पुत्र हो तो प्रह्लाद जी जैसा : श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि धन्य है प्रहलाद जी जिन्होंने अपने पिता के लिए भगवान नरसिंह से मोक्ष की कामना किए। प्रहलाद जी को उनके पिता हिरण्यकश्यप के द्वारा कई प्रकार से मारने का प्रयास किया गया। फिर भी प्रहलाद जी अपने पिता के प्रति कभी भी नाराज नहीं हुए। जब भी प्रहलाद जी के पिता क्रोधित होते उस समय भी प्रहलाद जी बहुत नम्र होकर जवाब देते थे।
प्रहलाद जी के पिता अपने आप को भगवान मानते थे। वहीं शिक्षा प्रहलाद जी को भी स्वयं दे रहे थे तथा गुरुकुल में भी राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य के पुत्र के द्वारा दिलवा रहे थे। फिर भी प्रहलाद जी उन भगवान नारायण की शिक्षा, साधना, तपस्या में बचपन से ही लग रहे। आज समाज में पिता अपने पुत्र को कुछ कह देते हैं, छोटी सी बात पर भी पुत्र नाराज हो जाते हैं। लेकिन आज की युवा पीढ़ी को प्रहलाद जी से शिक्षा लेना चाहिए। जिन्होंने अपने पिता के बार-बार गलती करने पर भी उसके लिए प्रतिकार नहीं किया।
पुत्र हो तो प्रह्लाद जी जैसा
जब भगवान नरसिंह खम्भे से प्रकट होकर के हिरण्यकश्यप को मार दिए, उसके बाद भी जब भगवान नरसिंह ने प्रहलाद जी से वर मांगने को कहा तो प्रह्लाद जी ने अपने पिता के लिए मोक्ष मांग लिया। धन्य है ऐसे पुत्र प्रहलाद जो भगवान नारायण की भक्ति करते हुए राक्षस पिता हिरण्यकश्यप के लिए भी भगवान के परम लोक में जाने के लिए भगवान से प्रार्थना किए। प्रहलाद जी कहते हैं भगवन मेरे पिता की अधोगति नहीं होना चाहिए।
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वही जब भगवान नरसिंह दूसरे वर मांगने के लिए कहते हैं, तब प्रहलाद जी कहते हैं आप वचन दीजिए कि मेरे कुल खानदान में अब किसी की भी हत्या नहीं करेंगे। ऐसे प्रहलाद जी की भक्ति भगवान श्रीमन नारायण की प्रति अकल्पनीय है। उतना ही ज्यादा अकल्पनीय अपने पिता अपने कुल खानदान आने वाली पीढ़ी के लिए भी है। ऐसे प्रहलाद जी आज के वर्तमान पीढ़ी के लिए सबसे बड़े मार्गदर्शक हैं। जिनके विचार, गुण, साधना, संस्कार, भक्ति, धैर्य से सभी लोगों को शिक्षा प्राप्त करना चाहिए।
सुख और दुख का दाता हमारा कर्म है
सुख और दुख हमारे कर्मों के कारण ही मिलता है। न भाई सुख देता है, न पिता सुख देता है, न माता सुख देती है, न दोस्त मित्र सुख देते हैं, न भगवान सुख देते हैं। क्योंकि भगवान भी हमारे द्वारा किए गए कर्मों के आधार पर ही सुख और दुख निर्धारित करते हैं। अगर हमारा कर्म सही है तो हमें सुख मिलेगा। अगर कर्म सही नहीं है तो उसी के आधार पर हमें दुख भी प्राप्त होगा।
श्रीमद् भागवत कथा अंतर्गत हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद जी अपने पिता से भगवान श्रीमन नारायण की शरणागति करने के लिए कहते हैं। प्रहलाद जी कहते हैं कि दुनिया में हर जीव, जंतु, प्राणी या हर जगह जिनकी सत्ता है, जिनके द्वारा हमें मोक्ष प्राप्ति होती है, वह भगवान श्रीमन नारायण है। प्रहलाद जी वेद, उपनिषद, शास्त्र की उपदेश देने लगते हैं। भगवान श्रीमन नारायण के प्रति प्रहलाद जी की भावना जागृत होते हुए, देखकर हिरण्यकश्यप क्रोधित हो जाता है। भगवान विष्णु के प्रति निष्ठा, आदर देखकर हिरण्यकश्यप आक्रोशित होकर प्रहलाद जी को मारने की कोशिश करने लगता हैं।
