मरने वाले व्यक्ति को गजेंद्र मोक्ष की स्तुति सुनाना चाहिए : श्री जीयर स्‍वामी जी महाराज

मरने वाले व्यक्ति को गजेंद्र मोक्ष की स्तुति सुनाना चाहिए : श्री जीयर स्‍वामी जी महाराज। परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर संत श्री लक्ष्‍मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी ने कहा कि जिनको मरना निश्चित हो गया हो। उनको गजेंद्र मोक्ष का पाठ सुनाना चाहिए। राजा परीक्षित को 7 दिन के अंदर मरना निश्चित हो गया था। राजा परीक्षित शुकदेव जी से पूछते हैं कि महर्षि जिनको मरना निश्चित हो गया है तथा उसने तैयारी नहीं किया है। उसे क्या करना चाहिए।

शुकदेव जी कहते हैं कि मरते समय व्यक्ति को भगवान के नाम का स्मरण करना चाहिए। कुछ व्यक्ति को जब मरना निश्चित हो जाता है तब वह व्यक्ति लोगों को पहचानना कम कर देते है। उस समय घर के लोग जाकर के अपने-अपने लोगों को पहचान कराने लगते हैं। देखिए तो कौन आया है, पहचानिए आपके यह फलाने रिश्तेदार हैं। इससे उस व्यक्ति का मृत्यु खराब होता है। क्योंकि मरते समय भी उसको आप दुनियादारी की पहचान करा रहे हैं। जबकि उस व्यक्ति को भगवान के नाम का स्मरण अंत समय भी करा दिया जाता है तो मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

मरने वाले व्यक्ति को गजेंद्र मोक्ष की स्तुति सुनाना चाहिए

शुकदेव जी कहते हैं कि जिस व्यक्ति को मरना तय हो गया है। तब उसके आसपास चारों तरफ भगवान के रूपों के अलग-अलग तस्वीर लगा देना चाहिए। जैसे नरसिंह भगवान, श्री राम, श्री कृष्ण, वामन भगवान, श्रीमन नारायण, बैकुंठ नाथ भगवान आदि। जितने भी भगवान विष्णु के अलग-अलग स्वरूप हैं। उन स्वरूपों में उस व्यक्ति की सबसे ज्यादा आस्‍था जिस भगवान में है। उनके तस्वीरों को चारों तरफ लगा देना चाहिए। क्योंकि मरते समय भी यदि उस व्यक्ति का नेत्र उन भगवान की तस्वीरों के तरफ जाता है। वह व्यक्ति देखते हुए अपने प्राणों का त्याग करता है। तब भी उसका कल्याण संभव है।

marne wale ko gajendra moksh ki stuti sunana chahiye

अगर कोई व्यक्ति बहुत दिनों से बेड पर पड़ा हुआ है। बहुत दुख, तकलीफ, कष्‍ट सहन कर रहा है। कुछ लोगों को अलग-अलग प्रकार की बीमारियों के कारण उनकी दिनचर्या स्थिति हो गई है। बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती हैं। चाहे वह किसी भी उम्र का व्यक्ति हो। यदि उनका मरना निश्चित हो गया है, तो उनके मृत्यु के मंगल के लिए गजेंद्र मोक्ष की स्तुति सुनाना चाहिए। शास्त्रों में बताया गया है कि जब भीष्माचार्य बाणों की सैया पर पड़े हुए थे। उनका अंत समय आ गया था। उस समय भगवान श्री कृष्ण के द्वारा भीष्माचार्य को स्तुति सुनाया गया था। उस स्तुति को भी सुना करके उस प्राणी का मृत्यु के समय मंगल किया जा सकता है।

मरते समय जिसका स्‍मरण करेंगे वहीं अगले जन्‍म में होंगे

मरते समय व्यक्ति जिस चीज का ध्यान स्‍मरण करके मरता है उसी प्रकार से अगले जन्म में उसको जन्म लेना पड़ता है। अलग-अलग कर्मों को भोगना पड़ता है। इसीलिए जब भी कोई व्यक्ति इस दुनिया से जाने की तैयारी कर लिया हो, उसके साथ दुनियादारी की बात नहीं करना चाहिए। 

