श्री राम और सीता जी का जन्म सूर्य वंश में हुआ: श्री जीयर स्वामी जी महाराज – परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर भारत के महान मनीषी संत श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा अंतर्गत भगवान श्री राम एवं सीता जी की वंश परंपरा पर प्रकाश डाले। भगवान श्री राम का जन्म सूर्यवंश में हुआ था। वही सीता जी का भी जन्म सूर्य की वंश परंपरा में ही हुआ था। भगवान श्रीमन नारायण के नाभि से कमल, कमल से ब्रह्मा जी, ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि ऋषि हुए, मरीचि ऋषि के पुत्र कश्यप ऋषि हुए, कश्यप ऋषि के पुत्र सूर्य हुए, सूर्य के वंश परंपरा में भगवान श्री राम का जन्म हुआ।
गंगा के पावन तट पर श्री शुकदेव जी राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत का श्रवण करा रहे हैं। जिसमें राजा परीक्षित को भगवान श्री राम का जीवन चरित्र के साथ सूर्यवंशी का वंश परंपरा बता रहे हैं। सूर्य के पुत्र श्राद्धदेव वैवस्वत मनु हुए। जिनके वंश परंपरा में श्राद्धदेव त्रिशंकु राजा हुए। उन्हीं के वंश परंपरा में राजा हरिश्चंद्र, उनके आगे सगर राजा, सगर राजा के वंश में भागीरथी राजा हुए। भागीरथ के आगे वंश परंपरा में सौदास नाम के राजा हुए। जिनके पुत्र का नाम अस्मत था।
श्री राम और सीता जी की वंश परंपरा पर प्रकाश
अस्मत के पुत्र मूलक थे। मुलक के वंश परंपरा में दशरथ, दशरथ के आगे खटवांग, उनके पुत्र दीर्घवाहु, उनके वंश परंपरा में राजा रघु हुए। राजा रघु के पुत्र अज और अज के पुत्र चक्रवर्ती राजा दशरथ हुए। राजा दशरथ के पुत्र भगवान श्री राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न हुए।

भगवान श्री राम के बाद सूर्यवंशी का जो वंश परंपरा चला, उसमें भगवान श्री राम के पुत्र लव कुश और कुश के पुत्र अतिथि हुए। अतिथि के पुत्र निशक, निशक के पुत्र नभ, नभ के पुत्र पुंडरीक, पुंडरीक के वंश परंपरा में प्रसेनजीत राजा हुए। प्रोसेनजीत के वंश परंपरा में एक प्रसिद्ध राजा सूरत हुए। उनके आगे वंश में अंतिम राजा सुमित हुए।
सीता जी का वंश परंपरा
सीता जी का भी वंश परंपरा सूर्यवंशी ही है। क्योंकि वह भी सूर्य देवता के ही वंश के हैं। जैसे कि सूर्य के पुत्र मनु के वंश परंपरा में इक्ष्वाकू राजा हुए, इक्ष्वाकू राजा के सैकड़ो पुत्र थे। जिनमें एक राजा नेमी हुए। राजा नेमी के शरीर से मंथन करके एक बालक पैदा किया गया। जिसका नाम जनक पड़ा। जनक का नाम विदेह और मिथिल भी था। अब इस वंश परंपरा में जो भी राजा हुए उनके नाम के आगे जनक और विदेह लगाया जाता था। राजा जनक के आगे वंश परंपरा में राजा देवराज हुए।
राजा देवराज के वंश परंपरा में मरुद, मरुद के वंश परंपरा में देवहिड़, देवहिड़ के वंश परंपरा में महारुमा, महारूमा से स्वर्णरूमा, स्वर्णरोमा से हर्षरूमा, हर्षरूमा से सीरध्वज हुए। सीरध्वज से ही सीता जी की उत्पत्ति हुई। जिन्हें जनक के नाम से भी जाना जाता है। फिर आगे सीरध्वज जनक राजा से कुशल ध्वज हुए। कुशलध्वज के पुत्र धर्मध्वज, धर्मध्वज के पुत्र कीर्तध्वज और मित्तल ध्वज, कीर्तध्वज से केसीध्वज हुए। इसी वंश परंपरा में आगे चलकर अरिष्टनेमी नाम के राजा हुए। बहुत आगे चलकर इसी वंश परंपरा में चित्ररथ राजा हुए। चित्ररथ से मिथिलापति छेमदी, छेमदी के वंश परंपरा में कीर्ति राजा हुए। कीर्ति के पुत्र महावासी राजा हुए।
श्री राम जी का संक्ष्प्ति जीवन चरित्र
सूर्यवंश की वंश में भगवान श्रीमन नारायण ने श्री राम के रूप में राजा दशरथ और कौशल्या जी के पुत्र के रूप में जन्म लिया था। राजा दशरथ का विवाह कौशल नरेश की पुत्री कौशल्या से हुआ था। फिर बाद में उनका कैकय नरेश की बेटी कैकई से और सुमित्रा से हुआ था।
