भगवान श्री कृष्ण के रासलीला का सही अर्थ समझना चाहिए : श्री जीयर स्वामी जी

भगवान श्री कृष्ण के रासलीला का सही अर्थ समझना चाहिए : श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए भगवान श्री कृष्ण के रासलीला पर प्रकाश डाले। भगवान श्री कृष्ण लगभग 7 वर्ष के उम्र में गोपियों के साथ अनेक लीलाएं किए। कुछ लोग भगवान श्री कृष्ण की रासलीला को गलत तरीके से परिभाषित करते हैं। इसीलिए उन लोगों को समझना चाहिए। आज भी जो 6 वर्ष, 7 वर्ष का बालक है, वह यदि किसी हम उम्र बालिका के साथ खेलता है, तो क्या उन बच्चों और बच्चियों को गलत दृष्टि से देखा जाएगा। 

श्री कृष्ण का उम्र जब 7 वर्ष के आसपास था, उस समय गोपियों के साथ उन्होंने कई लीलाएं की थी। दूसरी बात एक और समझनी चाहिए कि वह साक्षात परम ब्रह्म परमेश्वर हैं। जिन्होंने 10 दिन के उम्र में पूतना जैसी राक्षसी को खत्म कर दिए। क्या आज कोई सामान्य बालक जिनका उम्र 10 दिन है, वह किसी राक्षसी को मार सकता है। इसलिए जब उन परम ब्रह्म परमात्मा की बात होती है तो समझना चाहिए कि वह एक सामान्य मानव नहीं ईश्‍वर है। 

भगवान श्री कृष्ण के रासलीला का सही अर्थ समझना चाहिए

आप भगवान को भी क्या एक सामान्य मानव की दृष्टि से देखते हैं। तीसरी बात यह है कि वह भगवान श्री कृष्ण जो साक्षात पूरे जगत के पिता हैं, जो जगत के पति हैं, वह स्वयं मर्यादा को स्थापित करने वाले हैं। उन जगत पिता से दुनिया का कोई भी वास्तु हो, जीव हो, कुछ भी अलग नहीं है। जिस प्रकार से किसी व्यक्ति का शरीर उसके लिए चाहे वस्त्र के अवस्था में हो या निर्वस्त्र की अवस्था में हो, एक समान होता है। उस व्यक्ति से उसके पूरे शरीर का भाग उसके दृष्टि से अलग नहीं है। ठीक उसी प्रकार से उन भगवान श्री कृष्ण से दुनिया के जितने भी जीव चाहे, वह वस्त्र पहन कर के रहे या ऐसे रहे। उनके दृष्टि से अलग नहीं है। 

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जो स्वयं इस दुनिया के निर्माता हैं, जो स्वयं जीव को प्रकट करते हैं, जो स्वयं इस शरीर के सारे अंगों को पलीत पोषित करते हैं। उनसे दुनिया का कोई भी चीज अलग कैसे हो सकता है। इसीलिए वह 7 वर्ष की अवस्था में गोपियों के साथ गान करना या नृत्य करना रासलीला नहीं है। बल्कि वह परम ब्रह्म परमेश्वर की ब्रह्म लीला है। वह साक्षात दुनिया के लिए परमात्मा अपने आत्मा से जोड़ने की लीला करते हैं।

जीव का परमात्मा के साथ लीला, आनंद, प्रेम ही रासलीला है

जीव का परमात्मा के साथ लीला, आनंद, प्रेम होना ही रासलीला है। वैसे भी रासलीला शब्द का यदि मतलब समझा जाए तो रासलीला दो शब्दों से मिलकर के बना हुआ है। रास का मतलब आनंद, प्रेम, प्रकाश होता है। जो भगवान श्री कृष्ण अपने भक्तों के साथ आनंद के क्षण को व्यतीत कर रहे हैं। जो दुनिया के लिए साधारण मानव बनकर अपनी लीला को दिखा रहे हैं।

उन्हीं श्री कृष्ण की लीलाओं को रासलीला के नाम से जाना जाता है। वैसे सामान्य शब्दों में रासलीला का मतलब ईश्वर की लीला, ब्रह्म की लीला, भगवान की लीला होता है। जितनी भी गोपियां थी वह भगवान श्रीमन नारायण की आज्ञा से लीला करने के लिए ही जन्म ली थी। उन गोपियों में देवता, साधक, तपस्वी शामिल थे। जो भगवान की आज्ञा से गोपियों के रूप में आए थे।

