इंद्रियां बहुत ही बलवान है : श्री जीयर स्वामी जी महाराज 

इंद्रियां बहुत ही बलवान है : श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि इंद्रियों का प्रभाव बहुत ही बलवान है। जिसके कारण बड़े-बड़े ऋषि, महर्षि, तपस्वी भी भटक जाते हैं। इसीलिए ऋषि, महर्षि, तपस्वी को भी संयम में रहने को बताया गया है। संसार में जितनी भी स्त्रियां हैं, उनमें अपनी पत्नी को छोड़कर बाकी सभी स्त्रियों के साथ माता का भाव रखना चाहिए। चाहे छोटी बालिका हो या वृद्ध माता हो या किसी भी उम्र की महिला को माता के समान व्यवहार रखने को बताया गया है।

स्त्रियों के साथ एकांतावास नहीं करना चाहिए

समाज में छोटी बच्चियों को कुछ लोग बहन कहते हैं। लेकिन जितनी भी स्त्री हैं, उन सभी स्त्रियों के लिए सबसे उचित शब्द माता को बताया गया है। चाहे वह किसी भी उम्र की महिला हो, उनके लिए माता के जैसा व्यवहार, आचरण, बोलचाल, मर्यादा रखना चाहिए। क्योंकि चाहे कितना भी खराब आदमी हो, वह भी अपने माता के साथ मर्यादा में जरूर रहता होगा। शास्त्र के अनुसार बताया गया है कि पिता को भी अपनी पुत्री के साथ एकांत में वास नहीं करना चाहिए। वहीं बहन, बेटी, बुआ, चाची और अन्य किसी भी स्त्री के साथ एकांत में वास करना, वार्तालाप करना, हास्य परिहास करना वर्जित किया गया है।

indriyan bahut hi balwan hai

इंद्रियां बहुत ही बलवान है

श्रीमद् भागवत में व्यास जी ने लिखा है कि इंद्रियां इतनी ज्यादा बलवान है कि उसके प्रभाव से बड़े-बड़े ज्ञानी, सिद्ध पुरुष, तपस्वी, ऋषि, महर्षि भी प्रभावित हो जाते हैं। जब व्यास जी ने श्रीमद् भागवत में लिखा कि इंद्रियां बहुत ज्यादा बलवान है कि ससे तपस्वी साधना में भी भटक जाते हैं।

तब कुछ ऋषि, महर्षियों ने इसका विरोध किया कि आपको ऐसा नहीं लिखना चाहिए। लेकिन व्‍यास जी ने मन ही मन मंथन किया कि हम इसको सिद्ध भी कर देंगे।

इंद्रियों के प्रभाव से ऋषि महर्षि भी भटक जाते हैं

वही एक बार जैमिनी ऋषि वन में साधना तपस्या कर रहे थे। वहां पर व्यास जी लड़की का रूप बना करके चले गए। वहां जाने के बाद उनके आश्रम के बाहर विश्राम करने लगे। रात्रि का समय हो गया था। उस दिन बारिश भी हो रहा था। अब जो वहां पर लड़की थी वह सोची कि आज रात यहीं पर रुक जाती हूं। वहीं वर्षा में बाहर पेड़ के नीचे बैठी हुई थी। जैमिनी ऋषि अपने आश्रम में तपस्या कर रहे थे।

उनको पता चला कि बाहर एक लड़की बारिश में पेड़ के नीचे बैठी हुई है। मन ही मन विचार किया कि उस लड़की को अपने आश्रम में रखना चाहिए। क्योंकि रात्रि का समय है और बाहर बारिश में भीग रही है। वहीं जैमिनी ऋषि जा करके बोले कि बच्ची तुम मेरे आश्रम में आराम करो। हम यहां पेड़ के नीचे विश्राम करेंगे। जैमिनी ऋषि ने कहा कि रात में एक प्रेत आता है, वह जाकर के दरवाजा खटखटा आएगा, लेकिन तुम दरवाजा मत खोलना। 

जैमिनी ऋषि का परीक्षा

उन्होंने समय भी कुछ बताया था कि लगभग 12:00 बजे रात्रि के आसपास। वहीं जैमिनी ऋषि बाहर पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे। जब रात के 12:00 बजे तब उनके मन में विचार आया कि हम यहां पर पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे हैं और मेरे ही आश्रम में वह लड़की आराम से सो रही है, यह अच्छा नहीं है। चलो चलते हैं और दरवाजा खुलवा करके हम भी अपने आश्रम में ही आराम करेंगे। वहीं जैमिनी ऋषि जाकर के दरवाजा पीटने लगे। लेकिन अंदर जो लड़की थी उसको जैमिनी ऋषि ने हीं बताया था कि दरवाजा मत खोलना। इसीलिए वह लड़की कहने लगी कि नहीं तुम प्रेत हो हम दरवाजा नहीं खोलेंगे। 