एक बार एक सोने के व्यवसायी थे। अचानक सोने का भाव कम हो गया था। वह अधिक संख्या में सोना खरीद लिए, सोना खरीदने के बाद भाव अचानक और कम हो गया। अब जितने भाव पर भी सोना खरीदे थे। उससे भी कम जब उसका रेट हो गया तब वह काफी चिंतित हुए। इसी चिंता में उनका शरीर कमजोर हो गया और वह मरने की स्थिति में आ गए। उस समय उनके पुत्रों के द्वारा उनसे पूछा जा रहा था कि पिताजी आप बिना बताए जाने की तैयारी कर लिए। आप कहां-कहां क्या रखे हुए हैं, इतना तो बता देते। 

वहीं पुत्रों के द्वारा डॉक्टर को बुलाकर के उपचार कराया जा रहा था। पिताजी कहां-कहां खजाना सोना इत्यादि रखे हैं उसको बता देते तो बहुत अच्छा होता। इलाज के बाद थोड़ा सा बोलने की स्थिति में हुए। तब उसी समय उनके पुत्र पूछने लगे कि पिताजी आप 105 वर्ष के हो गए हैं। सोना संपत्ति कहां रखे हैं, बता देते तो अच्छा होता। वही जो व्यापारी थे सोना का रेट ₹100 था। उसमें से ₹20 रेट कम हो गया था, तब वह सोना खरीदे थे।

उनको सुनाई दिया कि सोने का रेट 105 रुपए हो गया है। अब मरते समय सोने के रेट 105 को स्मरण करते हुए मर गए। जिसके कारण उनको अगले जन्म में भी इसका भोग भोगन पड़ा। इसीलिए जो भी लोग मरने की स्थिति में है, उन्हें एकमात्र भगवान के नाम, गुण, लीला, स्वरूप को ही दिखाने और बताने का प्रयास करें।

जन्म लेने वाला हर एक जीव की मृत्यु निश्चित हैं

शुकदेव जी राजा परीक्षित से कहते हैं कि इस संसार में जन्म लेने वाला हर एक जीव की मृत्यु निश्चित हैं। इसीलिए संसार की माया को त्याग करके एकमात्र उन परम ब्रह्म परमात्मा का ध्यान करते हुए, अपने प्राणों का त्याग करना चाहिए।

जिनका मरना निश्चित हो गया है या जो भी लोग आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों, कभी न कभी मरेंगे। उनको बताया गया है कि पांच कर्म इंद्रियों, पांच ज्ञानेंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए। पांच कर्म इंद्रियां जैसे हाथ, पैर, मुंह, पैखाना मार्ग, लघुशंका मार्ग पर नियंत्रण रखना चाहिए। वहीं पांच ज्ञानेंद्रियां जैसे आंख, कान, नाक, जीभ और चंमडी पर भी नियंत्रण रखने को बताया गया है। इन 10 इंद्रियों का मालिक मन है। इसलिए मन को इंद्रियों का राजा कहा गया है। 

मन हमारा मृत्यु और मोक्ष का कारण है। मन हमारा सम्मान और अपमान का कारण है। मन हमारा त्याग और समर्पण का कारक है। मन ही आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का सबसे बड़ा माध्यम है। व्यक्ति के द्वारा इस संसार में जो भी कुछ किया जाता है, उसमें सबसे बड़ा भूमिका मन का होता है। क्योंकि मन हमारे वश में नहीं होता है। जिसके कारण व्यक्ति या तो संसार में रहते हुए अपने नाम को अमर कर लेता है। इस संसार में रहते हुए अपने व्यक्तित्व को व्यवस्थित नहीं कर पता है। मरने वाले व्यक्ति को इंद्रियों को निग्रह करने को बताया गया है। आहार, व्यवहार, संगत, उठन, बैठन इत्यादि को मुख्य रूप से पालन करना चाहिए।

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