भारतीय हिंदी साहित्य में श्रृंगार रस और भक्ति रस की परंपरा को एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान और प्रसिद्ध करने वाले महाकवि ठाकुर थे. vidyapati in hindi
उन के बारे में जानने के लिए उनकी रचनाओं को विस्तृत रूप से जानने के लिए इस लेख को पूरा जरूर पढ़ें.
उनका का जन्म कहां हुआ वह कहां के रहने वाले थे उनका व्यक्तित्व कैसा था उनका जीवन कैसा था इसके बारे में हम यहां जानेंगे आइए जानते हैं कि विद्यापति जी कौन थे.
Vidyapati in hindi
वह भक्ति परंपरा के एक बहुत बड़े कवि और लेखक थे विद्यापति ठाकुर मिथिलांचल से थे और मैथिली भाषा के बहुत ही बड़े प्रसिद्ध कवि थे इसलिए उन्हें मैथिली कवि कोकिल कहा जाता है मैथिली कवि कोकिल का अर्थ मैथिली के कवि कोयल होता है यानी कि जब भी वह गाते थे तो कोयल की तरह उनकी आवाज लोगों को पसंद आती थे
वह एक बहुत ही बड़े संगीतकार लेखक मैथिली और संस्कृत के कवि और एक राजपुरोहित थे भगवान शिव की अनन्य उपासक एवं भक्त थे लेकिन उनकी रचनाओं में राधा कृष्ण के प्रेम भक्ति और सौंदर्य का झलक दिखाई देता है.

वह सिर्फ मैथिली और संस्कृत में ही अपनी रचनाएं नहीं लिखते थे बल्कि और भी कई भाषाओं के भी वह जानकार थे भारतीय हिंदी साहित्य में जो भक्ति परंपरा और श्रृंगार परंपरा का उद्भव हुआ उसमें उनका का महत्वपूर्ण स्थान आता है और इन्हें एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में माना जाता है
भले ही वह शिव भक्त थे लेकिन इन्होंने अपनी बहुत सारी रचनाएं कृष्ण भक्ति में लिखे हैं पदावली और कृति लता उनका का सबसे प्रसिद्ध रचना है और यह रचना अमर हो गई है इसे आज भी लोग उतने ही प्रेम से पढ़ते हैं और आगे भी लोग पसंद करते रहेंगे
उन्होंने अपनी रचनाएं शिव दुर्गा शक्ति आदि के संबंध में भी किए हैं लेकिन सबसे ज्यादा राधा कृष्ण को नायक और नायिका बनाकर के अपने रचनाओं में श्रृंगार रस का वर्णन किया है मिथिला के राजा शिव सिंह विद्यापति के बचपन के दोस्त थे
इसीलिए जब शिव सिंह राजा बने तब वह विद्यापति को अपने दरबार में कवि के रूप में रहने के लिए स्थान दिया विद्यापति ठाकुर राजा शिव सिंह के दरबारी कवि थे वहां बचपन से ही अपने पिता के साथ जाया करते थे.
विद्यापति का जन्म
नाम | विद्यापति ठाकुर |
जन्म | 1350 से 1374 के बीच |
पिता का नाम | गणपति ठाकुर |
माता का नाम | हांसिनी देवी |
मृत्यु | कोई प्रमाण नहीं |
प्रमुख रचनाएं | कृति लता विद्यापति पदावली भूप परिक्रमा |
उन का भाषा | मैथिली,संस्कृत और अपभ्रंश |
भक्ति काल के कई कभी हुए जैसे कि सूरदास तुलसीदास मीरा कबीर दास इन सारे महान कवियों से पहले के कवि ठाकुर थे. वैसे तो इन के जन्म के बारे में कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं है किसी तरह का प्रमाणिकता नहीं है
फिर भी 1350 से 1374 के बीच Vidyapati के जन्म के बारे में कहा जाता है उनका जन्म बिहार के दरभंगा जिला के विसपी ग्राम में हुआ था विद्यापति जी का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम गजपति ठाकुर था
Vidyapati के माता का नाम हांसिनी देवी था.उनके के पिताजी श्री गणपति ठाकुर भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त थे उनका बचपन से ही बहुत ही समझदार और तेज बुद्धि के बालक थे जब वह छोटे थे तभी अपने पिताजी के साथ राजा शिव सिंह के दरबार में जाया करते थे
उस समय शिव सिंह के पिताजी राजा थे शिव सिंह और वह बहुत अच्छे मित्र थे जब वह बड़े हुए और राजा शिव सिंह उस राज्य के सिंहासन पर बैठे तब उन्होंने विद्यापति को अपने दरबारी का भी बना लिया.
विद्यापति जी की शिक्षा
उनके पिताजी संस्कृत के उच्च कोटि के विद्वान थे उनके पिताजी विद्वान और कवि थे विद्याध्ययन एवं लेखन का संस्कार उन्हें अपने परिवार से ही मिला था Vidyapati का पुरा नाम विद्यापति ठाकुर था.विद्यापति जी संस्कृत प्राकृत अपभ्रंश मातभाषा मैथिली पर बहुत ही अच्छेे से जानते था
परिवारिक जीवन
महाकवि ठाकुर के परिवारिक जीवन का कोई लिखित प्रमाण नहीं है लेकिन मिथिला के लोगों से पता चलता है कि उनके दो विवाह हुए थे प्रथम पत्नी से 2 पुत्र थे जिनका नाम नरपति और हर पति था
और दूसरी पत्नी से उनके एक पुत्र और एक पुत्री हुए पुत्र का नाम बचस्पति ठाकुर था और पुत्री का नाम दूल्लहि पाया जाता है जिसका उल्लेख उनके रचित एक कविता में भी मिलता है ऐसा माना जाता है कि Vidyapati जी का वंशज वर्तमान समय में सौराठ गांव जोकि मधुबनी में स्थित है में निवास करते हैं.
