कन्याओं के विवाह के लिए कात्यायनी देवी की पूजा करें: श्री जीयर स्वामी जी महाराज 

कन्याओं के विवाह के लिए कात्यायनी देवी की पूजा करें: श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि लड़कियों का विवाह एक बड़ी समस्या बन गया है। इसीलिए जिन कन्याओं के विवाह में देरी हो रहा है, परिवार के लोग विवाह करने के लिए कई वर्षों से परेशान है। उन्हें कात्यायनी देवी की पूजा करनी चाहिए। श्रीमद् भागवत महापुराण के दशम स्कंद के 22वें अध्याय के चौथे श्लोक का जाप करने से कन्याओं के विवाह में आ रही बाधा खत्म होती है। 

जिन कन्याओं का विवाह करना है, वह सुबह स्नान करके पीला कपड़ा पहनकर, सरसों के तेल का दीपक जलाकर के नियमित रूप से मंत्र का जाप करती है तो कृपा प्राप्त होता है। जाप करने से पहले जहां भी बैठकर जाप करना हो, वहां पर केला का एक छोटा सा पौधा भी गमला में रखना चाहिए और उस केला के पौधे की भी पूजा करनी चाहिए। जिसके बाद मंत्र का जाप करने को बताया गया है।

कन्याओं के विवाह के लिए कात्यायनी देवी की पूजा करें

श्रीमद् भागवत के श्लोक इस प्रकार से है। कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः। यदि जिस कन्या का विवाह करना है, उसके माता-पिता, भाई, पुरोहित भी इस नियम से कात्यायनी देवी की मंत्रों का पूजा जाप विधि के अनुसार करते हैं तो भी विवाह होने में मां कात्यायनी की कृपा प्राप्त होती है।

kanyao ke vivah ke liye katyayani devi ki pooja kare

लड़कियों की विवाह एक बड़ी चुनौती बन गई है। पिता, भाई लगातार प्रयास कर रहे हैं। फिर भी कहीं पर विवाह सेट नहीं हो रहा है। उन्हें श्रीमद् भागवत के इस विशेष मंत्र का श्रद्धा पूर्वक जाप करना चाहिए। वही कोई भी व्यक्ति यदि किसी भी प्रकार के संकट से जूझ रहा है, तो भी उसे परेशानी से मुक्त होने के लिए इस श्लोक का नियमित रूप से जाप करना चाहिए। जिससे उनका संकट दूर होगा और मन शांत और एकाग्रचित होगा। इस मंत्र के जाप करने से धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। इसीलिए विवाह एवं अर्थ की कामना, मोक्ष की कामना, धर्ममय जीवन जीने के लिए भी इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

मूर्ति पूजा से दुनिया में कोई भी अलग नहीं

दुनिया में मूर्ति पूजा से कोई भी अलग नहीं है। आज दुनिया में जितने भी धर्म हैं, उन सभी धर्म में मूर्ति की पूजा की जाती है। वैसे तो इस दुनिया का सबसे पुराना एवं प्रथम वैदिक धर्म है। जो कि आज से 50 हजार वर्ष पुराना है। आज दुनिया में जितने भी अलग-अलग पंथ बनाए गए हैं, उनका आयु 1500 से 2000 वर्ष के अंदर है। कुछ लोग मूर्ति पूजा को नहीं मानते हैं, लेकिन चाहे वह जिस धर्म को मानते हो, हर धर्म में मूर्ति की पूजा की जाती है। 

आज समाज में कोई एक छोटा सा व्यक्ति भी समाज के लिए अच्छा काम करता है, तो उसके याद में, उसके सम्‍मान में उसका प्रतिमा लगाया जाता है। उस प्रतिमा को लगा करके समाज को संदेश दिया जाता है कि उनके द्वारा अच्छा काम किया गया है। वही दुनिया में जब भगवान अवतार लिए उन भगवान के द्वारा इस संसार के लिए कितने अच्छे काम किए गए। उन भगवान का आज यदि मूर्ति बनाकर पूजा किया जाता है तो उसमें किसी भी प्रकार का सवाल उठाने का किसी को भी अधिकार नहीं है। 

