परमानपुर चतुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि जीवन में रोग होने का कारण व्यक्ति का कर्म है। सामान्य जीवन में कभी न कभी हर प्राणी के जीवन में रोग, दुख, तकलीफ, धन की कमी एवं कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती है। जब रोग होता है, तब उसके समाधान के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं। उनके द्वारा कुछ रोग बता दिया जाता है।
वही किसी वैद्य के पास जाते हैं, तो उनके द्वारा कुछ शरीर में खान-पान, रहन-सहन की कमी बता दिया जाता है। तंत्र मंत्र जानने वाले लोगों के पास जाने के बाद भूत प्रेत को कारण बता दिया जाता है। वहीं किसी विद्वान पंडित के पास जाने के बाद कुंडली में कुछ ग्रहण का दोष बता दिया जाता है।
जितने भी लोग के पास आप जाते हैं, उनके द्वारा कुछ न कुछ अलग-अलग कारण बता दिया जाता है। लेकिन एक सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर आपके जीवन में रोग होने का सबसे मूल कारण क्या है। जो भी कष्ट, रोग या परेशानियां हैं, इसका सबसे बड़ा मूल कारण उस व्यक्ति का कर्म है। जिसके कारण उस रोग, परेशानी या जो पीड़ा हो रही है उसको झेलना पड़ रहा है।
कर्म ही व्यक्ति का सुख और दुख का कारण
जो भी हमारे जीवन में घटनाएं घटती है, उसका कारण भूत, वर्तमान में किए जा रहे कर्म के आधार पर हमें फल प्राप्त होता है। यह जरूरी नहीं है कि जो भी काम हम आज कर रहे हैं, उसका फल अच्छा या बुरा हमें आज ही प्राप्त होगा। बहुत दिन पहले भी यदि हमने कोई अच्छा काम किया है, तो उसका फल हो सकता है कि हमें आज मिल सकता है। इसी प्रकार से यदि हमने बहुत पहले कोई गलत काम किया है, तो उसका भी फल आज हमें दुख के रूप में भोगना पड़ सकता है।
इस पूरे ब्रह्मांड में हर पल कुछ न कुछ घटनाएं घटती है। कब किस व्यक्ति के साथ किस प्रकार की घटना घटेगी, उसकी पूरी डायरी चित्रगुप्त के पास लिखी हुई रहती है। उसी के अनुसार जीवन में सुख और दुख समय-समय से व्यक्ति को प्राप्त होता है।
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इस दुनिया का सबसे श्रेष्ठ ज्ञानी मनुष्य को बताया गया है। मनुष्य जो निरंतर कुछ न कुछ कर्म करते रहता है। उसके पूरे जीवन की हर एक पल की जो दिनचर्या होती है, उसका लेखा-जोखा भगवान श्रीमन नारायण के कर्मचारी चित्रगुप्त जी तैयार करते हैं।
जीवन में रोग, दुख, तकलीफ, गरीबी का कारण हमारा कर्म
भगवान श्रीमन नारायण से कोई भी स्थान खाली नहीं है। जहां पर भी जिस प्रकार का कर्म किया जाता है, उसका निगरानी, देखरेख, वीडियोग्राफी स्वयं रिकॉर्ड कर ली जाती है। आज कुछ जगहों पर सीसीटीवी कैमरा से निगरानी की जा रही है। लेकिन भगवान का सीसीटीवी कैमरा दिखाई नहीं पड़ता है, लेकिन उनका कैमरा हर एक कोने-कोने में मौजूद है। जिसके माध्यम से दुनिया के जितने भी जीव हैं, उन सभी जीव के कर्मों का निर्धारण तय किया जाता है।
