महिलाएं हमारे देश की पहचान है : श्री जीयर स्वामी जी महाराज। परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए महिलाओं के योगदान पर प्रकाश डाला। स्वामी जी ने कहा कि महिलाएं देश की पहचान है। राष्ट्र की उन्नति, विकास, प्रगति में महिलाओं का बहुत बड़ा योगदान है। महिलाएं केवल आज ही पढ़ी-लिखी नहीं होती है, बल्कि महिलाएं पहले भी ज्ञानी, शिक्षित, प्रभावी, गुणवान एवं तपस्वी भी होती थी।
उन्होंने कहा कि सती अनसूईया, सबरी, कुंती इत्यादि नारियों के तपस्या, साधना, ज्ञान को आज भी याद किया जाता है। भारत के आजादी के लिए लड़ने वाली हमारे देश की नारियां केवल शिक्षित ही नहीं, बल्कि शक्तिशाली भी थी। 15 अगस्त आने वाला है। उस दिन हम लोग अपने देश के उन वीर नारियों को भी याद करते हैं।
महिलाएं हमारे देश की पहचान है
स्वामी जी ने कहा कि हमेशा हम माता की प्रशंसा करते हैं। क्योंकि माताएं प्रशंसनीय हैं। हम जैसे लोगों को जन्म देने वाली है। इसीलिए उस जगत जननी की प्रशंसा केवल हम ही नहीं करते हैं, बल्कि सभी लोग करते हैं। जो जगत संसार को आगे बढ़ाने वाली माताएं है, उन माताओं के ज्ञान, परिश्रम, शक्ति, साहस, प्यार, तपस्या प्रशंसनीय है। आज हर दिन शिवजी के मंदिर में काली जी के मंदिर में या अन्य सभी देवी देवताओं के मंदिर में नित्य पूजा करने वाली हमारी माताएं हैं। जिनके कारण सभी देवी देवता भी प्रसन्न होते हैं। वैसी हमारी माताएं संस्कृति, समाज को नई दिशा देने का भी काम करती है। इसीलिए माताएं वंदनीय भी हैं।

केवल शरीर की शोभा सुंदर जमड़ी से है
श्रीमद् भागवत प्रसंग अंतर्गत स्वामी जी ने कहा कि यह जो हम लोगों का शरीर है, इस शरीर में चमड़ी है, जिसके कारण शरीर सुंदर दिखाई पड़ता है। लेकिन इस शरीर के ऊपर से चमड़ी को हटा दिया जाए, तब शरीर के अंदर जो भी चीज हैं, वह बहुत ही भयानक दिखाई पड़ेगा। ऐसे शरीर पर लोगों को बहुत ज्यादा घमंड होता है। हम बहुत ज्यादा सुंदर हैं। लोग अपने स्वरूप को निहारते हैं।
लेकिन कभी आप लोग देखिएगा कि जब इस शरीर से चमड़ी हट जाता है, तब इस शरीर के अंदर हड्डी, मांस, खून, पीब इत्यादि भरे हुए दिखाई देते हैं। चमड़ी के अलावा इस पूरे शरीर में केवल वैसा ही चीज भरा हुआ है, जिसको देखकर के आपका मन विचलित हो जाएगा। वैसे शरीर पर अभिमान नहीं करना चाहिए। इस शरीर में जब किसी भी प्रकार की बीमारी होती है, तब उसको दिखाने के लिए आप किसी डॉक्टर के पास जाते होंगे।
डॉक्टर कैसा होना चाहिए
छोटे डॉक्टर और बड़े डॉक्टर में एक बहुत बड़ा अंतर होता है। देखिए डॉक्टर वही सबसे अच्छे माने जाते हैं, जिनके पास जाने के बाद शरीर के आधे रोग समाप्त हो जाते हैं। डॉक्टर का काम हैं कि रोगी का रोग बड़ा हो, तब भी रोगी को सकारात्मक ऊर्जा से अपने शब्दों के द्वारा उसकी पीड़ा को कम करता हो, वही सिद्ध डॉक्टर है। कभी-कभी छोटे डॉक्टर रोगी को डरा देते हैं। जिसके कारण उनके शरीर में शुगर, बीपी इत्यादि बढ़ जाते हैं।
शरीर में जितने भी प्रकार के रोग होते हैं, सामान्य तौर पर उसका उपचार डॉक्टर के द्वारा किया जाता है। लेकिन वह रोग ठीक होगा नहीं होगा वह तो बाद की बात है। क्योंकि परमात्मा रूपी डॉक्टर जब कृपा करते हैं, तब बड़ी-बड़ी बीमारियां ठीक हो जाती हैं। इसीलिए जो बड़े डॉक्टर होते हैं, वह रोगी का उपचार सबसे पहले अपने शब्दों के द्वारा करते हैं। जिससे उनकी कुछ पीड़ा शब्दों से ही कम हो जाती हैं।
किसी रोगी व्यक्ति को यह कह दिया जाए कि आपका बीमारी बहुत बड़ा है। सोचिए उस समय उसके दिमाग में किस प्रकार की हलचल उत्पन्न होगी। इसीलिए डॉक्टर को कभी भी अपने रोगी के साथ साकारात्मक शब्दों के साथ अपने बातों को रखना चाहिए।
राजा परीक्षित को श्राप के कारण मृत्यु
वहीं आगे स्वामी जी ने श्रीमद् भागवत कथा के माध्यम से बताया कि राजा परीक्षित को श्राप के कारण 7 दिनों में मृत्यु होने वाली थी। उसको लेकर के राजा परीक्षित गंगा जी के तट के किनारे बैठे हुए थे। वहां पर बड़े-बड़े संत महात्मा राजा परीक्षित के पापों के उद्धार के लिए पहुंचे हुए थे। जिसमें नारद जी, विश्वामित्र ऋषि, दुर्वासा इत्यादि बड़े-बड़े संत हजारों हजार की संख्या में पहुंचे हुए थे। राजा परीक्षित कहते हैं कि मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मुझ पर पाप लगा है या मेरे ऊपर भगवान ने कृपा कर दिया है।