हर धर्म में होता हैं मूर्ति पूजा

आज एक सामान्य व्यक्ति जो समाज के लिए कुछ अच्छा काम कर देता है, उसका आप प्रतिमा लगा देते हैं। लेकिन जो साक्षात परमब्रह्म परमेश्वर पृथ्वी पर अवतार लेकर के मानवों के जीने के लिए मार्गदर्शन दिए। उन भगवान कृष्ण श्री राम, हनुमान जी, दुर्गा जी की प्रतिमा लगाई जाती है तो उसमें क्याें आपत्ति होना चाहिए। इस्लाम धर्म में भी चंद्रमा और तारे के प्रतीक की प्रतिमा होती है। इसलिए इस्लाम धर्म भी प्रतिमा से अलग नहीं है। जैन धर्म में भी महावीर तीर्थंकर की पूजा की जाती है। बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध की प्रतिमा की पूजा की जाती है।

आर्य समाज में भी चबूतरा बनाया जाता है। वह भी एक प्रकार की प्रतिमा है। इसी प्रकार से सिख समुदाय में भी गुरु गोविंद सिंह की प्रतिमा को सिख समुदाय के लोग मानते हैं। इस प्रकार से मूर्ति और प्रतिमा से कोई अलग नहीं है। इसीलिए चाहे आप किसी भी धर्म को मानते हो आपको मूर्ति की पूजा पर टिप्पणी करने का कोई अधिकार नहीं है।

आप एक साधारण व्यक्ति के द्वारा कुछ भी छोटा काम आपके समाज के लिए कर दिया जाता है तो वह वंदनीय हो जाता है और वह परमात्मा जो साक्षात दिखाई पड़ते हैं।, सूर्य, चंद्रमा, वायु, अग्नि एवं अनेक देवता जो साक्षात दिखाई पड़ते हैं। जिनसे हम प्राणियों का कल्याण होता है। उनकी मूर्ति और प्रतिमा पर कुछ भी कहने का अधिकार नहीं है। जो साक्षात हवा, शीतलता, प्रकाश देकर सृष्टि के प्राणियों का कल्याण करते हैं उन देवताओं का पूजा तो संसार के हर एक प्राणी को करना चाहिए।

जब भगवान श्रीमन नारायण का परीक्षा ब्रह्मा जी लिए

जब भगवान श्रीमन नारायण श्री कृष्ण रूप में अवतार लेकर वृंदावन में लीला कर रहे थे, उस समय सभी देवी देवता उनका दर्शन करने के लिए उनके लीला में सम्मिलित होने के लिए आए थे। ऐसे ही एक बार ब्रह्मा जी भगवान श्री कृष्ण का लीला देखने के लिए आए थे। तभी वह कृष्ण भगवान को किसी ग्वाले का जूठा खाते हुए देख लिए, तब ब्रह्मा जी को लगा कि यह भगवान नहीं हो सकते हैं। भगवान श्रीमन नारायण किसी का जूठा खाएंगे। 

तभी ब्रह्मा जी ने श्री कृष्ण भगवान का परीक्षा लेने के लिए चल दिए। ब्रह्मा जी कृष्ण भगवान के साथ आए हुए सभी ग्वाल-बाल, गाय, बछड़ों को चुरा कर लेकर चले गए। तब भगवान श्री कृष्ण ने ब्रह्मा जी का ही भेष लेकर ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के पहुंचने से पहले पहुंच गए। ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के जाे सेवक थे उनसे बोले कि बहरूपिया ब्रह्मा घूम रहे हैं, इसलिए अगर कोई गलत आदमी आए तो उसे पकड़ लेना। खुद भगवान श्रीमन नारायण ब्रह्मा जी के गद्दी पर जाकर बैठ गए। 

ब्रह्मा जी को भगवान से क्षमा मांगनी पड़ी

इधर ब्रह्मा जी कृष्ण जी के मित्र मंडली, गाय और बछड़ों को लेकर ब्रह्म लोक पहुंचे तो उनके ही सेवक उन्हें पड़कर वहां से भगाने लगे। ब्रह्मा जी के कितना भी बोलने के बाद भी वह बोले कि हमारे ब्रह्मा जी तो यहीं पर है, आप बहरूपिया हैं। तब ब्रह्मा जी को समझ में आया कि मैंने जिनका परीक्षा लिया था, वह स्वयं नारायण है और मैंने गलती कर दिया तो ब्रह्मा जी ने भगवान से माफी मांगे