जैमिनी ऋषि कह रहे थे कि नहीं हम स्वयं जैमिनी ऋषि हैं जो तुमको इस बात को बताए थे, दरवाजा खोलो। फिर भी वह लड़की दरवाजा नहीं खोल रही थी। अब जैमिनी ऋषि जो उनका विश्राम गृह था, उसके ऊपर चढ़ गए। ऊपर चढ़ने के बाद छोटा सा एक धुआं निकलने के लिए जगह छोड़ा गया था। उसी से वह नीचे प्रवेश करने का प्रयास कर रहे थे। अब जैसे ही वह ऊपर के रास्ते से भी अपना पैर नीचे करते हैं, तब तक ऊपर से उनका सीखा व्‍यास जी आ करके पकड़ लिए और बोले कि जैमिनी ऋषि आप रात में यहां क्या कर रहे हैं। 

इंद्रियाें की शक्ति का एहसास

नीचे से उनका पैर वह लड़की पकड़ लेती है जो स्वयं व्यास जी हैं और लड़की के रूप में आए थे परीक्षा लेने के लिए। वहीं व्यास जी कहते हैं कि जैमिनी ऋषि श्रीमद्भागवत में जो भी हमने श्लोक लिखा है, वह सत्य है, सही है। क्योंकि इंद्रियां इतनी ज्यादा बलवान है कि उस पर यदि संयम नहीं रखा जाता है तो वह भटक जाती है। इस बात को आज हमने सिद्ध करके भी आपको दिखला दिया। इस प्रकार से व्यास जी ने जैमिनी ऋषि को भी इंद्रियाें की शक्ति का एहसास करा दिए। शरीर में मौजूद आंख, कान, मुंह, हाथ इत्यादि जो इंद्रियां हैं, यह बहुत जल्द भटक जाती है। इसीलिए संयम के साथ अपने मन पर नियंत्रण सदैव रखना चाहिए।

ऋषि, महर्षि, तपस्वी को भी संयम रखना जरूरी

वाराणसी में एक संत रहते थे। वह बहुत ज्यादा पूजा, पाठ, तपस्या, साधना में लगे रहते थे। जब वह गंगा जी के तट पर स्नान करने के लिए जाते थे, बीच रास्ते में वेश्या रहती थी। जब भी वह स्नान करने के लिए जाते थे, तो वह पूछती बाबा आपका दाढ़ी असली है कि नकली है। वह महात्मा जी चुपचाप चले जाते। उसके बातों का जवाब नहीं देते थे। बहुत दिनों के बाद जब महात्मा जी गुजर गए। तब उनके शरीर को लोग पंचतत्व में विलीन करने के लिए उसी रास्ते से लेकर जा रहे थे।

एक बार पुन: उस वेश्‍या ने पूछा बाबा आपका दाढ़ी असली है कि नकली है। वह महात्मा जी बैठ गए। उन्होंने कहा कि आज तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगा। जो तुम पिछले कई वर्षों से पूछ रही हो तो आज मैं बताता हूं, यह दाढ़ी असली है। महात्मा जी ने कहा तुम्हारे सवालों का जवाब पहले मैं इसलिए नहीं दे रहा था, क्योंकि मुझे मन में शंका थी कहीं मैं भटक न जाउं। लेकिन अब मैं अपना शरीर त्याग दिया हूं, इसीलिए आज तुम्हारे सवालों का जवाब देकर जा रहा हूं।

राजा परीक्षित को श्राप कैसे लगा

श्री स्वामी जी ने श्रीमद् भागवत कथा अंतर्गत राजा परीक्षित को श्राप कैसे लगा के बारे में बताएं। जब कलयुग को परीक्षित राजा ने पांच स्थान दे दिए, उसके बाद एक बार परीक्षित राजा पांडवों के द्वारा जीते गए राज्यों से जितने भी मुकुट धन संपत्ति था, उसको देख रहे थे। उसमें उन्हें एक जरासंध का मुकुट मिल गया। जिसे भीम ने हरा कर उसका मुकुट ले लिए थे। परीक्षित राजा वह मुकुट पहन कर शिकार के लिए जंगल में चले गए। जहां पर उन्हें बहुत प्यास लग तो वह शमीक ऋषि के आश्रम में पहुंचे। 

वहां पर शमीक ऋषि तपस्या में लीन थे। राजा परीक्षित ने शमीक ऋषि से कई बार पानी मांगे, लेकिन वह ध्यान में होने के कारण जवाब नहीं दिए। जिससे परीक्षित राधा क्रोधित हो गए और वहीं पर एक मरा हुआ सांप गिरा था, जिसको उठाकर शमीक ऋषि के गले में डाल दिए। उस समय परीक्षित राजा जो मुकुट पहने थे, उसमें कई कलयुग वास कर लिया था। इसीलिए उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था।

जब शमीक ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि को बात पता चली तो उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप दे दिया। जिसमें उन्होंने श्राप दिया कि 7 दिन के भीतर तकक्ष नाग के काटने से उनका मृत्यु हो जाएगा। यह बात जब शमीक ऋषि को पता चली तो उन्होंने अपने पुत्र से क्रोध शांत करने के लिए कहा और कहा कि परीक्षित राजा के मुकुट में कलयुग निवास कर लिया है इसीलिए उन्होंने ऐसा किया।

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