शालिग्राम भगवान की घर में पूजा करना श्रेयस्कर : श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि शालिग्राम भगवान एक ऐसे भगवान है, जिनका यदि किसी भी कारण से भोग नहीं लगाया जाता है, तब भी शालिग्राम भगवान नाराज नहीं होते हैं। शालिग्राम भगवान एक ऐसे भगवान हैं, जिनकी प्राण प्रतिष्ठा करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है। बाकी और भी जितने भगवान की मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा करके घर में आप रखते हैं, उनको यदि आप 24 घंटे में एक बार पूजा भोग नहीं लगाते हैं, तो उनकी दोबारा प्राण प्रतिष्ठा कराना चाहिए।
यदि दोबारा आप प्राण प्रतिष्ठा नहीं कराते हैं और पूजा भोग लगाते रहते हैं, तब भी उसका कोई विशेष महत्व नहीं होता है। क्योंकि उसमें भगवान या देवी देवता का वास नहीं होता है। शालिग्राम भगवान ऐसे भगवान हैं, जिनको कितना भी दिन तक यदि भोग, भंडारा, प्रसाद, पूजा, पाठ नहीं किया जाता है, तब भी उनको दोबारा प्राण प्रतिष्ठा करने की जरूरत नहीं है। क्योंकि शालिग्राम भगवान ही एक ऐसे भगवान हैं जो कि सभी अवस्था में व्यवस्थित रहते हैं।
शालिग्राम भगवान की घर में पूजा करना श्रेयस्कर
उनको किसी भी प्रकार के भोग, पूजा, पाठ की खास विशेष जरूरत नहीं होती है। इसका मतलब यह नहीं है कि आपको भोग या पूजा पाठ नहीं करना चाहिए। लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि किसी भी कारण से भोग या पूजा आप नहीं करते हैं, तो भी शालिग्राम भगवान की प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं पड़ती है। एक समय कृष्ण भगवान जब बाल स्वरूप में थे, वह शालिग्राम भगवान को मुंह में डाल करके छुपा लिए थे। यशोदा मैया शालिग्राम भगवान को ढूंढ रही थी और भी परिवार के लोग ढूंढ रहे थे।

तभी नंद बाबा अचानक देखे कि कृष्ण का मुंह एक तरफ फुला हुआ है। वही हाथ से मुंह पर स्पर्श किए। जिसके बाद कृष्ण जी के मुंह से शालिग्राम भगवान बाहर निकल गए। वही शास्त्रों में बताया गया है कि शालिग्राम भगवान यदि टूट भी जाते हैं, तब भी उनमें दोष नहीं होता है। खंडित शालिग्राम भगवान की भी पूजा की जा सकती है। जबकि और देवी देवता भगवान जो मूर्ति स्वरूप में घर में होते हैं, वह यदि टूट जाते हैं, खंडित हो जाते हैं तो उन्हें फिर से नई मूर्ति के साथ प्राण प्रतिष्ठा कराना चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण का बाल लीला सबसे अनोखा
जब शालिग्राम भगवान कृष्ण जी के मुंह से बाहर निकले, उस समय यशोदा मैया कहने लगी कि भगवान को जूठा कर दिया। काफी डांट फटकार यशोदा मैया के द्वारा लगाया गया। बाल स्वरूप में कृष्ण जी स्वयं परम ब्रह्म परमेश्वर थे। लेकिन वह बचपन में लोगों को बाल लीलाएं करके अलग-अलग प्रकार से लीला कर रहे थे।
