50 वर्षों के बाद अपनी जिम्मेदारियां नई पीढ़ी को सौंपना चाहिए : श्री जीयर स्वामी जी महाराज- परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि 50 वर्षों बाद अपनी जिम्मेदारियां धीरे-धीरे नई पीढ़ी को देना चाहिए। उन्होंने कहा 50 से 60 के बीच अपनी जिम्मेदारियों को अपने युवा पीढ़ी को देकर उनके कार्यों का निरीक्षण करना चाहिए। जिससे आप अपने बच्चों को जिम्मेदारियां निर्वहन करने के लिए उचित मार्गदर्शन दे सकेंगे। जिससे उन्हें घर, परिवार, गृहस्ती चलाने में आसानी होगी।
50 से 60 वर्षों के बाद अपनी जिम्मेदारियां नई पीढ़ी को सौंपें
शास्त्रों के अनुसार 60 वर्षों के बाद पूर्ण रूप से अपनी सभी जिम्मेदारियों को अपने बच्चों को सौंप देना चाहिए। जिससे माता-पिता की मर्यादा बनी रहेगी। कभी-कभी ऐसा होता है कि आपके बच्चे आपसे जिम्मेदारियां जबरदस्ती लेना चाहते हैं। उससे पहले ही आप अपनी जिम्मेदारियों को अपने युवा पीढ़ी को सौंप दें। द्वापर युग में पांचो पांडवों द्वारा राजा परीक्षित को राजा बनाकर राजकाज की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी सौंप दिया गया।
घर में शांति के लिए हवन करना चाहिए

स्वामी जी ने कहा माता-पिता को चाहिए कि उनके जितने भी लड़के होंगे, उन सभी लड़कों के साथ समानता का भाव रखें। जिससे परिवार में बच्चों में आपस में सामंजस्य बना रहेगा। पुत्र का विचार, व्यवहार, आहार एक जैसा न हो तब भी माता-पिता का यह धर्म है कि वह अपने बच्चों के साथ एक जैसा व्यवहार, आचरण, धन, संपत्ति का अधिकार दें। कुछ माता-पिता अपने बच्चों के साथ सामान व्यवहार नहीं रखते हैं। जो बच्चा अधिक गुणवान होता है, उससे थोड़ा अधिक स्नेह रखते हैं। लेकिन परिवार समाज में बेहतर सामंजस्य के लिए सभी पुत्रों के साथ समान भाव माता-पिता को रखना चाहिए। धृतराष्ट्र ने पुत्र मोह में पड़कर कौरव वंश परंपरा को खत्म कर दिए। इसीलिए कभी भी मोह के अधीन नहीं होना चाहिए।
जीवन में विषम परिस्थितियों के आने से पहले कुछ अशुभ संकेत दिखाई पड़ते हैं
कौरव और पांडव के युद्ध के बाद जब द्वारकाधीश श्री कृष्णा द्वारकापुरी लौट गए थे। उसके बाद हस्तिनापुर के सम्राट धर्मराज युधिष्ठिर के मन में कई प्रकार के अशुभ विचार आना शुरू हो गया था। स्वामी जी ने कहा कि कौरव और पांडव के युद्ध के 35 वर्षों के बाद 36वें वर्ष में जब श्री कृष्ण द्वारकापुरी लौट गए। उसके बाद जब 6 महीना तक श्री कृष्ण की कोई सूचना हस्तिनापुर में धर्मराज युधिष्ठिर को नहीं हुआ। तब उनके मन में कई प्रकार के अशुभ विचार आने शुरू हुए। उनका मन काफी उदास रहता था।
एक दिन अर्जुन ने धर्मराज युधिष्ठिर से पूछा भैया आप क्यों उदास हैं। आपको क्या परेशानी है। तब धर्मराज युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा, अर्जुन भगवान श्री कृष्ण को गए कई महीना हो गया। अभी तक उनका कुछ समाचार प्राप्त नहीं हुआ। इसीलिए मन में कई प्रकार के अशुभ विचार आ रहे हैं। जिसके बाद युधिष्ठिर जी द्वारा अर्जुन को द्वारकापुरी भेजा गया। अर्जुन द्वारकापुरी चले गए। जाने के बाद लगभग कई महीना बीत गया। तब तक अर्जुन भी वापस लौटकर नहीं आए। इधर महाराज युधिष्ठिर के मन में काफी हलचल हो गई।
