बक्सर है सबसे बड़ा धार्मिक स्थल : श्री जीयर स्वामी जी 

बक्सर है सबसे बड़ा धार्मिक स्थल : श्री जीयर स्वामी जी – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि बक्सर दुनिया में एक सबसे बड़ा धार्मिक स्थल है। जहां पर भगवान वामन का जन्म हुआ था। भगवान श्रीमन नारायण के चार प्रमुख अवतारों में दूसरा वामन का अवतार है। वैसे बक्सर केवल वामन भगवान की ही जन्मस्‍थली नहीं है, बल्कि भगवान वामन, श्री राम, श्री कृष्णा, माता सीता, गंगा जी, यमुना जी की भी जन्मस्थली है।

भगवान श्रीमन नारायण के चार प्रमुख अवतारों में तीन अवतारों का जन्म बक्सर में हुआ है। जिनमें वामन भगवान, श्री राम जी एवं श्री कृष्ण जी शामिल हैं। कुछ लोगों के मन में संशय हो सकता है कि भगवान श्री राम का जन्म तो अयोध्या में हुआ था। श्री कृष्ण भगवान का जन्म तो मथुरा में हुआ था। लेकिन आपको शास्त्र को समझने की जरूरत है। 

बक्सर है सबसे बड़ा धार्मिक स्थल

आज भी किसी भी व्यक्ति का जन्म कहीं भी हो जाता है, जैसे कोई गांव का एक व्यक्ति रोजगार व्यवसाय के लिए अपने गांव से दूसरे जगह चला जाता है। वहां पर भी उनके पुत्र या पुत्री का जन्म हो जाता है। लेकिन जो भी बच्चे बच्चियां जन्म लेती हैं, उनका जन्म स्थान मूल स्थान उसी को माना जाता है, जहां पर उनके पिता, बाबा, दादा का जन्म स्थान होता है।

अब हम आपको शास्त्र के अनुसार सभी लोगों के जन्म किस प्रकार से बक्सर में हुआ है, उसको विस्तार से समझा देते हैं। भगवान श्रीमन नारायण के नाभि से कमल, कमल से ब्रह्मा जी हुए, ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि ऋषि हुए, मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप ऋषि हुए, कश्यप ऋषि का जन्म स्थान बक्सर है। कश्यप और अदिति के पुत्र वामन भगवान हुए, जिनका जन्म बक्सर की भूमि पर हुआ। कश्यप ऋषि के पुत्र सूर्य भगवान हुए। 

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राम जी का जन्‍मस्‍थली

सूर्य भगवान के वंश परंपरा में आगे राजा इक्ष्‍वाकु हुए, राजा इक्ष्‍वाकु के वंश परंपरा में राजा रघु हुए। रघु के वंश परंपरा में दशरथ जी हुए। दशरथ जी के पुत्र श्री राम जी हुए। सूर्य भगवान का मूल जन्म स्थान बक्सर है, इसीलिए श्री राम जी का भी मूल जन्म स्थान बक्सर हुआ। भले ही जन्म के समय वे अयोध्या में जन्म लिए। लेकिन उनके कुल, खानदान, दादा, परदादा का जन्म स्थान बक्सर है।

कृष्‍ण जी का जन्‍मस्‍थली

सूर्य के पुत्र राजकुमार सुदुम्‍य हुए जो एक महीना तक लड़का और एक महीने तक लड़की के रूप में रहते थे। वहीं जब वह लड़की के रूप में थे, उसी समय चंद्रमा के पुत्र बुद्ध ने सूर्य भगवान के पुत्री से विवाह का प्रस्ताव रखा। जिससे एक पुत्र पुरूरवा हुए। पुरूरवा के वंश परंपरा में यदु राजा हुए। जिनके वंश परंपरा में श्री कृष्ण का जन्म हुआ तो माता का जन्म स्थान बक्सर है, इसीलिए कृष्ण जी का भी जन्म स्थान बक्सर हुआ।