स्वामी जी ने कहा कि कुछ लोगों के मन में यह सवाल रहता है कि बहुत सारे लोग गलत काम कर रहे हैं, फिर भी उनके पास धन संपत्ति या समृद्धि लगातार बढ़ रहा है तथा जो व्यक्ति अच्छे आचरण से जीवन जी रहे हैं, उनके जीवन में कष्ट ही कष्ट है। यदि ऐसा किसी के साथ हो रहा है, तो आपको एक उदाहरण से समझना चाहिए।
आज कोई भी व्यक्ति गलत काम कर रहा है, लेकिन उसने पहले कभी न कभी अच्छा कर्म किया होगा। चाहे पिछले जन्म में किया हो या उसके माता-पिता पूर्वजों के द्वारा अच्छा कर्म किया गया होगा। जिसका फल आज वह गलत कर रहा है, तब भी उसको आज अच्छा मिल रहा है। जैसे आपके माता माता-पिता या पूर्वज का जो संपत्ति होता है, उस पर अधिकार आपका हो जाता है। जिस प्रकार से जैसे आपके पूर्वज माता-पिता या कोई भी या आपने पहले स्वयं किसी भी जन्म में अच्छे पुण्य कर्म किए होंगे, उसका फल आपको अभी मिल रहा है।
सुख और दुख के आधार पर कर्मों का त्याग नहीं करें
जैसे कोई भी व्यक्ति बैंक में पैसा जमा कर देता है, तो उस पर ब्याज मिलता है। जब तक बैंक में जो पैसा होता है, ब्याज मिलते रहता है। जब तक उसके पास पैसा रहता है, उस पैसा का वह उपयोग करता है। लेकिन धीरे-धीरे उसका बैंक बैलेंस जब समाप्त हो जाता है, तब उसे गरीबी का सामना करना पड़ता है। ठीक उसी प्रकार से जो आज गलत कर रहा है, उसके पास पहले का कुछ न कुछ अच्छे कर्मों का बैलेंस है, जिसके कारण आज वह अभी भी गलत करने के बाद फल फूल रहा है। लेकिन जब उसका बैलेंस धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगा, तब वह अपने वर्तमान के गलत कर्मों का फल प्राप्त करेगा।
कर्मों का फल भविष्य में प्राप्त होगा
जो आज अच्छा काम कर रहे हैं, फिर भी उनको जीवन में रोग, दुख भोगना पड़ रहा है, कष्ट, गरीबी सहन करना पड़ रहा है, तो उनको कारण समझना चाहिए कि उनका बैलेंस पहले से जीरो है। उनका पहले का किया हुआ कर्म कर्ज में डूबा हुआ है, जो आज वह अच्छा कर्म भी कर रहे हैं, तब भी उसका फल पहले का जो कर्ज है, उसको अभी भरने में चला जा रहा है।
धीरे-धीरे जब पहले के कर्मों का कर्ज वे भर देंगे, तब उनको अच्छे कर्मों का फल भविष्य में प्राप्त होगा। इसीलिए व्यक्ति को सुख और दुख के आधार पर अपने कर्मों का त्याग नहीं करना चाहिए। चाहे आज आपको दुख भी भोगना पड़ रहा है, तब भी आपको अच्छे कर्म ही करना चाहिए। क्योंकि कहा गया है कि अच्छे कर्म करने का फल आज नहीं तो कल इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में जरूर मिलता है।
आज हो सकता है कि आपको अच्छे कर्म का फल नहीं मिल रहा है, लेकिन उस अच्छे कर्म का फल आपके आने वाली पीढ़ी को मिल सकता है। जिस प्रकार से आज आप धन इकट्ठा करते हैं, वह धन आपके बच्चों को मिलता है। उसी प्रकार से व्यक्ति का किया हुआ कर्म उसके आने वाली कई पीढियां को भी प्राप्त होता है।
कलयुग का पांच स्थान कौन कौन हैं
श्रीमद् भागवत कथा प्रसंग अंतर्गत राजा परीक्षित अपने राज्य कार्य का व्यवस्था देख रहे थे। एक दिन राजा परीक्षित अपने राज्य में प्रजा की सुख-दुख को जानने के लिए निकले थे। जहां उन्हें एक काले रंग का कपड़ा पहना हुआ व्यक्ति, एक गाय और बैल दिखे। बैल का तीन पैर टूटा हुआ था। एक पैर से चल रह था। उपर से उस काले व्यक्ति के द्वारा लगातार गााय और बैल को पिटा जा रहा था। इस घटना को देखकर के राजा परीक्षित क्रोधित हुए।
