भगवान वामन की भूमि बक्सर नहीं होती तो सृष्टि अधूरी होती : श्री जीयर स्‍वामी जी महाराज

भगवान वामन की भूमि बक्सर नहीं होती तो सृष्टि अधूरी होती : श्री जीयर स्‍वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने भगवान वामन जयंती के अवसर पर कहा की धन्य है वह बक्सर की धरती जहां सूर्यवंशी भगवान श्री राम का जन्मस्थली है। धन्य हैं बक्सर की धरती जहां पर यदुवंशी भगवान श्री कृष्णा का भी जन्मस्थली बक्सर है। भगवान बामन की भूमि बक्सर नहीं होती तो सृष्टि अधूरी रह जाती। भगवान वामन, भगवान श्री राम, गंगा, यमुना जी, यदुवंशी कृष्ण भगवान का भी बक्सर की धरती से जन्म स्थल के रूप में रिश्ता जुड़ा हुआ है।

आपको जानना चाहिए कि भगवान श्रीमन नारायण के नाभि से कमल कमल से ब्रह्मा जी ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि ऋषि हुए। मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप ऋषि हुए। उन्हीं कश्यप ऋषि के वंश परंपरा में सूर्यवंशी भगवान श्री राम भी हुए। भगवान वामन भी हुए। गंगा और यमुना भी हुई। वही यदुवंशी श्री कृष्णा भी कश्यप ऋषि के वंश परंपरा में सूर्य के वंश में एक पुत्र हुए, जिनका विवाह चंद्रमा के पुत्र के साथ हुआ। इन्हीं दोनों के वंश परंपरा में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ। इसीलिए यदुवंशी श्री कृष्णा भी बक्सर के ही धरती से जुड़े हुए हैं। 

भगवान वामन की भूमि बक्सर नहीं होती तो सृष्टि अधूरी होती

इस प्रकार से वामन भगवान, श्री राम, कृष्णा, गंगा और यमुना का जन्मस्थली बक्सर है। धन्य बक्सर की धरती जहां पर भगवान श्री राम के गुरु विश्वामित्र मुनि को महामुनि का उपाधि प्राप्त हुआ। उन विश्वामित्र मुनि की कृपा से गायत्री मंत्र का आविष्कार हुआ। जिससे जनेऊ धारी अपना संस्कार प्राप्त करते हैं। धन्य हैं कश्यप ऋषि जिनके द्वारा दुनिया में राक्षस, देवता, पशु, पक्षी, कीट, पतंग, सर्प इत्यादि को भी प्रकट किया गया। 

इसीलिए बक्सर पशु, पक्षी, कीट, पतंग इत्यादि का भी जन्मस्थली है। इस दुनिया में जितने भी पशु, पक्षी, जीव, कीट, पतंग इत्यादि हैं, उन सभी का जन्मस्थली बक्सर है। इसीलिए बक्सर की भूमि नहीं होती तो सृष्टि में आज बहुत कुछ नहीं होता। ऐसे बक्सर की धरती को बारंबार नमस्कार करना चाहिए।

bhagwan vaman ki bhumi buxar nahi hoti to srishti adhuri hoti

सूर्यवंशी जो भी है, उनका जन्मस्थली बक्सर है। सूर्य भगवान के वंश में ही भगवान श्री राम का भी जन्म हुआ था। भगवान श्री राम के पूर्वज राजा रघु थे। जिनसे श्री राम का वंश परंपरा रघुवंशी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस तरह जो रघुवंशी वंश के हैं, उनका भी जन्मस्थली बक्सर है। 

