भगवान श्री कृष्ण की 16108 पत्नियां थी : श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण की 8 पटरानियां और 16100 रानियां थी। भगवान श्री कृष्ण का प्रथम विवाह रुक्मणी जी के साथ हुआ था। जिनसे एक पुत्र हुए। जिनका नाम प्रद्युम्न था। प्रद्युम्न जब जन्म लिए उसके कुछ ही दिन हुए थे। तब तक एक शम्बरासुर नाम के राक्षस जो भगवान श्री कृष्ण का विरोधी था। वह द्वारकापुरी में घुसकर के प्रद्युम्न जी को चुराकर के समुद्र में फेंक दिया। वही एक मछली आहार समझ करके प्रद्युम्न जी को निगल गई।
जिसके बाद वह मछली शम्बरासुर के घर पर भोजन के लिए लाई गई। वहीं मछली के पेट में बालक प्रद्युम्न जी दिखाई पड़े। शम्बरासुर की दासी मायावती उस बालक की देखभाल करने लगी। पिछले जन्म में प्रद्युम्न जी कामदेव थे। एक बार शंकर जी की तपस्या को भंग करने के लिए कामदेव अपना प्रभाव दिखा रहे थे। वही शंकर जी ने उन्हें जला करके भस्म कर दिया था। तब कामदेव की पत्नी रति ने शंकर जी से प्रार्थना किया।
प्रद्युम्न का जन्म
तब शंकर जी ने कहा कि अगले जन्म में कामदेव भगवान श्री कृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेंगे और तुम एक शम्बरासुर जैसे राक्षस के घर में दासी के रूप में प्रकट होगी। वहीं प्रद्युम्न शम्बरासुर राक्षस के घर में मायावती दासी के द्वारा पलीत पोषित होने लगे। एक दिन नारद जी पहुंच करके इस घटना की पूरी जानकारी उस दासी को बताए। वहीं मायावती को पहले का पूरा कहानी याद आया। मायावती पिछले जन्म में कामदेव की पत्नी रति के रूप में थी।

वही जब प्रद्युम्न को इस बात की जानकारी हुई कि वह बचपन में भगवान श्री कृष्ण के घर जन्म लिए थे। तब प्रद्युम्न जी शम्बरासुर राक्षस को मार दिए। जिसके बाद प्रद्युम्न जी वही दासी से विवाह करके वापस द्वारकापुरी में पहुंचे। द्वारकापुरी में आकर के पूरी जानकारी भगवान श्री कृष्ण को दिए। जिसके बाद प्रद्युम्न और उनकी पत्नी मायावती द्वारकापुरी में रहने लगे।
स्यमंतक मणि की कथा
इधर सत्राजीत नाम के एक राजा थे। जिनको एक मणि प्राप्त हुआ था। उस मणि के प्रभाव से हर दिन 25 किलो सोना प्राप्त होता था। एक बार उनको अपने मन में थोड़ा अहंकार आया कि हम श्री कृष्ण से कम नहीं है। क्योंकि मेरे पास हर दिन इतना ज्यादा सोना प्राप्त हो रहा है कि हम एक दिन बहुत बड़े राजा बन जाएंगे। वहीं एक दिन श्री कृष्ण के पास गए।
श्री कृष्ण जी को भी इस बात की जानकारी दिए। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि आप स्यमंतक मणि से जो सोना प्राप्त करते हैं, उस सोना को मेरे राज्य में भेज दीजिए। ताकि राज्य के जो प्रजा हैं, उन लोगों के व्यवस्था के लिए उसका उपयोग किया जाएगा। सत्राजीत ने मना कर दिया। जिसके बाद वह वहां से अपने घर पर आ गए।
एक दिन सत्राजीत के भाई प्रसेनजीत वहीं स्यमंतक मणि अपने शरीर में धारण करके वन में चले गए। वहां पर एक शेर ने उनको मार करके खत्म कर दिया। स्यमंतक मणि को शेर अपने मुख में फंसा करके लेकर जा रहा था। वहीं जामवंत जी को दिखाई पड़ा। जामवंत जी ने उस शेर को मार करके और मणि को अपने घर पर लेकर आ गए। जामवंत जी की एक पुत्री थी। जिनका नाम जामवंती था।
जामवंत और श्री कृष्ण का युद्ध
