पहले सभी ब्राह्मण कान्यकुब्‍ज ही थे : श्री जीयर स्वामी जी महाराज

पहले सभी ब्राह्मण कान्यकुब्‍ज ही थे : श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्‍न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि जब भगवान श्री राम के द्वारा लंका में कई राक्षसों का वध किया गया, उसमें राक्षस ब्राह्मण कुल में भी जन्म लेने वाले थे। कुछ राक्षस कुल में भी जन्म लिए थे। वहीं अलग-अलग योनियों में जन्म लेने वाले राक्षसी प्रवृत्ति के जितने भी राक्षस थे, उनको भगवान श्री राम ने समाप्त किया। रावण जो ब्राह्मण कुल में जन्म लिया था, उसको भी भगवान श्री राम ने खत्म किया। 

वही जब भगवान श्री राम लंका से अयोध्या वापस आए, तब उनके गुरु वशिष्ट जी के द्वारा राम जी को कुछ उपदेश दिया गया। गुरु जी ने कहा राम आपको ब्राह्मण इत्यादि को मारने का दोष लग सकता है। वैसे तो आप स्वयं परम ब्रह्म परमेश्वर हैं। इसीलिए आप पर किसी भी प्रकार का दोष लागू नहीं होता है। फिर भी ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाले जो राक्षसी प्रवृत्ति के लोग थे, उनमें ब्राह्मण कुल के भी थे। इसीलिए ब्रह्म हत्या के दोष से बचने के लिए आपको एक यज्ञ करना चाहिए। 

पहले सभी ब्राह्मण कान्यकुब्‍ज ही थे

शास्त्रों में बताया गया है कि यज्ञ एक ऐसा माध्यम है, जिससे सभी प्रकार की कामनाओं को पूरा किया जा सकता है। यज्ञ में 33 करोड़ देवी देवताओं की आराधना की जाती है। जिससे सभी देवी देवता प्रसन्न होते हैं। इसीलिए पूजा पाठ में सबसे उत्तम यज्ञ को बताया गया है। वही भगवान श्री राम के द्वारा यज्ञ का आयोजन किया गया। जिसमें पूर्णाहुति के दिन ब्राह्मणों को भोज के लिए आमंत्रित किया गया। वहीं उस समय जितने भी ब्राह्मण थे, वह सभी कान्यकुब्‍ज ब्राह्मण थे। 

उनमें से कुछ ब्राह्मणों ने भगवान श्री राम के यज्ञ के पूर्णाहुति में खाने से मना कर दिया। कुछ ब्राह्मणों का कहना था कि श्री राम ब्राह्मणों के विरोधी हैं। हत्या किए हैं, मार दिए हैं, इसीलिए हम लोग उनके यहां भंडारा में नहीं जाएंगे। वहीं कुछ ब्राह्मण भगवान श्री राम के भंडारा में शामिल हुए। आज भी ब्राह्मण में एकता नहीं है और पहले भी नहीं था।

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ब्राह्मणों में तीन सबसे श्रेष्ठ ब्राह्मण बताए गए हैं

वही उस भोज भंडारा में तेरह ब्राह्मण शामिल हुए। उनमें से कुछ ब्राह्मणों ने भोजन करने के बाद भोजन दक्षिणा लेने से मना कर दिया। इसीलिए आज कहा जाता है कि ब्राह्मण समाज में आप ब्राह्मण गोत्र के तीन में है या 13 में है। ब्राह्मणों में तीन सबसे श्रेष्ठ ब्राह्मण बताए गए हैं। जिनमें गर्ग, गौतम, सैंडिल्‍य आते हैं। वहीं 13 और भी ब्राह्मण को बताया गया है। वहीं 13 ब्राह्मण जो दक्षिणा लेने से मना कर दिए थे, वही ब्राह्मण 13 में शामिल हो गए

