श्री लक्ष्मी प्रपन्ना जियर स्वामी जी महाराज का चातुर्मास्य व्रत 2025 में परमानपुर में हाेगा

सनातन परंपरा के अनुसार जो भी संन्यासी संत होते हैं. वह 8 महीना अलग-अलग जगह पर कथा का रसपान कराते हैं. इसके बाद 4 महीना वह एक ही जगह पर चातुर्मास व्रत हर वर्ष निरंतर करते हैं. 2024 में श्री स्वामी जी का चातुर्मास व्रत सिंगराकला डाल्टेनगंज (मेदनीनगर) झारखंड राज्य में संपन्न हुआ. जहां पर परमानपुर ग्राम वासियों ने निवेदन करके 2025 में चातुर्मास व्रत करने के लिए आमंत्रण पत्र सौंपा. जिसकी सहमति स्वामी जी ने भी दे दी.

अब 2025 में परमानपुर अगियाँँव बाजार पीरो आरा भोजपुर बिहार में होना है. जिसकी तैयारी अभी से ही परमानपुर वासी एवं सभी आसपास क्षेत्र के भक्तगण करना शुरू कर दिए हैं. 2025 चातुर्मास व्रत यज्ञ की जानकारी चातुर्मास व्रत समिति के अध्यक्ष श्री छोटेलाल तिवारी द्वारा दी गई. उन्होंने बताया कि हम सभी भक्तगण एवं ग्रामवासी सिंगराकला डाल्टेनगंज में स्वामीजी को आमंत्रण पत्र दिए.

जिस अवसर पर जदयू नेता श्री मनोज उपाध्याय, भोला तिवारी, रमाशंकर तिवारी, संतोष तिवारी, अरविंद तिवारी, रामानुज तिवारी, डिजिटल मीडिया इन्‍फ़्लुएंसर रवि शंकर तिवारी, श्याम जी तिवारी, विकास पांडे, पप्पू दुबे, रमाकांत तिवारी, श्याम जी तिवारी, संजय तिवारी, दीनानाथ तिवारी, गजाधर तिवारी, मुनि जी तिवारी, बबन तिवारी, रविंद्र पांडे, प्रवीण तिवारी, गौरी शंकर तिवारी, शिव शंकर तिवारी, राजीव तिवारी, शालिग्राम तिवारी, नंद जी राम, मुकेश पांडे, अशोक पांडे, विपुल तिवारी, मुन्ना ओझा, राजेंद्र उपाध्याय, ललन दुबे, मुन्ना दुबे, श्याम सुंदर तिवारी एवं सभी ग्रामवासी मौजूद रहे.

श्री लक्ष्मी प्रपन्ना जियर स्वामी जी महाराज कौन है

जियर स्वामी जी महाराज कौन है? श्री लक्ष्मी प्रपन्ना जियर स्वामी जी महाराज का जीवनी. जीयर स्वामी जी महाराज भारत के महान संत है. जिन्होंने भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में वैष्णव संप्रदाय के ध्वज पताका को एक नई ऊंचाई प्रदान किया. पूज्य जीयर स्वामी जी महाराज पूज्य श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज के शिष्य हैं.

इस भारत भूमि पर कई महान तपस्वी हुए. उन्हीं में से एक भारत के महान संत तपस्वी श्री त्रिदंडी स्वामी जी महाराज थे. उन्‍हीं के शिष्य के रूप जीयर स्वामी जी महाराज ने दीक्षा ग्रहण किया. उसके बाद से ही उनके सानिध्य में तपस्या करने लगे.

jiyar swami buxar bihar - श्री लक्ष्मी प्रपन्ना जियर स्वामी जी महाराज

श्री त्रिदंडी स्वामी जी के शिष्‍यों में से जीयर स्वामी जी भी एक हैं. लेकिन उन सभी शिष्यों में से सबसे उत्तम, बेहतर, तेजस्वी, ओजस्वी सन्यासी रूप में पहचान मिला. त्रिदंडी जी एक दिव्य संत थे. जिन्हें भूत, भविष्य, वर्तमान का बेहतर अनुभव प्राप्त था. इसिलिए उन्‍होंने जीयर स्वामी जी को एक बेहतर संन्यासी रूप में देखा.

जिसके बाद उन्होंने अपना उत्तराधिकारी उनको बनाया. जब श्री त्रिदंडी महाराज इस धरा धाम को छोड़ने लगे. उसके पहले अपना त्रिदंड उन्होंने श्री जीयर स्वामीजी को देकर वैष्णव संप्रदाय के इस कार्य को आगे बढ़ाने का उत्तराधिकारी भी बना दिया. जिसके बाद से निरंतर पूज्य महाराज एक संन्यासी रूप में अपने दिनचर्या को समर्पित कर दिए.