वही स्यमंतक मणि को जामवंत जी ने अपनी पुत्री जामवंती को दे दिए। जिसका उपयोग उनकी पुत्री खेलने के लिए करती थी। इधर सत्राजीत राजा को जब अपने भाई की मृत्यु की समाचार प्राप्त हुई। तब वह भगवान श्री कृष्ण पर आरोप लगाने लगा की कृष्ण जी ने मेरे भाई प्रसेनजीत को मार करके स्यमंतक मणि छीन लिया है। एक दिन कृष्ण भगवान इसकी पता लगाने के लिए वन में गए।
जहां पर सत्राजीत के भाई प्रसेनजीत गए थे। उनके पैरों के निशान को देखते हुए कृष्ण भगवान उस वन में पहुंचे। वहां पहुंचने के बाद उनके शरीर को देख वहां से आगे गए। शेर के पैरों के निशान पर कृष्ण भगवान आगे बढ़े। फिर शेर जो मरकर के वहीं पड़ा हुआ था। उसके आगे जामवंत जी जो भालू के रूप में थे। उनके पैरों के निशाना को देखते हुए पीछे-पीछे बढ़ते चले गए।
पैरों के निशान देखते हुए कृष्ण जी जामवंत के घर पहुंचे। वहां पहुंचने के बाद देखते हैं कि स्यमंतक मणि जामवंत जी की पुत्री जामवंती लेकर के खेल रही थी। कृष्ण भगवान जैसे ही वहां पहुंचते हैं, जामवंत के द्वारा एक मुक्के का प्रहार किया जाता है। जिसके बदले में भगवान श्री कृष्ण भी जामवंत को दो मुक्के का जोरदार प्रहार किए। वहीं जामवंत को पिछले जन्म की कहानी याद आती है। जब भगवान त्रेता युग में श्री राम के रूप में अवतार लिए थे। उस समय जामवंत जी ने भगवान श्रीराम से कहा कि हम आपसे दो-दो हाथ करना चाहते हैं।
श्री कृष्ण और जामवंती का विवाह
भगवान श्री राम ने उस समय मना किया था। क्योंकि कहा कि भक्त और भगवान के बीच में युद्ध कैसे हो सकता है। वही जामवंत जी को इस बात की काफी मन में लालसा थी कि हम भगवान से युद्ध करें। तब श्री राम ने कहा कि अगले जन्म में जब हम कृष्ण के रूप में अवतार लेंगे, तब हम आपकी इच्छा की पूर्ति करेंगे। वहीं इस बात की याद जामवंत जी को आया।
जिसके बाद वह समझ गए कि यह भगवान श्री कृष्ण साक्षात भगवान हैं। वहीं जामवंत जी स्यमंतक मणि भगवान श्री कृष्ण को देने के लिए तैयार हुए। इसके बाद जामवंत जी ने श्री कृष्ण से प्रार्थना किए भगवान आप मेरे पुत्री को भी पत्नी के रूप में स्वीकार कीजिए। वही भगवान श्री कृष्ण का दूसरा विवाह जामवंत की पुत्री जामवंती से हुआ।
श्री कृष्ण और सत्यभामा का विवाह
इसके बाद श्री कृष्ण जी ने उस मणि को सत्राजीत राजा को दे दिए। सत्राजीत राजा को प्रसन्नता हुई। जिसके बाद उन्होंने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह का प्रस्ताव श्री कृष्ण जी से रखा। जिसके बाद तीसरी पत्नी के रूप में सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण की पत्नी बनी। इस प्रकार से श्री कृष्ण भगवान का तीन विवाह हुआ।
1 दिन स्यमंतक मणि को प्राप्त करने के लिए कृतवर्मा, अक्रूर जी, सातकी इत्यादि ने मिलकर के सत्राजीत राजा को मार दिया और मणि चुरा कर के लेकर चले गए। वहीं सत्यभामा जो भगवान श्री कृष्ण की पत्नी थी, उनको पता चला तब वह अपने पिता के घर आई। जिसके बाद उनके मृत शरीर को देखकर के रोने लगी।
वही भगवान श्री कृष्ण जी को जब इस बात की जानकारी हुई। तब वह मणि खोजने के लिए निकले। तब उन्हें पता चला कि कृतवर्मा, अक्रूर जी और सातकी के द्वारा मणि को चुराया गया है।