अशुभ संकेत का सूचक
शास्त्रों में बताया गया है जब कौवा, गिद्ध किसी व्यक्ति के माथे पर बैठ जाए। सर पर बैठकर बार-बार चोंच मारता हो, तो समझना चाहिए कि कुछ अशुभ घटना घटने वाली है। रास्ते में कुत्ता सामने रोता हुआ दिखाई पड़ता हो या ऊपर की तरफ मुंह करके रो रहा हो, यह भी अशुभ संकेत का सूचक है। स्वप्न में दक्षिण की तरफ जाते हुए दिखाई पड़ रहा हो, जहां बहुत सारे लोग नित्य गायन करते हुए दक्षिण दिशा की ओर जा रहे हो, यह भी अशुभ समाचार का संकेत है।
व्यक्ति पूजा करने के लिए बैठा हो बार-बार पूजा सामग्री फूल इत्यादि को चढ़ाता हो, लेकिन हर बार पूजा सामग्री या फूल इत्यादि बिखर जाता हो, यह भी अशुभ का संकेत है। मंदिर में जाने के बाद भगवान की मूर्तियां उदास दिखाई पड़ रहा हो यह भी अशुभ सूचक है।
अचानक मन में गलत विचार आते हो, आपका शरीर पूरी तरीके से स्वस्थ है, फिर भी मन विचलित होता हो, तब समझना चाहिए कि जीवन में कुछ अशुभ घटनाएं हो सकती है या सुनने को मिल सकता है।
कुत्ता सियार कौवा गिद्ध के द्वारा जब नकारात्मक घटनाएं घटती हो तो उसे शुभ नहीं माना जाता है। धर्मराज युधिष्ठिर के साथ भी ऐसे ही घटनाएं घट रही थी। उनके मन में कई प्रकार के विचार स्थिति दिखाई पड़ रहे थे।
द्वारका पुरी के विनास का कारण
उधर अर्जुन कई महीने के बाद द्वारका पुरी से वापस हस्तिनापुर लौटे। अर्जुन युधिष्ठिर जी से बोले, भैया श्री कृष्णा नहीं रहे, उनके माता-पिता भी नहीं रहे, पुरी द्वारका पुरी समाप्त हो गई। इस बात को सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर धरती पर गिर पड़े। जैसे ही यह समाचार कुंती सुनी, वह भी धरती पर गिर करके अपने प्राणों का त्याग कर दी। आगे अर्जुन बताये कि, भगवान श्री कृष्णा के द्वारकापुरी में आपस में झगड़ा करके आधे लोग समाप्त हो गए। वहीं जो कुछ लोग बचे थे, उनको भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं समाप्त कर दिया।
हस्तिनापुर से जब भगवान श्री कृष्ण द्वारका लौटे, उसके बाद द्वारकापुरी में लोग आपस में दो दल बना लिए थे। जिसके बाद आपस में लोग एक दूसरे के साथ लड़कर मरने लगे थे। एक दिन कुछ लोग ऋषि महर्षियों की परीक्षा लेने के लिए चले गए। वहां पर एक व्यक्ति को उसके पेट पर कुछ कपड़ा बांध करके स्त्री का रूप बना करके लेकर जाया गया। द्वारका पुरी के लोग जाकर ऋषि महर्षियों से पूछे कि महात्मा जी बताइए कि स्त्री को लड़का होगा या लड़की।
वहां पर जितने भी ऋषि महर्षि महात्मा थे, सब लोग चुप हो गए। कोई कुछ नहीं बोल रहा था। लेकिन बार-बार इन सवालों को दोहराया जा रहा था। जिसके बाद दुर्वासा ऋषि क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा कि उस स्त्री के जो बच्चे होंगे वह न लड़का होगा न लड़की होगी, वह एक मुसल होगा। अब दुर्वासा ऋषि के वचनों अनुसार सचमुच उस व्यक्ति जो स्त्री के रूप में था, उसके पेट में एक लोहे का मुसल हो गया। जो कपड़ा बांधा गया था, ऊपर से उसमें से एक लोहे का मुसल निकला।
