प्रलय के बाद केवल एकमात्र श्रीमन नारायण बचते हैं : श्री जियर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि जब प्रलय आता है, उस समय सारे सृष्टि का समापन हो जाता है। यहां तक की ब्रह्मा, शिव एवं सभी देवता चिरंजीवी भी समाप्त हो जाते हैं। प्रलय के बाद एकमात्र श्रीमन नारायण ही बचते हैं। वही जब ब्रह्मा जी सोते हैं, जब उनका सोने का समय आता है, तब प्रलय आता है।
बताया गया है कलयुग की आयु 4 लाख 32 हजार वर्ष है। जिसमें दो का गुणा करने से द्वापर युग का आयु निकल जाता है। 4 लाख 32 हजार में तीन से गुणा करने पर त्रेता युग का कुल आयु निकल जाता है। 4 लाख 32 हजार में चार से गुणा करने पर सतयुग की कुल आयु निकल जाता है। चारों युगों को मिलाकर एक चतुर्युगी होता हैं। चतुर्युग जब 71 बार बितता हैं, तब एक मनु का शासन होता हें। ऐसे ही जब 14 मनु का शासन होता हैं, उतना दिन का ब्रह्मा जी का एक दिन होता हैं, और उतना दिन से ब्रह्मा जी का आयु 100 वर्ष होता है। इस प्रकार से ब्रह्मा जी की आयु की गणना की जाती है।
प्रलय के बाद केवल एकमात्र श्रीमन नारायण बचते हैं
वेद का अविष्कार ब्रह्मा जी के मुख से हुआ। वही एक बार हयग्रीव नाम के राक्षस ने वेद को चुरा लिया था। जिसके बाद भगवान श्रीमन नारायण श्री हरि के रूप में प्रकट होकर के हयग्रीव राक्षस को समाप्त किए तथा वेद की रक्षा किए। वहीं हयग्रीव राक्षस को मारने के कारण भगवान श्रीमन नारायण का एक नाम हयग्रीव भी हो गया। वहीं श्री हरि हयग्रीव नाम से जाने गए। आगे चलकर के भगवान श्रीमन नारायण मत्स्य के रूप में अवतार लिए। भगवान श्री हरि मछली के रूप में अवतार लेकर के वैवस्वत मनु को उपदेश दिए हैं।

एक बार सत्यव्रत श्राद्धदेव वैवस्वत मनु समुद्र से जल निकाल कर हाथ पर लिए थे। उस जल में एक छोटी सी मछली भी हाथ पर आ गई। उस मछली को वैवस्वत मनु एक बार पुन: समुद्र में डाल दिए। उन्होंने महसूस किया कि जल से बाहर रहने पर मछली मर सकती है। इसीलिए पुन: उसे जल में डाल दिया जाए। उसके बाद उस मछली के द्वारा उपदेश दिया गया, हम भगवान श्री हरि मत्स्य के रूप में अवतार लिए हैं। महा प्रलय आने वाला है, उस समय सब कुछ समाप्त हो जाएगा। हम आपकी रक्षा करेंगे। इसके लिए अवतार लिए हैं। उस समय आपको उपदेश भी देंगे।
भगवान का मत्स्य अवतार
वही महाप्रलय थोड़े ही देर के बाद आ गया। जिसके बाद भी वैवस्वत मनु एक नाव पर सवार हुए। उस नव को जो मछली थी, वह अपने सहारे से आगे बढ़ा रही थी। वही मत्स्या अवतार भगवान वैवस्वत मनु को उपदेश भी दे रहे थे। मानव जीवन में व्यक्ति को किस प्रकार से आचरण, व्यवहार रखना चाहिए। मानव जीवन में सदाचार, सत्य, अहिंसा, धैर्य, दान, तप, साधना के साथ व्यक्ति को जीवन व्यतीत करना चाहिए।
शास्त्रों में बताया गया है कि श्री हरि के रूप में जो भगवान हयग्रीव के रूप में जाने गए, वह भगवान विद्या के प्रधान भगवान है। जिनसे विद्या की प्राप्ति होती है। सत्यव्रत श्राद्धदेव वैवस्वत मनु एक प्रतापी राजा थे। जो कि दक्षिण भारत में रहते थे। वही एक दिन तर्पण कर रहे थे। उस समय मत्स्य अवतार भगवान मछली के रूप में उनके हाथ पर आ गए।
पूजा पाठ में वस्त्रों का विशेष ध्यान रखें
एक विशेष बातों को भी जरूर ध्यान रखना चाहिए कि जब भी आप जल दे रहे हो, तर्पण कर रहे हो या पूजा कर रहे हो, यदि आप जल में खड़ा होकर के पूजा कर रहे हैं, तब आप भीगे हुए वस्त्रो का उपयोग कर सकते हैं। लेकिन यदि आप बाहर खड़े हैं और वहां पर आप जल दे रहे हैं, पूजा कर रहे हैं तो आपको सूखे हुए वस्त्रो का उपयोग करना चाहिए। यदि आपके पास सूखा हुआ वस्त्र न हो तो इस वस्त्र को अच्छे से धोकर के और सात बार उसको फटकार देना चाहिए। जिसके बाद उस कपड़े को पहनकर के आप बाहर भी पूजा कर सकते हैं।
किसी भी धार्मिक अनुष्ठान, पूजा, पाठ में वस्त्रों का विशेष महत्व बताया गया है। पूजा करते समय यदि आप शरीर पर एक वस्त्र पहन कर पूजा करते हैं तो वह पूजा तामसिक पूजा होता है। दो वस्त्र पहनकर के पूजा करते हैं तो राजसी पूजा होता है तथा तीन वस्त्र पहन कर पूजा करते हैं तो वह सात्विक पूजा होता है। इसीलिए किसी भी पूजा पाठ में वस्त्रों का जरूर ध्यान रखना चाहिए।
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सत्यव्रत श्राद्धदेव वैवस्वत मनु के पुत्र
वहीं आगे राजा परीक्षित शुकदेव जी से पूछते हैं, महाराज वैवस्वत मनु कौन है। उनके वंश परंपरा में पहले कौन-कौन हुए तथा आगे उनके वंश में कौन-कौन होंगे, उसकी व्याख्या विस्तार से कीजिए।
वहीं शुकदेव जी कहते हैं, राजा परीक्षित सबसे पहले जब दुनिया में कोई नहीं था, उस समय भगवान श्रीमन नारायण थे। उनके नाभि से कमल प्रकट हुआ, कमल से ब्रह्मा जी हुए, ब्रह्मा जी के सृष्टि में पहले कई लोग हुए, ब्रह्मा जी के द्वारा और भी कई ऋषि पुत्र हुए। जिनमें एक मरीचि ऋषि हुए। मारीचि ऋषि के पुत्र कश्यप ऋषि हुए, कश्यप ऋषि और उनकी पत्नी अदिति से सूर्य हुए, सूर्य की पहली पत्नी से सत्यव्रत श्राद्धदेव वैवस्वत मनु हुए। आगे सत्यव्रत श्राद्धदेव वैवस्वत मनु के वंश परंपरा में 10 पुत्र हुए, जिनमें इल, इक्ष्वाकु, कुशनाम, अरिष्ट, धृष्ट, नरिष्यन्त, करुष, महाबली, शर्याति, पृषध

रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।