कंस को चारों तरफ श्री कृष्ण हीं दिखाई पड़ रहे थे : श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए कहा कि कंस को इतना ज्यादा डर हो गया था कि उसे रात दिन चारों तरफ भगवान श्री कृष्ण हीं दिखाई पड़ रहे थे। गंगा के पावन तट पर शुकदेव जी राजा परीक्षित को भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला एवं कंस वध की कथा सुना रहे हैं। कंस इतना भयभीत हो गया था कि मानो उसके सपने में भी कृष्ण भगवान ही दिखाई पड़ रहे थे। कई राक्षसी, राक्षसों के द्वारा श्री कृष्ण को मारने का असफल प्रयास करने के बाद एक बार पुनः कृष्ण को खत्म करने के लिए नया षड्यंत्र शुरू कर रहा था।
भगवान श्री कृष्ण अत्याचारियों को दंड देते आ रहे हैं। जन्म के बाद से ही बचपन से ही कई अत्याचारियों को खत्म कर चुके थे। भगवान श्री कृष्ण का अवतार ही कृपा का अवतार है। जिसमें वह अपने ग्वाल बालों को स्नेह दे रहे थे। गोप और गोपियों को प्यार दे रहे थे। वहीं जितने भी अत्याचारी, दुराचारी, पापी थे, उसको मृत्यु दंड भी दे रहे थे।
कंस को चारों तरफ श्री कृष्ण हीं दिखाई पड़ रहे थे
कंस ने कई राक्षसों को भेजा कई उपाय किए, लेकिन फिर भी श्री कृष्ण भगवान को मार नहीं सका। जिससे वह बहुत ही परेशान और डरा हुआ था। उसे लगता था कि जैसे कृष्ण उसे मारने के लिए आ रहे हैं। तब कंस ने अक्रूर जी को बुलाया। उसने अक्रूर जी से कहा कि जाकर कृष्ण और बलराम को लेकर आओ। उन दोनों को मैं मारना चाहता हूं। कंस को भगवान शंकर जी ने एक धनुष दिया था। कंस एक यज्ञ कर रहा था। जिसमें उसने धोखे से कृष्ण को बुलाकर और एक हाथी से कुचल कर मारने की योजना बनाई। उस हाथी में 10000 हाथी का बल था।

अक्रूर जी ब्रज में गए और वहां से यशोदा मैया, नंद बाबा सबको कहा कि कंस एक यज्ञ कर रहा हैं। जिसमें कृष्ण को उसने आमंत्रण दिया है। अक्रूर जी कृष्ण जी को लेकर मथुरा चल दिए। यह खबर सुनकर पूरे ब्रज के ग्वाल बाल, गोपिया, नंद बाबा, यशोदा मैया सभी अक्रूर जी के रथ का चक्का जाम करके खड़े हो गए कि हम कृष्ण को यहां से नहीं जाने देंगे। तब कृष्ण जी सभी गोपियों, नंद बाबा, यशोदा मैया को समझा कर अक्रूर जी के साथ मथुरा के लिए चल दिए।
रास्ते में यमुना जी के किनारे रूक कर अक्रूर जी यमुना जी में नहाने लगे। तभी भगवान ने उन्हें भी अपनी लीला दिखाई। अक्रूर जी जब पानी में डुबकी लगाते थे, ताे उन्हें पूरा ब्रह्मांड प्रलय के समय का दिखाई दे रहा था। भगवान श्री कृष्ण का रूप दिखाई देता था। इस तरह अक्रूर जी को समझ में आ गया यह तो साक्षत परमब्रह्म है। इस तरह अक्रूर जी कृष्ण जी और बलराम जी को लेकर मथुरा पहुंचे।
मथुरा में भगवान कई लोगों का उद्धार किए