जो तीन ब्राह्मण भगवान श्री राम के भोज भंडारा में प्रसाद ग्रहण किए दक्षिण भी प्राप्त किए। जिन्‍हें भगवान श्री राम के द्वारा सोना के चार गाय दान किया गया। अब तीन ब्राह्मणों में भी आपस में बड़ी समस्या बन गई। तीन ब्राह्मण है और चार गाय हैं। इसको आपस में कैसे बांटा जाए। उनमें से एक ब्राह्मण ने कहा कि एक-एक गाय तीनों आदमी ले लेते हैं और एक गाय को तीन भाग में करके बांट लिया जाएगा। लेकिन इस पर भी तीनों लोगों की सहमति नहीं बनी। 

तीन ब्राह्मणों में एक ब्राह्मण श्रेष्‍ठ

जिसके बाद गौतम ऋषि ने कहा कि आप दो ब्राह्मण आपस में दो-दो गाय लेकर चले जाइए। इनमें भी दो ब्राह्मण जो दो-दो गए लिए वह दूसरे और तीसरे नंबर पर चले गए। जबकि गौतम ऋषि जो सहमति से प्रसाद ग्रहण करके और दोनों ब्राह्मण को संतुष्ट कर दिए। वह वहां से विदा होकर के साधना तपस्या करने के लिए चले गए। जिसके बाद अब तीन ब्राह्मणों में जो दो ब्राह्मण थे, जो दो-दो गाय लेकर के गए थे, वह किसी भी प्रकार से गौतम ऋषि को कलंकित करना चाहते थे। वही एक दिन वह दोनों ब्राह्मण गाय का नकली रूप बनाकर के जहां गौतम ऋषि साधना कर रहे थे वहीं पर चले गए।

वहीं गौतम ऋषि को अचानक गाय दिखाई दी। उसको गौतम ऋषि बस वाणी के माध्यम से डांट फटकार लगाई। उतना में ही गाय गिर पड़ी। क्योंकि वह असली गाय नहीं थी। वह तो गौतम ऋषि को कलंकित करने के लिए काम किया गया था। वहीं गौतम ऋषि ने उन दोनों ब्राह्मण को श्राप दे दिया कि तुम लोग कितना भी दान लोगे, लेकिन तुम लोगों को कभी भी दान से संतुष्टि नहीं होगा। 

पुजा पाठ कराने वाले ब्राह्मण मिले हुए दान से समाज कल्‍याण करें

इसलिए बताया गया है कि जो भी यजमान का पुजा पाठ कराने वाले ब्राह्मण हैं, उनको दान में मिली हुई जो भी चीज हैं, उसमें से कुछ समाज के कल्याण के लिए भी लगाना चाहिए। यजमान के मृत्यु से कमाए गए धन को यदि आप दान में नहीं लगाते हैं तो उससे आपके आने वाली पीढ़ी, बाल बच्चे प्रभावित हो सकते हैं।

उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिला के रहने वाले सभी ब्राह्मणों के द्वारा आपसी मतभेद में कुछ ब्राह्मण श्री राम के यहां गए, कुछ नहीं गए। वहीं कुछ ब्राह्मण सरयू नदी को पार करके उस पर चले गए। जो लोग भगवान श्री राम के भोज भंडारा में शामिल नहीं हुए थे, वहीं आगे चलकर सरयूपारीण ब्राह्मण के नाम से जाने गए। इस प्रकार से पहले जितने भी ब्राह्मण थे, वे सभी कान्यकुब्‍ज ही थे। लेकिन भगवान श्री राम जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार थे, उनके भोज भंडारा में शामिल नहीं होने के कारण ही ब्राह्मण को अलग-अलग नाम से जाना गया।

लेकिन सभी ब्राह्मण अपने आप में श्रेष्ठ बताए गए हैं। क्योंकि इनमें किसी भी प्रकार की कोई खामियां नहीं थी। बस श्री राम के भंडारे से अपने आप को अलग रखने के कारण ही उन्हें थोड़ा अलग नामों से जाना गया। क्योंकि बड़े राजा महाराजा की आज्ञा को नहीं मानने के कारण भी कुछ लोगों को समाज में अच्छी प्रतिष्ठा की दृष्टि से नहीं देखा जाता है।