यदुवंशी श्री कृष्ण का जन्‍मस्‍थली बक्‍सर हैं

यदुवंशी श्री कृष्णा की वंश परंपरा के माध्यम से हम लोग समझेंगे कि यदुवंशी कृष्ण का भी जन्म स्थान बक्सर है। कश्यप ऋषि के वंश परंपरा मे सूर्य देव हुए। सूर्य के एक पुत्र सत्यव्रत श्राद्धेय मनु हुए। जिनकी एक पुत्री इला हुई। सत्यव्रत श्राद्धेय देव वैवस्वत मनु की कामना थी कि एक पुत्र प्राप्त होता। लेकिन उनकी पत्नी के मन में लालसा थी कि एक पुत्री जन्म लेती। वही सत्यव्रत श्राद्धेय देव वैवस्वत मनु की पत्नी ने अपने गुरु से प्रार्थना करके पुत्री को प्राप्त किया। 

सत्यव्रत श्राद्धेय मनु ने पुत्र के लिए एक यज्ञ करवाया था। उनके गुरु वशिष्ठ मुनि के द्वारा पुत्र के लिए आशीर्वाद दिया गया था। लेकिन जब पुत्री हो गई, तब सत्यव्रत श्राद्धेय मनु ने वशिष्ठ मुनि से प्रार्थना किया महाराज पुत्र के लिए कोई उपाय किया जाए। वही पुत्री इला जो लड़की के रूप में जन्म ली थी, वहीं वशिष्ठ मुनि के आशीर्वाद से लड़का बन गई। जिनका नाम राजकुमार सुदुम्य रखा गया। वही राजकुमार सुदुम्य ने एक दिन अपने मंत्रियों के साथ वन में जा रहे थे। 

कृष्ण का जन्‍मस्‍थली बक्‍सर

शंकर जी और पार्वती जी जहां पर तपस्या कर रहे थे, वहीं पर पहुंच गए। पार्वती जी के द्वारा वहां पर एक श्राप दिया गया था कि शंकर जी के अलावा जो भी पुरुष इस स्थान पर आएगा वह स्त्री हो जाएगा। वही एक बार राजकुमार सुदुम्य वहां गए तो उनके मंत्री सभी लोग स्त्री रूप में हो गए। सभी लोग शंकर जी से जाकर के विनती करने लगे। भगवन कृपा करके हम लोगों को पुनः पुरुष रूप में किया जाए। वही शंकर जी ने पार्वती जी के पास भेजा। जिसके बाद पार्वती जी से प्रार्थना करने पर उन लोगों को कहा कि एक महीना आप लोग पुरुष रहेंगे और एक महीना स्त्री के रूप में रहेंगे।

वही सत्यव्रत श्राद्धेय देव वैवस्वत मनु की पुत्री इला जो वशिष्ठ मुनि के आशीर्वाद से लड़का हो गई थी, वह एक बार पुनः एक महीना के लिए लड़की और एक महीना के लिए लड़का के रूप में रहने लगी। जब राजकुमार सुदुम्‍य लड़की के रूप में थे, जिनका नाम इला था। वही एक दिन चंद्रमा के पुत्र बुद्ध ने इला से विवाह का प्रस्ताव रखे। इसके बाद बुद्ध और इला का विवाह हुआ। जिससे एक पुत्र हुए जिनका नाम पूरूरवा पड़ा। वही सूर्य और चंद्रमा के वंश परंपरा मे पुरूरवा  हुए। जिनका संबंध सूर्यवंश के कश्यप ऋषि से है। जिनका जन्म स्थान बक्सर है। पूरूरवा के वंश परंपरा में यदु हुए। यदु के वंश परंपरा में भगवान श्री कृष्णा हुए।

यदुवंशी कैसे कहलाए

यदुवंशी कैसे कहलाए इसके बारे में विस्तार से स्वामी जी ने बताया। जिसमें उन्होंने बताया कि राजा ययाति का विवाह शुक्राचार्य की पुत्री से हुआ था। जिनसे उन्हें कई पुत्र हुए उनमें एक यदु भी थे। राजा ययाति को एक विद्या प्राप्त था। जिससे वह किसी का भी जवानी ले सकते थे और दूसरे को अपना बुढ़ापा दे सकते थे। 

