गृहस्थ आश्रम है सबसे सर्वश्रेष्ठ : श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि सभी आश्रमों में गृहस्थ आश्रम श्रेष्ठ है। गृहस्थ आश्रम में रहकर जो व्यक्ति शास्त्र के मर्यादा के अनुसार जीवन जीता है, वह मोक्ष को प्राप्त करता है। शास्त्रों में बताया गया है स्त्री धर्म का पालन करने वाली स्त्री, सन्यास धर्म का पालन करने वाले सन्यासी, गृहस्थ आश्रम में रहकर गृहस्थ मर्यादा के अनुकूल आचरण करने वाले गृहस्थ भगवान के परम लोक को प्राप्त करते हैं।
जो अपने वैवाहिक मर्यादा को स्वीकार करते हुए पत्नी बाल बच्चों के साथ रहता है तथा गृहस्थ आश्रम के धर्म का पालन करता है वह गृहस्थ है। गृहस्थ आश्रम उसे कहा जाता है गृहस्थ आश्रम में रहने वाले व्यक्ति खेती, व्यापार, अध्ययन, अध्यापन करते हैं। जिससे प्रकृति में रहने वाले कई जीवों का कल्याण होता है। एक गृहस्थ जो खेती करता है, जब वह खेतों में फसल उगाने के लिए बीज डालता है, उस बीज अन्न को कई जीव जंतु खा भी जाते हैं।
गृहस्थ आश्रम है सबसे सर्वश्रेष्ठ
बीज डालने से लेकर उगने तक के बीच में कई प्रकार के प्रकृति में रहने वाले जीव जंतु अपना आहार प्राप्त करते हैं। ऐसे जीव जंतु जो गृहस्थ के द्वारा उपजाए जा रहे अन्न से अपना जीवन यापन आगे बढ़ाते हैं। वैसे गृहस्थ के द्वारा ही कई जीवों की भोजन की व्यवस्था की जाती है। जिसके बाद जब खेत में फसल तैयार हो जाते हैं, उसको घर पर लाया जाता है। जिसके बाद उस उपजाए हुए फसल चाहे वह धान, गेहूं, चावल या अन्य कुछ भी हो, उसके माध्यम से समाज की भोजन की व्यवस्था की जाती है।
ऐसे गृहस्थ आश्रम श्रेष्ठ बताया गया है। क्योंकि अगर गृहस्थ आश्रम नहीं होता तो मानव के खाने-पीने एवं कई प्रकार की चीजों की व्यवस्था नहीं हो पाती। आज कहीं भी यज्ञ इत्यादि होता है, उसमें भोज भंडारा किया जाता है। जिसमें चावल, आटा, दाल एवं कई प्रकार की सामग्रियां उपयोग की जाती है। यह सभी अन्न एवं सामग्रियां गृहस्थों के द्वारा उपजाया जाता है।

सन्यासी ब्रह्मचारी भी इन्हीं गृहस्तों के द्वारा उपजाए गए फल, फूल अन्य के माध्यम से ही अपना आहार प्राप्त करते हैं। गृहस्थ नहीं होते तो समाज में आहार, भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती। इसीलिए गृहस्थ आश्रम में रहकर के शास्त्र के अनुसार मर्यादा पूर्ण जीवन जीने को बताया गया है।
पति की मर्यादा में रहना स्त्रियों के लिए सबसे बड़ा धर्म
स्त्री का धर्म : जिसमें बताया गया हैं कि स्त्री के तो अनेक धर्म है। लेकिन मुख्य रूप से चार धर्म महत्वपूर्ण है। स्त्री का सबसे श्रेष्ठ धर्म है कि पति के प्रति सेवा का भावना होना चाहिए और अपने पति को देवतुल्य आदर सम्मान देना चाहिए। नारी संत महात्मा को आदर सम्मान और सेवा भाव करती है।
लेकिन अगर अपने पति का आदर सम्मान और सेवा भाव नहीं करती हो तो सब बेकार है। पति का हर समय साथ देना, उनके साथ प्रसन्न रहना और अपने पति के साथ-साथ उनके परिवार को भी आदर भावना और सम्मान देना चाहिए। एक स्त्री को पतिव्रता होना चाहिए। पति के प्रति समर्पित होना चाहिए। एक स्त्री को अपने पति के अलावा गैर मर्द से न ही किसी तरह का हास्य परिहास करना या किसी तरह का संबंध रखना नहीं चाहिए। ऐसी स्त्री धरती पर रहते हुए, जब अपने शरीर का त्याग करती है तो स्वर्ग को प्राप्त करती है।
ब्रह्मचारी का धर्म
स्त्री का धर्म बताने के बाद प्रहलाद जी अपनी प्रजा को ब्रह्मचारी का धर्म बताते हैं कि ब्रह्मचारी को कैसे रहना चाहिए। किस धर्म का पालन करना चाहिए। ब्रह्मचारी कई प्रकार के होते हैं जैसे पहला जिससे शादी हुआ, उस पत्नी के साथ रहकर अपना जीवन व्यतीत करना, दूसरा वह व्यक्ति ब्रह्मचारी है जो कि अपनी अपनी पत्नी के साथ रहकर संतान उत्पत्ति करना और साथ ही धर्म पूजा पाठ में लगे रहना।
