भगवान भी देवताओं का पक्ष लेते हैं राक्षसों का नहीं : श्री जीयर स्वामी जी महाराज 

भगवान भी देवताओं का पक्ष लेते हैं राक्षसों का नहीं : श्री जीयर स्वामी जी महाराज  – चातुर्मास्‍य व्रत स्थल परमानपुर में भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि ईश्वर में भी एक कमी है। एक बार नारद जी भगवान श्रीमन नारायण से पूछे भगवन आप में कौन सी कमी है। श्रीमन नारायण भगवान ने कहा कि नारद मेरे अंदर कोई कमी या खामियां नहीं है। यदि मेरे में कोई कमी या खामियां होती तो हम ईश्वर नहीं होते। फिर भी नारद जी नहीं माने नारद जी ने कहा नहीं-नहीं प्रभु आपके अंदर भी कोई न कोई कमी जरूर होगा। बार-बार पूछने के बाद श्रीमन नारायण भगवान कहते हैं नारद जी मुझ में भी एक सबसे बड़ी कमी है, कृपा करना। 

ईश्वर में भी है एक कमी

हम अपने स्मरण करने वाले भक्तों पर बहुत जल्द कृपा करते हैं। मेरे में यदि कोई सबसे बड़ी कमी है, तो कृपा करना ही है। इसीलिए भगवान श्रीमन नारायण को कृपालु भी कहा जाता है। ईश्वर केवल कल्याण के लिए होते हैं। वह किसी का अहित नहीं करते हैं। बाकी देवी देवता कभी-कभी नाराज भी हो जाते हैं। 

लेकिन ईश्वर हमेशा प्राणियों की, प्रकृति की, जीव की मंगल करते हैं। इसीलिए कहा गया है कि मंगल भवन अमंगल हारी, जो अमंगल को हर करके मंगल करता हो वही ईश्वर है। वहीं भगवान श्रीमन नारायण है। श्रीमन नारायण कहते हैं, नारद जी हम अपने विरोधियों की भी मंगल की कामना करते हैं। जो हमारा सबसे विरोधी हैं, उसको भी मोक्ष देते हैं। रावण, कुंभकरण, कंस, शिशुपाल जैसे राक्षसी प्रवृत्ति के लोगों को भी मोक्ष देते।

bhagwan bhi dewtao ka paksh lete hai rakshaso ka nahi

यह कथा गंगा के पावन तट पर शुकदेव जी राजा परीक्षित को सुना रहे हैं। वहीं राजा परीक्षित शुकदेव जी से पूछते हैं कि महाराज अब तक आपने जितना भी कथा सुनाया, उसमें मुझे एक ही बात समझ में आया भगवान भी देवताओं का ही पक्ष लेते हैं। मतलब भगवान श्रीमन नारायण भी पक्षपाती है। शुकदेव जी कहते हैं, नहीं परीक्षित ऐसा बिल्कुल नहीं है। राजा परीक्षित कहते हैं महाराज आपने जितना कथा सुनाया, उसमें राक्षसों को मार दिए, राक्षसों को भगा दिए, राक्षसों का विनाश कर दिए, देवताओं का रक्षा किया, देवताओं के लिए अवतार लिए यही कथा हम अभी तक आपसे सुनते आ रहे हैं। भगवान भी सम दृष्टि वाले नहीं है। 

भगवान भी देवताओं का पक्ष लेते हैं राक्षसों का नहीं

शुकदेव जी कहते हैं राजा परीक्षित अभी तक तुमको जितना भी हमने श्रीमद् भागवत कथा श्रवण कराया, उसको तुमने सही से नहीं समझा है। भगवान श्रीमन नारायण ऐसे हैं, जो राक्षसों का भी मंगल करते हैं। हिरण्याक्ष, हिरण्‍यकश्यपू के घर में जन्म लेने वाले प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान नरसिंह रूप में खम्‍बे से प्रकट हो जाते हैं। ऐसे भगवान केवल देवताओं के हितैसी नहीं बल्कि वह अपने भक्तों के हितैसी है। चाहे उनके भक्त देवता हो, राक्षस हो, जीव हो, पशु पक्षी हो या इस संसार में पाए जाने वाले जितने भी प्रकार की योनियों में रहने वाले जीव हो, उन सभी पर सम दृष्टि रखने वाले भगवान श्रीमन नारायण है।

समदर्शी या संमभाव सामानता का सही मतलब भी समझना चाहिए। समदर्शी जो जैसा हो, उसके जैसा व्यवहार, आचरण, मर्यादा का पालन करना समदर्शी कहलाता है। समदर्शी का मतलब एक जैसा व्यवहार, आचरण, मर्यादा नहीं होता। यदि आप समदर्शी का मतलब सामान्य समझते हैं, एक जैसा व्यवहार, मर्यादा समझते हैं तो आप गलत हैं। समदर्शी का मतलब जो जैसा है, जिसके पास जैसा गुण है, जिसके पास ज्यादा जैसा पद है, प्रतिष्ठा है, वैसा आचरण, व्यवहार, मर्यादा का पालन करना समदर्शी कहलाता हैं। 