एक दिन राजा ययाति ने अपने पुत्रों से कहा कि जो मुझे अपनी जवानी देगा और मेरी बुढ़ापा लेगा, उसी को मैं अपना राजा बनाऊंगा। तब उनके तीन पुत्रों ने मना कर दिया। उन तीन पुत्रों में राजा यदु भी थे। उन्होंने कहा कि पिताजी अगर आप तपस्या साधना करने के लिए हमारी जवान लेंगे तो मैं दे सकता हूं, लेकिन आप हमारी जवानी लेकर भोग विलास में रहेंगे तो इसके लिए हम नहीं दे सकते हैं। राजा यदु ने धर्म के लिए अपना राज्य ठुकरा दिया। इस यदु राजा के वंश परंपरा में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ। जिससे उन्हें यदुवंशी के नाम से जाना जाता हैं।

भगवान की सत्ता हर जगह है, लेकिन दिखाई नहीं देता

स्वामी जी महाराज ने कहा कि भगवान की सत्ता आप में हमारे में और हर जगह है, लेकिन दिखाई नहीं देता है। जैसे आंख में पुतली है, लेकिन दिखाई नहीं देता है। लकड़ी में आग है, लेकिन उसकी सत्ता दिखाई नहीं देती है। जिस तरह दूध में मक्खन रहता है, लेकिन घी की सत्ता दिखाई नहीं देती है।  उसी प्रकार भगवान दुनिया में हर जगह है, लेकिन उनकी सत्ता दिखाई नहीं देती है। ऐसे भगवान श्रीमन नारायण को बार-बार प्रणाम करता हूं। 

प्रचेता दक्ष के 11 हजार पुत्र साधु कैसे बने

श्रीमद् भागवत अंतर्गत स्वामी जी ने प्रचेता दक्ष प्रसंग पर प्रकाश डाला। प्रचेता दक्ष ने पांचजन प्रजापति के बेटी अक्षिनी से विवाह किया। प्रजापति दक्ष ने 10000 पुत्रों को प्रकट किया। प्रचेता दक्ष ने अपने पुत्रों को राजकाज की व्यवस्था संभालने से पहले नारायण सरोवर पर जाकर भगवान की तपस्या साधना करने के लिए कहा। जिसके बाद प्रचेता दक्ष के पुत्र नारायण सरोवर पर गए। जहां उनकी मुलाकात नारद जी से हुई। 

नारद जी ने उनसे पूछा कि आप लोग किनके पुत्र हो और क्या करने आए हो। तब वो सभी अपना परिचय बताए। बताया की तपस्या करने के बाद हम अपनी राजकाज को संभालेंगे और सृष्टि का विस्तार करेंगे। जिसके बाद नारद जी ने उनसे तीन प्रश्न पूछा और बोला कि मेरे प्रश्नों का उत्तर दे दोगे तभी सृष्टि विस्तार करने के योग्य माने जाओगे। उन लोगों ने प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया। जिसके बाद नारद जी प्रचेता दक्ष के 10000 पुत्रों को सन्यासी बना दिए।

6 प्रश्‍न कौन कौन हैं

नारद जी ने प्रचेता दक्ष के 10000 पुत्रों से पहला प्रश्न किए कि कौन सा देश है, जहां सिर्फ एक ही पुरुष है। जिसका जवाब उन्होंने नहीं बताया। नारद जी ने कहा कि संसार में जितने प्राणी है, उनके अंदर जो जीवात्मा है, वह सभी स्त्रीलिंग है और परमात्मा एक पुलिंग है। 

1. दूसरा प्रश्न था कि ऐसा कौन सा बिल है, जहां पर जाने के बाद कोई वहां से वापस नहीं आता है। जिसका उत्तर था कि ऐसा एक ही बिल है मोक्ष। जहां कोई जाता है तो फिर वहां से वापस नहीं आता है। अन्य लोकों में जाने पर तो प्राणी फिर दूसरा जन्म लेता है, लेकिन जब मोक्ष मिलता है तो उन्‍हें बार बार जन्‍म लेने से मुक्ति मिल जाती है। 