यमुना जी का जन्‍मस्‍थली

सूर्य भगवान की पुत्री यमुना जी हैं, इसीलिए उनका भी मूल जन्म स्थान बक्सर हुआ। क्योंकि कश्यप ऋषि के पुत्र सूर्य भगवान हुए और उनका जन्म स्थान बक्सर है। गंगा जी का भी जन्म स्थान बक्सर है। वामन भगवान का मूल जन्म स्थान बक्सर है। वहीं वामन भगवान जब राजा बलि से तीन पग भूमि दान लिए थे, तब पहले पग में ही वामन भगवान ने ब्रह्म लोक तक माप लिया था। 

गंगा जी का जन्‍मस्‍थली

वहीं ब्रह्मा जी वामन भगवान के पैरों को धो करके कमंडल में रख लिए, वहीं कमंडल का जल जब कमंडल में था तो विष्णु पादकी गंगा के नाम से जाना गया। आगे चलकर वह जल देवलोक में गई जहां देव गंगा के नाम से जानी गई। वहीं गंगा शंकर जी के जटाओं से होते हुए पृथ्वी पर आई जो भागीरथी गंगा के नाम से जानी गई। उनका भी मूल जन्म स्थान बक्सर है।

सीता जी का जन्‍मस्‍थली

सीता जी का भी जन्म स्थान बक्सर है। सूर्य भगवान के वंश परंपरा में एक राजा हुए जिनका नाम नेमी था। उन्हीं के वंश परंपरा में जनक जी का जन्‍म हुआ। राजा जनक की पुत्री सीता जी थी। इसीलिए सीता जी के भी दादा, परदादा का मूल जन्म स्थान बक्सर है। इसीलिए सीता जी का भी जन्म स्थान बक्सर ही हुआ।

बक्सर का महत्व शास्त्रों में उल्लेख किया गया है। जिसमें विश्वामित्र जी जैसे महा तपस्वी को भी महामुनि को उपाधि बक्सर में प्राप्त हुआ। ऐसे बक्सर केवल भगवान का ही जन्म स्थान नहीं है, बल्कि देवता, पशु, पक्षी, जीव, जंतु का भी जन्म स्थान बक्सर ही है। कश्यप ऋषि के ही देवता और दानव दोनों पुत्र हुए हैं।

ऐसे बक्सर की भूमि का बहुत ज्यादा महत्व है। सरकार के उदास व्यवहार के कारण आज बक्सर का आधुनिकरण नहीं हो पाया है। फिर भी बक्सर तीर्थों का तीर्थ बना हुआ है। क्योंकि आज भी बक्सर में हर 15 दिन, एक महीना पर कोई न कोई उत्सव, महोत्सव होता है। ऐसे बक्सर का विकास आधुनिकरण भी एक न एक दिन जरूर होगा। 

क्योंकि बक्सर में भगवान वामन का भव्य मंदिर निर्माण के साथ-साथ गंगा कॉरिडोर का भी निर्माण होना चाहिए। जिससे श्रद्धालु भक्त भगवान का दर्शन लाभ प्राप्त कर सकें। बक्सर में भगवान वामन, मां गंगा, जमुना जी, श्री राम, श्री कृष्णा जी सहित महामुनि तपस्वी विश्वामित्र जी का भी भव्य मंदिर निर्माण होना चाहिए।

राजा बलि का 100 यज्ञ

पिछले दिन हमलोगों ने श्रवण किया था कि समुद्र मंथन से कई रत्‍न और अमृत निकला। वहीं अमृत देवताओं ने पि लिया। तब दैत्‍यों और देवताओं में युद्ध हुआ।देवासुर संग्राम में देवताओं ने बहुत सारे राक्षसों को मार दिया। जिसके बाद दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने अपने साधना, विद्या से दैत्य राज बलि के साथ साथ और भी कुछ दैत्यों को जिंदा कर दिया। जिसके बाद दैत्यों का शुक्राचार्य के प्रति आस्था और सम्मान होने लगा। जिससे वह कुछ भी करते थे, तो शुक्राचार्य से सलाह लेकर ही करते थे। एक बार राजा बलि शुक्राचार्य  की आज्ञा और आशीर्वाद से स्वर्ग लोक पर चढ़ाई करके देवताओं को वहां से भगा दिया और स्वर्ग के राजा बन गए। 