नारायण नाम लेने से अजामिल जैसे पापी का भी उद्धार हुआ

गंगा के पावन तट पर शुकदेव जी राजा परीक्षित को अजामिल जैसे पापी को भी भगवान के नाम स्मरण करने से तरन तारन हो गया की कथा सुना रहे हैं। शुकदेव जी कहते हैं कि राजा परीक्षित अजामिल का जन्म एक ब्राह्मण के घर में हुआ था। अजामिल एक अच्छे संस्कारी ब्राह्मण थे। एक दिन वह अपने पिताजी के पूजा के लिए बाहर फूल लेने के लिए जा रहे थे। वहीं रास्ते में एक चरित्रहीन पुरुष के द्वारा चंचल स्वभाव की वेश्या के साथ गलत आचरण को निर्वस्त्र अवस्था में अपनाया जा रहा था। जिसको अचानक अजामिल के द्वारा देखा गया।

अजामिल वहीं पर बहुत देर तक खड़े रहकर इस घटनाओं को देखते रहे। बहुत देर के बाद उन्हें याद आया कि पिताजी के लिए फूल लेकर के जाना है। जिसके बाद फूल लेकर के वापस घर लौटे। पिताजी ने पूछा आने में इतना समय कैसे लग गया। अजामिल ने झूठ बोला और जो घटनाएं उन्होंने देखा था उसको नहीं बताया।

अजामिल के दिलों दिमाग पर वहीं घटना जो रास्ते में देखे थे, वह लगातार चल रही थी। उस घटना को देखकर के अजामिल का दिमाग पूरी तरीके से उसी में डूब गया था। जिसके कारण शादी विवाह होने के बाद भी अपनी स्त्री को छोड़कर के वेश्याओं के साथ रहने लगे। एक दिन अजामिल वेश्या से कहने लगे, तुम जो लेना चाहती हो ले लो लेकिन मेरे साथ रहो। वही वैश्य ने कहा कि ठीक है, तुम अपनी पत्नी को अपने घर से निकाल दो, तब हम तुम्हारे साथ रहेंगे। वहीं अजामिल अपनी पत्नी को अपने घर से निकाल करके कहीं बाहर रखवा दिए। उस पत्नी से उनको एक पुत्र भी था और वेश्या के साथ अपने घर पर रहने लगे। 

भगवान का नाम लेकर पापी भी मोक्ष प्राप्‍त कर सकते हैं

जितना भी धन संपत्ति था, उस वेश्या के कारण सब कुछ बेच करके उसको संतुष्ट करते रहे। जिसके कारण धीरे-धीरे उनकी पूरी संपत्ति समाप्त हो गई। वेश्या की इच्छा को पूर्ति करने के लिए अजामिल चोरी करना शुरू कर दिए। अजामिल का पेशा चोरी करना, मारना, डकैती करना, लूटना हो गया। जिसके कारण उनके पूरे क्षेत्र में बड़े डकैत के रूप में लोग जानने लगे। हर दिन लूटपाट करना, उनका मुख्य पेशा बन गया था। 

एक दिन संत महात्माओं की टोली अजामिल के गांव के पास से गुजर रही थी। शाम का समय हो गया था। संत महात्माओं ने सोचा कि रात का समय होने वाला है, यहीं पर कहीं विश्राम करने के लिए जगह मिल जाता तो हम लोग रुक जाते। वही एक चौक चौराहे पर कुछ लोग खड़े थे। उनसे उन संत महात्माओं ने किसी अच्छे सज्जन व्यक्ति की जानकारी पूछा। चौक चौराहे पर अक्सर गलत प्रवृत्ति के लोग ही मिलते हैं। कभी-कभी अच्छे लोग भी मिल जाते हैं। लेकिन अधिकतर वैसे ही लोग मिलते हैं, जो गलत प्रवृत्ति के होते हैं। 