वही जब भगवान श्री कृष्ण को इस बात की जानकारी हुई तो अक्रूर जी से जाकर के पूछे कि मनी कहां है। अक्रूर जी ने स्यमंतक मणि को भगवान श्री कृष्ण को दे दिए। जिसके बाद श्री कृष्ण जी ने अक्रूर जी को समझाया और दोबारा उस स्यमंतक मणि को अक्रूर जी को ही दे दिए। भगवान श्री कृष्ण कहा कि आप इसको रखिए और आगे इससे राजकाज की व्यवस्था किया जाएगा।
भादो के चौथ के चांद को देखने से लगता हैं कलंक
एक दिन भगवान श्री कृष्ण ने गर्गाचार्य जी से पूछा मेरे ऊपर बार-बार चोरी का इल्जाम क्यों लग रहा है। वहीं गर्गाचार्य जी ने कहा कि भादो के चौथ का चंद देखने के कारण कलंक लगता है। इसलिए आज भी जो लोग भादो के चौथ के चांद को देखते हैं, उनके ऊपर किसी न किसी प्रकार का कलंक लगता है।
एक दिन गणेश जी जा रहे थे वहीं रास्ते में गाय के पैर का जो खूर होता है, उसमें पानी भरा हुआ था। वही उसको पार कर रहे थे। तब तक फिसल करके गिर गए। इस घटना को देखकर के चंद्रमा हंसने लगे। वही गणेश जी ने श्राप दे दिया कि जो भी भादो के चौथ का चांद देखेगा, उसे कलंक का भागी होना पड़ेगा। इसीलिए चौथ के चांद को देखने से कलंक का भागी बनना पड़ता है।
कलंक से निजात पाने के लिए उपाय
इस कलंक से निजात पाने के लिए वही सत्राजीत और स्यमंतक मणि की कथा सुनना चाहिए। जिससे कलंक से छुटकारा प्राप्त होता है। भगवान श्री कृष्ण का चौथा विवाह कालिंदी के साथ हुआ, जो सूर्य की पुत्री थी। वहीं अगले जन्म में यमुना के रूप में हुई। भगवान का पांचवा विवाह वृंदा के साथ हुआ। छठवां विवाह सत्या के साथ हुआ। भगवान का सातवां विवाह भाद्रा के साथ हुआ तथा भगवान श्री कृष्ण का आठवां विवाह लक्ष्मणा के साथ हुआ। इस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण की 8 पटरानियां हुई।
भगवान की आठ पटरानियां इस प्रकार से हैं छितिज, जल, पावक, गगन, समीरा। आकाश तत्व, वायु तत्व, अग्नि तत्व, पृथ्वी तत्व, जल तत्व एवं मन, बुद्धि, अहंकार यही आठ भगवान की पटरानियां है। यह आठो प्रकृति के सूचक हैं। जिससे भगवान श्री कृष्ण विवाह किए। आगे भगवान श्री कृष्ण ने 16100 और कन्याओं के साथ विवाह किए।
भौमासुर का अंत
एक बार पृथ्वी पर बहुत ज्यादा अत्याचार बढ़ गया था। वहीं पृथ्वी माता भगवान से प्रार्थना की, जिसके बाद भगवान वाराह अवतार के रूप में प्रकट हुए। वहीं हिरणाक्ष्य पृथ्वी को चुरा करके जल में छुपा दिया था। वही वराह रूप में भगवान जब प्रकट हुए तो उनके भैहां से एक बाल टूट करके पृथ्वी पर गिरा। जिससे एक राक्षस प्रकट हुआ। जिसका नाम भौमासुर पड़ा। पृथ्वी का बेटा था और भगवान वरहा के पुत्र था। वहीं तपस्या करके वह वरदान प्राप्त किया था कि जब तक मेरी माता नहीं कहेगी तब तक मेरा मृत्यु नहीं होगा। मेरे पिता भी मुझे नहीं मार सकते हैं।
क्योंकि ऐसा कहा जाता है की माता कभी भी अपने पुत्र को मारना नहीं चाहती हैं। इसीलिए चाहे पुत्र कुपुत्र हो सकता है। लेकिन माता कुमाता नहीं होती है। वही भौमासुर बहुत बड़ा राक्षस बना और राज्य का राजा भी बन गया। जिसके बाद वह सभी देवता लोगों को भी परेशान करने लगा। उसी का एक सेनापति मुर नाम का राक्षस था। जिसको भगवान श्री कृष्ण समाप्त किए थे। जिससे भगवान श्री कृष्ण का एक नाम मुरारी भी पड़ गया।
