ब्राह्मण के छः धर्म को जानना चाहिए : श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि ब्राह्मण के छ: धर्म बतलाए गए है। जब भगवान नरसिंह के द्वारा प्रहलाद जी के पिता हिरण्यकश्यपु को मार दिया गया, उसके बाद भगवान नरसिंह प्रहलाद जी से कहते हैं कि प्रहलाद तुम अपने प्रजा को सही धर्म का उपदेश दो। जिससे प्रजा में जो पहले व्यभिचार था, उसको खत्म किया जा सके। वहीं प्रहलाद जी ब्राह्मण के प्रमुख 6 धर्म बताते हैं। जिसमें ब्राह्मण का धर्म अध्यात्म की शिक्षा लेना तथा आध्यात्म की शिक्षा देना, दान लेना और दान देना, यज्ञ करना और यज्ञ कराना यह ब्राह्मण के प्रमुख 6 धर्म बतलाए हैं।
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और दास का धर्म जानना चाहिए
प्रहलाद जी ने ब्राह्मण के और भी गुण और धर्म का उपदेश दिए हैं। जिसमें साधना, ज्ञान, वैराग, धैर्य, दया, सत्य, संतोष, सरलता, क्षमा, भगवान की भक्ति भी होना चाहिए, वहीं ब्राह्मण है। प्रहलाद जी ने कहा यह धर्म और गुण जिस व्यक्ति मानव के पास है, वह ब्राह्मण है। किसी भी जाति वर्ण व्यवस्था से आने वाला व्यक्ति जिसके पास ब्राह्मण के जैसा धर्म और गुण पाया जाता है, वह भी ब्राह्मण के समान है।
ब्राह्मण जो समाज, संस्कृति, सभ्यता का मार्गदर्शक होता है, जो उन परम ब्रह्म भगवान परमेश्वर का गुण लीला का मनन करता है। भगवान के गुण लीला का गायन करता है। जो समाज को सही मार्गदर्शन देकर भक्ति मार्ग के पथ पर आगे बढ़ाता है, वह ब्राह्मण है। प्रहलाद जी कहते हैं और यह सभी धर्म गुण जिसमें समाहित हो जाता है, वह भी ब्राह्मण के समान है।

क्षत्रिय का धर्म क्या हैं
यज्ञ करना, दान देना, प्रजा का पालन करना, धर्मशास्त्र का ग्रहण करना, युद्ध में वीरता दिखाना, अपनी वीरता का प्रदर्शन करना, सत्यवादी होना, त्याग का भावना होना, क्षमाशीलता होना, मानव की सेवा करना, भगवान की भक्ति, ब्राह्मण, विद्वान, संत, महात्मा के प्रति आदरमय होना यह सभी क्षत्रिय का स्वाभाविक धर्म है।
वैश्य का धर्म क्या हैं
खेती, व्यापार में निपुण होना। परमार्थ की भावना होना, देवता, गुरु, ब्राह्मण के प्रति निष्ठामय होना चाहिए। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष विचारों के प्रति भावना होना चाहिए। खेती व्यापार से जो भी धन कमाए उसको परमार्थ के लिए लगाना चाहिए।
दास का धर्म क्या हैं
खेती व्यापार नौकरी करते हुए समाज में जितने भी लोग हैं, उन सभी को मिला करके चलना, भगवान की भक्ति में रहना, विनम्रता से रहना, सत्यमय जीवन जीना, विद्वानों संतों और ब्राह्मणों के प्रति आदर होना। यह दास का धर्म होता है, जिसे अपनाना चाहिए।
सनातन क्या है
प्रहलाद जी ने अपनी प्रजा को समझाया। सनातन का मतलब जो हमारे तन में समाया हुआ है, वही सनातन है। जैसे कि धर्म, आचरण, संस्कृति, व्यवहार, संस्कार जो हमारे तन में और हमारे मन में समाया है उसी को सनातन कहा जाता है। अगर कोई व्यक्ति शराबी है, जुआरी है, चोर है लेकिन वह नहीं चाहता है कि उसके बच्चे यह लड़की भी वही कार्य करें। यही सनातन है। जिसमें दया की भावना, प्रेम की भावना, सदाचार की भावना, व्यवहार की भावना, आहार की भावना यह सभी सनातन धर्म की पहचान है।
हिरण्यकश्यपु के वध के बाद भगवान नरसिंह ने प्रहलाद जी को राजा घोषित कर दिए। नरसिंह भगवान ने प्रहलाद जी से कहा कि तुम्हारे पिता ने बहुत अत्याचार अन्याय किए थे, इसलिए तुम अपने राज्य में धर्म की नीति के द्वारा कार्य करो। प्रहलाद जी ने अपने मंत्री, संत, महात्मा, ब्राह्मण के सहायता से राज्य कार्य को उचित तरीके से संभाला। आगे चलकर उन्होंने वैवाहिक मर्यादा को भी स्वीकार किया। प्रहलाद जी अपने राज्य कार्य को संभालते हुए राष्ट्र के नाम से अपनी प्रजा को संदेश दिए।
- पुत्र हो तो प्रह्लाद जी जैसा : श्री जीयर स्वामी जी महाराज
