श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ जल यात्रा एवं अरणी मंथन के साथ हुआ प्रारंभ

श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ जल यात्रा एवं अरणी मंथन के साथ हुआ प्रारंभ – भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज के मंगलानुशासन में श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ की जल यात्रा परमानपुर से बहरी महादेव के लिए निकाली गई। परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल प्रवचन पंडाल में सभी महिलाएं, पुरुष एवं छोटे छोटे बच्‍चे बच्चियां पीले वस्त्र पहनकर के कलश हाथ में लेकर के प्रवचन पंडाल में सुबह लगभग 10:00 बजे पहुंचे थे। श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ की जल यात्रा की शुरुआत भगवान श्री लक्ष्मी नारायण के पूजन के साथ प्रारंभ हुआ। भगवान श्री लक्ष्मी नारायण के पूजन के उपरांत सभी देवी देवताओं का भी पूजन हुआ। जिसमें कलश पूजन, गौ पूजन भी किया गया।

प्रवचन पंडाल में मौजूद सभी भक्त श्रद्धालु कलश यात्रा की पूजा में शामिल हुए। जिसके बाद यजमान सहित कलश यात्रा में भाग लेने वाले सभी स्त्री, पुरुष, बालक, बालिकाएं यज्ञशाला की एक बार परिक्रमा किए।  जल यात्रा में सैकड़ो की संख्या में ऊंट, हाथी, घोड़ा, रथ आगे आगे कतार में होकर के चल रहे थे। सभी जल यात्री भी लाइन बना करके परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल से कतार में होकर के महिलाएं, पुरुष वर्ग धीरे-धीरे आगे की तरफ बढ़ रहे थे।

श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ जल यात्रा एवं अरणी मंथन के साथ हुआ प्रारंभ

परमानपुर से जल यात्रा निकलने के बाद ऐसा लग रहा था, मानो पूरा परमानपुर यज्ञ क्षेत्र सहित आसपास के सभी रोड मानो भक्त श्रद्धालुओं से भर गया था। अगिआंव बाजार से लेकर के तिवारी डीह गांव तक पूरा रोड भक्‍त श्रद्धालुओं से खचाखच भरा हुआ था। जल यात्रा में ऊंट, हाथी, घोड़े, रथ सहित हजारों की संख्या में वहां भी शामिल थे।  

बहरी महादेव पोखरा पर पूरे विधि विधान से जलभरी का कार्यक्रम हुआ। परमानपुर चातुर्मास्य व्रत से लेकर के बहरी महादेव के बीच में कई जगहों पर आसपास के सभी गांव के जल यात्रा में शामिल सभी श्रद्धालु भक्तों के लिए जल पानी की भी व्यवस्था की गई थी। 

lakshami narayan mahayagya jal yatra aur ajani manthan ke sath prarambh

श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के दूसरे दिन यज्ञशाला में मुख्य आचार्यों के द्वारा मंत्रोचार के साथ पूजा की शुरुआत की गई। गुरुवार को यज्ञशाला में प्रवेश से पहले सभी यजमान के द्वारा पूजा किया गया। जिसके बाद सभी यजमान यज्ञशाला में प्रवेश किए।

श्री लक्ष्मी नारायण महायज्ञ के तीसरे दिन यज्ञशाला में अरणी मंथन किया गया। जिसके बाद सभी यजमानों के द्वारा अपने-अपने कुंड में हवन की आहुति देना शुरू हुआ। शुक्रवार से ही यज्ञशाला की परिक्रमा भी शुरू हो गया है। प्रवचन पंडाल में सुबह 8:00 बजे से योग गुरू के द्वारा योग भी कराया जा रहा है। जिसके बाद हरिद्वार, प्रयागराज, वाराणसी, वृंदावन एवं अलग-अलग जगह से पधारे जगतगुरु के द्वारा श्रीमद् भागवत, श्री रामचरितमानस, वाल्मीकि रामायण, श्रीमद् भागवत गीता कथा श्रवण कराया जा रहा हैं। जो 7 अक्टूबर तक चलेगा। 

अन्य प्रदेशों से आए श्रद्धालु भक्त

बिहार झारखंड उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश एवं अन्य प्रदेशों से आए हुए सभी श्रद्धालु भक्त यज्ञ भगवान की परिक्रमा करके प्रवचन पंडाल में नियमित रूप से कथा श्रवण कर रहे हैं। यज्ञ समिति के द्वारा भोजन, प्रसाद, भंडारा की भी व्यवस्था की गई है। जो कि 1 अक्टूबर से सुबह 10:00 बजे से निरंतर भोजनालय चल रहा है। जिसमें हजारों हजार की संख्या में भक्त श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। इस अवसर पर बिहार सहित अन्य प्रदेशों से संत महात्मा, अधिकारी सहित माननीय भी यज्ञ भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए स्वामी जी का भी दर्शन लाभ प्राप्त कर रहे हैं।

