गौ हत्या बंद होनी चाहिए : श्री जीयर स्वामी जी महाराज 

गौ हत्या बंद होनी चाहिए : श्री जीयर स्वामी जी महाराज  – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि गौ हत्या बंद होनी चाहिए। समाज पर गाय का बहुत बड़ा ऋण है, जिसको चुकाने की जरूरत है। जिस माता से हम लोग जन्म लेते हैं। उनके दूध का पान करके बड़े होते हैं। वहीं बचपन में जब बच्चा को और दूध की आवश्यकता होती है, तब वही गाय का दूध पीकर हम लोग बड़े होते हैं। 

इसीलिए गाय हमारे लिए माता के समान है। जितना सम्‍मान मां के लिए होना चाहिए, उससे अधिक सम्मान गाय के लिए भी होना चाहिए। क्योंकि गाय जो बिना किसी संबंध के अपने दूध से हम लोगों को पालती करती है। उस गाय का रक्षा करना हम सभी प्राणियों का धर्म है। आज जिस प्रकार से गौ हत्या हो रही है, उससे समाज पर गहरा आघात पहुंच रहा है।

गौ हत्या बंद होनी चाहिए

गाय जब दूध देती है, तब उसके दूध का उपयोग करते हैं। लेकिन जब गाय दूध देना बंद कर देती है, तब कुछ पैसों के लालच में गाय को गलत लोगों के हाथों में बेच दिया जाता है। इस पर हम सभी को विचार करने की जरूरत है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी गाय, बैल, भैंस, बकरी का बहुत महत्व बताया गया है।

गाय का दूध व्यक्ति के लिए सर्वोत्तम औषधि के समान है। जिसके आसपास रहने से शरीर में मौजूद रोग भी खत्म होता है। गाय का मूत्र कई प्रकार के औषधीय के लिए उपयोग किया जाता है। अगर किसी व्‍यक्ति को अस्‍थमा का रोग हैं तो गाय के आसपास रहने से उसके गोबर, मूत्र के गंध से बिमारी खत्‍म हो जाता हैं। वैसी गाय की रक्षा करना बहुत जरूरी है। जब किसी व्यक्ति को बीमारी के कारण बहुत ज्यादा कमजोरी हो जाता है, उस समय उसको बकरी का दूध पिलाया जाता है। 

gau hatya band honi chahiye

क्योंकि उसके दूध को बहुत ताकतवर बताया गया है। जिससे मानव का कल्याण होता है। बैल के आसपास रहने से उसके शरीर पर हाथ फेरने से भी शरीर में कई प्रकार की समस्याएं खत्म होती है। वही भैंस के भी दूध से व्यक्ति अपने आप को शरीर में शक्ति आती हैं। शास्त्रों के अनुसार गाय के हर रोम में देवता का वास होता है। इसीलिए कहा जाता है कि गाय में 33 करोड़ देवता वास करते हैं। ऐसे शास्त्र से भी गाय की हत्या करना पाप है।

इक्ष्वाकू के वंश परंपरा

श्रीमद् भागवत कथा प्रसंग अंतर्गत सूर्य के पुत्र इक्ष्वाकू हुए। उन्हीं इक्ष्वाकू के वंश में एक बहुत ही बड़े तपस्वी सौबरी ऋषि हुए। उन्होंने मांधाता के 50 पुत्रीयों से विवाह किया था। जिनके बहुत पुत्र हुए। जिनमें सबसे बड़े पुत्र पुरुकुत्स थे।  पुरुकुत्स के वंशज में आगे एक सत्यव्रत नाम के राजा हुए। जिनको बाद में त्रिशंकु के नाम से जाना गया। एक बार राजा सत्यव्रत ने वशिष्ठ मुनि से कहा कि मैं एक ऐसा यज्ञ करना चाहता हूं, जिसको करने के बाद मेरा शरीर स्वर्ग लोक में चला जाए।

वशिष्ठ जी ने कहा कि ऐसा कोई यज्ञ नहीं है। जिसके बाद सत्यव्रत ने वशिष्ठ मुनि के पुत्रों से यज्ञ करने के लिए कहा। उन्होंने भी मना कर दिया। तब वशिष्ठ ऋषि के पुत्रों ने कहा कि मेरे पिताजी से इस बारे में बात करो। राजा सत्यव्रत ने कहा कि उन्होंने मना कर दिया है। यह सुनकर वशिष्ठ ऋषि के पुत्रों ने राजा सत्यव्रत को श्राप दे दिया कि कर्म से पतीत हो जाओ।

इतना सब होने के बाद भी सत्यव्रत राजा हार नहीं माने और वह विश्वामित्र मुनि के पास गए। उनसे भी कहा कि मैं ऐसा यज्ञ करना चाहता हूं, जिससे शरीर सहित स्वर्ग में चला जाऊं। विश्वामित्र मुनि ने कहा कि मैं यह यज्ञ जरूर करूंगा। जिसके बाद  विश्वामित्र मुनि ने यज्ञ का आरंभ किया और बहुत ही अच्छे तरीके से यज्ञ पूर्णाहुति भी किए। फिर विश्वामित्र मुनि अपने तपोवल और साधना के फलस्वरुप राजा सत्यव्रत को शरीर सहित स्वर्ग लोक में भेज दिए। जब स्वर्ग लोक में सत्यव्रत राजा गए, तब स्वर्ग के अधिकारी ने कहा कि यह तो नियम के विरुद्ध है। 