महात्माओं की टोली अजामिल के घर पर पहुंची

वही संत महात्माओं को अजामिल का घर बता दिया। जाइए आप लोग अजामिल भक्त के घर पर रुक जाइए। वहीं सबसे अच्छे और भक्त आदमी हैं। उन लोगों ने सोचा कि इन संत महात्माओं को अजामिल लूट लेगा, मारपीट भी करेगा। तब इन लोगों का भक्ति और पूजा पाठ का ज्ञान पता चलेगा। वही संत महात्माओं की टोली अजामिल के घर पर पहुंचती है। 

अजामिल उस समय चोरी करने के लिए कहीं निकल चुका था। शाम का समय था। संत महात्माओं ने द्वार पर जाकर के आवाज लगाई। अजामिल भक्त हम लोग तुम्हारे यहां रुकना चाहते हैं। कृपया हम लोगों के लिए रूकने की व्यवस्था की जाए। वही वेश्या जो अजामिल के साथ रहती थी, वह बाहर निकली। संत महात्माओं को देखकर के वह चकित हो गई।

संत महात्माओं के दर्शन से लाभ मिलता हैं

वहीं संत महात्माओं से वैश्या ने आने का कारण पूछा। इसके बाद लगभग 100 की संख्या में संत महात्माओं ने कहा कि हम लोग विश्राम करना चाहते हैं। क्योंकि रात का समय हो चुका है। आज हम लोग यहीं पर रह करके प्रसाद भंडारा की व्यवस्था करेंगे। जिसके बाद रात्रि विश्राम करेंगे और कल सुबह हम लोग फिर से चले जाएंगे।

उस वैश्य ने कहा कि आप लोग गलत जगह पर आ गए हैं। क्योंकि यह एक वेश्या का घर है। जहां पर अजामिल जैसे चोर डकैत रहते हैं। जिनका पेशा पैसा लूटने और लोगों को परेशान करना है। वेश्या का पिछले जन्म में कुछ पुण्य होगा, जिसके कारण वह संत महात्माओं से सच्ची बात बता दी। इस बात को सुनकर के संत महात्मा आगे बढ़ने लगे। जैसे ही कुछ दूर आगे बढ़े वेश्या के मन में आया भगवान की कृपा होगी, तभी संत महात्मा द्वार पर आए हैं।

उन्हें वापस लौटाना ठीक नहीं है। वैश्य पीछे से दौड़ती हुई जाकर के संत महात्माओं को रूकने के लिए निवेदन किया। वेश्‍या ने प्रार्थना किया कि आप लोग यहीं पर विश्राम कीजिए। हम आप लोगों के लिए अनाज की व्यवस्था कर देंगे। आप लोग स्वयं भोजन प्रसाद बना करके भगवान को भोग लगाइए और विश्राम कीजिए।

संत महात्‍मा कल्‍याण का मार्ग दिखाते हैं

वही संत महात्माओं की टोली एक पेड़ के नीचे अपना आश्रम बना लिए। जिसके बाद भोज भंडारा बनाया गया। भगवान को भोग लगाकर के सभी लोग प्रसाद पाए। रात का समय हो गया था। सभी महात्मा लोग सो गए। लेकिन उन महात्माओं के जो महंत थे, वह नहीं सोए थे। रात्रि 12:00 बजे अजामिल चोरी डकैती करके वापस घर पर लौटा। लौटने के बाद संत महात्माओं की टोली देखकर के अजामिल भड़क गया। बहुत कुछ बुरा भला कहने लगा। वहीं उस रात अजामिल की वेश्या भी सोई नहीं थी। वह वापस घर से बाहर निकली तथा अजामिल को समझाने लगी। 

हम इन संत महात्माओं को रूकने के लिए निवेदन किए हैं। इस बात को सुनकर अजामिल शांत हो गया। वेश्या के द्वारा अजामिल को समझाया गया। जिसके बाद महंत ने कहा अजामिल हम तुमसे कुछ दान लेना चाहते हैं। इस बात को सुनकर के अजामिल फिर से भड़क उठा। अजामिल कहने लगा हम दूसरों को लूटते हैं, तुम हमें लूटना चाहते हो। एक बार पुन: वेश्या ने अजामिल को समझाया। महात्मा कुछ दान मांग रहे हैं तो दे दीजिए क्या दिक्कत है। 