जो व्यक्ति बचपन से लेकर मरने तक ब्रह्मचर्य धर्म का पालन करता है वह भी ब्रह्मचारी है। विवाह नहीं करता है। जो कि भगवान का पूजन, साधना, आराधना, स्मरण में ही जीवन व्यतीत करता है। दुनिया में जितने अच्छे कर्म है, उन सभी कर्मों और आचरण को अपने जीवन में उतरना भी ब्रह्मचारी कहलाता है। भगवान की सेवा करना, भगवान के भक्तों की सेवा करना और संत महात्मा का भी सेवा करना एक ब्रह्मचारी का धर्म है। ब्रह्मचारी का जीवन सदाचारी होना चाहिए। आहार, व्यवहार सही होना चाहिए। शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिए। आचरण सही होना चाहिए। सूर्य, अग्नि, गुरु और देवताओं के प्रति समर्पित होना चाहिए।
ब्रह्मचारी को पांच यज्ञ रोज करना चाहिए। जैसे कि रोज भोजन करने से पहले गाय, कौवा, संत, कुत्ता, चींटी, मछली के लिए सबसे पहले भोजन निकाल दे। उसके बाद ही खुद भोजन करें। एक ब्रह्मचारी को तीन ऋण से उऋण होने के लिए मातृ ऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण को भी पूरा करना चाहिए। आगे प्रहलाद जी कहते हैं कि एक ब्रह्मचारी को किसी भी स्त्री चाहे वह माता हो, बहन हो, बेटी हो कोई भी हो, उसके साथ बहुत देर तक एकांत में बैठकर हास्य परिहास नहीं करना चाहिए। इससे ब्रह्मचर्य धर्म में किसी तरह का त्रुटि या भटकाव आने का संभावना होता है।
वानप्रस्थ का धर्म
आगे प्रहलाद जी ने वानप्रस्थ का धर्म बताया। जिसमें उन्होंने बताया कि शादी विवाह होने के बाद बच्चा होने के बाद पूजा, पाठ, यज्ञ, धर्म में रहना चाहिए। कंदमूल खाकर रहना चाहिए। तामसी भोजन नहीं करें।
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सन्यासी का धर्म
आगे प्रहलाद जी ने अपनी प्रजा को सन्यासी का धर्म भी बताया। एक संन्यासी को अपनी कामना को त्याग कर पूजा, पाठ, धर्म, यज्ञ, साधना करना चाहिए। धन की लालच नहीं करना चाहिए। अपना जीवन भगवान के भक्ति में लगाकर आत्मा को परमात्मा में विलय करके जीता है वहीं सन्यासी है। जगत और जगत के मानव और प्राणियों के लिए यज्ञ, धर्म, पूजा, तप, गंगा स्नान या जो भी धर्म का कार्य है वह करें। समाज के लोगों के कल्याण के लिए सही आचरण का शिक्षा दे।
एक संन्यासी को बहुत दिनों तक एक जगह पर नहीं रहना चाहिए। बड़े-बड़े नगर हो तो वहां 7 दिन, 5 दिन या तीन दिन रहना चाहिए। साथ ही साल में एक बार चातुर्मास यज्ञ करवाना चाहिए। एक संन्यासी को तिलक, कमंडल धारण करना चाहिए। भगवान की साधना आराधना भक्ति में ही अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। सात घर या पांच घर भिक्षा मांग करके अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए।
गृहस्थ का धर्म
प्रहलाद जी ने गृहस्थ का धर्म भी बताया। जिसमें उन्होंने बताया कि गृहस्थ आश्रम सबसे श्रेष्ठ है। गृहस्थ आश्रम में पत्नी बच्चे के साथ रहते हुए, अपने घर के सभी तरह के कार्यों को देखते हुए, भगवान की भक्ति और साधना में रहना पड़ता है। पत्नी बच्चा के साथ रहते हुए, खेती व्यापार करते हुए, पितरों, देवताओं, साधु संतों का आदर सम्मान करना, समय समय से प्राणियों के लिए भोज भंडारा करना गृहस्थ आश्रम का धर्म है। तामसी और राजसी रहन सहन छोड़कर रहना चाहिए।
जो व्यक्ति मांस नहीं खाता है, तामसी भोजन नहीं करता है, उन्हें सभी तीर्थ, यज्ञ करने के बाद फल प्राप्त होता है। कभी भी श्राद्ध के अवसर पर तामसी भोजन नहीं करना चाहिए। गृहस्त आश्रम में रहते हुए हर एक प्राणी, साधु, संत, अतिथि की मंगल कामना की भावना रखना चाहिए। गृहस्थ आश्रम का 6 सूत्र है। धन का वृद्धि, आरोग्यता, पत्नी का प्रिया होना, पत्नी का सुंदर होना, पत्नि का आज्ञाकारी होना, पुत्र आज्ञाकारी होना।

रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।