स्वामी जी ने प्रवचन करते हुए कहा कि मानव जीवन में कल्याण प्राप्त करने का सबसे बड़ा माध्यम निरंतर भगवान श्री लक्ष्मी नारायण का मनन चिंतन करना है। उन्होंने श्री कृष्ण उद्धव संवाद को समझाते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण उद्धव जी से कहते हैं। उद्धव जी भगवान का वास सभी जगह है। उनमें भी जो सबसे अच्छे गुण वाले लोग हैं, उनमें भगवान का विशेष रूप से वास होता है। चाहे कोई भी व्यक्ति किसी भी कला में बेहतर हो उनमें भगवान का कृपा और वास होता है।

श्री कृष्ण जी 125 वर्षों का समय पूरा करके गोलोक जाने की तैयारी

श्री जीयर स्‍वामी जी ने प्रवचन करते हुए कहा कि पृथ्वी पर जब भगवान श्री कृष्ण जी का 125 वर्षों का समय पूरा हो गया, तब उन्होंने गोलोक जाने की तैयारी करने लगे। द्वारिका में भगवान श्री कृष्णा 100 वर्षों तक रहे और 25 वर्षों तक गोकुल, ब्रज वृंदावन और मथुरा में रहे। पृथ्वी पर धर्म की स्थापना करके भगवान श्री कृष्ण का अपने धाम बैकुंठ धाम जाने का समय आ गया था, तभी उद्धव जी भगवान श्री कृष्ण के पास द्वारिका पहुंचे। 

उन्होंने कहा कि हे भगवन मैं भी आपके साथ चलूंगा। तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि मैं अकेला आया था और मैं अकेला ही जाऊंगा। तुम मेरे साथ नहीं जा सकते हो। तब उद्धव जी ने कहा कि अगर आप मुझे अपने साथ नहीं ले जाएंगे तो मैं अपनी जान दे दूंगा और आपसे पहले ही यहां से चला जाऊंगा।

तब उद्धव जी को भगवान श्री कृष्ण ने कई उपदेश देकर समझाया। उन्होंने कहा कि दुनिया में हम जो जप, तप, पूजा, साधना, उपासना, हवन, यज्ञ, तपस्या, दान, आराधना आदि करते हैं, से अधिक अगर कोई हमारे जीवन का उद्धार कर सकता है, मोक्ष दिला सकता है, तो वह सत्संग हैं। सत्संग से भगवान श्रीमन नारायण को खुश किया जा सकता है। क्योंकि सत्संग भगवान का हृदय, प्राण, श्वांस के समान है।

उद्धव जी को भगवान श्री कृष्ण ने उपदेश दिए

भगवान के कई भक्त हुए, जिन्होंने सत्संग के द्वारा श्रीमन नारायण को प्रसन्न किए। जिनमें सबसे बड़े भक्त प्रहलाद जी थे। भगवान उद्धव जी से कहते हैं कि संसार के प्राणी एक बंधन में बंधे रहते हैं। वह बंधन है कि संसार की वस्तु, जीव, सामान को अपना समझना, यही बड़ा बंधन है। जो कि हर मनुष्य के लिए परेशानी का कारण है। उद्धव जी ने कहा कि हे भगवन मैं यहां पृथ्वी पर अकेले कैसे रहूंगा। तब भगवान ने कहा कि पृथ्वी पर जितने भी व्यक्ति हैं, उनमें अच्छाई है, मंत्रों में जो ओंकार हैं, उसमें मैं ही हूं। अक्षरों में अ मैं ही हूं। देवताओं में इंद्र, ऋर्षियों में भृगु, गायों में कामधेनु, पक्षियों में गरुड़ मैं ही हूं। जंगल का प्रधान प्राणी शेर मैं ही हूं। दुनिया के जितने भी प्रधान वस्‍तु है उसमें मैं ही हूं।

युगों में सतयुग, वेदों में शाम वेद, अगर किसी का पराक्रम, स्वभाव जो भी देख रहे हैं, उन सबमें मैं ही हूं। आगे भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि प्रणाम करने का बहुत बड़ा महत्व है। अगर भगवान श्रीमन नारायण का कोई भी एक नाम कृष्ण, विष्णु, वामन, वराह, नरसिंह कोई भी एक नाम लेकर प्रणाम किया जाए तो वह 10 अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

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