2. कौन सी स्त्री बहू रुपणी है। जिसका जवाब उन्होंने दिया की बुद्धि बहू रुपणी है। 

3. ऐसा कौन पुरुष है जिसकी पत्नी दुष्ट और कुल्टा है तो यह जीव है जिसकी पत्नी बुद्धि है जो की दुष्ट और कुल्टा है। 

4. ऐसी कौन नदी है जो दोनों तरफ बहती है, तो उस नदी का नाम है माया जोकि दोनों तरफ बहती है।

5. आगे नारद जी ने पूछा कि कौन ऐसा हंस है जिसका बोली विचित्र है, जिसका उतर हैं कि शास्त्र वह हंस है, जिसका बोली विचित्र होता है। क्योंकि शास्त्र कहता कुछ दूसरा और उसका अर्थ होता है दूसरा। 

6. आगे नारद जी ने पूछा कि कौन ऐसा चक्र है जिसका धार छुरी से भी तेज है तो वह चक्र है काल । दुनिया में प्राणी किसी दूसरे धार से बच भी सकता है, लेकिन काल के धार से कोई नहीं बच सकता है।

नारद जी को श्राप मिला

इस घटना के बाद प्रचेता दक्ष बहुत ही उदास हुए। जिसके बाद फिर से उन्होंने 1000 पुत्रों को जन्म दिया। फिर उनके 1000 पुत्र बड़े होकर नारायण सरोवर पर तपस्या साधना करने के लिए गए। जहां पर नारद जी ने वहीं प्रश्न उनसे भी किया जो। उनके 10000 भाइयों से किया था। प्रचेता दक्ष के यह भी 1000 पुत्र उन प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाए। जिसके बाद नारद जी ने उन्हें भी संन्यासी बना दिया। 

इस तरफ प्रचेता दक्ष के 11000 पुत्रों को नारद जी ने सन्यासी बना दिया। जिसके बाद प्रचेता दक्ष नाराज हो गए और उन्होंने नारद जी को श्राप दे दिया कि तुम कभी भी एक जगह नहीं ठहर सकते हो। क्योंकि साधु के भेष में तुमने असाधु का काम किया है। जिसके बाद नारद जी ने प्रचेता दक्ष को आशीर्वाद दिया कि जो अब तुम्हें पुत्र नहीं होगा। जिसके बाद प्रचेता दक्ष को 60 पुत्रियां हुई। 

प्रचेता दक्ष की पुत्रियों का विवाह

प्रचेता दक्ष ने 27 पुत्री का विवाह चंद्रमा से किया, 10 कन्याओं का विवाह धर्म से किया, तेरह कन्याओं का विवाह सप्तऋषि से किया। दो कन्याओं का विवाह भूतगड़ देवताओं से कर दिया। दो कन्याओं का विवाह अंगिरा ऋषि के साथ किया। दो कन्याओं का विवाह कृशाश्व ऋषि के साथ किया। तेरह कन्या कश्यप ऋषि से। चार कन्या ताज कश्यप के साथ विवाह किया।

गुरु योग्यता के अनुसार बदल सकते हैं लेकिन पुरोहित जल्दी नहीं बदलना चाहिए

स्वामी जी ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार कहा गया है कि गुरु बार-बार बदल सकते हैं। लेकिन पुरोहित जल्दी नहीं बदलना चाहिए। राजा दशरथ के गुरु बामदेव जी थे। श्री राम के गुरु विश्वामित्र जी थे और लव कुश के गुरु वाल्मीकि जी थे। लेकिन उन सभी के पुरोहित वशिष्ठ मुनि ही थे। पुरोहित जो होते हैं, वह हमारे शादी विवाह जनेउ कब होगा कैसे होगा बताने वाले होते हैं। लेकिन जो गुरु होते हैं, वह हमारे आत्म स्वरूप के बारे में बताते हैं। हमें ज्ञान देने वाले होते हैं।