जब भगवान श्री कृष्ण के ग्वाल बाल मित्र मंडली को ब्रह्मा जी चुराए थे, उस समय कृष्ण जी का उम्र 5 साल था। लेकिन जब कृष्ण जी ब्रह्मलोक पहुंचे, वहां से ब्रह्मा जी क्षमा मांगे, फिर कृष्ण जी वृंदावन में आए तो इतने दिन का समय 1 साल बीत गया। जिससे भगवान श्री कृष्ण का उम्र 6 साल का हो गया था। एक बार भगवान श्री कृष्णा अपने ग्वाल बालों के साथ गायों को चराने के लिए यमुना जी के किनारे चले गए। वहां उनकी एक गाय यमुना जी का पानी पीकर मर गई।

कृष्‍ण जी ने किया कालिया नाग मर्दन

क्योंकि यमुना जी में कालिया नाग रहता था। जो कि इतना विषैला था कि सारा यमुना जी का पानी ही विषैला हो गया था। अगर उसके ऊपर से आकाश मार्ग पर कोई पंछी भी उड़ कर जाता था, तो वह यमुना जी में गिर मर जाता था। तब भगवान श्री कृष्ण ने यमुना जी में जाकर कालिया नाग का मर्दन किया और कालिया नाग को यमुना जी से निकलकर कहीं दूसरे जगह जाने के लिए कहा। इधर मैया यशोदा और नंद बाबा बेहोश पड़े हुए थे। तब भगवान कृष्ण सुरक्षित यमुना नदी से निकलकर आए और यमुना नदी को विष मुक्त किए।

इसी तरह ग्रीष्म ऋतु और वर्षा रितु बीत गया और शरद ऋतु आ गया। चारों तरफ फूल, फल, नए-नए अनाज निकला हुआ था। प्रकृति का एक अलग ही रंगत आ रहा था। ऐसे ही अगहन महिना में गोपियां भगवान श्री कृष्ण को अपना बनाने के लिए उन्हें प्राप्त करने के लिए कात्यायनी देवी का यमुना जी किनारे पूजा करती थी। जिसके लिए वह रोज यमुना जी में नहाने जाती थी। यमुना जी में जब भी नहाने जाती तो वह वस्त्र अभाव में रहती थी। जिससे यमुना जी ने भगवान श्री कृष्ण से प्रार्थना किया कि हे प्रभु यह अधर्म है। आप इन्हें जरूर समझाएं। 

गोपियों का चीर हरण

तब भगवान श्री कृष्ण ने एक दिन सभी गोपियां नहाने गई थी तो उनका कपड़ा लेकर वहीं कदंब के वृक्ष पर चढ़ गए। जब गोपियां अपना कपड़ा मांगने लगी, तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया और यमुना जी से वरुण देवता से माफी मांगने के लिए कहा। उन्होंने बताया कि कभी भी वस्त्र अभाव में नहीं नहाना चाहिए। तब गोपियों ने उनका बात माना और यमुना जी से माफी मांगा। फिर भगवान श्री कृष्ण ने उनके वस्त्र दिए।

एक बार भगवान श्री कृष्णा अपने ग्वाल बालों के साथ गायों को चराते हुए बहुत आगे निकल गए थे और सभी लोग भोजन भी नहीं लिए थे। तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें ऋषि, मुनियों, ब्राह्मणों के आश्रम पर भोजन मांगने के लिए भेजें। लेकिन ऋषि मुनियों और ब्राह्मणों ने मना कर दिया। तब कृष्ण जी ने कहा कि ब्राह्मणों की पत्तियों से मांग कर लाओ। सभी ग्वाल बाल ब्राह्मण की पत्नियों के पास जाकर बोले कि भगवान श्री कृष्णा आए हैं, भोजन दीजिए। 

यह सुनकर ब्राह्मण की पत्नियां अपने घरों से अलग अलग पकवान बनाकर कृष्ण भगवान को भोग लगाने के लिए ले गई। यह देखकर ऋषि मुनि और ब्राह्मण ने कहा कि हम तो इतने दिनों से पूजा पाठ कर रहे हैं, लेकिन फिर भी भगवान श्रीमन नारायण का सानिध्य हमें नहीं मिला। इसलिए जो भगवान की पूजा पाठ आराधना सच्चे दिल और हृदय से करता है उसे भगवान जरूर प्राप्त होते हैं।

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