भगवान श्री कृष्णा का मृत्यू कैसे हुआ
दुर्वासा ऋषि ने श्राप दे दिया कि वही लोहे का मुसल तुम सभी लोगों के विनाश का कारण बनेगा। वहीं उस लोहे के मुसल और शराब के कारण भी पूरी द्वारका पुरी समाप्त हो गई। जो लोहा निकला उसको लोग फेंक दिए। नदी किनारे जो टूट करके घास के रूप में बन गया। वही आगे चलकर घास में छोटे-छोटे लोहे का कंडा हुआ। जो एक बहेलियां ने उस छोटे से लोहे के कंडे को अपने बाण पर साधने के लिए रख लिया। एक दिन बहेलिया रास्ते से जा रहा था। भगवान श्री कृष्णा एक पेड़ के नीचे बैठे हुए थे। वहीं दूर से ही बहेलिया ने वहीं लोहे का मुसल वाला कंडा छोड़ दिया। जो भगवान श्री कृष्ण के पैरों में आकर लगा।
जब पास से बहेलिया आया तो देखा कि यह तो भगवान श्री कृष्णा है। क्षमा मांगने लगा। लेकिन भगवान श्री कृष्णा ने कहा बहेलिया तुम पिछले जन्म में बाली थे। इस जन्म में तुम बहेलियां बने हो। पिछले जन्म में हमने तुम्हें छुपकर मारा था। इस जन्म में तुमने छुपकर मुझे मारा। इसलिए तुम परेशान मत हो, इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है। वही भगवान श्री कृष्णा अपनी जीवन लीला को समाप्त कर दिए।
बलराम जी भी जल में जाकर के अपने शरीर का त्याग कर दिए। भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि जब हम धरती से चले जाएंगे, उसके 7 दिन बाद पुरी द्वारका पूरी डूब जाएगी। केवल मेरा ही एक स्थान बचेगा। जहां पर हम वास करते रहेंगे। इस प्रकार से पूरा द्वारकापुरी खत्म हो गया। इस समाचार को जब अर्जुन ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया, उसके बाद युधिष्ठिर बहुत ही ज्यादा निराश हुए।
पांचो पांडव और द्रोपदी की स्वर्गारोहण यात्रा
द्वारकापुरी जब अर्जुन जी गए थे, तब वहां पर कुछ ही लोग जिंदा बचे थे। जिसको अर्जुन अपने साथ लेकर हस्तिनापुर आ गए। बाद में धर्मराज युधिष्ठिर के द्वारा मथुरा, वृंदावन, बरसाना, गोकुल को फिर से बसा कर भगवान श्री कृष्ण के नाती को राजा बना दिया गया। आगे चलकर धर्मराज युधिष्ठिर अपने नाती राजा परीक्षित को हस्तिनापुर की गद्दी सौंप दिए। जिसके बाद पांचो पांडव और द्रोपदी स्वर्गारोहण की यात्रा करने लगे।
स्वर्गारोहण की यात्रा हरिद्वार से बद्रीनारायण होते हुए माना गांव जो भारत का आखिरी बॉर्डर वाला गांव है। जिसके बाद भारत का पड़ोसी देशर चीन है। वही माना गांव से ऊपर हिमालय की बर्फीली रास्तों में एक साथ जा रहे थे। थोड़ी देर आगे चलने पर द्रौपदी रास्ते में ही बर्फ में गिर पड़ी। भीम ने युधिष्ठिर से पूछा भैया द्रोपदी रास्ते में ही गिर पड़ी। इसका कारण क्या है। धर्मराज जी ने कहा द्रोपदी में सब कुछ सही था। लेकिन पांचो पांडवों की पत्नी होने के बाद भी अर्जुन के प्रति उसका स्नेहा ज्यादा था। इसीलिए वह स्वर्गारोहण की यात्रा नहीं कर सकी।