भगवान जब मथुरा पहुंचे तो वहां भी उन्होंने एक कुब्जा का उद्धार किया। श्री कृष्ण जी मथुरा पहुंचकर मथुरा में घूमने के लिए निकले तभी उन्हें एक कूबड़ स्त्री दिखाई दी। उन्होंने उससे चंदन का लेप लगाया और उसका भी उद्धार करके एक कुबड़ी से एक सुंदर स्त्री का स्वरूप दे दिए। मथुरा में भी भगवान श्री कृष्ण जहां जाते वहां लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते। लोगों को अपने वश में करते जा रहे थे। इसी तरह कृष्ण जा रहे थे तो कंस के दो आदमी थे, उन्होंने सोचा कि कृष्ण को मार दे। लेकिन श्री कृष्ण भगवान उन दोनों को मार दिए।
यह सुनकर कंस ने अपने हाथी से कुचलवाकर कृष्ण को मारने का आदेश दे दिया। लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने उस हाथी को भी मार दिया और उसके दोनों दांत उखाड़ कर एक बलराम जी और एक कृष्ण जी लेकर कंस के राजमहल में प्रवेश किए। यह देखकर और सुनकर कंस अब असंकित हो गया था। कंस के राजमहल जाकर कृष्ण जी ने कंस का वह धनुष तोड़ दिए जो कि भगवान शंकर जी ने उसे दिए थे। यह देखकर कंस बहुत क्रोधित हुआ और कृष्ण जी को मारने के लिए दौड़ गया। तब भगवान श्री कृष्ण ने कंस को भी मार दिया।
कंस वध
कृष्ण जी ने अपने नाना को वहां का राजा बनाया। अपने माता-पिता देवकी और वासुदेव जी को कारागार से छुड़ाया। भगवान श्री कृष्ण मथुरा में ही रहने लगे और वहां का राजकाज और प्रजा के हित के बारे में कार्य करने लगे। यह सभी लीला भगवान श्री कृष्ण लगभग 11 साल की उम्र में किए थे। कुछ दिनों बाद देवकी और वासुदेव जी ने भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी का यज्ञोपवित संस्कार करने के लिए और गुरुकुल में विद्या ग्रहण करने के लिए संदीपनी ऋषि के गुरुकुल में भेज दिए। जहां पर सांदीपनी ऋषि के आश्रम में सुदामा नाम के एक ब्राह्मण के लड़के पढ़ते थे। जिनका भगवान श्री कृष्ण जी से मित्रता हो गई।
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श्री कृष्ण का यज्ञोपवित संस्कार
जब भगवान श्री कृष्ण बलराम जी विद्या ग्रहण करके जाने लगे, तब उन्होंने अपने गुरु सांदीपनी ऋषि से गुरु दक्षिणा मांगने के लिए कहा। लेकिन उन्होंने कोई गुरु दक्षिणा नहीं लिया। फिर संदीपनी ऋषि की पत्नी से कृष्ण जी ने गुरु दक्षिणा मांगने के लिए कहा तो उन्होंने बताया कि मेरा एक पुत्र बचपन में ही पानी में डूब कर मर गया था। अगर तुम गुरु दक्षिणा देना ही चाहते हो तो मेरे पुत्र को वापस ला दो। फिर भगवान श्री कृष्ण यमराज के पास जाकर संदीपनी ऋषि के पुत्र को वापस लाएं और फिर वापस मथुरा लौट गए।
मथुरा में भगवान श्री कृष्ण उदास रहते थे। यह देखकर उनके माता-पिता भी उदास थे। उन्होंने पूछा तो कृष्ण जी ने बताया कि गोकुल में सभी लोग मुझे याद करते होंगे। इसलिए उन्हें किसी तरह सांत्वना देना होगा कि मैं उन्हें भूला नहीं हूं। जिसके लिए उधो जी को ब्रज में भेजा गया। तब उधो जी ब्रज में गए वहां भगवान श्री कृष्ण के प्रति गोपियाें, नंद बाबा, यशोदा मैया का निस्वार्थ और अचल प्रेम को देखकर अचंभित हो गए। उधो जी मथुरा आए। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनको भी अपना स्वरूप दिखाया। जिससे उधो जी का भी उद्धार किए।

रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।