उस व्यक्ति से पूछे कि तुम कौन हो और इस प्रकार से क्यों इस गाय और बैल को मार रहे हो। तब उसे व्यक्ति ने कहा कि महाराज हम कलयुग हैं। हमारा आगमन हो चुका है। लेकिन मुझे रहने के लिए जगह नहीं है। कृपया आप मुझे रहने के लिए उचित स्थान दीजिए। वहीं राजा परीक्षित के द्वारा मदिराल, वेश्यालय, जूआलय, हिंसालय और सोना स्थान दिया गया। सोना में भगवान श्रीमन नारायण भी वास करते हैं, तो एक जगह कलयुग और भगवान का वास नहीं हो सकता है। सोना का मतलब वैसा धन संपत्ति जिसको गलत तरीके से कमाया जाता है। उस धन संपत्ति के माध्यम से जो गहना सोना इत्यादि खरीदा जाता है, उसमें कलयुग का वास होता है।
धर्म के चार कौन कौन हैं
गलत तरीका से कमाया हुआ धन ज्यादा समय तक नहीं रहता है। जैसे बाढ़ का पानी आता है तो केवल बर्बादी ही करता है और अचानक खत्म हो जाता है। उसी प्रकार से अचानक गलत तरीके से कमाया हुआ अधिक धन ज्यादा दिन तक नहीं रहता है। जितना जल्दी वह आता है, उतना ही जल्दी समाप्त हो जाता है। वही मेहनत, ईमानदारी से कमाया हुआ धन कम भी कमाया जाता है, तब भी जिस प्रकार से वह धीरे-धीरे प्राप्त होता है, उसी प्रकार से वह ज्यादा भी है तब भी धीरे-धीरे समाप्त होता है। जिसका सुख कई पीढियों तक लोग प्राप्त करते हैं।
वही उस काला व्यक्ति के साथ जो गाय थी, उससे राजा परीक्षित ने पूछा आप कौन हैं। गाय ने कहा हम पृथ्वी माता है। अब कलयुग में इस पृथ्वी पर लोग अत्याचार करेंगे। लोग इस पृथ्वी पर इसी तरीके से अत्याचार करेंगे। जिस प्रकार से कलयुग मेरे ऊपर प्रहार कर रहा था। वहीं उस बैल से राजा परीक्षित ने पूछा कि आप कौन हैं। बैल ने कहा कि मैं धर्म हूं।
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कलयुग में धर्म कितने पैर सुरक्षित हैं
स्वामी जी ने कहा उस बैल ने कहा कि सतयुग में मेरे चार पैर सुरक्षित थे। उस चार पैर का नाम सत्य, तप, दया और दान है। त्रेता युग में मेरा एक पैर टूट गया, द्वापर युग में मेरे दो पैर टूट गए, वहीं कलयुग में मेरे तीन पैर टूट गए हैं। त्रेता युग में सत्य समाप्त हो गया था। द्वापर युग में तप रूपी पैर टूट गया था। वही कलयुग में तीसरा पैर दया भी टूट गया है। क्योंकि आज कलयुग में लोगों के पास दया नहीं है।
हर चौक चौराहे पर जिस प्रकार से अनंत जीव की हत्या की जा रही है। आज मानव में दया नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। इसीलिए कलयुग में धर्म का केवल एक मात्र पैर दान के रूप में मौजूद है। बताया गया है कि “दानम दुर्गति नासनम”। आज कलयुग में किसी व्यक्ति का दुर्गति, नाश संभव है तो उसके लिए एकमात्र साधन दान को बताया गया हैं। इस प्रकार से कलयुग का आगमन हुआ था। आगे कलयुग अपना प्रभाव किस प्रकार से राजा परीक्षित के राज्य पर डाला था, उसकी चर्चा अगले दिन होगी जय श्रीमननारायण।

रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।