प्रह्लाद जी को कई प्रकार से मारने का प्रयास हुआ
कभी भोजन में जहर देकर, कभी हाथी से कुचल कर और कभी पहाड़ से खाई में फेंक कर, अपने सैनिकों से अनेक तरीके से मरवाने का कोशिश करता हैं। लेकिन हर समय भगवान श्रीमन नारायण प्रहलाद जी को बचा लेते थे। हिरण्यकश्यप बहुत परेशान हो गया था। तभी उसकी छोटी बहन होलिका वहां आई उसने बताया कि मुझे साधना करके एक चादर हासिल हुआ हैं। उस चादर की खासियत है कि अगर मैं उस चादर को ओढ़ के बैठुंगी तो आग में नहीं चलूंगी। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद जी को मारने के लिए होलिका से कहा।
आग जलाया गया, जिसमें होलिका चादर ओढ़ के बैठ गई और प्रहलाद जी को अपने गोद में ले ली। उसी समय भगवान श्रीमन नारायण का ऐसा प्रभाव हुआ कि आंधी तूफान आ गया। जो चादर होलिका ओढ़ कर बैठी थी, वह चादर उड़ कर के प्रहलाद जी पर चला गया। जिससे उस आग में होलिका जल गई और प्रहलाद जी जैसे बैठे थे, वैसे ही एकदम स्वस्थ सुरक्षित आग से भी बच गए।
यह घटना देखकर हिरण्यकश्यप बहुत परेशान हो गया। एक दिन उसने वह अपने राजगद्दी पर बैठा हुआ था और प्रहलाद जी को भी अपने पास बैठाया। उसने पूछा कि बेटा तुमने अभी तक क्या-क्या सीखा है। तब प्रहलाद जी कहते हैं कि भगवान श्रीमन नारायण को धन, बल, पौरुष, पद, प्रतिष्ठा, रूप, ऐश्वर्या से प्रसन्न नहीं किया जा सकता है। भगवान श्रीमन नारायण उच्च स्कूल में जन्मे व्यक्ति से ही प्रभावित नहीं होते हैं। धन, बल, पद, प्रतिष्ठा कुछ भी हो, लेकिन अगर नैतिकता नहीं है तो भगवान श्रीमन नारायण उससे प्रभावित नहीं होते हैं।
भगवान श्रीमन नारायण का आराधना और शरणागति करिए
प्रहलाद जी कहते हैं कि है पिताजी संस्कृति, संस्कार, मर्यादा, प्राणियों के प्रति मंगल कामना जिसके पास नहीं है तो सब कुछ व्यर्थ है। क्योंकि भगवान श्रीमन नारायण को साधना, आराधना, भक्ति, धर्म और सच्चे मन से प्रसन्न किया जा सकता है। इसलिए पिताजी आप भी उस भगवान श्रीमन नारायण का आराधना करिए, शरणागति करिए। जिनके द्वारा पूरा सृष्टि जगत है। यह सुनकर हिरण्यकश्यप प्रहलाद जी पर बहुत अधिक क्रोधित हो गया। उसने प्रहलाद जी को उठाकर वहीं पर पटक दिया।
हिरण्यकश्यप प्रहलाद जी से कहता है कि जिस विष्णु ने मेरे भाई तुम्हारे चाचा हिरण्याक्ष को मारा है, उसका तुम नाम लेते हो। हिरण्यकश्यप क्रोधित तलवार निकाल कर प्रहलाद जी को मारने दौड़ जाता है। प्रहलाद जी से हिरण्यकश्यप पूछता है कि जिसके भरोसे तुम इतना बोल रहे हो, वह विष्णु कहां है। आज मैं तुम्हारी हत्या करूंगा। अगर वह यहां पर है तो बचा लेगा तो प्रह्लाद जी बोलते हैं कि भगवान विष्णु हर जगह है। हमारे में भी है, आप में भी है, इस तलवार में भी है। इस खंबे में भी भगवान हैं।
जिसके बाद बहुत अधिक क्रोधित होकर आक्रोश में हिरण्यकश्यप खंबे को मार के तोड़ देता है। खंभा टूटते ही उसमें से बहुत भयंकर आवाज होता है और भगवान नरसिंह उसमें से प्रकट होते हैं। भगवान नरसिंह प्रकट होने के बाद हिरण्यकश्यप को पकड़ लेते हैं। भगवान नरसिंह का ऊपर का शरीर सिंह का है और नीचे का आधा शरीर मानव का है। जिसके बाद भगवान नरसिंहपुर कहते हैं कि आज हम तुमको मारेंगे। तब हिरण्यकश्यप कहता है कि आप मुझे नहीं मार सकते हैं। क्योंकि मैंने ब्रह्मा जी से तपस्या करके वरदान लिया है।