वही एक दिन भौमासुर के अत्याचार से पृथ्वी माता भी भगवान श्री कृष्ण से जाकर के कहने लगी। भगवान अब इसको मार ही देना चाहिए। क्योंकि भौमासुर देवताओं के पुत्रियों को भी परेशान कर रहा था। ऋषि कन्याओं को भी पकड़ कर के बंदी बना देता था। इस प्रकार से वह 16100 कन्याओं को अपने राज्य में बंदी बनाकर के रखा था। वह सोचता था कि जब लाखों कन्याएं हमारे बंदीगृह में हो जाएगी, तब हम सभी से शादी करेंगे।
भगवान श्री कृष्ण की 16108 पत्नियां थी
वही भगवान श्री कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ रथ पर सवार होकर के भौमासुर के साथ युद्ध करने लगे। जिसके बाद भयंकर युद्ध हुआ। जिसमें एक बार तो कृष्ण भगवान भी युद्ध करते हुए गिर पड़े। जिसके बाद सत्यभामा ने कहा कि भगवान इसको जल्द खत्म कीजिए। वही भौमासु को मार करके उसके जेल में बंद 16100 कन्याओं को मुक्त कराया।
अब उन 16100 कन्याओं ने कहा कि भगवान हम लोग अपने घर पर नहीं जाएंगे। क्योंकि मेरे पति या मेरे घर के गार्जियन मुझे स्वीकार नहीं करेंगे। इसीलिए आप मुझे स्वीकार कीजिए। इस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण ने और 16100 कन्याओं से विवाह किए। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण की कुल रानियां 16108 हो गए।
जिसके बाद द्वारका पुरी में 16108 महल बनवाए गए। वेद के एक लाख मंत्रों में 80000 मंत्र पूजा प्रणाली के लिए होता है। इस प्रकार से वेद के मंत्रों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने 16108 कन्याओं से विवाह किए।
श्री कृष्ण का वंश
आगे चलकर भगवान श्री कृष्ण के हर पत्नियों से 10 पुत्र और एक पुत्री हुए। अब 16108 पत्नियों से 11-11 संतान हुए। शास्त्रों में भी बताया गया है कि भगवान श्री कृष्ण के वंश में लोगों को पढ़ाने के लिए 56 करोड़ आचार्य थे। 10 छात्र पर एक आचार्य थे। इस तरह 56 करोड़ आचार्य थे तो कितने संख्या में लोग पढ़ने वाले थे। आज ही केवल जनसंख्या ज्यादा नहीं है। बल्कि पहले भी बहुत ही अधिक संख्या होती थी।
भगवान कृष्ण की सभी पत्नियां कभी-कभी कुछ बातों को लेकर के नाराज हो जाती थी। लेकिन रुक्मणी जी कभी भी नाराज नहीं होती थी। एक दिन भगवान श्री कृष्ण सोचे कि आज रुक्मणी जी को किसी भी प्रकार से नाराज करना हैं। वही रुक्मणी जी भगवान श्री कृष्ण को भोजन करा रही थी। अचानक भगवान श्री कृष्ण रुक गए। रुक्मणी जी कहती है क्या हुआ, क्या प्रसाद अच्छा नहीं बना है।
पति पत्नी को थोड़ा बहुत कभी हास्य भी करना चाहिए
भगवान कहते हैं कि बिल्कुल ही अच्छा नहीं बना है और आपको हमसे शादी भी नहीं करना चाहिए था। आप इसी समय मुझे छोड़ कर चले जाइए। इस बात को सुनकर के रुक्मणी जी वहीं पर गिर गई। भगवान श्री कृष्ण चतुर्भुज रूप में अपना स्वरूप बना करके रुक्मणी जी को उठाए। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि रुक्मणी जी हम तो आपसे हंसी मजाक कर रहे थे। आपने तो इसे पूरा दिलो दिमाग पर ले ली। वहीं रुक्मणी जी कहती हैं भगवान हम तो आपके योग्य हैं। आप कहां साक्षात परमब्रह्म परमेश्वर हैं और हम एक साधारण स्त्री हैं। इसीलिए हम आपके योज्ञ नहीं हैं।