व्यक्तित्व
भारतीय साहित्य के भक्ति परंपरा के प्रमुख कवि थे वह विख्यात मैथिली कोकिला कवि कहलाते थे मैथिली भाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते थे उनका संस्कृत प्राकृत अपभ्रंश मातभाषा मैथिली पर बहुत ही अच्छा ज्ञान था विद्यावती की रचनाएं अक्सर संस्कृत अवहट्ठ और मैथिली तीनों भाषाओं में पाई जाती है.
वह एक ऐसे महान कवि थे जिन्हें संस्कृत मैथिली भाषा के साथ-साथ और भी कई भाषाओं का भी ज्ञान था साथ ही उन्हें ज्योतिष इतिहास साहित्य संगीत भूगोल दर्शन आदि का जानकारी था
उन्होंने संस्कृत अपभ्रंश मैथिली भाषा में अपनी रचनाएं की थी जो भी Vidyapati की रचनाएं हैं उनमें भगवान श्री कृष्ण और राधा जी को नायिका बनाकर के श्रृंगार रस का वर्णन किया गया है उनकी रचनाओं में काव्य प्रेम सौंदर्य की झलक दिखाई देती है
उन्होनें ने कई देवी-देवताओं के स्तुति भी लिखे हुए प्राकृतिक सौंदर्य का भी कई अपनी रचनाओं में वर्णन किया है विद्यापति ठाकुर के रचनाओं की और उनके जीवन के बारे में कई लेखक और कवियों ने वर्णन किया है
जैसे कि हजारी प्रसाद द्विवेदी ने Vidyapati ठाकुर के द्वारा रचित सबसे प्रसिद्ध और महान रचना कृति लता को भृंग भृंगी संवाद माना है. उन्होनें ने सबसे पहले कीर्ति लता जैसी महान रचना की थी कृति लता आहट्ट भाषा में लिखा गया है.
रचनाएं
मीरा सूरदास तुलसीदास कबीर आदि सभी कवि के पहले के कवि हैं हिंदी साहित्य में विद्यापति का स्थान हिंदी साहित्य में स्थान और महत्व प्रथम गीतकार के रूप में पाया जाता है विद्यापति जी राधा और कृष्ण के प्रेम भरे गीतों की बहुत सारी रचनाएं की है आसाम बंगाल उड़ीसा पटना में भी यह बहुत ही प्रसिद्ध है
वह मिथिलांचल के रहने वाले थे इसलिए उन्हें मैथिली कवि कहा जाता था 14वीं 15वीं शताब्दी में राधा कृष्ण के प्रेम के बारे में उन्होंने बहुत सारे वर्णन किए अपनी रचनाओं में कृष्ण भक्ति के बारे में उन्होंने बहुत सारी वर्णन किया हैं वह प्रेम सौन्दर्य और भक्ति के अप्रतिम गायक थे .
कुछ प्रमुख रचनाएं की रचनाएं
प्रमुख कुछ रचनाएं हैं जैसे कि
- कृति लता
- विद्यापति पदावली
- भूप परिक्रमा
- पुरुष परीक्षा
- लिखनावली
- शैवसिद्धांतसार
- गंगा वाक्यावली
- विभाग सार
- दान वाक्यावली
- दुर्गा तरंगिनी
के नाम अधिकतर लिए जाते हैं उनके कृति का आधार सबसे ज्यादा विद्यापति पदावली ही थी जिसमें 387 पद संकलित है. महाकवि ठाकुर ने अनेक राजवंश राजाओं के शासनकाल में रहकर अपने दूरदर्शिता का मार्गदर्शन किया था
जिन राजाओ के यहां महाकवि ने सम्मान रखा उनमें प्रमुख है देव सिंह कीर्ति सिंह शिव सिंह पदम सिहं नरसिंह धीरसिंह भैरवसिंह चंन्द्रसिंह इत्यादि राजाओं का उल्लेख मिलता है.
मृत्यु
जिस तरह के विद्यापति के जन्म क बारे में मतभेद है कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं है उसी तरह उनके मृत्यु के बारे में भी कोई प्रामाणिकता नहीं मिलता है कहा जाता है कि बिहार के बेगूसराय जिला के विद्यापति नगर के पास ही गंगा नदी के किनारे उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया था
उनकी मृत्यु 1440 इसवी माना जाता है लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि 1446 में उनका का मृत्यु हुआ था.
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सारांश
vidyapati in hindi भक्ति काल के महान कवि संगीतकार दरबारी कवि भक्त कवि श्रृंगारी कवि के रूप में ठाकुर को सम्मान दिया जाता है और वह मैथिली कोकिल नाम से भी प्रसिद्ध है वह मैथिली और संस्कृत के बहुत बड़े कवि थ.
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प्रियंका तिवारी ज्ञानीटेक न्यूज़ के Co-Founder और Author हैं। इनकी शिक्षा हिंदी ऑनर्स से स्नातक तक हुई हैं, इन्हें हिंदी में बायोग्राफी, फुलफार्म, अविष्कार, Make Money , Technology, Internet & Insurence से संबंधित जानकारियो को सीखना और सिखाना पसन्द हैंं। कृपया अपना स्नेह एवं सहयोग बनाये रखें। सिखते रहे और लोगों को भी सिखाते रहें।