जियर स्वामी जी का ब्रह्मचर्य जीवन आरंभ

पूज्य श्री त्रिदंडी महाराज ने अपने यज्ञ में ग्राम ओझा के सिमरियां शाहपुर बिहार में यज्ञोपवित कराकर ब्रह्मचारी रूप में जीयर स्वामीजी को अपने साथ शामिल किए. ऐसा कहा जाता है कि पूज्य श्री त्रिदंडीजी का 90 के दशक ग्राम सिसरीत में जब यज्ञ हो रहा था. उस समय श्री स्वामी जी को उनके प्रति बहुत ही ज्यादा लगाव हो गया. पूज्य श्री जीयर स्वामी जी महाराज का गांव नोखा के नजदीक सिसरीत है.

जहां से वे नियमित रूप से यज्ञ में शामिल होते थे. जिसके बाद लगातार वे शिष्य बनने का प्रयास करने लगे. उसके बाद ग्राम सिमरिया में शिष्‍य बन गए. लगातार कई वर्षों तक श्री त्रिदंडी स्वामी जी का शिष्य बनकर साधना करते रहे. जिसके बाद उत्तर प्रदेश चंदौली जिला के कावर गांव में पूज्य श्री त्रिदंडी स्वामी जी ने सबसे प्रिय शिष्य को संन्यास का दीक्षा देकर श्री लक्ष्मी प्रपन्ना जियर स्वामी जी का उपाधि दिया. इसके पहले ये लल्लन मिश्र नाम से जाने जाते थे. लेकिन उनके आश्रम का नाम वैद्यनाथ था.

श्री स्वामीजी का संन्‍यासी जीवन 

पूज्य जीयर स्वामीजी संन्यास बाद अपना जीवन कठिन तपस्या द्वारा आगे बढ़ाते हुए निरंतर जप, तप, स्वाध्याय, साधना के कठिन मार्ग पर चलना शुरू कर दिए. संन्यास लेने के बाद फूस की बनी झोपड़ी में वास करने लगे. इनका आहार केवल एक बार कुछ फल लेना है. उसके बाद सूर्योदय बाद और सूर्यास्त पहले केवल एक बार गंगाजल का पान करते हैं.

पूज्य स्वामी जी का जीवन बहुत ही कठिन एवं तपस्या से भरा हुआ है क्योंकि वह अपने कभी पैसा को हाथ से नहीं छुते हैं. वह अपने पास मोबाइल भी नहीं रखते तथा उनका शयनकक्ष भी बहुत ही साधारण होता है. जिनमें केवल एक कंबल के आसन पर ही विश्राम करते हैं.

श्री जीयर स्वामी जी का यज्ञ भ्रमण

स्वामी जी का 1 वर्ष में 8 महीना भ्रमण काल होता है. जिसमें वे अनेक गांव जाकर वास करते हैं और लोगों को कथा प्रवचन सुनाते हैं. बरसात में 4 महीना एक ही स्थान पर वास करते हैं. जहां रहकर वह भगवान का स्मरण एवं तपस्या करते हुए चतुर्यमास्य व्रत पूरा करते हैं. सुबह शाम आरती तथा प्रवचन कर लोगों का कल्याण करते हैं.

वर्तमान पूज्य श्री जियर स्वामी जी महाराज मानव रूपी एक दिव्य परमात्मा के अंश रूप में हैं. जिनके द्वारा समाज, संस्कृति, मानवता, ईमानदारी, भगवत भक्ति की निरंतर धारा बहाया जा रहा है. जिससे भक्ति रूपी धारा से संपूर्ण मानव समाज का कल्याण हो रहा है. ऐसे महान संत दर्शन करने से ही मानव जीवन कृतार्थ हो जाता है.

श्री स्वामी जी महाराज के गुरु 

सामान्य तौर पर एक संत का परिचय उनके गुरु से ही होता है. इसीलिए इस लेख में पूज्य श्री स्वामी जी महाराज के गुरु परंपरा को बताया गया है जो कि पूर्ण है. हम सामान्य मनुष्य की तरह एक संत का परिचय उनके माता-पिता से नहीं उनके गुरु होते हैं. इसीलिए इस लेख में पूज्य श्री त्रिदंडी महाराज के बारे में बताया गया है जो कि पूज्य श्री स्वामीजी महाराज के गुरु हैं.

पूज्य श्री जीयर स्वामी महाराज का पूरा जीवन वैष्णव संप्रदाय मानव संस्कृति का कल्याण एवं पूज्य गुरुदेव के बताए गए मार्ग चल रहे हैं. उनके गुरु द्वारा दी गई शिक्षा उद्देश्य को निरंतर लोगों के बेहतर जीवन दिनचर्या को बनाने के लिए ही समर्पित होता है.

पूज्य श्री त्रिदंडी महाराज के शिष्‍यों की संख्या बहुत है. लेकिन उन सभी शिष्यों में सबसे सर्वश्रेष्ठ स्वामी जी महाराज हुए. क्योंकि इनके तेज समर्पण के कारण ही उनको पूज्य त्रिदंडी महाराज ने वैष्णव परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए सबसे बेहतर महसूस किया. जिसके बाद से लगातार वैष्णव परंपरा को आगे बढ़ाने वाले दुनिया के महान संत सन्यासी पूज्य श्री लक्ष्मी प्रपन्ना जियर स्वामीजी महाराज हम सभी भक्तों को भक्ति का ज्ञान देकर कृतार्थ कर रहे हैं.

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