राजा दशरथ को कोई पुत्र नहीं था। तब उन्होंने वशिष्ठ ऋषि के आदेश से श्रृंगी ऋषि को बुलाकर यज्ञ करवाया। श्रृंगी ऋषि ने राजा दशरथ को एक हविष दिया। जिसे राजा दशरथ ने अपनी तीनों पत्नियों में बांट दिया। वहीं कैकई के हाथों से एक चील हविष लेकर उड़ गई। वही एक जगह पर वानर राज केसरी की पत्नी अंजना भगवान शंकर जी का पुत्र प्राप्ति के लिए पूजा कर रही थी। चील वहीं अंजना के पास उस हविष को गिरा दिया। जिसे अंजना लेकर खाई। उसी से बजरंगबली हनुमान जी का जन्म हुआ।
दशरथ जी की तीनों पत्नियों ने वह प्रसाद खाया, जिससे उनके घर में चार पुत्र का जन्म हुआ। कौशल्या से राम जी का, कैकई से भरत जी का और सुमित्रा से लक्ष्मण जी और शत्रुघ्न जी का जन्म हुआ। वहीं श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न जी जब बड़े हुए तो विश्वामित्र मुनि ने राम लक्ष्मण जी को मांग कर दशरथ जी से बक्सर लेकर आए। जहां राम जी और लक्ष्मण जी ताड़का और सुबाहु का वध किया।
सीता जी का स्वयंबर
वहीं बक्सर में भगवान श्री राम ने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या जी जो पत्थर स्वरूप में हो गई थी, उनको भी स्त्री स्वरूप में उद्धार किए। वहां से विश्वामित्र मुनि राम लक्ष्मण जी को लेकर मिथिला में गए। जहां सीता जी का स्वयंवर हो रहा था। वहां राम जी ने स्वयंवर में धनुष तोड़कर सीता जी से विवाह किए, लक्ष्मण जी का उर्मिला से भरत जी का मांडवी से और शत्रुघ्न जी का श्रुतकीर्ति से विवाह हुआ।
सीता जी का जन्म जमीन से निकले एक घड़े से हुआ था। रावण ऋषि मुनियों का खून निकाल कर एक घड़े में रखता था। जिसको एक बार मंदोदरी ने गलती से पी लिया था। अब उसके गर्भ में एक बालक हुआ, एक दिन आकाशवाणी हुआ कि अगर इस गर्भ से बालक हुआ तो बहुत बड़ा सर्वनाश होगा। इसलिए रावण ने क्या किया कि उस गर्भ के बालक को एक घड़े में करके ले जाकर जमीन में गाड़ दिया।
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सीता जी का जन्म
वहीं एक बार मिथिला में बारिश न होने की वजह से सुखाड़ हो गया था। तब राजा जनक हल चला रहे थे, उसी समय वह घड़ा जनक जी के हल से टकरा गया। उस घड़े से सीता जी का जन्म हुआ। जनक ले जाकर जनक राजा अपनी पुत्री की तरह पालने लगे। वहीं सीता जी का एक बार स्वयंवर हुआ, जहां पर परशुराम जी के द्वारा दिया गया शिव धनुष जनक जी ने स्वयंवर के शर्त के रूप में रखा। उनका शर्त था कि जो भी इस धनुष को उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी से सीता जी का विवाह होगा। वही भगवान श्री राम विश्वामित्र जी के साथ आए थे। वहां विश्वामित्र के आदेश से शिव धनुष को उठाकर तोड़ दिए। सीता जी से विवाह हो गया।
राम जी अयोध्या जाकर कुछ दिनों के बाद कुछ लोकाअपवाद की वजह से उन्हें 14 वर्ष का वनवास हुआ। जहां उन्होंने कई बड़े-बड़े राक्षसों के साथ-साथ रावण कुंभकरण का वध किया। फिर से अयोध्या वापस आए। राजा बनकर राम राज्य स्थापित किए। कुछ दिनों बाद फिर से राज्य में शांति और लोकाअपवाद को खत्म करने के लिए सीता जी को जंगल जाना पड़ा। सीता जी के लव और कुश दो पुत्र हुए। वही आगे चलकर वाल्मीकि ऋषि के आशीर्वाद से लव और कुश ने रामायण का कथा भगवान राम को भी सुनाया।
सीजा जी धरती में समाई
जिसके बाद उन्होंने सीता जी बुलाया और समाज के सामने परीक्षा देने के लिए कहा। उस समय सीता जी धरती माता को पुकारी और धरती फट गई। जिसमें धरती माता सीता जी को अपने साथ लेकर चली गई। इसी तरह आगे चलकर राम जी लव कुश, लक्ष्मण जी भारत जी और शत्रुघ्न जी के पुत्रों को भी राजा बना दिए और उसके बाद चारों भाई के साथ-साथ अयोध्या के कई लोगों के साथ साकेत धाम चले गए। रामायण के अनुसार भगवान श्री राम का शासन काल 11000 वर्ष और श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार भगवान श्री राम का शासन काल 13 हजार वर्षों का था।

रवि शंकर तिवारी एक आईटी प्रोफेशनल हैं। जिन्होंने अपनी शिक्षा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी स्ट्रीम से प्राप्त किए हैं। रवि शंकर तिवारी ने डॉ एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी लखनऊ से एमबीए की डिग्री प्राप्त किया हैं।