एक दिन शुक्राचार्य ने राजा बलि से कहा कि आपको 100 यज्ञ करना चाहिए। तब शुक्राचार्य की आज्ञा से राजा बलि ने 99 यज्ञ किया। अब वह 100वां यज्ञ करने जा रहे थे। यह देखकर देवताओं में हाहाकार मचने लगा। तब सभी लोग देवताओं के गुरु बृहस्पति जी के पास गए। गुरु बृहस्पति जी ने कहा कि मैं कुछ नहीं कर सकता हूं। 

देवताओं के गुरु बृहस्पति जी ने कहा कि अगर मेरे पूजा साधना करने से स्वर्ग वापस मिल जाता तो मैं जरूर करता। जिसके बाद मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी अदिति ने बक्सर में बहुत ही घोर तपस्या किया। जिसके बाद भगवान विष्णु प्रकट हुए। तब कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी अदिति ने कहा कि हमारी कामना है कि आपके जैसा ही हमारा पुत्र हो। 

पयो व्रत अनुष्‍ठान विधि और महत्‍व

भगवान विष्णु ने कहा कि हमारे जैसा पुत्र, तब कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी ने कहा कि हम चाहते हैं कि आप ही हमारे पुत्र के रूप में जन्म ले। भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया और वही भगवान श्रीमन नारायण वामन रूप में कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी अदिति के पुत्र के रूप में जन्म लिए।

भगवान विष्णु को अपने पुत्र रूप में पाने के लिए देवताओं की माता अदिति ने कश्यप ऋषि से उपाय पूछा था। तब कश्यप ऋषि ने उन्हें पयो व्रत करने का सुझाव दिया था। उन्‍होंने बताया कि पयो व्रत में बहुत ही नियम धर्म के साथ रहना पड़ता है। इसको करने के लिए विधि है, फाल्गुन महीना के शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से द्वादशी तक 12 दिन का व्रत किया जाता है। अगर पयो व्रत अनुष्ठान शुरू किए हैं, उस बीच में अगर घर में कोई बच्चा जन्म लेता है, या किसी का मृत्यु हो जाती है, तब भी इस अनुष्ठान को बीच में रोक नहीं जा सकता है। 

इस अनुष्ठान में भगवान लक्ष्मी नारायण की मूर्ति बनाकर या मन में स्मरण आराधना करके पूजा किया जाता है। जिसमें तेनी का चावल का गाय के दूध में खीर बनाकर भगवान को भोग लगाकर, ब्राह्मण और बालकों को खिलाकर फिर खुद खाया जाता है। अपने पति का आदर सम्मान करना भगवान के स्वरूप में देखना चाहिए। किसी चंचल स्त्री पुरुष से बात नहीं करना चाहिए। पयो व्रत अनुष्ठान शुरू करने से पहले मिट्टी से पूरे शरीर को धोकर, नहा कर ब्रह्मचर्य का पालन करके ही शुरू किया जाना चाहिए। जितने दिन इस व्रत का अनुष्ठान चलता है, उसमें नियम और विधि के साथ रहना पड़ता है। 

भगवान वामन का जन्‍म

साथ ही जब अनुष्ठान संपूर्ण होता है, तब खीर बनाकर भगवान विष्णु को भोग लगाकर ब्राह्मण और बंधु बांधव को खिलाकर इस अनुष्ठान का समापन करना चाहिए। जिसके बाद जब वंश प्राप्‍ती की कामना करते हैं तो तेजस्वी, ओजस्वी देवताओं के समान वंश की प्राप्ति होती है। इस व्रतअनुष्ठान को माता अदिति ने पूरे विधि विधान से किया। जिसके बाद भगवान विष्णु प्रसन्न हुए। वहीं आगे चलकर माता अदिति के गर्भ से वामन रूप में जन्म लिए।