संमभाव का सही मतलब समझना चाहिए

यदि आप समदर्शी का मतलब एक जैसा भाव समझते हैं, तो फिर गलत हो सकता है। एक उदाहरण से समझना चाहिए। घर में कई स्त्रियां होती है। उनमें पत्नी के साथ मर्यादा अलग होता है। वही माता, बुआ, बहन, दादी के साथ मर्यादा अलग होता है। यदि आप समदर्शी का मतलब एक भाव समझते हैं, तो फिर समाज की मर्यादा व्यवस्था आचरण पूरी तरीके से अव्यवस्थित हो जाएगा। माता के साथ अलग व्यवहार किया जाता है। पत्नी के साथ अलग व्यवहार किया जाता है। बुआ, बहन के साथ अलग व्यवहार किया जाता है। 

पत्नी दूसरे घर से आती है, जबकि अपनी बहन, बेटी का विवाह दूसरे घर में किया जाता है। सोचिए यदि समदर्शी सामान्य समभाव रखते हुए एक ही प्रकार का आचरण किया जाए तो कितना समाज की संस्कृति पूरी तरीके से धूमिल हो जाएगी। जैसे प्रधानमंत्री के लिए हेलीकॉप्टर की व्यवस्था की जाती है। उसी प्रकार से यदि एक स्कूल में काम करने वाले कर्मचारी भी कहीं जाने के लिए हेलीकॉप्टर की व्यवस्था खोजने लगे तो क्या यह संभव है। 

प्रधानमंत्री जो एक देश के संचालन कर्ता होते हैं। जबकि एक कर्मचारी एक स्कूल के कामों को देखते हैं। अब इन दोनों में यदि सामान्य समदृष्टि समभाव खोजा जाने लगे तो फिर कार्य प्रणाली पूरी तरीके से बिखर जाएगी। इसीलिए जो जैसा है, उसके साथ वैसा आचरण, व्यवहार, मर्यादा सुनिश्चित करने की प्रणाली को समदर्शी समभाव कहते हैं।

साधु किसे कहते हैं

वही शुकदेव जी राजा परीक्षित से कहते हैं, राजा परीक्षित भगवान सभी के हितैसी हैं। वह साधुओं के हितैसी है। वही राजा परीक्षित कहते हैं महाराज साधु किसे कहते हैं। साधु का लक्षण क्या होता है। वही शुकदेव जी कहते हैं कि राजा परीक्षित साधु कोई भी व्यक्ति हो सकता है। चाहे वह गृहस्त आश्रम में रहता हो या बिना शादी विवाह किए ब्रह्मचर्य आश्रम में रहता हो, वह भी साधु हो सकता है। लेकिन साधु उसे कहा जाता है जो सामान्य मानव से अलग जीवन जीता हो। जिसका आचरण, व्यवहार, रहन-सहन, खान पान उठन, बैठन शास्त्र के मर्यादा के अनुसार हो, उसे साधु कहा जाता है। साधु का मतलब जो अपने आप को साध लेता है, जो अपने आपके इंद्रियों पर नियंत्रण कर लेता है वह साधु है।

साधु का लक्षण क्या होता है

साधु वह होता है, जिसका आचरण समाज, संस्कृति के हित में होता है। जिसके आचरण से, वाणी से, विचार से, भगवान का निरंतर चिंतन स्मरण किया जाता हो वह साधु है। साधु जो अपने स्वरूप को बार-बार नहीं बदलता है, वह भी साधु है। जो बाल बच्चे परिवार में भी रहता है, लेकिन जिनके विचार, व्यवहार, आचरण, गुण भगवान के साधना में लगा हुआ है वह साधु है। साधु का भेष बनाने वाला साधु नहीं हो सकता हैं। जो अपना आहार, व्यवहार, वस्त्र, विचार, मर्यादा कुछ समय-समय से बदल लेता हो वह साधु नहीं हो सकता हैं। चाहे वह विवाह किया हो या बिना विवाह किए भी रहता हो।

जो कभी गृहस्थ आश्रम में हो जाता है, कभी गेरुआ वस्त्र धारण करके साधु बन जाता है। जो समय-समय से अपने स्वरूप प्रस्तुति के अनुसार बदल लेता है, वह साधु नहीं है। साधु वह है जो विषम परिस्थिति आने के बाद भी धैर्य मर्यादा को धारण करता है। चाहे किसी भी परिस्थिति का सामना करना पड़े फिर भी वह अपने मर्यादा के साथ समस्याओं का सामना करते हुए विषम परिस्थितियों में भी अपने आचरण का त्याग नहीं करता हो वह साधु है।

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