भगवान नरसिंह प्रगट हुए
न आदमी ना जानवर मारेगा, न अस्त्र से न शस्त्र से मरूंगा, न घर में न बाहर मरूंगा, न दिन में न रात में कोई मुझे मार सकता है। भगवान ने कहा कि अभी तो न दिन है न रात है सायं काल है। हिरण्यकश्यप ने कहा कि मैंने यह भी वरदान लिया है कि न मैं ऊपर न नीचे मरूंगा। तब भगवान नरसिंह ने कहा कि तुम्हें मैं अपनी गोद में मारूंगा। अभी तुम जहां खड़े हो वह न तुम घर में हो न बाहर हो चौखट पर खड़े हो। न अस्त्र से मारूंगा न शस्त्र से मारूंगा मैं तुम्हें अपने नाखून से मारूंगा।
नरसिंह भगवान ने कहा कि तुम्हें वरदान है कि न मनुष्य से ना दानव से और न भगवान से मरोगे तो मैं न मनुष्य हूं ना जानवर हूं न मैं दानव हूं। तब हिरण्यकश्यप ने कहा कि मैंने ब्रह्मा जी से यह भी वरदान लिया है कि 12 महीना मुझे कोई नहीं मार सकता है। भगवान नरसिंह ने कहा कि अभी अधिक मास है। इसलिए बारहमास नहीं 13वां मास है। इसलिए यह भी वरदान तुम्हारा असफल हो गया।
उसी समय भगवान नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को अपने गोद में लेकर, घर के चौखट पर बैठकर, अपने नाखून से मार दिए। उसी समय सभी देवता भगवान नरसिंह का अभिनंदन करने के लिए पहुंच गए। तभी नरसिंह भगवान इतनी जोर से हुंकार भरे की सभी देवता डर से भाग कर लक्ष्मी जी के यहां पहुंच गए और उनसे कहा कि हे लक्ष्मी माता भगवान विष्णु बहुत ही क्रोधित हो गए हैं।
हिरण्यकश्यप मारा गया
लक्ष्मी जी ने कहा कि भगवान विष्णु कभी क्रोधित नहीं होते हैं। वह सोने की थाल लेकर भगवान नरसिंह का आरती करने के लिए गई। जैसे ही लक्ष्मी जी भगवान नरसिंह की करने लगी तभी नरसिंह भगवान ने इतनी जोर से हुंकार भरे कि लक्ष्मी जी भी थाल फेंक कर वहां से भाग गई। लेकिन प्रहलाद जी वहां पर बिना भय के हाथ जोड़कर खड़े थे। नरसिंह भगवान ने प्रहलाद जी को लेकर अपने गोदी में बैठा लिया और उन्हें चाटने लगे। नरसिंह भगवान ने कहा कि हे पुत्र तुम मुझे माफ करना मुझे आने में देर हुआ।
नरसिंह भगवान ने प्रहलाद जी से कहा कि पुत्र तुम मुझसे वरदान मांगो। जिसके बाद प्रहलाद जी ने कहा कि हे प्रभु मेरे पिताजी ने इतने पाप, अत्याचार, अन्याय किए हैं, लेकिन आप उन्हें अधोगति मत देना। नरसिंह भगवान ने कहा जिसके घर में तुम्हारे जैसा पुत्र हो, उसके पिता को अधोगति नहीं प्राप्त हो सकता है। दूसरा वरदान प्रहलाद जी ने मांगा कि आज के बाद मेरे कुल खानदान के किसी भी व्यक्ति के साथ आप ऐसा मत कीजिएगा। जैसे मेरे पिताजी के साथ हुआ हैं। भगवान ने कहा कि ठीक है, तुम्हारा कुल खानदान में किसी भी व्यक्ति के साथ में ऐसा नहीं करूंगा।
लेकिन अगर गलती करेंगे तो उन्हें दंड जरूर दूंगा। तीसरा वरदान प्रहलाद जी ने भगवान से मांगा कि मुझे आपकी भक्ति प्रदान हो। यह भी वरदान देकर नरसिंह भगवान ने प्रहलाद को गद्दी पर बैठाया जिसको आसान भी कहते हैं। नरसिंह भगवान ने आसन पर बैठाया जिसके बाद सिंहासन कहा जाने लगा। जिसके बाद भगवान प्रहलाद जी को हिरण्यकश्यप के राज्य का राजा बना दिए।

रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।