आगे चलकर सहदेव, नकुल, अर्जुन, भीम चारों लोग भी बीच रास्ते में ही गिर पड़े। क्योंकि सहदेव को अपने रूप पर अभिमान था। नकुल को अपने विद्या पर अभिमान था। अर्जुन को अपने गांडीव पर अहंकार था। भीम को अपने भोजन पर नियंत्रण नहीं था। जिसके कारण चारों लोग स्वर्गारोहण की यात्रा में बीच रास्ते में गिर गए। केवल एक मात्र धर्मराज युधिष्ठिर स्वर्ग लोक के द्वार पर पहुंचे। जहां पहुंचने के बाद पीछे देखे तो उनके पीछे एक कुत्ता भी जा रहा था।
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धर्मराज युधिष्ठिर का स्वर्ग में धर्म की परीक्षा
द्वार पर जैसे ही पहुंच कर युधिष्ठिर आगे बढ़ने का प्रयास किए, तब तक वहां के द्वारपालों द्वारा युधिष्ठिर से कहा गया कि महाराज केवल एक ही व्यक्ति जाएगा। युधिष्ठिर ने कहा तो हम अकेले नहीं जाएंगे मेरे साथ एक कुत्ता भी जाएगा। हम दोनों लोग नहीं जाएंगे तो हम नहीं जाएंगे। वह कुत्ता धर्मराज थे। जो युधिष्ठिर की परीक्षा ले रहे थे। अंतिम समय में भी क्या धर्मराज युधिष्ठिर धर्म की परीक्षा में पास होते हैं। वहीं कुत्ता धर्मराज के रूप में प्रकट होकर महाराज युधिष्ठिर से बोले महाराज हम धर्म है, हम आपकी परीक्षा ले रहे थे।
उसके बाद युधिष्ठिर जी स्वर्ग लोक में अंदर जा रहे थे तो देखते हैं कि रास्ते में कर्ण, दुर्योधन सब लोग स्वर्ग लोक में उत्सव मना रहे हैं। जबकि द्रौपदी, नकुल, सहदेव, अर्जुन भी स्वर्ग में भी नरक का भोग भोग रहे हैं। युधिष्ठिर कर्मचारियों से पूछे, यहां स्वर्ग लोक में भी भेदभाव हो रहा है क्या। मेरे भाइयों के साथ ऐसा अत्याचार क्यों। वहों के कर्मचारी बोले कि महाराज हम इसके बारे में नहीं जानते। आलाकामान बताएंगे। आगे यमराज पहुंचते हैं। उनसे भी यही सवाल युधिष्ठिर किए।
उसके बाद चित्रगुप्त जी को भी बुलाया गया। वह अपना बही खाता खोल करके पूरे जीवन लीलाओं की घटनाओं को देख लगे। जिसमें कोई भी गलती या दोष नहीं मिला। वहीं पर भगवान श्री कृष्णा पहुंचे। चित्रगुप्त द्वारा पूरी बही खाता देखने के बाद बताया गया कि आपने जीवन में एक बार झूठ बोला है। आपने कहा कि अश्वत्थामा वध: नरो या कुंजरो।
पांचो पांडव और द्रौपदी स्वर्ग में नरक भोग
युधिष्ठिर जी बोले कि हमने झूठ नहीं बोला था। भगवान श्री कृष्णा ने झूठ बोलवाया था, तब हमने बोला था। वही कृष्ण जी कहते हैं कि जो हमने कहा था वह आपने नहीं कहा था। आपने अपने मन से उसमें कुछ शब्द जोड़ दिए थे, वही झूठ हो गया। इसीलिए आपको स्वर्गारोहण की यात्रा में स्वर्ग में भी आपके भाइयों को नरक जैसा दृश्य दिखाया गया। लेकिन वे लोग भी स्वर्ग के अधिकारी हैं। इसलिए बस आपको थोड़ी सी गलती के लिए नर्क का जो दृश्य है वह दिखलाया गया है। वही युधिष्ठिर और उनके भाई स्वर्ग लोक में चले गए।
इधर हस्तिनापुर में राजा परीक्षित राजकाज की व्यवस्था अच्छे से चला रहे थे। मथुरा वृंदावन बरसाने की राजकाज की व्यवस्था भगवान श्री कृष्ण के नाती चला रहे थे। आगे हस्तिनापुर में राजा परीक्षित किस प्रकार से राज्य की व्यवस्था करते हैं। इसकी चर्चा अगले दिन की जाएगी जय श्रीमन नारायण।

रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।