चंद्रवंश में कई प्रतापी राजा हुए : श्री जीयर स्वामी जी महाराज 

चंद्रवंश में कई प्रतापी राजा हुए : श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि चंद्रवंश में कई राजा हुए। इसी चंद्रवंश में भगवान श्री कृष्ण का भी जन्म हुआ था। इन चंद्रवंश में राजा पुरूरवा, राजा यदु, भगवान परशुराम, विश्वामित्र ऋषि, सहस्त्रार्जुन, राजा भरत, भारद्वाज ऋषि, गर्ग ऋषि, शांतनु महाराज, भीष्माचार्य जैसे महापुरुष हुए। चंद्र वंश में भी कुछ ब्रह्म ऋषि, महर्षि भी हुए हैं। देवताओं के गुरु बृहस्पति जी एवं ममता से एक पुत्र भारद्वाज ऋषि हुए। जिनको दत्तक पुत्र के रूप में राजा भरत ने प्राप्त किया था। जिनके बाद आगे वंश परंपरा में ब्राह्मण वंश का भी विस्तार हुआ।

चंद्र वंश में ही कंस, दुर्योधन, कृपाचार्य, द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, धृतराष्ट्र, पांडू, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव इत्यादि का भी जन्म हुआ था। ऐसे चंद्रवंश की वंश परंपरा बहुत ही बड़ा है। जिसमें भगवान विष्णु के  अंशाअवतार परशुराम जी भी हुए। वहीं भगवान श्रीमन नारायण के चार अवतारों में प्रमुख कृपा के अवतार भगवान श्री कृष्ण का भी जन्म हुआ। ऐसे चंद्रवंश में तीन ब्रह्म ऋषि भी जन्म लिए।

चंद्रवंश में कई प्रतापी राजा हुए

चंद्रवंश में कई पराक्रमी और प्रतापी राजा हुए। जिनमें एक दुष्यंत राजा बहुत ही  पराक्रमी और प्रतापी राजा हुए। जिनका विवाह विश्वामित्र मुनि और स्‍वर्ग की अप्‍सरा मेनका की पुत्री शकुंतला से हुआ था।  एक बार विश्वामित्र मुनि तपस्या साधना में थे तभी मेनका ने उनका तपस्या भंग कर दिया और फिर विश्वामित्र मुनि और मेनका का विवाह हुआ है। जिनसे शकुंतला नाम की लड़की हुई। जिनका पालन पोषण ऋषि कण्व ऋषि के आश्रम पर हुआ था। 

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इस शकुंतला का विवाह राजा दुष्यंत से हुआ। जिससे एक बहुत ही प्रतापी पुत्र भरत जी हुए। समय से भरत जी बड़े हुए और उनका विवाह हुआ। लेकिन उन्हें कोई पुत्र नहीं था। तब उन्होंने एक मरुत यज्ञ किया। जिसमें मरुत देवता को प्रसन्न करके पुत्र की कामना की गई। जिसमें मरुत देवता ने एक पहले से ही असहाय बालक जंगल में था, उसको राजा भरत को दे दिए। वह बालक कोई और नहीं बल्कि बृहस्पति ऋषि के पुत्र थे। 

भारद्वाज ऋषि का जन्‍म

बृहस्पति ऋषि के भाई उतथ्य ऋषि थे। जिनकी पत्नी ममता थी। एक बार बृहस्पति ऋषि अपने भाई की पत्नी ममता से के प्रति चंचल स्वभाव हो गए। जिससे एक पुत्र पैदा हुआ जिनका नाम भारद्वाज ऋषि था। इस बालक को बृहस्पति ऋषि ले जाकर जंगल में छोड़ दिए। वहीं बालक जिनका पालन पोषण मरुत देवता करते थे। मरुद देवता ने उस भारद्वाज ऋषि को जो बालक स्वरूप में थे उनको भरत जी को दे दिए।

वहीं आगे चलकर भरत जी के राज्य के उत्तराधिकारी भारद्वाज ऋषि हुए। इसी चंद्र वंश परंपरा में आगे रतिदेव राजा हुए। रतिदेव के वंश परंपरा में गर्ग ऋषि हुए। गर्ग ऋषि के पुत्र सीनी हुए। उनके ही वंश परंपरा में आगे चलकर हस्ती नाम के राजा हुए, जिनके नाम पर हस्तिनापुर का नाम पड़ा। इसी वंश परंपरा में मुद्गल नाम के एक राजा हुए जिनके जुड़वा बच्चे हुए एक लड़का और एक लड़की। लड़की का नाम था अहिल्या। यही अहिल्या का विवाह गौतम ऋषि से हुआ था। 

भारद्वाज ऋषि का वंश परंपरा

भारद्वाज ऋषि के ही वंश परंपरा में राजा द्रुपद भी हुए। द्रोणाचार्य भी हुए और अनेक परम तपस्वी और प्रतापी राजा हुए। आगे चलकर इसी वंश परंपरा में राजा बृहदरथ हुए, जिनके पुत्र जरासंध हुआ। इसी वंश परंपरा में राजा शांतनु भी हुए। जिनके पुत्र भीष्माचार्य हुए। फिर शांतनु का विवाह सत्यवती से हुआ। जिसके वंश परंपरा में पांडव और कौरव हुए।

गंगा के पावन तट पर परीक्षित राजा को शुकदेव जी चंद्रवंश के सभी वंश परंपरा को बता रहे हैं। जिसके बाद राजा परीक्षित ने कहा कि शुकदेव जी मुझे भगवान श्री कृष्ण के आगे के वंश परंपरा के बारे में भी बताइए। शुकदेव जी कहते हैं कि धन्य है वह चंद्रवंश यदुवंश जिस वंश में भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ। परीक्षित राजा शुकदेव जी से कहते हैं कि भगवान श्री कृष्णा मेरे सहोदर हैं। 

तब शुकदेव जी कहते हैं कि श्री कृष्‍ण सहोदर कैसे हुए। तब परीक्षित कहते हैं कि सहोदर इसलिए हुए, क्योंकि जब मैं माता के गर्भ में था, उस समय अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था। तब भगवान श्री कृष्ण ने गदा के जैसे सूक्ष्म रूप में होकर माता के गर्भ में छोड़ दिया था। जिससे राजा परीक्षित का गर्भ में सुरक्षा हुआ। भगवान गर्भ में राजा परीक्षित का रक्षा कर रहे थे इसीलिए वह परीक्षित के सहोदर हुए।

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