  • आर्योउद्देश्य रत्नमाला
  • भ्रांति निवारण
  • अष्टाध्यायीई भाष्य
  • वेदांग प्रकाश
  • संस्कृत वाक्य प्रबोध
  • व्यवहार भानु

महर्षि दयानंद सरस्वती का मृत्यु 

आर्य समाज का स्थापना करने के बाद उन्‍होंने कई कुप्रथाओं के विरोध आंदोलन चलाया था जिसमें पहले तो लोगों ने बहुत विरोध किया लेकिन बाद में बहुत लोग उनके साथ हो गए एक बार उन्होंने जोधपुर के महाराजा को एक नर्तकी के साथ देख लिया था

तो उन्होंने राजा को कहा कि आप को धर्म से जुड़ना चाहिए तो आप दूसरी स्त्री के साथ विलास का जीवन बिता रहे हैंइस बात से राजा पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और वह नर्तकी को छोड़ दिया इस वजह से वह नर्तकी स्वामी दयानंद सरस्वती से बहुत क्रोधित हुई.

एक बार जोधपुर के राजा ने उनको भोजन के लिए आमंत्रण दिया तो वह नर्तकी महाराजा के रसोइए से मिलकर स्वामी दयानंद सरस्वती के भोजन में कांच का टुकड़ा मिला दिया

इस वजह से वह भोजन खाने के बाद महर्षि दयानंद सरस्वती का स्वास्थ्य खराब हो गया महाराजा ने उनके उपचार के लिए बहुत प्रयास किया लेकिन उनका स्वास्थ्य और खराब होता गया बाद में रसोईया ने स्वीकार किया कि यह सब उसने नर्तकी के साथ मिलकर किया हैं.

स्वामी दयानंद सरस्वती का स्वास्थ्य खराब होता गया और 30 अक्टूबर 1883 को उनका स्वास्थ्य ज्यादा खराब होने की वजह से मृत्यु हो गया. जिस समय उनकी मृत्यु हुई वे सिर्फ 59 वर्ष के थे इस तरह हमारे देश से एक महान समाज सुधारक समय से पहले चले गए.

सारांश

Swami Dayanand Saraswati in hindi महर्षि दयानंद सरस्वती हिंदू धर्म को बचाने के लिए भारत में के समाज में व्याप्त रूढ़िवादी पाखंड और कई तरह के सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए कार्य किए.

इस लेख में हमने महर्षि स्‍वामी दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक एक महान समाज सुधारक महान देशभक्त और महान दार्शनिक स्वामी दयानंद सरस्वती  के जीवनी के बारे में पूरी जानकारी देने की कोशिश की है आप लोगों की यह जानकारी कैसी लगी हमें कमेंट करके जरूर बताएं और अपने दोस्त मित्रों में शेयर भी जरूर करें.

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