चातुर्मास्य व्रत श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का हुआ समापन

चातुर्मास्य व्रत श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का हुआ समापन – परमानपुर में चल रहे श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ एवं चातुर्मास्य व्रत का आज समापन हुआ। भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी के तत्वाधान में चल रहे, श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का समापन भव्य भोज भंडारे के साथ हुआ। पिछले चार महीना से चल रहे स्वामी जी का चातुर्मास्य व्रत का भी समापन 7 अक्टूबर को संपन्न हुआ। महायज्ञ के समापन के अवसर पर सुबह से ही भारी संख्या में भक्त श्रद्धालु यज्ञ में पहुंच रहे थे। जो लगातार पूरे दिन तक चलता रहा। परमानपुर से लेकर के आसपास के जितने भी परमानपुर पहुंचने के लिए मार्ग हैं, उन सभी मार्गों पर वाहनों की लंबी-लंबी कतार लगी हुई थी।

अगिआंव बाजार से अमेहता पुल होते हुए, गणेशी टोला, परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल तक केवल लोगों की लंबी कतार ही दिखाई पड़ रही थी। मानो ऐसा लग रहा था की पूरा क्षेत्र महायज्ञ के समापन में भोज भंडारे का प्रसाद ग्रहण करने एवं यज्ञ भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उमड़ पड़ा था।

चातुर्मास्य व्रत श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ का हुआ समापन

1 अक्टूबर से चल रहे 125 कुंडीय महायज्ञ का समापन भी हुआ। इस अवसर पर यज्ञशाला के चारों तरफ भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। हर कोई महायज्ञ का प्रसाद पाना चाहता था। क्योंकि ऐसे दिव्य महायज्ञ के प्रसाद का भी विशेष महत्व होता है। यह आयोजन 11 जून से ही शुरू हुआ था। लगातार परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भगवान की भागवत रूपी वाणी की गंगा पिछले 4 महीने से बह रही थी। ऐसे ज्ञान की गंगा में आज अंतिम दिन गोता लगाने के लिए प्रवचन पंडाल में भी दोनों तरफ भक्त श्रद्धालुओं की संख्या हजारों हजार में उमड़ी थी। प्रवचन पंडाल में मंच के आगे से लेकर के प्रवचन पंडाल के बाहर तक लोग बैठकर के कथा का रसपान कर रहे थे।

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भोज भंडारे के लिए बनाए गए भोजनालय में लगभग सुबह 10:00 बजे से ही भंडारा शुरू हो चुका था। जो कि लगातार चल रहा था। जिसमें महिलाएं, पुरुष, छोटे-छोटे बच्चे, बच्चियां, साधु, महात्मा सभी लोग कतार में होकर के प्रसाद ग्रहण कर रहे थे।

श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के अवसर पर धर्म सम्मेलन के लिए भी भारत के अलग-अलग जगह से बड़े-बड़े संत, महात्मा, विद्वान, ज्ञानी जन भी पहुंचे चुके थे। जिनके द्वारा मानव जीवन किस प्रकार से बेहतर बनाया जा सकता है, व्यक्ति अपने जीवन में किस प्रकार से अच्छे आचरण, व्यवहार, गुण को अपना करके अपना कल्याण कर सकता है, उसको लेकर के अपने-अपने अमृतमय उपदेश से भक्त जानों को मार्गदर्शी किए।

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