क्योंकि एक साथ हजारों हजार की संख्या में इन बड़े-बड़े संत महात्माओं का दर्शन मुझे प्राप्त हो रहा है। यह मेरे लिए बहुत बड़ी सौभाग्य की बात है। यदि मुझे ऋषि पुत्र के द्वारा श्राप नहीं दिया गया होता तो आज मुझे इन संतों का दर्शन नहीं हो पाता। वही उधर व्यास जी के पुत्र शुकदेव जी अपने पिताजी से श्रीमद् भागवत की पूरी कथा श्रवण करने के बाद वन की ओर आगे बढ़ रहे थे। वही उनके कानों में राजा परीक्षित के श्राप की ध्वनि सुनाई पड़ी।
शुकदेव जी पहुंचे गंगा तट पर
जिसके बाद शुकदेव जी गंगा तट पर पहुंचे। जहां हजारों हजार की संख्या में ऋषि महर्षि उपस्थित थे। वहीं पर राजा परीक्षित उन ऋषियों से पूछते हैं कि महाराज आप लोग बताइए कि जिनको मरना निश्चित हो गया है तथा उन्होंने मरने की तैयारी नहीं किया हो उन्हें क्या करना चाहिए। वहीं पर अलग-अलग ऋषि महर्षि अपनी अपनी बातों को रख रहे थे। कोई कह रहा था कि यज्ञ करना चाहिए। कोई कह रहा था कि अनुष्ठान करना चाहिए। सब लोग अपने-अपने तरीके से उपाय बता रहे थे।
तब तक अचानक वहां पर व्यास जी के पुत्र शुकदेव जी पहुंचते हैं। शुकदेव जी साक्षात भगवान श्रीमन नारायण के स्वरूप में प्रकट हुए थे। क्योंकि जन्म के बाद ही शुकदेव जी 6 दिन के बाद ही घर से निकल गए थे। वैसे शुकदेव जी के आगमन के बाद सभी ऋषि महर्षि चुप हो गए। वहां पर मौजूद ऋषियों ने कहा राजा परीक्षित आप भगवान के स्वरूप में उपस्थित शुकदेव जी से अपने प्रश्नों का उत्तर जानने का प्रयास कीजिए। वहीं राजा परीक्षित शुकदेव जी को उचित व्यवहार के साथ बैठने के लिए प्रार्थना करते हैं।
राजा परीक्षित का शुकदेव जी प्रश्न
जिसके बाद राजा परीक्षित शुकदेव जी से आज्ञा लेकर अपने प्रश्नों को सुनाते हैं। राजा परीक्षित कहते हैं कि भगवन जो व्यक्ति मरने की तैयारी नहीं किया हो तथा अचानक उसे मृत्यु का सामना करना पड़े, वैसे व्यक्ति को क्या करना चाहिए। शुकदेव जी कहते हैं, राजन आपका प्रश्न श्रेष्ठ है, उत्तम है, बलवान है। आगे शुकदेव जी कहते हैं कि संसार में सबको एक न एक दिन मरना है। राजा परीक्षित ने अपने सवालों में एक और शब्द को जोड़ा था। उन्होंने पूछा कि जिनका 7 दिन में मरना निश्चित है। उन्हें क्या करना चाहिए।
- 50 से 60 वर्षों के बाद अपनी जिम्मेदारियां नई पीढ़ी को सौंपना चाहिए
- घर में शांति के लिए हवन करना चाहिए
संसार में 7 दिन से अधिक कोई नहीं जीता
शुकदेव जी ने कहा संसार में 7 दिन से अधिक कोई नहीं जीता है। सबको 7 दिन के ही अंदर मरना पड़ता है। सतयुग में लोगों की आयु 100000 वर्ष होती थी। त्रेता युग में लोगों की आयु 10000 वर्ष होती थी। द्वापर युग में लोगों की आयु 1000 वर्ष होती थी। वही कलयुग में लोगों की आयु 100 वर्ष बताई गई है। शुकदेव जी ने कहा कोई भी व्यक्ति अपने पूरे जीवन काल में 50 वर्ष सोते हुए व्यतीत करता है। 25 वर्ष पढ़ाई, लिखाई, खेलकूद इत्यादि में व्यतीत करता है।
शेष 25 वर्ष शादी विवाह के बाद पत्नी की मर्यादा, गृहस्ती का पालन, बच्चों को पढ़ाना, लिखाना आदि कार्यों में व्यतीत करते हैं। वहीं कुछ लोग 25 वर्षों में अपनी पत्नी के साथ लड़ाई झगड़ों में भी समय व्यतीत कर देते हैं। किसी भी व्यक्ति के पास बाकी समय कहां बचता है। इस प्रकार से गंगा के तट पर राजा परीक्षित के द्वारा कई सवाल पूछे जा रहे थे। उसका जवाब शुकदेव जी दे रहे थे।
स्वामी जी ने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा का शुरुआत सही रूप में राजा परीक्षित और शुकदेव जी के संवाद के साथ ही शुरू होती है। आगे किस प्रकार से शुकदेव जी राजा परीक्षित के सभी सवालों का उत्तर देते हैं। राजा परीक्षित कौन-कौन से सवाल पूछते हैं। उन सभी कथाओं का श्रवण हम लोग आगे नित्य प्रतिदिन करते रहेंगे। जय श्रीमन नारायण
सेवक
रविशंकर तिवारी
परमानपुर

रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।