गोवर्धन पूजा का शुरूआत

श्रीमद् भागवत कथा अंतर्गत भगवान श्री कृष्ण गोकुल में अनेक लीलाएं किए थे। कितने लोगों का अहंकार भी नष्ट किए थे। ऐसे ही एक बार गोकुल में देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी चल रही थी। श्री कृष्ण अपनी मैया बाबा से पूछे कि यह पूजा क्यों की जाती है। तब नंद बाबा और यशोदा मैया ने बताया कि हम इंद्र देव का पूजा करते हैं। जिससे वह खुश होकर पानी बरसाएंगे। जो कि हमारे प्रकृति के लिए अच्छा है। हमारे लिए पानी की आवश्यकता है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि जब हमारे पूजा करने पर ही देवराज इंद्र खुश होकर पानी बरसाते हैं तो इससे क्या फायदा। इससे अच्छा तो है कि हम गोवर्धन पर्वत का पूजा करें। 

जो कि गोवर्धन पर्वत के तलहटी में हमारे पशु, गाय, बछड़े घास खाते हैं। हमारे घर आसपास है। गोवर्धन पर्वत के पर कई फल फूल है, जिससे हमारा जीवन यापन होता है। अब सभी वृंदावन वासी कृष्ण जी के इस बात से सहमत हुए और सभी लोग जो पूजा की तैयारी इंद्र देव के लिए किए थे, वह गोवर्धन पर्वत के पूजा करने लगे। उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत के पास ही में अपने सत्‍य संकल्प से गंगा को भी प्रकट किया था। उस गंगा का नाम मानसी गंगा है।

सभी वृंदावन वासी गोवर्धन पर्वत का पूरे विधि विधान से पूजा किए। जितना पकवान बना था, सब गोवर्धन पर्वत को चढ़ाया गया। यह देखकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और क्रोधित होकर जल बरसाने लगे। 7 दिन तक इंद्रदेव जल बरसाते रहे। इधर भगवान श्री कृष्ण सात कोस में फैला गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर 7 दिन 7 रात पूरे वृंदावन वासियों की सुरक्षा किए। 

इंद्र का अहंकार टूटा

तब जाकर देवराज इंद्र को आभास हुआ कि यह तो कोई और नहीं बल्कि साक्षात परम ब्रह्म नारायण है। जो कृष्ण रूप में वृंदावन में लीला कर रहे हैं। तब देवराज इंद्र का अहंकार टूट गया और उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से माफी मांगी। तभी से गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई। आज भी गोवर्धन पूजा होती है और अन्नकूट मनाया जाता है। 56 भोग बनाया जाता है। भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाया जाता है।

कुछ समय बीतने के बाद शरद पूर्णिमा की रात आई। शरद पूर्णिमा के रात भगवान श्री कृष्ण बंसी बजाने लगे उनके बंसी की धुन सुनकर वृंदावन की जितनी गोपियां थी, वह जिस अवस्था में थी, उसी अवस्था में दौड़ गई। कोई खाना बना रही थी, कोई खाना अपने पति, सास, ससुर को दे रही थी, कोई बच्चे को खिला रही थी, कोई गोपिया श्रृंगार कर रही थी। वह उसी अवस्था में कृष्ण की बंसी की आवाज सुनकर मोहित होकर चल दी।

श्री कृष्‍ण का रासलीला

सभी गोपिया भगवान श्री कृष्ण के पास पहुंची। तब कृष्ण भगवान ने उन्हें कई पतिव्रता नारियों की कहानी सुनाए और कहा कि पति की सेवा ही सबसे पहला धर्म होता है। श्री कृष्ण भगवान और गोपियों का रासलीला हुआ। जिसमें भगवान 7 वर्ष के थे और गोपियों के साथ अनेक तरीकों से नृत्य कर रहे थे, खेल रहे थे। अब सभी गोपियों को अहंकार हो गया कि मेरे कहने पर भगवान श्री कृष्ण मेरे पास आए हैं। नित्य कर रहे हैं। यह देखकर भगवान श्री कृष्ण को बुरा लगा और वह वहां से अदृश्य हो गए। 

तब सभी गोपियां रोने लगी। भगवान श्री कृष्ण को पुकारने लगी। वहां पर उपस्थित फल, फूल, वनस्पतियों से रो-रो के पूछती थी कि कृष्ण कहां है। यही गोपियों के द्वारा रोकर गाया गया गीत गोपीगीत कहलाता है। तब भगवान श्री कृष्ण गोपियों को रोते हुए देखकर प्रकट हो गए। जिसके बाद सभी गोपियां चारों तरफ से घेर कर भगवान श्री कृष्ण को बैठ गई कि अब हम आपको नहीं जाने देंगे।

सभी गोपियां अपने आप में नाचने लगी। तब भगवान श्री कृष्ण अनेक रूप लेकर सभी गोपियों के साथ अलग-अलग नृत्य करने लगे। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि आप सभी गोपियां कोई ना कोई ऋषि, महर्षि, सन्यासी है जो कि कई वर्षों की साधना के बाद हमारी लीला देखने के लिए गोपी के रूप में जन्म लिए हैं। इसलिए आप सभी का साधना तपस्या समाप्त हुआ। आप सभी लोग अपने-अपने जगह पर चले जाइए।

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