भगवान कृष्ण ने तो बहुत लीलाएं की है लेकिन उनका बाल लीला सबसे अनोखा है। एक बार मैया यशोदा से कृष्ण भगवान बोलते हैं कि मुझे चंद्रमा खेलने के लिए चाहिए। इसके लिए हठ करते हैं। तब मैया यशोदा उनको पानी में चंद्रमा दिखाकर मनाती है। एक बार तो विवाह करने के लिए भी मैया से कहने लगते हैं। कृष्ण भगवान का जब बाल रूप में थे तभी गर्गाचार्य गोकुल में पधारे थे। नंद बाबा के अनुरोध पर गर्गाचार्य उनके यहां भोज भंडारा के लिए रुके थे।
गर्गाचार्य जब भी भोजन बनाकर भगवान विष्णु को भोग लगाने के लिए स्तुति करते, तब भगवान श्री कृष्णा आकर के उनका भोजन जूठा कर देते थे। इस तरह कई बार कृष्ण भगवान ने किया। एक बार तो नंद बाबा जब शालिग्राम भगवान का पूजा कर रहे थे, तभी कृष्ण भगवान शालिग्राम भगवान को लेकर मुंह में डाल लिए। वह इसलिए कि उनका कहना था कि रोज बाबा इनको दूध, दही, मधु, से नहला कर भोजन कराते हैं तो यह बहुत मीठा हो गए होंगे।
श्री कृष्ण का हठ लीला
माता यशोदा भगवान श्री कृष्ण को अपने हाथों से मक्खन निकालकर भोजन बनाकर खिलाता थी। एक बार भगवान श्री कृष्णा मैया के आंचल में दूध पी रहे थे, तभी चूल्हे पर से दूध गिरकर आग में जलने लगा। तब यशोदा मैया ने कृष्ण भगवान को गोदी से उतार के नीचे बैठा दी और दूध बचाने के लिए चली गई। इस बार भगवान श्री कृष्णा बहुत गुस्सा हुए और गुस्से में उन्होंने मक्खन का हांडी पत्थर से मार के तोड़ दिए।
इस पर जसोदा मैया बहुत गुस्सा हुई और कृष्णा जी को एक ओखली में बांधने लगी। जब भी वह बांधती दो अंगुल रस्सी छोटा हो जाता। फिर भगवान श्री कृष्ण मैया यशोदा के बंधन में बंध गए। वही ओखली को बालक कृष्ण दो पेड़ों के बीच फंसा दिए और फंसा कर उस पेड़ को गिरा दिए। वह पेड़ कोई और नहीं बल्कि कुबेर के दो पुत्र थे, जिन्हें नारद जी का श्राप मिलने के कारण पेड़ के रूप में बन गए थे। भगवान ने उन दोनों का उद्धार किया।
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राक्षसों का किया उद्धार
रस्सी को बांधने से भगवान के कमर पर निशान पड़ गया, इसलिए उनका नाम एक दामोदर भी हो गया। कृष्ण भगवान बाल रूप में भी कई लोगों के कष्ट हरे, कई लोगों का उद्धार किए। ऐसे ही एक बार एक फल बेचने वाली उनके द्वारा पर आई। तब भगवान ने हाथ में थोड़ा सा अनाज ले जाकर उसको दे दिया और उसके बदले उससे फल ले लिए। वह अनाज फल वाली की टोकरी में रख दिए, वह सभी अनाज हीरा जहरात बन गया।
एक बार गोकुल के सभी लोग गोकुल छोड़कर वृंदावन में चले गए। क्योंकि गोकुल में कंस के द्वारा कोई न कोई राक्षस आता रहता था। इसलिए गोकुल को ही सब लोग छोड़ दिए। वृंदावन में आने के बाद भगवान श्री कृष्णा गायों को और बछड़ों को चराने के लिए जाने लगे। एक दिन कंस का भेजा हुआ रक्षा वत्सासुर आया।
वह बछड़े का रूप लेकर कृष्ण भगवान के बछड़े में मिल गया भगवान ने तो उसे पहचान लिया और उसी समय वत्सासुर का भी वध कर दिया। फिर एक बकासुर नाम राक्षस आया, उसका भी भगवान ने वध किया। कुछ दिन बाद फिर एक अघासुर राक्षस आया। जो एक अजगर सांप के रूप में था। वह सभी ग्वाल बाल को निगल गया। तब उसका भी भगवान ने वध कर दिया।

रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।