इसलिए योग्यता के अनुसार गुरु बार-बार बदले जा सकते हैं। लेकिन अगर पुरोहित में किसी तरह का दोष आ जाए, त्रुटि आ जाए, तब उन्हें भी बदला जा सकता है। अगर पुरोहित में खान-पान, रहन-सहन सही नहीं हो तो ऐसे पुरोहित को नहीं रखना चाहिए।

देवराज इंद्र गुरु कों बदले

श्रीमद् भागवत कथा अंतर्गत राजा परीक्षित जो गंगा के पावन तट पर शुकदेव जी से श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण कर रहे हैं। शुकदेव जी से पूछते हैं कि भगवान है या नहीं इस पर तो विवाद है, गुरु तो सबके होते हैं। चोर, डकैत, बदमाश, पॉकेट मार के भी गुरु होते हैं। ऐसे में इंद्र भगवान और देवताओं के गुरु बृहस्पति जी थे। तब इंद्र भगवान ने त्वष्‍टा ऋषि के पुत्र को गुरु क्यों बनाया। फिर इंद्र भगवान ने उनको मार दिया। 

शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को बताया कि एक बार इंद्र भगवान स्वर्ग लोक की सबसे प्रसिद्ध अप्सराओं का कला नृत्य देख रहे थे। उनके सभा में और कई देवता थे। सभी लोग मदिरापान किए हुए थे। उसी समय देवताओं के गुरु बृहस्पति जी वहां पर आ गए। वहां पर देवराज इंद्र ने बृहस्पति जी को देखा तो उनको न देखने का नाटक किया। यह देखकर बृहस्पति जी गुस्सा हुए कि यह तो मेरा अपमान कर रहा है। फिर वह वहां से चले गए। 

देवराज इंद्र ने अपने गुरु को मार दिया

बृहस्पति जी अंतर्धान हो गए। जब देवराज इंद्र का नशा उतरा तो गुरु बृहस्पति को ढूंढने लगे। तब देवराज इंद्र ने त्वष्‍टा ऋषि के पुत्र विश्वगुरु को अपना गुरु बनाया। विश्वगुरु गुरु बृहस्पति के समान ही ज्ञानी थे। त्वष्‍टा ऋषि की पत्नी राक्षसों की बहन थी। इसलिए विश्वगुरु का ननिहाल राक्षसों में था। इस तरह जब विश्वगुरु देवताओं का पूजा पाठ करवाते थे, तो उनके वृद्धि के लिए तो पूजा पाठ करवाते ही थे साथ ही राक्षसों के लिए भी कुछ मांग लेते थे। जिसके बाद देवराज इंद्र ने उन्हें कहा कि हम पूजा करा रहे हैं दक्षिणा दे रहे हैं और आप राक्षसों का मंगल कर रहे हैं, यह ठीक नहीं है। 

ऐसे ही विश्व गुरु एक बार पूजा कर रहे थे, तो राक्षसों के मंगल की कामना कर रहे थे। उसी समय देवराज इंद्र गुस्सा होकर उनको मार दिए। जिसके बाद देवराज इंद्र पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा। जिसके बाद विश्वगुरु के पिता त्वष्‍टा ऋषि ने एक यज्ञ करके राक्षस को उत्पन्न किया। वह राक्षस देवराज इंद्र के साथ युद्ध किया और देवराज इंद्र को अपने पेट में निकल गया। देवराज इंद्र के पास नारायण कवच था, जिसके कारण राक्षस के पेट में रहने कारण भी उन्हें कुछ नहीं हुआ। कई वर्षों तक उसके पेट में रहने के बाद एक बार पेट फाड़ के बाहर निकल गए।

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