नियम और धर्म के विरूद्ध कार्य नहीं करना चााहिए

स्वर्ग लोक से राजा सत्यव्रत को भेज दिया गया। तब सत्यव्रत राजा ने विश्वामित्र मुनि को पुकारा और पैर ऊपर, सिर नीचे और हाथ दोनों फैला कर त्रिशंकु की तरह बन गए। जिसके बाद विश्वामित्र मुनि बहुत क्रोधित हुए कहा कि मेरा तो अपमान किया जा रहा है। अब वह बोलने लगे कि मैं एक अलग स्वर्ग लोक बनाऊंगा। जिसके पास सभी देवताओं ने हाथ जोड़कर निवेदन किया। तब विश्वामित्र ऋषि मान गए। लेकिन सत्यव्रत राजा त्रिशंकु की तरह बन गए थे, तो उनका नाम विश्वामित्र मुनि हो गया। उनको अब नीचे आने का अनुमति नहीं मिला। वह जहां थे वहीं पर वैसे ही रह गए। उनके मुंह से जो लार गिरा, वह एक नदी बन गया। जिसे आज हम कर्मनाशा नदी के नाम से जानते हैं।

राजा हरिश्चंद्र

वहीं राजा सत्यव्रत त्रिशंकु के पुत्र राजा हरिश्चंद्र हुए। जिन्हें सत्यवादी राजा के नाम से जाना जाता है। राजा हरिश्चंद्र की पत्नी सब्या थी। जिनसे रोहित नाम के पुत्र थे। राजा हरिश्चंद्र अपना सब कुछ दान देकर भिखारी बन गए थे। राजा हरिश्चंद्र को विवाह के बाद भी कई वर्षों तक पुत्र नहीं हुआ। उन्होंने ऋषि महर्षियों से कहा तब उन्हें एक पुत्र हुआ। लेकिन उसके बदले में उन्होंने कहा कि मैं वरून देव को बलि दूंगा।

जब राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहित हुए, उसके बाद भी उन्होंने बलि नहीं दिया। एक दिन रोहित को इस बात की पता चली। तब वह वरुण देवता के पास गए और बोले कि मैं अपने बदले में दूसरे व्यक्ति का बालि दूंगा। रोहित एक दिन खोजते खोजते एक गांव में गए। जहां एक ब्राह्मण के तीन पुत्र थे। उस ब्राह्मण ने अपने बड़े और छोटे पुत्र को नहीं दिया। लेकिन बीच वाले पुत्र को बलि के लिए भेज दिया। रोहित ब्राह्मण के पुत्र को लेकर वरुण देवता के पास बलि देने के लिए ले गए। 

भगवान बलि से नहीं स्‍मरण से प्रसन्न होते हैं

वहां पर जो भी प्रक्रिया था, उसको किया गया और ब्राह्मण के पुत्र को शाम के समय नहाने के लिए नदी किनारे भेजा गया। वहीं पर उस ब्राह्मण के पुत्र का मुलाकात विश्वामित्र मुनि से हो गया। विश्वामित्र मुनि ने सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद एक स्तुति श्लोक ब्राह्मण के पुत्र को दिया। वहीं ब्राह्मण के पुत्र जब वरुण देवता के पास बलि के लिए ले जाया गया। उन्होंने विश्वामित्र मुनि के द्वारा बताए गए श्लोक को बोलने लगे। उस श्लोक को सुनकर वरुण देवता प्रसन्न हो गए। 

उन्होंने कहा कि मुझे बलि नहीं चाहिए, मैं इस श्लोक से प्रसन्न हो गया हूं। जिसके बाद ब्राह्मण के पुत्र भी बच गए और बलि न देने की वजह से वरुण देवता हरिश्चंद्र राजा पर क्रोधीत थे तो उनको भी माफ कर दिए और रोहित भी बच गए।

सगर राजा

रोहित के वंश परंपरा में आगे चलकर राजा सगर हुए। सगर राजा के एक पत्नी से 60000 पुत्र थे दू।सरी पत्नी से एक पुत्र थे। जिनका नाम असमंजस था। वही राजा सगर जिन्होंने एक बार अश्‍वमेघ यज्ञ किए।  अश्‍वमेघ यज्ञ के घोड़ा को चुराकर इंद्र देवता नेकपिल मुनि के आश्रम में बांध दिए। जिसके बाद सगर राजा के पुत्रों ने खोजते हुए कपिल मुनि के आश्रम में गए। जिसके बाद कपिल मुनि के सिर्फ देखने से सगर राजा के सभी पुत्र भस्म हो गए। असमंजस के पुत्र थे अंशुमान। 

भगीरथी

वही अंशुमान सगर के 60000 पुत्रों को खोजते हुए भगवान कपिल मुनि के आश्रम में गए। जहां भगवान कपिल मुनि ने बताया कि गंगा को स्वर्ग लोक से लेकर सागर में मिलना होगा। तब सगर राजा के पुत्रों का कल्याण होगा। अंशुमान कई वर्षों तक तपस्या किए, लेकिन उनकी तपस्या सफल नहीं हुई। अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए उन्होंने भी तपस्या किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। दिलीप के पुत्र राजा भगीरथ हुए। जिन्होंने गंगा जी को स्वर्ग लोक से धरती पर लेकर आए। इसी वंश परंपरा में आगे चलकर राजा दशरथ के पुत्र के रूप में भगवान श्री राम का जन्म हुआ जो इक्ष्‍वाकू वंश, सूर्यवंशी वंश के राजा भगवान श्री राम हुए।

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