जब भगवान जन्म लिए तो भादो महीना का शुक्ल पक्ष, द्वादशी तिथि, श्रवण नक्षत्र और अभिजीत मुहूर्त था। 12:00 बजे दिन में भगवान वामन का जन्म हुआ था। भगवान वामन के जन्म के बाद जो भी संस्कार होता है उसको किया गया। जब बड़े हुए तो उनका यज्ञोपवीत संस्कार किया जाने लगा। उस समय सभी देवताओं को बुलाया गया। गुरु बृहस्पति को पुरोहित के रूप में बुलाया गया। जब भगवान वामन गुरु बृहस्पति जी को दक्षिणा देने लगे। तब बृहस्पति जी ने कहा कि मुझे दक्षिण के रूप में बहुत चीज चाहिए।

उन्होंने कहा कि देवता लोगों को कई वर्षों से राजा बलि ने स्वर्ग लोक से हटाकर राजा बन गया है। अब राजा बलि एक यज्ञ कर रहा है। उसमें वामन भगवान ब्राह्मण के रूप में जाएं और उससे तीन पग भूमि मांग ले, और वहीं दक्षिण आप मुझे दे दीजिएगा। उस जनेऊ संस्कार में सभी देवताओं ने भगवान वामन को कुछ न कुछ दिए। जिसमें किसी ने छाता किसी ने खड़ाउ, कमंडल, आसनी दिया। एक ब्राह्मण का रूप लेकर छाता , कमंडल लेकर, खड़ाउ पहनकर, भगवान वामन राजा बलि के यज्ञ में शामिल होने के लिए चले गए।

भगवान वामन ने तीन पग भूमि दान लिया

जब भगवान वामन राजा बलि के यज्ञ स्थल पर पहुंचे, राजा बलि ने उनका बहुत स्वागत किया। राजा बलि ने कहा कि हे ब्राह्मण आप जो भी मांगेंगे उसे मैं दूंगा। आपको सोना चांदी जो भी चाहिए वह बताइए। अगर आप विवाह करना चाहते हैं तो मैं आपका विवाह अभी करा दूंगा। लेकिन भगवान वामन ने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए। लेकिन राजा बलि के बार-बार कहने पर वामन भगवान ने कहा कि मुझे बस तीन पग भूमि की जरूरत है। जिसमें मैं बैठकर पूजा कर लूं। अपना सामान रख लूं। 

यह सुनकर राजा बलि अचंभित हो गए, उन्होंने कहा कि ठीक है अगर आपको तीन पग भूमि चाहिए तो आप जहां से भी चाहिए, वहां से नाप लीजिए। भगवान वामन ने जब संकल्प कर लिया, उसके बाद  शुक्राचार्य ने राजा बलि से कहा कि यह कोई ब्राह्मण नहीं है, बल्कि यह साक्षात विष्णु है। अभी से भी आप इसे तीन पग भूमि देने को इनकार कर दीजिए। लेकिन राजा बलि ने कहा कि आब तो मैंने संकल्प ले लिया है, इसलिए अब मुझे करना पड़ेगा। शुक्राचार्य ने कहा कि कुछ-कुछ ऐसा जगह है, जहां आप अगर कुछ कह के नहीं करते हैं, इधर-उधर हो भी जाता है तो उस पर कोई दोष नहीं लगता है।

कुछ जगहों पर झूठ बोलने पर दोष नहीं लगता हैं

स्त्री को प्रसन्न करने के लिए थोड़ा इधर-उधर बात करना पड़ जाए तो कोई दोष नहीं होता है। लड़का लड़की के विवाह में भी थोड़ा बहुत झूठ बोलकर अगर शादी हो जाता है, इधर-उधर बात करके अगर रिश्ता बन जाता है तो उसमें दोष नहीं लगता है। अगर हंसी मजाक में किसी तरह का कोई बात मुंह से निकल जाए, उसमें भी कुछ दोष नहीं होता है। अगर जीविका के लिए कोई कारोबार करते हैं, उसमें कुछ सामान के लिए 100रू, ₹50 का झूठ बोलना पड़ जाए, तो भी किसी तरह का दोष नहीं लगता है। 

