जो व्यक्ति दान नहीं करता है वह अगले जन्म में दरिद्र होता है : श्री जीयर स्वामी जी महाराज 

जो व्यक्ति दान नहीं करता है वह अगले जन्म में दरिद्र होता है : श्री जीयर स्वामी जी महाराज ; परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद जब नन्हे से बालक गोकुल में पहुंचे, तब गोकुल में पहुंचने के बाद सुबह में माता यशोदा और नंद बाबा को पुत्र प्राप्ति का समाचार प्राप्त हुआ। जिसके बाद लगातार कई दिनों तक खूब दान पुण्‍य किया गया। शास्त्रों में भी बताया गया है कि दान का महत्व बहुत ही विशेष है। “दानम दुर्गति नासनम” कलयुग में दुर्गति को नाश करने वाला दान एक मात्र सबसे बड़ा साधन है। 

दान का भी मतलब समझना चाहिए। दान केवल यज्ञ में देना ही दान नहीं होता है, बल्कि दान का मतलब जितना भी हम ईमानदारी पूर्वक कमाते हैं, उसमें से कुछ भाग समाज के कल्याण के लिए खर्च किया जाए, वही दान है। जैसे मंदिर, स्कूल, अनाथालय, अस्पताल, यज्ञ, संत, महात्मा, गरीब, असहाय के लिए खर्च किया गया धन दान की श्रेणी में आता है। किसी बच्ची के विवाह में सहायता करना भी दान ही होता है। उसी तरह गरीब व्‍यक्ति जो बीमारी से त्रस्त है, उसके पास इलाज कराने के लिए पैसा नहीं है, उसका मदद करना भी दान ही होता है। 

जो व्यक्ति दान नहीं करता है वह अगले जन्म में दरिद्र होता है

इस प्रकार से दान करने के कई माध्यम है। लेकिन एक चीज ध्यान रखना चाहिए, दान उसी को करना चाहिए, जो दान लेने का अधिकारी है। यदि आप गलत जगह पर दान करते हैं तो उसका दुष्प्रभाव आपके ऊपर पड़ सकता है। किसी ऐसे व्यक्ति को आप दान देते हैं जो नास्तिक प्रवृत्ति का हो, जो आपके पैसे का दुरुपयोग करता हो, जो आपके दिए हुए दान से समाज का अहित पहुंचाता हो। जो दान दिए हुए पैसे का धर्म के विरूद्ध काम करता है, वैसे दान का दुष्प्रभाव भी पड़ सकता है।

jo dan nahi karta wah agale janam me daridra hota hai

दान भी जरूरतमंद व्यक्ति को ही देना चाहिए। वैसे तो शास्त्रों में बताया गया है कि आप अपने घर में पूजा पाठ करते हैं, उसमें जो भी आप दान पुण्‍य करते हैं, वह दान भी योग्य ब्राह्मण को ही देना चाहिए। जिसका खान-पान, रहन, सहन, उठन, बैठन शास्त्र के मर्यादा के अनुकूल हो, वैसे ब्राह्मण को ही दान देना चाहिए। जो व्यक्ति अपने जीवन में दान नहीं करता हैं, मानव कल्याण के लिए काम नहीं करता हैं, उसका कमाया हुआ धन उसी प्रकार का होता है, जिस प्रकार से घर में धन संपत्ति होने के बाद भी व्यक्ति उस धन का सदुपयोग नहीं कर पाता है। 

कलयुग में मानव के कल्याण के लिए दान सबसे श्रेष्ठ माध्यम

इसीलिए समाज कल्याण, मानव कल्याण, जन कल्याण, कन्या विवाह कल्याण, मंदिर, यज्ञ, संत, महात्मा, तीर्थ क्षेत्र इत्यादि जगहों पर जरूर दान करना चाहिए। श्रीमद् भागवत में तो बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद नंद बाबा और उनकी बहन सुनंदा, नंद बाबा की पत्नी यशोदा मैया के द्वारा कई महीनो तक बहुत कुछ दान दिया गया।

भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था। जिसके बाद बालक स्वरूप कृष्ण जी गोकुल में पहुंचा दिए गए थे। कल की कथा में भगवान श्री कृष्णा जी का जन्म किस प्रकार से मथुरा में हुआ, जन्म के बाद कृष्ण जी माता से क्या-क्या संदेश दिए, उसको श्रवण किए थे। आगे कृष्ण भगवान माता यशोदा के आंचल में सोए हुए हैं। गोकुल में किसी को पता नहीं है कि पुत्र हुआ है। सभी लोग अपने-अपने काम में लगे हुए हैं। नंद बाबा की बहन सुनंदा यशोदा जी के कमरे में पहुंचती है। वहां देख रही है कि एक बच्चा यशोदा जी की आंचल में सोया हुआ है। 

कृष्‍ण जी का पहला नाम नीलमणि पड़ा

सुनंदा खुशी से झूम उठती है। सबसे पहले सुनंदा नंद बाबा से आकर के यह खबर सुनाती है। जिसके बाद नंद बाबा जिनका उम्र 60 वर्षों के आसपास से अधिक है, वह खुशी से झूम उठते हैं। इधर यशोदा जी भी नींद से जागती हैं। नंद बाबा मन ही मन सोच रहे हैं कि भगवान ने वचन को पूरा किया। जिसके बाद घर में गजब का उत्सव होता है। यशोदा जी की ननंद सुनंदा ने सबसे पहली बार कृष्‍ण जी को देखा था। जो कि नीलमणि की तरह भगवान श्री कृष्णा चमक रहे थे। इसलिए सबसे पहला उनका नाम नीलमणि रखा गया। 

उधर जब सुबह हुई तो वासुदेव जी जो यशोदा जी के गोद से बच्ची लेकर आए थे, वह देवकी के पास थी। सबको पता चली कि देवकी को बच्चा हुआ हैं। जब कंस को पता चला तो वह आकर उस बच्ची को लेकर मारने की कोशिश करने लगा। देवकी और वासुदेव जी बहुत विनती किए, कि बच्‍ची को छोड़ दो। लेकिन फिर भी कंस नहीं माना। जैसे ही वह बच्ची को पत्थर पर पटकने की कोशिश किया, वह बच्ची उसके हाथ से छूटकर आकाश में चली गई। वह कोई और नहीं बल्कि योग माया थी। उन्होंने कहा कि अरे मूर्ख तू मुझे क्या मारेगा, तुम्हें मारने वाला इस पृथ्वी पर जन्म ले चुका है।

माता अष्‍टभुजी का जन्‍म

वहीं योग माया जाकर विंध्याचल में स्थापित हो गई जिन्हें अष्टभुजी के नाम से जाना जाता हैं। योग माया के बातों को सुनकर कंस अंदर से थोड़ा डर गया। उसने अपने मंत्रियों से कहा कि राज्य में जितने एक दिन से एक साल के बच्चे हैं, उन सभी को मार दो। उसने राज्य में उपद्रव करना शुरू कर दिया। जितने भी साधु, संत, महात्मा पूजा जप तप यज्ञ करते थे, उन सबको परेशान करने लगा। जिससे कंस का आयु क्षीण होने लगा। 

इधर गोकुल में नंद जी की बहन सुनंदा जब देखती है कि यशोदा जी के आंचल में बालक खेल रहा है और यशोदा जी सोई हुई है। तब वह नंद जी के पास जाकर बताती है कि आपको पुत्र हुआ है। फिर आकर यशोदा जी को भी जगाती है। जिसके बाद पूरे गोकुल में उत्सव मनाने के लिए लोग धीरे-धीरे इकट्ठा होने लगते हैं। गोकुल में भगवान श्री कृष्ण के जन्म महोत्सव को लगभग महीना दिन तक गोकुल वासियों ने अनेकों अनेक तारीके से मनाया गया। नंद बाबा ने संत महात्मा को खुशी से बहुत दान पुण्य किए।

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