अजामिल ने अपने पुत्र का नाम नारायण रखा

वही अजामिल ने अपनी सहमति दी। जिसके बाद महात्मा जी ने कहा अजामिल तुम्हारे कितने पुत्र हैं। अजामिल ने कहा कि नौ पुत्र हैं। महात्मा जी ने कहा ठीक है, तुम्हारा दसवां पुत्र होगा तो तुम उस पुत्र का नाम नारायण रख देना। महात्मा जी सोच रहे थे कि अजामिल जैसे पापी को सुधारने के लिए मेरे पास कोई और दूसरा उपाय नहीं है। यदि वह अपने पुत्र का नाम नारायण रख देगा तो इससे भी उसका कल्याण हो जाएगा।

महात्मा जी के वचनों को सुनकर एक बार फिर से अजामिल क्रोधित हो गया। मेरा पुत्र है, हम अपनी स्‍वेक्षा से नाम रखेंगे। आपके कहने से हम नाम क्यों रखें। एक बार पुनः वैश्य ने समझाया ठीक है, हम अपने सभी पुत्रों का नाम रखे है, महात्मा जी कह रहे हैं तो एक पुत्र का नाम उन्हीं के द्वारा रख दिया जाएगा। वहीं आगे चलकर अजामिल को दसवां पुत्र हुआ। जिनका नाम अजामिल ने नारायण रखा।

हर दिन अपने पुत्र को बुलाते समय नारायण नाम पुकारता रहता था। इस प्रकार से दिन में कम से कम 100 बार तो जरूर नाम ले लेता था। एक दिन अजामिल को लेने के लिए यमराज के दूत आए। यमराज के दूत को देखकर के अजामिल डर गया। वह अपने पुत्र नारायण का नाम लेकर पुकारने लगा। वही भगवान नारायण के पार्षद आ गए। जिसके बाद भगवान के पार्षदों ने यमराज के दूतों को डांट फटकार लगाया गया। तुम लोग यहां कैसे आ गए हो। 

नारायण का नाम सुनकर नरक भी खाली हो सकता हैं

उन लोगों ने कहा कि हम लोग अजामिल को लेने के लिए आए हैं। क्योंकि हम लोगों के जो मालिक हैं, उनकी आज्ञा है कि अब अजामिल को पाप लोक में जाने का समय आ गया है। वहीं भगवान के पार्षदों के द्वारा यमराज के दूतों को भगा दिया गया। जिसके बाद यमराज के दूत यमराज के पास पहुंचे। उनके द्वारा इस घटना की जानकारी यमराज को दी गई। यमराज ने कहा कि जहां भी भगवान के नाम का स्मरण किया जाता हो, वहां पर तुम लोगों को नहीं जाना है। क्योंकि नरक लोक में भी अगर लोग नारायण का नाम सुन लेंगे तो हमारा नरक लोग भी खाली हो जाएगा। इसीलिए तुम लोग नाम भी धीरे-धीरे लो।

इस प्रकार से अजामिल का नारायण नाम लेने के कारण भगवान की कृपा प्राप्त हुआ। यमराज के दूत ने कहा कि अजामिल ने अपने पुत्र का नाम लिया है। भगवान के पार्षदों ने कहा कि भले ही अजामिल ने अपने पुत्र का नाम लिया है लेकिन उससे पहले भगवान का नाम नारायण है। इसीलिए उसने नारायण का भी पुत्र के रूप में नाम लिया है। तब भी उसका कल्याण होगा। 

इस प्रकार से बताया गया है की पापी अजामिल का भी अपने पुत्र के रूप में नारायण का नाम लेने से कल्याण हो सकता है, तो हम मानव के कल्याण के लिए हर समय निरंतर भगवान श्रीमन नारायण के नाम का स्मरण, उच्चारण, कथा श्रवण, यज्ञ करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसीलिए गलत कर्मों को त्याग करके भगवान के नाम का स्मरण निरंतर करते रहना चाहिए। भगवान नारायण का नाम लेने वाले व्यक्ति का कभी भी अधोगति नहीं होता है।

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