जब किसी का प्राण संकट में फंस जाए, उस समय आपको झूठ बोलकर उस व्यक्ति का प्राण बचाना हो तो वहां झूठ बोलने से किसी को भी किसी तरह का दोष नहीं लग सकता है। गाय, ब्राह्मण, सन्यासी, और स्त्री के मर्यादा का रक्षा करने में भी थोड़ा सा इधर-उधर बोलना पड़े तो कोई बात नहीं है। अगर किसी तरह का दान पुण्य कर रहे हैं, दान करने के बाद आपके पास कुछ भी नहीं बच रहा है, उस समय भी थोड़ा बहुत इधर-उधर करने से दोष नहीं लगता है। 

शुक्राचार्य राजा बलि को श्राप दे दिए

यह बात सुनकर राजा बलि ने कहा कि हमारे लिए तो प्रसन्नता की बात हैं कि जो भगवान विष्णु सबको देने के लिए जाते हैं, वहीं अगर मेरे पास लेने के लिए आए हैं, तो मैं उनको अपना सब कुछ दान कर दूंगा। यह सुनकर शुक्राचार्य गुस्सा हो गए और राजा बलि को श्राप दे दिए कि राजलक्ष्मी से विहीन हो जाओ।

राजा बलि के संकल्प करने के बाद भगवान वामन ने अपना बहुत बड़ा स्वरूप बना लिया। दो पग भूमि में उन्होंने पूरा ब्रह्मांड ले लिया। तीसरा भाग भूमि पूछे कि अब कहां रखें। तीसरा पग वामन भगवान ने राजा बलि के सिर पर नाप लिया। राजा बलि की पत्नी ने पूछा जो स्वीकार करके दान नहीं देता है वह अधोगति को प्राप्त होता है, लेकिन जो व्यक्ति अपनी औकात से अधिक दान मांगता है, उसे क्या होता है। भगवान वामन ने कहा कि मैंने देवताओं से जो वचन लिया था, इसीलिए मैंने मैंने ऐसा किया। 

रक्षाबंधन कब से मनाते हैं

भगवान वामन ने कहा कि अब आप मुझसे वरदान मांगो। तब राजा बलि की पत्नी ने कहा कि मेरे पति मांगे वरदान।। राजा बलि ने कहा कि हे भगवान आप रसातल में पहारा देंगे। भगवान वामन ने वचन दे दिया। भगवान वामन ने देवताओं को स्वर्ग देकर खुद राजा बलि के साथ रसातल में चले गए। वहां पर भगवान वामन दरवाजे पर पहारा देने लगे। एक दिन नारद जी लक्ष्मी जी के पास गए और उन्हें बताएं कि भगवान वामन रसातल लोक में चले गए हैं। जहां पर राजा बलि के दरवाजे पर पहारा दे रहे हैं। 

लक्ष्मी जी राजा बलि के पास गई और उनसे कहा कि मैं आपकी दासी बना करके सेव करना चाहती हूं। वहां पर लक्ष्मी जी दासी बनकर सेवा करने लगी। ऐसे ही एक दिन पूर्णिमा का दिन आया। उसी दिन लक्ष्मी जी ने राजा बलि के हाथों पर रक्षा बांध दी। इस तरह उन दोनों का भाई-बहन का संबंध हो गया। तब राजा बलि ने कहा कि आप मेरी बहन हो गई तब मुझसे कुछ दक्षिणा मांगिए। इसके बाद लक्ष्मी जी ने कहा कि जो आपके दरवाजे पर पहारा दे रहे हैं वह मेरे पति हैं। आप उन्हें मुक्त कर दीजिए। इस तरह राजा बलि ने भगवान वामन को मुक्त कर दिया और उसी दिन से सावन पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा।

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