लेकिन आपने मुझे स्वीकार किया। यह हमारे लिए सौभाग्य की बात हैं। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की देवी जी हम आपके साथ थोड़ा हंसी मजाक कर रहे थे। इसलिए आपको इस बात को ज्यादा दिल पर लेने की जरूरत नहीं है। इस प्रकार से भगवान श्री कृष्ण समाज में संदेश दिए कि पति पत्नी को थोड़ा बहुत कभी कुछ हास्य भी करना चाहिए। यह गृहस्थ मर्यादा की सामान्य जीवन शैली है।
भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणी जी को बहुत कुछ कहा। उन्होंने भी कह दिया कि आपका विवाह तो शिशुपाल के साथ होना था। आपको चले जाना चाहिए था। आगे भगवान श्री कृष्ण ने रुक्मणी जी को अच्छी बातों को समझा करके उनके भावना को बदल दिया।
कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और उषा का विवाह
बाणासुर की एक पुत्री उषा थी। जो अपनी सहेली चित्रकला के साथ समय व्यतीत कर रही थी। चित्रकला में ऐसी कला थी कि वह दुनिया के सबसे अच्छे लोगों की चित्र को दिखा सकती थी। एक दिन बाणासुर की पुत्री उषा ने कहा की ऐसे लोगों की छवि दिखाओ जो इस दुनिया में सबसे सुंदर हो। वही भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध का चित्र दिखा दी। जिसको देखकर के बाणासुर की पुत्री उषा मोहित हुई।
उसने कहा कि चित्रलेखा अनिरुद्ध को किसी भी प्रकार से मेरे पास बुलाओ। वही चित्रकला अपनी कला कौशल से अनिरुद्ध को बाणासुर की पुत्री उषा के घर पर बुला दिया। जिसके बाद अनिरुद्ध बाणासुर के पुत्री के घर पर रहने लगे। एक दिन बाणसुर को इस बात की जानकारी हुई। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को पड़कर के कारागार में बंद कर दिया। जब इस बात की जानकारी भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी को हुई। तब बलराम जी समझाने बुझाने के लिए बाणसुर के पास आए।
उन्होंने काफी समझाया बुझाया। उन्होंने कहा कि मेरे घर के चिराग को आप छोड़ दीजिए। लेकिन बाणासुर ने मना कर दिया। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण अज्ञेर बाणासुर का युद्ध होने लगा। जिसमें कृष्ण काफी क्षति पहुंचा रहे थे। बीच में अचानक शंकर जी आ गए। वह भगवान श्री कृष्ण से भी युद्ध करने लगे। वही कृष्ण जी ने ऐसा बाण छोड़ा, जिससे शंकर भगवान को बुखार आ गया और वही धरती पर गिर पड़े। आगे कृष्ण जी ने माया को हटाकर के जब शंकर भगवान को अपनी छवि दिखाई। तब शंकर जी को भी अपने गलती का एहसास हुआ।
बाणासुर का वध
उन्होंने भगवान श्री कृष्ण से कहा कि भगवान बाणासुर को हमने वरदान दिया है कि उसे कोई मार नहीं सकता है। इसलिए उस पर कृपा कीजिए। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि शंकर जी हमने इसके कुल को पहले ही वरदान दे दिया है कि हम इसके कुल में किसी की भी हत्या नहीं करेंगे। लेकिन जब गलती करेगा तो दंड देंगे।, आप जाइए। वही भगवान श्री कृष्ण बाणासुर के 18 भुज को काट दिए हैं। जिसके बाद बाणासुर को संभलने की शिक्षा देकर के उसे माफ कर दिए। वही अनिरुद्ध का विवाह उषा के साथ हुआ। जिसके बाद भगवान श्री कृष्ण साथ लेकर के वापस चले आए हैं। बाणासुर जो राजा बलि का पुत्र था।
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रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।