- संस्कार ही राष्ट्र की जननी है : श्री जीयर स्वामी जी महाराज
- भगवान भी देवताओं का पक्ष लेते हैं राक्षसों का नहीं : श्री जीयर स्वामी जी महाराज
- नारायण कवच का पाठ करने से घर में मंगल होता है : श्री जीयर स्वामी जी महाराज
- भगवान वामन की भूमि बक्सर नहीं होती तो सृष्टि अधूरी होती : श्री जीयर स्वामी जी महाराज
जीवन में धर्म का महत्व
उन्होंने कहा कि जीवन में धर्म ही हमारा सब कुछ है। धर्म के द्वारा ही हमारा स्वरूप है। इसलिए धर्म की किसी भी परिस्थिति में त्याग नहीं करना चाहिए। धर्म हम लाभ और हानि को देखते हुए नहीं करते हैं। बल्कि यह हमारा कर्म है। मंदिर में हम पूजा करने जाते हैं। देवताओं की कृपा हमारे ऊपर होती है कि नहीं होती है यह नहीं सोचना चाहिए। बल्कि मंदिर में जाने से हमारी मन की शांति होती है। मन की शुद्धी हो जाती है।
प्रहलाद जी महाराज अपने प्रजा से कहते हैं कि वर्णाश्रम धर्म का भी पालन करना चाहिए। वर्णाश्रम धर्म का मतलब है कि जिसका जो धर्म है वहीं करें। जैसे की सन्यासी को सन्यासी जैसा धर्म करना चाहिए। गृहस्थ को गृहस्त जैसा धर्म करना चाहिए। ब्रह्मचारी को ब्रह्मचारी जैसा धर्म करना चाहिए। वह परमात्मा जो सर्वशक्तिमान है, अजन्मा है, अव्यक्त है, सर्वज्ञ है ऐसे भगवान के प्रति हमें प्रेम आदर होना चाहिए। जो भगवान दुनिया का संचालन कर्ता है, दुनिया के हर एक प्राणी में समाया हुआ है, वह भगवान विष्णु है।
जिनका अनेक नाम है जैसे कि श्रीमन नारायण, विष्णु, लक्ष्मी नारायण, वामन इत्यादि। आगे प्रहलाद जी महाराज अपने प्रजा से कहते हैं कि जीवन में सत्य होना चाहिए। वह सत्य संसार और संसार के प्राणियों का मंगल कामना करने वाला होना चाहिए। लेकिन कभी-कभी अगर किसी सत्य से किसी व्यक्ति का, प्राणी का, राष्ट्र का अहित होने वाला हो, वैसा सत्य नहीं होना चाहिए। मानव का सत्यमय जीवन होना चाहिए। दयामय जीवन होना चाहिए। जो दया के पात्र हैं, उन पर दया करना चाहिए।
ब्राह्मण के छः धर्म को जानना चाहिए
हमारा जीवन तपस्या में होना चाहिए। मनुष्य का बाहर के साथ-साथ अंदर का मन और शरीर भी साफ होना चाहिए। किसी के प्रति बैर भावना, ईर्ष्या नहीं होना चाहिए। मनुष्य का जीवन त्यागमय होना चाहिए। जीवन में हमेशा उचित, अनुचित सोचकर अपने कार्यों को करना चाहिए। इंद्रियों को संयम होना चाहिए। हिंसा का त्याग होना चाहिए। जीवन त्याग मर्यादा के अनुसार जीना चाहिए। जिसके साथ जिस तरह का मर्यादा है, उसी के अनुसार जीवन जीना चाहिए।
शास्त्रों का हमेशा अध्ययन करते रहना चाहिए। अगर हमारे जीवन में किसी तरह का विकार आता है, मन में चंचलता आता है तो शास्त्रों का अध्ययन करने से मन, शरीर भटकने से बच जाता है। मनुष्य के जीवन में सरल, सुगम, सुलभ और सहज होना चाहिए। जीवन हमेशा संतोषमय होना चाहिए। जो जितना हमारे पास है, उसी में खुश रहना चाहिए।
भगवान का शुक्रिया करना चाहिए कि भगवान जो भी हमें दिए हैं, वह हमारे लिए बेहतर है। संतो के प्रति सेवा भाव होना चाहिए। संत किसे कहते हैं इसको भी प्रहलाद जी महाराज ने अपने प्रजा को समझाया कि जिसके जीवन में सदाचार भगवान के प्रति भक्ति, सत्कर्म को अपना लिया है, वहीं संत है।
आत्म चिंतन करना चाहिए। हमारा मनुष्य जीवन भगवान ने दिया है तो किस लिए दिया है, इसको सत्कर्म, धर्म, सदाचार में लगाकर अच्छे कार्यों को करने के बारे में सोचना चाहिए। जो व्यक्ति भगवान के गुण, लीला, नाम का कीर्तन करता है, प्रचार करता है, वह व्यक्ति मरने के बाद भगवान का लोक प्राप्त करता है। श्रीमद् भागवत गीता का बार-बार श्रवण करना चाहिए। भगवान का स्मरण, ध्यान, साधना, सेवा, दास का भाव, सत्य भाव, आत्मसमर्पण भाव से भगवान प्रसन्न होते हैं।

रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।